Shivaji Maharaj Fort in Hindi
छत्रपति शिवाजी महाराज मराठा साम्राज्य और महाराष्ट्र के इतिहास के सबसे बहादुर और महान योद्धा थे। नियोजन के साथ उनके अच्छे प्रशासन ने उन्हें विजय की एक राह तक पहुंचाया। छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने शासनकाल में मराठवाड़ा के लगभग 360 किले जीते। छत्रपति शिवाजी महाराज की ही वजह से आज महाराष्ट्र बहुत से किलो का घर है।
उनमेंसे कुछ किले मुख्य हैं। लेकिन किलो की देखभाल को अनदेखा करने से आज छत्रपति शिवाजी महाराज के बहुत से किलो की हालत ख़राब होती जा रही है। लेकिन आज भी उन किलो का तेज बरकरार है। आज हम यहाँ छत्रपति शिवाजी महाराज के उन्ही किलों – Shivaji Maharaj Fort के बारेमें जानेंगे।
छत्रपति शिवाजी महाराज के किले – Shivaji Maharaj Fort
Shivneri Fort – शिवनेरी किला:
17 वीं शताब्दी का किला, शिवनेरी छत्रपति शिवाजी महाराज की जन्मभूमि है। किले में देवी शिवाई का छोटा मंदिर है। देवगिरी के यादव के नियंत्रण में होने की वजह से इसका ना शिवनेरी रखा गया। दुर्भाग्य से मराठा शासक इसपर शासन नही कर सके लेकिन फिर भी दो बार मराठाओ ने इसपर विजय पाने की नाकाम कोशिश की थी।
मुख्य द्वार के अलावा किले का एक चैन द्वार भी है, जहाँ पर्यटकों को चैन पकड़कर पहाड़ की चढ़ाई कर किले तक पहुचना पड़ता है। किले में राजमाता जिजाबाई और युवा छत्रपति शिवाजी महाराज का पुतला, बदामी तलाव नामक पानी का तालाब और गंगे और यमुना नामक दो पानी के फव्वारे भी बने है, जहाँ साल भर पानी रहता है। Read More: शिवनेरी किला – Shivneri Fort
Torna Fort – तोरणा किला:
छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा 16 साल की उम्र में जीता गया यह पहला किला है। जिसे प्रंचडगड के नाम से भी जाना जाता है। जिसकी उत्पत्ति मराठी शब्द ‘प्रचंड’ से हुई और इसका अर्थ विशाल से है और ‘गढ़’ का अर्थ किले से है। किले के भीतर बहुत से स्मारकों का निर्माण किया गया है। यह किला समुद्र सतह से 4603 फीट की ऊंचाई पर है।
18 वी शताब्दी में संभाजी महाराज की हत्या के बाद मुघल सम्राट औरंगजेब ने किले पर कब्ज़ा कर लिया और बाद में इसका नाम ‘फुतुलगैब’ रखा गया। Read More: तोरणा किला – Torna Fort
Rajgad Fort – राजगढ़ किला:
राजगढ़ (शासित किला) भारत के पुणे जिले में स्थित एक पहाड़ी किला है। यह मराठा साम्राज्य की राजधानी है। छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपनी जिंदगी के 26 साल राजगढ़ में व्यतीत किए। यह किला उन 17 किलो में से एक है जिन्हें 1665 में जय सिंह के खिलाफ छत्रपति शिवाजी महाराज ने पुरंदर की संधि में दे दिए थे। राजगढ़ बहुत सी एतिहासिक घटनाओ का स्थल रह चूका है।
छत्रपति शिवाजी महाराज के बेटे राजाराम का जन्म, छत्रपति शिवाजी की रानी साईबाई की मृत्यु, अफज़ल खान के सिर का दफ़न यही हुआ और साथ ही आगरा से छत्रपति शिवाजी महाराज यही वापिस आए थे। Read More: राजगढ़ किला – Rajgad Fort
Lohgarh Fort – लोहगढ़ किला:
प्राचीन समय से ही इस किले का काफी महत्त्व है और यह किला खंडाला का व्यापर मार्ग भी बना हुआ था। पांच सालो तक यह किला मुघल साम्राज्य के नियंत्रण में था। अलग-अलग साम्राज्यों ने लोहगढ़ पर शासन किया है, जिनमे मुख्य रूप से सत्वाहन, चालुक्य, राष्ट्रकूट, यादव, ब्राह्मण, निज़ाम, मुघल और मराठा शामिल है।
