लाला लाजपत राय गुलाम भारत को आजाद करवाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लाला लाजपत राय भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के तीन प्रमुख नायकों लाल-पाल-बाल में से एक थे। इस तिकड़ी के मशहूर लाला लाजपत राय न सिर्फ एक सच्चे देशभक्त, हिम्मती स्वतंत्रता सेनानी और एक अच्छे नेता थे बल्कि वे एक अच्छे लेखक, वकील,समाज-सुधारक और आर्य समाजी भी थे।
आपको बता दें कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महानायक लाला लाजपत राय की छवि प्रमुख रुप से एक राष्ट्रवादी नेता के रूप में हैं। लाला लाजपत राय ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ शक्तिशाली भाषण देकर न सिर्फ ब्रिटिश शासकों के इरादों को पस्त कर दिया बल्कि उनकी देश के प्रति अटूट देशभक्ति की भावना की वजह से उन्हें ‘पंजाब केसरी’ या “पंजाब का शेर” भी कहा जाता था।
गुलाम भारत को आजाद करवाने के लिए लाला लाजपत राय ने आखिरी सांस तक जमकर संघर्ष किया और वह शहीद हो गए। आज हम आपको अपने इस लेख में स्वतंत्रता संग्राम की मशहूर तिकड़ी लाल-बाल-पाल में से एक लाला लाजपत राय के जीवन के बारे में जानकारी देंगे –
लाला लाजपत राय की जीवनी – Lala Lajpat Rai Biography In Hindi
पूरा नाम (Name) | श्री लाला लाजपत राधाकृष्ण राय जी |
जन्म (BirthDay) | 28 जनवरी 1865 |
जन्म स्थान (Birthplace) | धुड़ीके गाँव, पंजाब, बर्तानवी भारत |
पिता (Father) | श्री राधाकृष्ण जी |
माता (Mother) | श्रीमती गुलाब देवी जी |
शिक्षा (Education) | 1880 में कलकत्ता और पंजाब विश्वविद्यालय प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण, 1886 में कानून की उपाधि ली |
संगठन | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, आर्य समाज, हिन्दू महासभा |
आन्दोलन | भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन |
स्थापित विद्यालय | 1883 में अपने भाईयों और मित्रों (हंसराज और गुरुदत्त) के साथ डी.ए.वी.(दयानन्द अंग्लों विद्यालय) की स्थापना, पंजाब नेशनल कॉलेज लाहौर की स्थापना |
मृत्यु (Death) | 17 नवम्बर 1928 |
मृत्यु स्थान (Deathplace) | लाहौर (पाकिस्तान) |
उपाधियाँ (Awards) | शेर-ए-पंजाब, पंजाब केसरी |
रचनाएँ | पंजाब केसरी’, ‘यंग इंण्डिया’, ‘भारत का इंग्लैंड पर ऋण’, ‘भारत के लिए आत्मनिर्णय’, ‘तरुण भारत’। |
प्रारंभिक जीवन –
शेर-ए पंजाब की उपाधि से सम्मानित और भारत के महान लेखक लाला लाजपत राय पंजाब के धु़डीके गांव के एक साधारण से परिवार में जन्मे थे। उनके पिता का नाम लाला राधाकृष्ण था जो कि अग्रवाल (वैश्य) यानि की बनिया समुदाय से संबंधित थे और वे एक अच्छे अध्यापक भी थे। उन्हें उर्दू और फ़ारसी की अच्छी जानकारी थी।
उनकी माता जी का नाम गुलाब देवी था, जो कि सिक्ख परिवार से बास्ता रखती थी। वह एक साधारण और धार्मिक महिला थी जिन्होंने अपने बच्चों में भी धर्म-कर्म की भावना को प्रेरित किया था, वास्तव में उनके पारिवारिक परिवेश ने ही उन्हें देशभक्ति का काम करने की प्रेरणा दी थी।
शिक्षा –
लाला लाजपत राय जी के पिता सरकारी उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के अध्यापक थे, इसलिए लाला जी की शुरुआती शिक्षा इसी स्कूल से शुरु हुई। वे बचपन से ही पढ़ने में काफी होश्यिार थे। वे एक मेधावी छात्र थे। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद 1880 में कानून की पढ़ाई के करने के लिए लाहौर के सरकारी कॉलेज में एडमिशन ले लिया और अपनी कानून की पढ़ाई पूरी की।
