सोनपुर मेला जहाँ सुई से लेकर हाथी… सबकुछ अलग अंदाज में बिकता है!

Sonepur Mela

हमारा देश अपने प्राचीन संस्कृति से ओत-प्रोत है और ऐसे कई सारे आयोजन है जो वर्षो से यहाँ हो रहे हो और भारत की संस्कृति का अद्भुत दर्शन करवा रहे है। इन आयोजनों में सबसे प्रमुख होते है मेले जो की पौराणिक सभ्यता को भी बताते है। वैसे तो कुम्भ को सबसे बड़ा मेला कहा जाता है लेकिन एक ऐसा ही मेला है जिसके बारे में कहते है की यहाँ सुई से लेकर हाथी तक मिल जाता है। यह मेला अपने आप में बहुत ख़ास है क्योकि कई सारी अलग चीज लोगो को आकर्षित करती है। हम बात कर रहे है सोनपुर मेले -Sonepur Mela की जो बिहार में लगता है।

Sonepur Mela
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सोनपुर मेला जहाँ सुई से लेकर हाथी… सबकुछ अलग अंदाज में बिकता है! – Sonepur Mela

यह मेला उत्तर वैदिक काल से लगाया जा रहा है। बिहार की राजधानी पटना से लगभग पच्चीस किलोमीटर दूर वैशाली जिले के मुख्यालय हाजीपुर से तीन किलोमीटर दूर सोनपुर में गंडक के तट पर लगने वाला यह मेला बहुत मशहूर है।

इसे मुख्य रूप से पशु मेला कहा जाता था लेकिन अब यह अलग अलग चीजो के लिए मशहूर हो गया। कार्तिक पूर्णिमा यानी की नवम्बर-दिसम्बर में लगने वाले इस मेले को “छत्तर मेला” या फिर “हरिहर क्षेत्र” मेला कहा जाता है। इसे एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला कहा जाता है जहाँ आको सभी तरह के पशु मिल जाते है और मुख्य रूप से है हाथी जिनके लिए यह मेला जाना जाता है।

वैसे हाथियों की खरीद-फरोख्त में सरकार ने रोक लगा दी है लेकिन यहाँ आज भी बिना किसी रोक-टोक के यह बिकते है और खासकर जंगली हाथी यहाँ मिलते है।

शुरू होने की पौराणिक मान्यता-  Sonpur Mela History

जैसे हर एक तीर्थ स्थान और मेले की पौराणिक कथा होती है वैसे ही यहाँ की भी एक कथा है की ये मेला कैसे शुरू हुआ था। कहा जाता है की भगवान् विष्णु के दो अनन्य भक्त “जय” और “विजय” शापित होकर धरती में पैदा हुए। उनमे से एक ग्राह यानी की मगरमच्छ बना और दूसरा गज यानी की हाथी बना। एक दिन गज जब नदी में पानी पीने गया तो ग्राह ने उसे पकड लिया और काफी मेहनत के बाद भी गज उससे छूट नहीं सका।

दोनों की लड़ाई कई वर्षो तक चली और इसके बाद गज ने भगवान् विष्णु का आह्वान किया तो भगवान् ने सुदर्शन चक्र छोड़ा और ग्राह की मौत हो गई और गज मुक्त हुआ। इसके बाद कई सारे देवता इस जगह उसी समय प्रगट हुए और उन्होंने भगवान् विष्णु के साथ साथ गज का भी जयकारा लगाया। इसके ब्रम्हा ने यहाँ पर भगवान् शिव और विष्णु दोनों की मूर्ती लगाईं और इसे नाम दिया हरिहर।

पूरे भारत में इकलौती ऐसी जगह है जहाँ भगवान् शिव और विष्णु की मूर्ती एक साथ रखी गई है। गज की इस जीत को याद करने के लिए हर साल यहाँ उत्सव होने लगा और आज ये मेले का स्वरुप ले चुका है। कहा जाता है की भगवान् राम भी यहाँ आये थे और उन्होंने हरिहर की पूजा की थी।

इसके अलावा सिख धर्म के गुरु नानक देव के यहाँ आने का जिक्र धर्मो में मिलता है और भगवान् बुद्ध भी यहाँ अपनी कुशीनगर की यात्रा के दौरान आये थे। कहा जाता है की चन्द्रगुप्त मौर्य भी इसी मेले से हाथी खरीदा करता थे और इसके अलावा वीर कुंवर सिंह ने 1857 की लड़ाई में यही से ही अपने लिए हाथी-घोड़े खरीदे थे।

पहले यह मेल हाजीपुर में लगता था और सोनपुर में केवल हरिहर की पूजा होती थी लेकिन मुग़ल शासक औरंगजेब के आदेश के बाद यह मेला सोनपुर में भी लगाया जाने लगा और तब से यही लग रहा है।

