त्रिपुरा राज्य का इतिहास और जानकारी | Tripura History Information

भारत में कई सारे राज्य है और बहुत से केन्द्रशासित प्रदेश है। उनकी अपनी अलग पहचान है, अपनी एक अलग संस्कृति है। भारत में कुछ राज्य बहुत ही बड़े है जैसे की राजस्थान और कुछ राज्य बहुत ही छोटे है जो मैप पर बड़ी मुश्किल से मिल पाते है जैसे की गोवा। कुछ ऐसे ही छोटे राज्यों में त्रिपुरा – Tripura का नाम भी लिया जाता है। इसकी खास बात यह है की भारत के मैप पर इसे ढूंढने में काफी तकलीफ होती है। आज हम आपको इसी छोटे लेकिन महत्वपूर्ण राज्य की जानकारी देनेवाले है।

Tripura History Information

त्रिपुरा राज्य का इतिहास और जानकारी – Tripura History Information

भारत के उत्तर पूर्वी सीमा के सात राज्यों में त्रिपुरा भी शामिल है। त्रिपुरा भारत का तीसरा सबसे छोटा राज्य है। इस राज्य के उत्तर पश्चिम और दक्षिण दिशा में बांग्लादेश है। राज्य के पूर्वी इलाके में मिजोरम और आसाम है। अगरतला त्रिपुरा की राजधानी है।

त्रिपुरा राज्य का इतिहास – Tripura History

महाभारत, कई सारे धार्मिक पुराण और अशोक सम्राट के समय में मिले शिलालेख में भी त्रिपुरा का वर्णन किया गया है। प्राचीन समय में त्रिपुरा को किरात देश कहा जाता था क्यों की एक समय मे यहापर किरात राज्य हुआ करता था।

कई सदियों तक इस राज्य पर त्विप्रा राज्य का शासन था लेकीन किस समय में था इसके बारे में किसी को कुछ ज्ञात नहीं। राजमाला की किताब जिसे त्रिपुरी राजाओ ने पहली बार 15 वी सदी में लिखा था, उसमे कुल 179 राजा की पूरी जानकारी दी है और उसमे कृष्णा किशोर माणिक्य (1830-1850) की भी पूरी जानकारी दी है।

समय के साथ साथ इस राज्य की सीमाए हर समय में बदलती गयी। इस राज्य के दक्षिण में सुंदरबन के जंगल पूर्व में बर्मा यानि की आज का म्यांमार और उत्तर में कमार्पुरा राज्य स्थित है। इस राज्य पर मुस्लीम शासको ने 13 सदी के शुरुवात से ही कई हमले किये जिसकी वजह से 1733 में इस राज्य पर पूरी तरह से मुस्लीम लोगो का शासन था लेकिन पहाड़ी इलाके में वह कभीभी राज्य नहीं कर सके। त्रिपुरी राज्य में किसे राजा बनाना है इसपर मुगलों का पूरा प्रभाव था।

जब भारत पर अंग्रेजो ने कब्ज़ा कर लिया था उस वक्त त्रिपुरा एक रियासत राज्य बन गया था। अंग्रेजो के समय में यह एक टिप्पेरा जिला था और कुछ लोग इसे चकला रोषनाबाद (अब यह बांग्लादेश का जिला है ) भी कहते थे। इसके अलावा यहापर एक टिप्पेरा पहाड़ी भी है जिसके नाम पर से इसे राज्य का नाम दे दिया गया।

जब राजा कृष्ण माणिक्य का शासन था उस समय उदयपुर त्रिपुरा की राजधानी थी लेकिन बाद में 18 वी सदी में राजा ने पुराने अगरतला को त्रिपुरा की राजधानी घोषित कर दिया। 19 वी सदी में एक बार फिर राजधानी को बदलकर नयी अगरतला को राजधानी घोषित कर दिया गया।

अंग्रेजो की व्यवस्था को आदर्श मानकर बीर चन्द्र माणिक्य ने कई सारे बदलाव किये जिसमे उसने अगरतला नगर निगम की स्थापना भी की।

1947 में भारत को आजादी मिलने के बाद में टिप्पेरा जिला पूर्व पाकिस्तान के कब्जे में चला गया था और 1949 तक टिप्पेरा पहाड़ी रीजेंसी कौंसिल के हात में ही थी।

9 सितम्बर 1949 को त्रिपुरा की महारानी ने भारत के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किये जिसके कारण यह भारत का पार्ट सी राज्य बना दिया गया। नवम्बर 1956 में इसे बिना किसी नियम बनाये देश का केंद्रशासित प्रदेश बना दिया गया था और जुलाई 1963 में इसका मंत्रिमंडल भी चुना गया था।