इसके बाद वे एक बेहतरीन वकील भी बने और उन्होंने कुछ समय तक वकालत भी की लेकिन लाला लाजपत राय का मन वकालत करने में नहीं टिका। वहीं उस समय अंग्रेजों की कानून व्यवस्था के खिलाफ उनके मन में क्रोध पैदा हो गया और उन्होंने उस व्यवस्था को छोड़कर बैंकिंग की तरफ रूख किया।
पीएनबी और लक्ष्मी बीमा कंपनी की स्थापना –
इसके बाद भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय ने राष्ट्रीय कांग्रेस के 1888 और 1889 के वार्षिक सत्रों के दौरान एक प्रतिनिधि के रूप में हिस्सा लिया और फिर वे साल 1892 में उच्च न्यायालय में प्रैक्टिस करने के लिए लाहौर चले गए जहां उन्होंने पंजाब नेशनल बैंक और लक्ष्मी बीमा कंपनी की नींव रखी थी।
वहीं लाला लाजपत राय के निष्पक्ष स्वभाव की वजह से ही उन्हें हिसार मुन्सिपैल्टी की सदस्यता मिली, जिसके बाद वो एक सेक्रेटरी भी बन गए। आपको बता दें कि बाल गंगाधर तिलक के बाद वे उन शुरुआती नेताओं में से थे जिन्होंने पूर्ण स्वराज की मांग की थी। लाला लाजपत राय पंजाब के सबसे लोकप्रिय नेता बन कर उभरे।
आर्य समाज में प्रवेश –
आजादी के महानायक लाला लाजपत राय साल 1882 में पहली बार आर्य समाज के लाहौर के वार्षिक उत्सव में शामिल हुए और वह इस सम्मेलन से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने आर्य समाजी बनने का फैसला ले लिया।
वहीं उस समय आर्य समाज हिन्दू समाज में फैली कुरोतियों को धार्मिक अंधविश्वासों के खिलाफ था। उस दौरान लाल लाजपत राय ने लोकप्रिय जनमानस के खिलाफ खड़े होने का साहस किया और उन्होंने आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती के साथ मिलकर आर्य समाज के आंदोलन को आगे बढ़ाने में अपना भरपूर सहयोग दिया।
आपको बता दें कि यह उस दौर की बात है जब आर्य समाजियों को धर्मविरोधी समझा जाता था, लेकिन लाला लाजपत राय जी ने इसकी बिल्कुल भी फिक्र नहीं की और आर्य समाज में अपना सहयोग दिया और वे निरंतर प्रयास करते रहे और उनकी कोशिशों से ही आर्य समाज पंजाब में भी मशहूर हो गया।
आर्य समाज का हिस्सा बनने के बाद लाला लाजपत राय की ख्याति दिन पर दिन बढ़ती ही जा रही थी। यहां तक कि आर्य समाज में जो भी विशेष सम्मेलनों का आयोजन किया जाता है उन सभी का नेतृत्व लाला लाजपत राय करते थे।
यहां तक की लाला लाजपत राय को राजपूताना और संयुक्त प्रान्त में जाने वाले शिष्टमंडलों के लिए चुना गया। जिसके बाद भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय शिष्टमंडलों में मुख्य सदस्य के रूप में मेरठ, अजमेर, फर्रुखाबाद आदि स्थानों पर गए और अपने भाषणों से लोगों के दिल में अमिट छाप छोड़ी।
आपको बता दें कि हर कोई लाला लाजपत राय जी के भाषण सुनकर मंत्रमुग्ध हो जाता था। वहीं इस दौरान महान राजनीतिज्ञ राय जी ने भी आर्य समाजियों से मुलाकात की और इस बात का अंदाजा लगाया कि कैसे एक छोटी सी संस्था का इतनी तेजी से विकास हो रहा है और यह संस्था किस तरह लोगों के बीच अपना प्रभाव छोड़ रही है।
इस दौरान लाला लाजपत राय जी ने शिक्षा के क्षेत्र में भी कई महत्वपूर्ण काम किए। आपको बता दें कि इस दौरान आर्य समाज ने दयानंद एंग्लो वैदिक विद्यालयों की शुरुआत की।
जिसके प्रचार-प्रसार के लिए लाला लाजापत राय जी ने हर संभव कोशिश की। वहीं जब स्वामी दयानंद का साल 1883 में निधन हो गया तो, आर्य समाज के द्धारा एक शोक सभा का आयोजन किया गया जिसमें यह फैसला लिया गया था कि स्वामी दयानंद के नाम पर एक ऐसे महाविद्यालय की स्थापना की जाए, जिसमें वैदिक साहित्य, संस्कृति और हिन्दी की उच्च शिक्षा के साथ-साथ अंग्रेज़ी और पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान में भी छात्रों को शिक्षा दी जाए इसी तर्ज पर इस स्कूल की स्थापना की गई जिसमें लाला लाजपत राय जी ने अपना महत्पूर्ण योगदान दिया।