सोनपुर मेले की ख़ास बात – Sonpur Mela Special

यह मेला लगभग 5 से 6 किलोमीटर के बड़े क्षेत्र में लगाया जाता है। इसमें तरह तरह के जानवर बिकते है। विदेशी इस मेले में भारी संख्या में आते है। इस मेले में बिहार की पारंपरिक छटा भी दिखाई देती है और खाने पीने से लेकर मनोरंजन की चीजे भी बेचीं जाती है। घरेलू सामान, रोजमर्रा की चीजे, पशु, मनोरंजन के साधन आदि यहाँ बेचे जाते है जो की यहाँ की प्रमुखता है।

बदलते स्वरुप में मुख्य आकर्षण –

जैसा ही हर जगह की रीति है की आधुनिकता संस्कृति पर हावी हो जाती है वैसे ही यहाँ भी हुई। इस मेले में धीरे धीरे नाच और नौटंकी वाले आने लगे जो की पहले भी आते थे लेकिन अब उन्होंने थिएटर लगाना शुरू कर दिया। यहाँ अश्लील डांस आदि कराया जाता है।

ये देखने के लिए आपको पांच सौ से हजार रुपये का टिकट देना पड़ता है जो की लोग ख़ुशी ख़ुशी पे करते है। देश ही नहीं बल्कि भारत के बाहर से यहाँ लड़कियां बुलाई जाती है और उनका नाच होता है।

इस अश्लीलता को रोकने के लिए एक बार वहां के स्थानीय डीएम और एसपी ने इसमें रोक लगा दी थी लेकिन बाद में थिएटर वालो ने ऐसा विरोध किया उन्हें झुकना पड़ा। उन्होंने गधे के ऊपर डीएम और एसपी का नाम लिखा और पूरे शहर में घुमाया जिससे तंग आकर उन्हें फिर से इजाजत मिली।

एक समय पर नौटंकी और थिएटर में आने वाली मल्लिका गुलाब बाई का यहाँ जलवा हुआ करता था जो की लोगो के लिए मुख्य आकर्षण का केंद्र थी। इसके अलावा अब यह एक्सपो मेला बन गया है। अलग अलग वाहनों के शोरूम कुछ समय के लिए यहाँ बनाये जाते है और टेक्नोलॉजी की सभी चीजे मिलती है। कुल मिलाकर कहने का अर्थ है संस्कृति से शुरू हुआ ये मेला अब प्रदर्शनी का रूप लेता जा रहा है।

अलग अलग प्रतियोगिता

मेले में जनता का आकर्षण बना रहे इसके लिए अलग अलग प्रतियोगिता आयोजित करवाई जाती है। इनमे सबसे प्रमुख है नौका दौड़ और दंगल। इनके लिए सालभर लोग तैयारी करते है की उन्हें मेले में हिस्सा लेना है।

इसके अलावा दंगल में अलग अलग अखाड़े से आये पहलवानों को अपना भुजवल दिखाने का अवसर मिलता है। पहलवान यहाँ आते है और वो लड़ते है और इसके बाद उन्हें जीतने पर इनाम दिया जाता है। अब ये मेला पूरी तरह से स्थानीय प्रशासन के अंतर्गत आ गया है और उसी की जिम्मेदारी है इसे आयोजित करवाने की।

इसके अलावा दर्शको के लिए यहाँ गीत-संगीत का आयोजन भी करवाया जाता है। क्षेत्रीय भाषा के संगीत अधिक महत्व रखते है और लोग उन्हें ही सुनना चाहते है।

विदेशो पर्यटकों का आना – Foreigners Tourist

मेले में विदेशी पर्यटक भी आते है जो की यहाँ आकर्षण का केंद्र होते है। जर्मनी, अमेरिका, फ्रांस, रसिया जैसे बड़े बड़े देशो से पर्यटक यहाँ आते है और यहाँ का लुफ्त उठाते है।

पर्यटक एयरपोर्ट से आसानी से मेले तक पहुच जाए इसके लिए उन्हें पटना एयरपोर्ट से लेकर सोनपुर तक प्रीपैड टैक्सी भी उपलब्ध करवाई जाती है। पर्यटक यहाँ की ग्रामीण संस्कृति से बहुत अधिक प्रभावित होते है और कई दिन यहाँ गुजार कर जाते है।

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4 COMMENTS

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    • इस पोस्ट को पढ़ने के लिए शुक्रिया अंकित जी, भारत की पहचान इसकी संस्कृति और सभ्यता है, वहीं बिहार का सोनपुर मेला भी भारत की पौराणिक सभ्यता को दर्शाता है और इसमें हर एक चीज अलग अंदाज में बिकती है इसके साथ ही इसकी नौटंकी और नाच से चर्चे काफी मशहूर है। इस मेले को देखने देश से ही नहीं बल्कि विदेश से भी लोग आते हैं।

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