Essay on Bhagat Singh in Hindi
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शहीद-ए-आजम भगत सिंह देश के लिए किए गए त्याग, समर्पण और बलिदान को याद करने और उनके महान जीवन पर प्रकाश डालने समेत उनके जीवन के उसूलों को समझाने के लिए बच्चों को अक्सर स्कूल-कॉलेजों में परीक्षाओं में अथवा निबंध लेखन प्रतियोगिता में निबंध लिखने के लिए कहा जाता है।
इसलिए आज हम अपने इस आर्टिकल में आपको अलग-अलग शब्द सीमा पर निबंध उपलब्ध करवा रहे हैं, जिसका इस्तेमाल आप अपनी जरूरत के मुताबिक कर सकते हैं –
शहीद-ए-आजम भगत सिंह पर निबंध – Essay on Bhagat Singh in Hindi
प्रस्तावना
भगत सिंह भारत के एक महान युवा क्रांतिकारी और प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने अपने उग्रवादी विचारधारा से न सिर्फ हिन्दुस्तानी नौ जवानों के दिल ब्रिटिश शासकों के खिलाफ गुस्सा भर दिया था, बल्कि कई युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित किया था।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के वे सबसे कम उम्र के क्रांतिकारी थे, जिन्होंने अंग्रेजों के मन में उनके खिलाफ डर पैदा कर दिया था, हालांकि बाद में क्रूर ब्रिटिश शासकों द्धारा उनकी हिंसात्मक गतिविधियों के लिए सूली पर चढ़ा दिया था।
भगत सिंह का प्रारंभिक जीवन और परिवार – Bhagat Singh Information
भारत माता के सच्चे वीर सपूत और महान क्रांतिकारी भगत सिंह 28 सितंबर 1907 को पंजाब के एक ऐसे परिवार में जन्में थे, जो कि भारतीय स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहा था। वहीं जब उनकी माता विद्यावती कौर ने भगत सिंह को जन्म दिया था, तब उनके पिता सरदार किशन सिंह जेल में थे।
भगत सिंह शुरु ही से ही आक्रामक स्वभाव के थे, जिन्होंने अपने परिवार में बचपन से ही आजादी पाने की ज्वाला भड़कती देखी थी और अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ भारी रोष देखा था, इसलिए भगत सिंह के अंदर बचपन से ही देशभक्ति की भावना समाहित हो गई।
भगत सिंह अपने बचपन में सैन्य और युद्ध अभ्यास वाले खेलों को खेलते थे। इसके अलावा उनके बचपन के कई ऐसे किस्से हैं, जिनसे भग्त सिंह के वीर, धीर, निडर, बहादुर और निर्भीक होने का सबूत मिलता है।
जलियांवाला बाग हत्याकांड भगत सिंह का प्रभाव – Jallianwala Bagh Hatyakand
एक स्वतंत्रता संग्राम में संघर्ष कर रहे परिवार में पले-बढ़े शहीद-ए-आजम भगत सिंह के अंदर देश प्रेम की भावना और भारत को आजाद करने की इच्छा तो बचपन से ही थी, लेकिन उनकी इस भावना तब ज्वाला की तरह भड़क उठी, जब उन्होंने अमृतसर में 13 अप्रैल साल 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड में बेकसूर लोगों और मासूम बच्चों की दर्दनाक मौत का मंजर देखा।
इस हत्याकांड के बाद उन्होंने अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने की ठान ली थी। इसी उद्देश्य के साथ भगत सिंह अपनी आखिरी सांस तक अंग्रेजों से लड़ते रहे और हंसते-हंसते इस देश के लिए अपनी जान की कुर्बानी दे दी।
उपसंहार
शहीद-ए-आजम भगत सिंह, भारत माता के ऐसे महान और वीर सपूत थे, जिन्होंने महज 23 वर्ष की छोटी आयु में देश के लिए हंसते-हंसते अपने प्राणों की आहूति दे दी, और अपनी आखिरी सांस तक वे देश की आजादी के लिए लड़ते रहे।
भगत सिंह ने अपनी क्रांतिकारी विचारधारा से भारतीय युवाओं के मन में आजादी पाने की अलख जगा दी थी। भगत सिंह जैसे महापुरुषों का भारत की धरती में पैदा होना गर्व की बात है, वहीं उनकी शौर्यगाथा, आज भी युवाओं को प्रेरित करती है।