1648 में लोहगढ़ पर छत्रपति शिवाजी ने कब्ज़ा कर लिया और पुरंदर की संधि के चलते 1665 में उन्हें यह किला मुघलो को सौप देना पड़ा। 1670 में छत्रपति शिवाजी ने पुनः किले पर कब्ज़ा कर लिया और इसका उपयोग वे अपने खजाने को छुपाने के लिए कर रहे थे। पेशवा के समय में नाना फडनविस यहाँ कुछ समय तक रुके और यहाँ उन्होंने बहुत से स्मारकों का भी निर्माण करवाया।
वर्तमान में यह किला भारत सरकार के नियंत्रण में है। Read More: लोहगढ़ किला – Lohgarh Fort
Lohagad Fort – लोहगढ़ किला:
लोहगढ़ भारत में महाराष्ट्र राज्य के कई पहाड़ी किलों में से एक है। लोनावाला पहाड़ी स्टेशन और पुणे के 52 किमी उत्तर-पश्चिम के निकट स्थित, लोहगढ़ समुद्र तल से 1,033 मीटर ऊंचा है। छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा दो बार इस किले पर विजय प्राप्त करने के बाद, लोहागढ़ ने अपनी रणनीतिक स्थान के कारण इसकी प्रमुख महत्व रखी थी। Read More: लोहगढ़ किला – Lohagad Fort
Vijaydurg Fort – विजयदुर्ग किला:
विजयदुर्ग, सिंधुदुर्ग तट पर सबसे पुराने किला हैं। यह एक सुंदर और अभेद्य समुद्र का किला हैं। विजयदुर्ग छत्रपति शिवाजी की सर्वश्रेष्ठ जीत मानी जाती है।
इस किले का उपयोग मराठा युद्धपोतो के एंकर के रूप में किया जाता था, क्योकि यह किला वाघोटन क्रीक से घिरा हुआ था। विजय दुर्ग को पहले ‘घेरिया’ के नाम से जाना जाता था, लेकिन 1653 में जब छत्रपति शिवाजी महाराज से इसपर कब्ज़ा कर लिया तो उन्होंने इसका नाम विजय दुर्ग रखा। यह किला छत्रपति शिवाजी महाराज के उन दो किलो में से एक है जहाँ छत्रपति शिवाजी महाराज ने स्वयं केसरियाँ रंग का ध्वज लहराया, जबकि दुसरे किले का नाम तोरणा है।
हाल ही में आयी मराठी फिल्म “किल्ला” की शूटिंग इसी किले के भीतर की गयी है। Read More: Vijaydurg Fort – विजयदुर्ग किला
Raigad Fort – रायगढ़ किला:
महाराष्ट्र के इतिहास में एक युग का बना रायगढ़ किला, मराठा साम्राज्य की राजधानी थी। यहाँ छत्रपति शिवाजी महाराज के शाही राज्याभिषेक मराठा साम्राज्य के आधिकारिक राजा के रूप में हुआ था। छत्रपति शिवाजी महाराज ने इस किले में अपना अंतिम सांस ली।
महाड में स्थापित इस पर्वतीय किले को पहले रैरी के नाम से जाना जाता था। 1656 में चंद्रराव से छत्रपति शिवाजी से इसे हासिल किया था और इसमें बदलाव एवं सुधार कर इसका नाम रायगढ़ रखा गया। बाद में यही किला छत्रपति शिवाजी महाराज के साम्राज्य की राजधानी भी बना। इसी किले में छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक भी किया गया। 1680 में छत्रपति शिवाजी ने अपनी अंतिम साँस भी इसी किले में ली।
1689 में ज़ुल्फिखर खान ने किले पर कब्ज़ा कर लिया और इसका नाम बदलकर ‘इस्लामगढ़’ रखा। बाद में 1818 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने तोपों का उपयोग कर किले को ध्वस्त कर दिया। Read More: रायगढ़ किला – Raigad Fort
Sindhudurg Fort – सिंधुदुर्ग किला:
सिंधुदुर्ग किला मराठा साम्राज्य के लिए एक शक्तिशाली किला हैं। यह बेहतरीन समुद्री किलो में से एक सिंधुदुर्ग मराठा साम्राज्य की शक्तिशाली नौसेना का आधार था। किले में छत्रपति शिवाजी महाराज और उनके चरण चिन्हों का एकमात्र मंदिर है।