आजादी मिलने के बाद में इस राज्य के विकास पर विशेष ध्यान दिया गया। इस राज्य को देश के अन्य राज्यों से जोड़ने के लिए यातायात पर विशेष ध्यान दिया गया। इस राज्य को दो होस्सो में बाटने से पहले कोलकाता और अगरतला के बिच में केवल 350 किमी (220 मील) की दुरी थी लेकिन बाद में पूर्व पाकिस्तान बनने के बाद में इन दो शहरों की दुरी 1700 किमी (1100 मिल) हो गयी थी।

1971 में जब भारत पाकिस्तान के बिच लड़ाई हुई तो उस वक्त इस राज्य का बहुत सारा हिस्सा पाकिस्तानी सेना ने अपने कब्जे में लिया था। लेकिन लड़ाई ख़तम होने के बाद में सभी उत्तरी सीमा के राज्यों की फिर से एक बार रचना की गयी 21 जनवरी 1972 को तीन नए राज्यों का निर्माण किया गया।

इन तीन नए राज्यों में मेघालय, मणिपुर और त्रिपुरा का निर्माण किया गया। आजादी मिलने के बाद में सभी लोग पूर्व पाकिस्तान छोड़कर त्रिपुरा में रहने आये थे उनमे अधिकतर हिन्दू बंगाली लोग आते थे।

पूर्व पाकिस्तान में अधिकतर मुस्लीम लोग रहते थे इसीलिए उनसे बचने के लिए हिन्दू बंगाली लोग 1949 के बाद बड़ी संख्या में इस राज्य में आये थे। त्रिपुरा में लगातार हिन्दू लोगो की संख्या बढ़ने के कारण यहाँ के स्थानीय त्रिपुरी लोग और हिन्दू बंगाली लोगो के बिच में संघर्ष जारी रहा जिसकी वजह से कई बार हिंसा भी होती थी।

इसीलिए यहाँ के लोगो की सुरक्षा के लिए जनजाति जिला कौंसिल की स्थापना भी की गयी थी जो होने वाली हिंसा को रोक सके। इसीलिए 2016 में भी यह त्रिपुरा राज्य काफी शांततापूर्ण राज्य माना जाता है।

त्रिपुरा राज्य की संस्कृति – Culture of Tripura State

त्रिपुरा की संस्कृति काफी समृद्ध है। इस राज्य में करीब 19 जनजातीय है और आज भी जंगलो में रहना पसंद करती है। त्रिपुरी, रंग, चकमा, गारो, कुकी, उचोई, मणिपुरी और मिज़ो जैसी जनजातीय आज भी अधिकतर जंगलो में रहना पसंद करती है।

यहापर अधिकतर बंगाली हिन्दू लोग अधिक संख्या में रहते है और त्रिपुरा की संस्कृति पर बगांली हिन्दू लोगो का ज्यादातर प्रभाव भी देखने को मिलता है क्यों की यहापर एक समय में त्रिपुरी राजा के दरबार में बंगाली साहित्य और बंगाली भाषा का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता था। आज इस राज्य में हिन्दू, मुस्लीम, बौद्ध और ख्रिश्चन सभी धर्म के लोग एक साथ मिलजुलकर रहते है।

संगीत और नृत्य किसी भी संस्कृति का महत्वपूर्ण भाग होता है। यहापर सुमुई नाम का वाद्य काफी इस्तेमाल किया जाता है जो किसी बासुरी की तरह ही दीखता है। यहाँ के लोग ख़म का इस्तेमाल करते है जिसे हम ढोल भी कहते है।

सरिंदा और चोंग्प्रेंग जैसे वाद्य भी यहाँ के लोग संगीत और नृत्य के समय इस्तेमाल करते है। यहाँ के लोगो की अपनी अपनी अलग परम्परा है और उसे वह उनके गीत और नृत्य के माध्यम से संभालकर रखने की कोशिश करते है और शादी, धार्मिक विधि और त्यौहार के समय उनका प्रदर्शन करते है। यहाँ के त्रिपुरी लोगो का गरिया नृत्य एक तरह का धार्मिक नृत्य होता है।

यहा के रिंग लोगो का होजगिरी नृत्य काफी प्रसिद्ध है और उस नृत्य में लडकिया मटके पर नृत्य करती है। इस राज्य में कई तरह के नृत्य पाए जाते है जैसे की त्रिपुरी लोगो का लेबंग नृत्य, चकमा लोगो का बिझु नृत्य, गारो लोगो का वान्गला नृत्य, हलम कुकी लोगो का हैहक़ नृत्य और मोग लोगो का ओवा नृत्य।

ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से त्रिपुरा बहुत ही सम्रुद्ध राज्य माना जाता है। यहाँ की संस्कृति में कई सारी लोककथा, किम्वदंती, गीत, कहानिया और पहेलिया देखने को मिलती है। इन सभी कहानियों को रोज के अनुभवों के आधार पर ही बनाया गया है जिसमे देवी, देवता, राक्षस, चुड़ैल, इतिहास, वनस्पति, जानवर, आकाशगंगा सभी का वर्णन देखने को मिलता है।