भगत सिंह पर निबंध – Bhagat Singh par Nibandh
प्रस्तावना
भगत सिंह ने अपने अल्पजीवन में अपने फौलादी इरादों, क्रांतिकारी विचरों और अडिग फैसलों से न सिर्फ स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अपना अपूर्व योगदान दिया, अंग्रेजों के मन में अपना खौफ पैदा किया, बल्कि भारतीय नौजवानों के दिल में देश की आजादी पाने की इच्छा भी जागृत की।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भगत सिंह की भागीदारी और उनकी क्रांतिकारी गतिविधियां:
भारत माता के सच्चे वीर सपूत भगत सिंह के मन में भारत को आजादी दिलवाने की इच्छा तो बचपन से ही प्रकट हो गई थी, वहीं जब उन्होंने जलियांवाला नरसंहार देखा तो, उनके मन में यह इच्छा ज्वलंत हो उठी और फिर उन्होंने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़कर ही खुद को पूरी तरह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में झोंक दिया।
भगत सिंह ने देश के सभी नौजवानों के ह्रद्य में आजादी पाने की अलख जगाने और अंग्रेजों के अत्याचारों के प्रति और अधिक रोष पैदा करने के उद्देश्य से उन्होंने किसान कीर्ति पार्टी द्धारा प्रकाशित एक मैग्जीन में ब्रिटिश शासकों के खिलाफ आक्रामक लेख लिखे, जिसका असर युवाओं पर पड़ा और इसके बाद कई युवाओं ने फिर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया।
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जब बढ़ती हिंसात्मक घटनाएं कम होने का नाम नहीं ले रही थी, और काकोरी कांड में रामप्रसाद बिस्मिल समेत 4 क्रांतिकारियों को फांसी की सजा सुनाई गई तब वे भारत को आजाद करवाने के लिए बैचेन हो उठे और चंद्रशेखर आजाद के साथ मिलकर “हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA)” का गठन किया, जिसमें लाला लाजपत राय भी शामिल थे।
इसके बाद साइमन कमीशन का विरोध कर रहे लाला लाजपत राय की मौत से, वे अंग्रेजों के खिलाफ और भी ज्यादा बौखला उठे और उन्होंने अपने मित्र सुखदेव और राजगुरु के साथ मिलकर लाला लाजपत राय जी के हत्यारे को मौत के घाट उतार दिया।
इसके अलावा, जब ब्रिटिश अधिकारी, गरीब किसानों और मजदूरो के खिलाफ अपनी अत्याचारी और दमनकारी नीतियों को ब्रिटिश संसद में पारित करने की योजना बना रहे थे, तब भगत सिंह ने अपने साथियों के साथ मिलकर ब्रिटिश सरकार की असेम्बली पर हमला कर दिया, जिसके बाद वे ब्रिटिश सरकार की आंख की किरकिरी बन गए और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और फिर भगत सिंह और उनके दोनों साथियों राजगुरु और सुखदेव को 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी गई।
इस तरह उन्होंने देश को आजाद करवाने के लिए अपनी पूरा जीवन समर्पित कर दिया और देश के लिए हंसते-हंसते अपने प्राण न्यौछावर कर दिए।
उपसंहार
भारत के महान युवा क्रांतिकारी भगत सिंह इस बात को अच्छी तरह जानते थे कि अहिंसक तरीके से कभी भारत को स्वतंत्रता नहीं मिल सकती है, इसलिए उन्होंने हिंसा का रास्ता चुना और भारत को स्वतंत्र करवाने के लिए अपने प्राणों की आहूति दे दी, यही नहीं उन्होंने अपनी शहादत के बाद भी भारतीय युवाओं को भारत की आजादी के लिए स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।
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बहुत ही रोचक जानकारी शेयर की है आपने.
शुरू से लेके लास्ट तक पढ़ने में मज़ा आया और पढ़ के अच्छा लगा.
थैंक्स ज्ञानीपण्डित.