यह किला नौसेना के जहाजो के लिए एक सुरक्षित आधार था और इसका निर्माण हीरोजी इंदलकर की निगरानी में 1664 में किया गया। इस किले के निर्माण का मुख्य लक्ष्य भारत में बढ़ रहे विदेशी उपनिवेशक को खंडित करना था। यह किला 48 एकर में फैला हुआ है, जिसकी 30 फीट ऊँची दीवारे है।
वर्तमान में यह किला मुख्य पर्यटन स्थल बना चूका है। और इस जगह तक पहुंचने के लिए घाट उपलब्ध हैं। Read More: सिंधुदुर्ग किला – Sindhudurg Fort
Panhala Fort – पन्हाला किला:
12 वी शताब्दी में बना पन्हाला महाराष्ट्र के प्राचीनतम किलो में से एक है। छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने जीवन के 500 से ज्यादा दिन यही व्यतीत किए। 1689 में संभाजी महाराज की मृत्यु के बाद किले पर औरंगजेब ने कब्ज़ा कर लिया। 1692 में किले पर काशी रंगानाथ सरपोतदार ने परशुराम पंत प्रतिनिधि के नेतृत्व में कब्ज़ा कर लिया।
1701 में औरंगजेब ने पुनः किले पर कब्ज़ा कर लिया लेकिन कब्ज़ा करने के कुछ ही महीनो बाद पंत अमत्य रामचंद्र ने इसे पुनः हासिल कर लिया। बाद में 1844 में किले पर ब्रिटिशो ने कब्ज़ा कर लिया।
Murud-Janjira – मुरुड जंजीरा:
मुरुड जंजीर द्वीप अपने नीतिगत स्थान और सुंदर आर्किटेक्चर के लिए प्रसिद्ध है। किले का प्रवेश द्वार चार हाथियों के साथ आपका स्वागत करता है जो किले में रहने वाले सिदियो की शक्ति को दर्शाता है। इस किले को भारत के सबसे मजबूत समुद्री किलो में से एक माना जाता है।
17 वी शताब्दी में बना यह किला प्राचीन इंजीनियरिंग का अद्भुत उदाहरण है और आज भी अ-क्षतिग्रस्त है। महिमा के शिखर के समय यह किला 572 तोपों का घर था, जिनमे 3 मुख्य तोप – कलाबंगदी, चावरी और लंडाकसम भी शामिल थी। आज भी हम उन तोपों को देख सकते है।
Sinhagad Fort – सिंहगढ़ किला:
महाराष्ट्र के इतिहास में सिंहगढ़ का विशेष महत्त्व है। सह्याद्री पहाड़ी की भलेश्वर रेंज पर बना सिंहगढ़ जमीन से 760 मीटर की ऊंचाई और समुद्री सतह से 1312 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह किला पुणे शहर से लगभग 30 किमी दक्षिण पश्चिम में स्थित है।
मुघलो के साथ हुई भीषण युद्ध में मराठाओ ने इस किले पर कब्ज़ा किया था। लेकिन, तानाजी मालुसारे ने अपना जीवन खो दिया। और इनके जाने के बाद छत्रपति शिवाजी महाराज ने “गढ़ आला पण सिंह गेला” यह शब्द कहे। इसीलिए इसका बाद सिंहगढ़ रखा गया। यह मराठा इतिहास के पन्नों में आज भी अजरामर है। Read More: सिंहगढ़ किला – Sinhagad Fort
Pratapgad Fort – प्रतापगढ़ किला:
प्रतापगढ़ सचमुच ‘बहाल किला’ पश्चिमी भारत राज्य महाराष्ट्र में सातारा जिले में स्थित एक बड़ा किला है। प्रतापगढ़ की लड़ाई के स्थल के रूप में महत्वपूर्ण, किला अब एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। प्रतापगढ़ छत्रपति शिवाजी महाराज और शक्तिशाली अफजल खान के बीच मुठभेड़ के लिए प्रसिद्ध है। Read More: प्रतापगढ़ किला – Pratapgad Fort
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सर मैं यह जानना चाहता हूं कि पुरंदर की संधि के बाद शिवाजी की क्या नीति रहीं और इसके बाद शिवाजी के पास कितने किले शेष बचे और पुरंदर की संधि में दिए हुए किले बाद में उन्होंने जीते या नहीं।