यहाँ के हर समाज के लोग अपने परिसर को साफ़ सुथरा रखने में काफी सावधानी बरतते है और पर्यावरण पर विशेष ध्यान देते है।

यहाँ के कुछ लोग मिल्की वे आकाशगंगा को मौत का रास्ता भी मानते है, आकाश में जो इन्द्रधनुष दीखता है उसे देखकर ऐसा लगता है की वह किसी सरोवर का पानी पिने के लिए जमीन पर आया है, तूफान और आंधी वहा आते है जहा राक्षस रहते है।

इस राज्य में कई तरह के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक जगह है जिन्हें देखने के लिए लोग अक्सर जाते है। उनकोती पत्थर की नकाशी के लिए, निलमहल का पानी के ऊपर बनाया हुआ महल, उज्जवंता का महल पुस्तकालय यहाँ की सबसे प्रसिद्ध जगह मानी जाती है।

त्रिपुरा राज्य की भाषाए – Languages of Tripura State

उत्तर पूर्वी भारत में विशेषरूप से कोकबोरोक और बंगाली भाषा बोली जाती है। लेकिन इसके अलावा भी अन्य भाषाए भी बोली जाती है। अधिकारिक कामो के लिए लोग इंग्लिश भाषा का इस्तेमाल करते है।

लेकिन यहाँ के स्थानीय लोग अधिकतर कोकबोरोक भाषा ही बोलते है। यहाँ रहने वाले जनजाति के लोग ज्यादातर सबरूम और चक्र जैसी बंगाली भाषा का ही इस्तेमाल करते है। कुछ लोग रंखाल और हलम भाषा में भी बात करते है।

त्रिपुरा राज्य का पर्यटन – Tourism of Tripura State

त्रिपुरा जैसे छोटेसे राज्य में देखने जैसे कई सारी जगह है जो पर्यटन का मुख्य आकर्षण बन चुकी है। यहापर कई सारे शानदार महल (अगरतला के उज्जयानता महल और कुंजबन महल, मेलाघर का नीरमहल जल सरोवर), पत्थर पर नक्काशी की बनायीं गयी मुर्तिया (कैलाशाहर के नजदीक की उनकोती, अमरपुर के नजदीक की देब्तापुरा और बेलोनिया की पिलाक) और उदयपुर का माता त्रिपुरिश्वरी मंदिर (51 पिठस्थानो में से एक) है।

यहापर कई सारे जल सरोवर भी है जैसे की जिनमे कुछ प्राकृतिक है और कुछ लोगो ने खुद बनाये है। गंदाचेरा का दुम्बूर सरोवर, मेलाघर का रुद्रसागर सरोवर, अमरसागर, जगन्नाथ दिघी, उदयपुर का कल्याण सागर आदि। यहाँ पर कई सारे पहाड़ी इलाके भी जिन्हें देखनेके लिए लोग काफी दूर से आते है जैसे की मिजोरम की सीमा पर स्थित जामपुई पहाड़ी, सिपहिजाला का अभयारण्य, गुमटी, रोवा और तृषा।

मनु ,बारामुरा और अम्बास इलाके में वन विभाग ने भी कुच्ज उद्यान बनाये है। उज्जयानता महल, राज्य का संग्रहालय, हेरिटेज पार्क, जनजाति संग्रहालय, सुकांता अकादमी, एम बी बी कॉलेज, लक्ष्मीनारायण मंदिर, उमा महेश्वर मंदिर, जगन्नाथ मंदिर, बेनुबन बिहार, गेदुमियन मश्चिद, मलांचा निवास, रविन्द्र कानन, पुर्बसा, हस्तशिल्प डिजाइनिंग सेण्टर, चौदाह देवियों का मंदिर, पोर्तुगीज चर्च आदी अगरतला के मुख्य आकर्षण केंद्र है।

यह राज्य भारत के एक छोर पर होने के कारण बाहर के लोग राज्य में बड़ी आसानी से जा सकते है। इसे रोकने के लिए कई सारी सुविधाए की गयी है। इस राज्य का निर्माण कुछ ही सालों पहले हुआ है लेकिन इसका इतिहास काफी पुराना है। क्यों की पहले समय में इस राज्य को लोग अलग अलग नाम से पहचानते थे।

महाभारत में भी इसके बारे में बाते बताई गयी है। इससे पता चलता है की इस राज्य का इतिहास कितना पुराना है। यहापर ऐसे बहुत सी जगह है जिन्हें देखने के लिए पुरे देश में से लोग आते रहते है। कई तरह के महल, मंदिर, संग्रहालय, हिल स्टेशन इस राज्य की विशेषता है। यहाँ का मौसम भी काफी लुभावना है।

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