Kondapalli Fort
कोंडापल्ली का ऐतिहासिक और प्रसिद्ध किला कोंडापल्ली शहर के पहाड़ी पर स्थित है इसलिए किले को कोंडापल्ली किल्ला नाम से भी जाना जाता है। किले के चारो तरफ़ से घना और हरा जंगल है।
यहाँ का इलाका केवल कोंडापल्ली किले के लिए ही महशूर नहीं बल्कि यहाँ जो खेल खिलोने मिलते है उनके लिए भी बहुत प्रसिद्ध है। और हा सबसे अहम बात यह की कृष्णा जिले में एक कोंडापल्ली संरक्षित जंगल भी है। उस जंगल को भी सभीने एक बार जरुर देखना चाहिए।
कोंडापल्ली किले का इतिहास – Kondapalli Fort, Andhra Pradesh
कोंडापल्ली किले का निर्माण मसुनुरी नायक ने किया था। बहुत पहले किले पर बहमनी राजा का कब्जा था लेकिन उसके बाद किला ओडिशा के गजपति राजा के हाथों में चला गया और उसके बाद में किले पर विजयनगर के राजा कृष्णदेवराय राज किया और सबसे आखिरी में 16 वी शताब्दी में किले का नियंत्रण मुस्लिम राजे कुतुबशाही के हाथों में चला गया।
ओडिशा के गजपति कपिलेन्द्र देव(1435-1466) का लड़का हमविरा ने रेड्डी के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी और उसमे विजय भी हासिल की थी और 1454 तक कोंदावीदु का पूरा इलाका ख़ुद के कब्जे में ले लिया था।
लेकिन हमविरा को भी ओरिसा के सिंघासन तक पहुचने के लिए काफ़ी संघर्ष करना पड़ा। हमविरा को उसके पिता के मौत के बाद उसके भाई पुरुषोत्तम से युद्ध करना पड़ा लेकिन उस लड़ाई को जितने के लिए उसे बहमनी के राजा की मदत ली।
उसने 1472 में एक लड़ाई में उसके भाई को हरा दिया और ओरिसा का राज्य हासिल कर लिया। लेकिन उसके बदले में उसे कोंडापल्ली और राजमुंद्री को बहमनी सुलतान को देना पड़ा।
लेकिन कुछ साल बाद ही 1476 में पुरोषोत्तम ने एक लड़ाई में हमविरा को हरा दिया और फिर से ओरिसा के सिंघासन पर कब्ज़ा जमा लिया।
लेकिन ऐसा भी कहा जाता है की सन 1476 में बहमनी राज्य में भुकमरी फ़ैल गयी थी। उसी समय कोंडापल्ली के लोगों ने युद्ध छेड़ दिया और किले का कब्ज़ा हमर ओरिया यानि हमविरा को सौप दिया था।
1509 में गजपति प्रतापरुद्र देव ने विजयनगर के कृष्णदेवराय के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया था लेकिन उसे उस युद्ध में पीछे उत्तर की ओर हटना पड़ा था क्यु की उसपर बंगाल के अल्लौद्दीन हसन शाह ने आक्रमण कर दिया था।
इसका अंजाम यह हुआ की उस लड़ाई में कृष्णदेवराय को बड़ी आसानी से सन 1515 के जून में जीत मिली और उन्होंने कोंडापल्ली पर कब्ज़ा जमा लिया था। 1519 में जो आखिरी लड़ाई लड़ी गयी उसमे भी कृष्णदेवराय ने ओरिसा के राजा को हरा दिया था।
जैसे की देखा जाये की कोंदावीदु का किला बहुत ही मजबूत था उसी वजह से किले को ख़ुद के कब्जे में लेने के बाद भी कृष्णदेवराय को तीन महीने बाद ख़ुद किले पर नजर रखनी पड़ी थी।
17 वी शताब्दी में वहा का सारा इलाका मुग़ल के कब्जे में चला गया था। 18 वी शताब्दी के शुरुवात में मुग़ल का साम्राज्य पूरी तरह से बिखरने के बाद निज़ाम उल मुल्क जो बाद में हैदराबाद का निज़ाम बन चूका था उसने सिंघासन पर आते ही उसके आजूबाजू का इलाका ख़ुद के कब्जे में कर लिया था।
18 वी शताब्दी के अंत में भी वहा का इलाका निज़ाम के कब्जे में ही था लेकिन निज़ाम अली को भी ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ में समझौता करना पड़ा जिसके तहत वहा के इलाके पर तब से अंग्रेजो का कब्ज़ा हो गया था।
उस के अनुसार अंग्रेजो ने उस इलाके के बदले में निज़ाम को किले की हिफाजत करने के लिए ख़ुद की सेना दे दी थी और उसके बदले में अंग्रेजो को 90,000 पौंड मिलने वाले थे। वह समझौता 12 नवंबर 1766 को हुआ था। 1766 में ब्रिटिश जनरल केलौड़ ने किले पर हमला बोल दिया था और उसपर कब्ज़ा जमा लिया था।
1 मार्च 1768 में एक बार फिर अंग्रेज और निज़ाम के बिच समझौता हुआ था जिसके तहत मुग़ल शासक शाह आलम को अंग्रेजो को अनुदान देने का प्रावधान भी किया गया था। लेकिन अंग्रेजो ने दोस्ती के खातिर निज़ाम को 50,000 पौंड देने का ऐलान किया था।
लेकिन आखिरकार अंग्रेजो ने अपना असली रंग दिखा ही दिया और सन 1823 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने निजाम से सरकार पर पूरा कब्जा ज़माने के लिए उसे निजाम से खरीद ही लिया था।
शुरुवात के कुछ सालो में किले का एक उद्योग केंद्र के रूप में इस्तेमाल किया जाता था लेकिन बाद में 1766 से किले में मिलिट्री की शिक्षा देने का काम शुरू कर दिया गया था।
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