Fact about Raw (Research and Analysis Wing)
किसी भी देश की सुरक्षा के लिए उस देश की सेना, पुलिस दिन रात ड्यूटी में लगी रहती है। लेकिन सेना और पुलिस के अलावा भी कई ऐसे खुफिया संगठन होते है जिसे देश की सुरक्षा के लिए बनाया जाता है लेकिन गोपनीय रखा जाता है। इन सुरक्षा एंजेसियों का काम पड़ोसी और दूसरे देशों में अपने देश के खिलाफ चल रही आंतकी गतिविधियों पर नजर रखना और उन्हें विफल करना होता है।
भारत की खुफिया एँजेसी को रॉ (Raw) कहा जाता है यानी रिसर्च एंड एनालिसिस विगं (Research and Analysis Wing)। रॉ का गठन साल 1968 में हुआ था। जिस समय भारत विदेशी और घरेलु मामलों से जूँझ रहा था। हालांकि रॉ के बारे में बहुत सी ऐसी रोचक और अहम बातें है जिनके बारे में बहुत कम लोग जानते है।
लेकिन एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते आपको इन बातों के बारे में जानकारी होनी चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि रॉ का महत्व फिल्मों में दिखाए गए महत्व से कही ज्यादा है।
रॉ यानी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग से जुड़ी रोचक और अहम बातें – Fact about Raw (Research and Analysis Wing)
- रॉ एक खुफिया विंग होने के नाते, इस विभाग में कार्यरत किसी भी अधिकारी को अपनी गोपनीयता का ख्याल रखना पड़ता है वो अपनी पहचान को किसी के भी सामने उजागर नहीं कर सकता है।
- रॉ अधिकारी को लेकर एक दिलचस्प बात ये है कि रॉ (Raw) अधिकारियों को ड्यूटी पर कभी भी बंदूक नहीं मिलती है। लेकिन जासूसी के दौरान केवल बहुत ज्यादा विषम परिस्थिति में इन्हें हथियार इस्तेमाल करने का अधिकार होता है। हालांकि रॉ एजेन्ट अक्सर अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करके ही परिस्थितियों से निकल जाते हैं।
- रॉ एंजेंसी का गठन 1968 में हुआ था तब से लेकर अब तक रॉ में कई विशेषज्ञ गुप्तचर हुए हैं। जिनमें से एक रामेश्वर नाथ काव थे। यही नहीं प्रधानमंत्री पीएम नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय सलाहकार अजीत डोभाल भी कई वर्षो तक रॉ के लिए अपनी सेवाएँ दे चुके हैं।
- आपको जानकर हैरानी होगी कि साल 1971 की लड़ाई में भी रॉ का अहम योगदान रहा जिसका नेतृत्व रामेश्वर नाथ काव ने किया था। रॉ (Raw) की जानकारी के आधार पर ही नौसेना कमांडो ने चंटगांव बंदरगाह पर मौजूद पाकिस्तान के जहाजों को उड़ा दिया था। इसके अलावा इस युद्ध में कई अहम जानकारियां रॉ ने भारतीय सेना को दी थी जिनकी मदद से भारतीय सेना ने पाकिस्तान को हराकर पूर्वी पाकिस्तान को बांग्लादेश के रुप नया देश घोषित किया था।
- 1971 की लड़ाई के अलावा सिक्किम का भारत में विलय का श्रेय भी भारतीय खुफिया एंजेसी रॉ को ही जाता है। दरअसल चीन सिक्किम पर अधिग्रहण करना चाहता था। लेकिन रॉ की सुझबूझ ने इसे विफल कर दिया और सिक्किम भारत का 22वां राज्य बना।
- भारत के परमाणु कार्यक्रम का पता लगाने के लिए अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने पूरजोर मेहनत की थी। लेकिन रॉ की रणनीति के आगे सीआईए को फेल होना पड़ा। इतिहास में सीआईए की ये सबसे बड़ी विफलता मानी जाती है।
- रॉ में अक्सर देश के पुलिस, सेना के विभाग में कार्यरत रहे सर्वोच्च अधिकारियों को ही शामिल होने का मौका दिया जाता है। हालांकि रॉ में शामिल करने से पहले अधिकारी के बारे में सभी पूराने रिकॉर्ड चैक किए जाते है। साथ ही रॉ में शामिल होने से पहले एजेंट को अपने विभाग से इस्तीफा भी देना पड़ता है। रॉ किसी भी ऐसे व्यक्ति को अपने विभाग में नहीं रखता है जिसे सत्ता या पैसा का लालच हो।
- रॉ के लिए गोपनीयता बहुत मायने रखती है रॉ में काम करने वाले एजेंट अपने परिवार तक को अपनी पहचान नहीं बता सकतें है।
- 10 रॉ के लिए कई अलग – अलग क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों ने भी अपनी सेवाएँ दी है। जिसका सबसे बड़ा उदाहरण थियेटर कलाकार रविन्द्र कौशिक है जिन्होनें रॉ के लिए कई अहम जानकारियां जुटाई।
- आपको बता दें रॉ को एक खुफिया एंजेसी कहा जाता है लेकिन ये कोई एजेंसी नहीं बल्कि विंग है जिस वजह से ये कभी भी संसद के प्रति जवाबदेही नही है।
- रॉ एंजेट की ट्रेनिंग अमेरिका, यूके और इजरायल में होती है। रॉ एजेंटस की ट्रेनिंग में कठिन सेल्फ डिफेंस ट्रेनिंग के अलावा फाइनैँशियल, इकॉनमिक अनैलिसिसि, स्पेस टेक्नॉलजी, एनर्जी सिक्यॉरिटी, साइंटिफिक नॉलेज जैसी जानकारियों की ट्रेनिंग भी दी जाती है।
- हर रॉ एंजेट को कम से कम एक विदेशी भाषा में स्पेशलिस्ट होना पड़ता है। इसके अलावा सीआईए, केजीबी, आईएसआई, मोसाद जैसी खुफिया एंजेसियो की केस स्टडीज भी पढ़ाई जाती है।
- पाकिस्तान के अबाबील जैसे खतरनाक ऑपरेशनस को विफल करने में भी रॉ का अहम योगदान रहा है। और रॉ के कारण ही भारत पाकिस्तान जैसे दगबाज पड़ोसी से सुरक्षित है जिस पर रॉ हर पल नजर रखे हुए है।
रॉ देश की सुरक्षा के लिहाज से बहुत ही अहम विंग है और हमें शायद इस बात का गर्व होना चाहिए कि हमारे देश में कई ऐसे लोग है जो रॉ में एजेंट होने के नाते अपने देश के लिए अपनी जान की बाजी तक लगा देते है लेकिन कभी अपनी पहचान बाहर नहीं आने देते और अक्सर उनकी पहचान उनके साथ ही चली जाती है।
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