आर्य समाज के सक्रिय कार्यकर्ता होने के नाते उन्होंने ‘दयानंद कॉलेज’ के लिए कोष इकट्ठा करने का भी काम किया और इसका जमकर प्रचार-प्रसार किया।
इसके अलावा भारत की आजादी के महानायक लाला लाजपत राय ने लाहौर के डीएवी कॉलेज की भी स्थापना में भी अपना सहयोग दिया। उन्होंने अपने अथक प्रयास से इस कॉलेज को उस समय के भारत के सर्वश्रेष्ठ शिक्षा के केन्द्र में बदल दिया। वहीं यह कॉलेज उन युवाओं के लिए वरदान साबित हुआ।
आपको बता दें कि लाला लाजपत राय की आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद और उनके कामों के प्रति अटूट निष्ठा थी। स्वामी जी के निधन के बाद उन्होंने आर्य समाज के कार्यों को पूरा करने के लिए खुद को पूरी तरह समर्पित कर दिया था।
वहीं हिन्दू धर्म में व्याप्त कुरीतियों के खिलाफ संघर्ष, प्राचीन और आधुनिक शिक्षा पद्धति में समन्वय, हिन्दी भाषा की श्रेष्ठता और स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए आर-पार की लड़ाई आर्य समाज से मिले संस्कारों के ही परिणाम थे।
कांग्रेस के कार्यकर्ता के रूप में –
भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय जब हिसार में वकालत करते थे, उसी समय से उन्होंने कांग्रेस की बैठकों में भी हिस्सा लेना शुरू कर दिया था। आपको बता दें कि साल 1885 में जब कांग्रेस का पहला अधिवेशन मुंबई में हुआ था उस समय लाला लाजपत राय बड़े उत्साह के साथ इस नए आंदोलन को देखना शुरु कर दिया था।
वहीं इसके बाद 1888 में जब अली मुहम्मद भीम जी कांग्रेस की तरफ से पंजाब के दौरे पर आए तब लाला लाजपत राय ने उन्हें अपने नगर हिसार आने का न्योता दिया। इसके साथ ही उन्होंने इसके लिए एक सार्वजनिक सभा का भी आयोजन किया।
वहीं यह कांग्रेस से मिलने का पहला मौका था जिसने इनके जीवन को एक नया राजनीतिक आधार दिया। भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय के अंदर बचपन से ही देशभक्ति और समर्पण की भावना थी।
आपको यह भी बता दें कि इलाहाबाद में इंडियन नेशनल कांग्रेस के सेशन के दौरान उनके ओजस्वी भाषण ने वहां मौजूद सभी लोगों का ध्यान अपनी तरफ केन्द्रित किया, जिससे उनकी लोकप्रियता और भी बढ़ गयी और इससे उन्हें कांग्रेस में आगे बढ़ने की दिशा भी मिली।
इस तरह धीरे-धीरे लाला लाजपत राय कांग्रेस के एक सक्रिय कार्यकर्ता बन गए। और फिर वे 1892 में वे लाहौर चले गए। इसके बाद उन्होंने कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन को सफल बनाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। इसके बाद उन्हें ‘हिसार नगर निगम’ का सदस्य चुना गया और फिर बाद में सचिव भी चुन लिए गए।
वहीं साल 1906 में उनको कांग्रेस ने गोपालकृष्ण के साथ शिष्टमंडल का सदस्य भी बनाया गया।
कांग्रेस के प्रेसिडेंट के रूप में –
आपको बता दें कि भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय को उनके काम को देखते हुए साल 1920 में नेशनल कांग्रेस का प्रेसिडेंट बनाया गया।
दरअसल इस दौरान उनकी चहेतों की संख्या काफी बढ़ चुकी थी और उनकी बढ़ती लोकप्रियता ने ही उन्हें नेशनल हीरो बना दिया था। भारत की आजादी के महान नायक लाला लाजपत राय जी ने अपने कामों से लोगों के दिल में अपनी एक अलग पहचान बनाई थी इसी वजह से लोग उन पर भरोसा करने लगे थे और उनके अनुयायी बन गए थे।
इसके बाद उन्होंने लाहौर में सर्वेन्ट्स ऑफ पीपल सोसाइटी का गठन किया था, जो कि नॉन-प्रॉफिट ऑर्गनाइजेशन था। वहीं उनकी बढती लोकप्रियता का प्रभाव ब्रिटिश सरकार पर भी पड़ने लगा था और ब्रिटिश सरकार को भी उनसे डर लगने लगा था और ब्रिटिशर्स उन्हें कांग्रेस से अलग करना चाहते थे लेकिन यह करना ब्रिटिश शासकों के लिए इतना आसान नहीं था।
और इसी वजह से ब्रिटिश सरकार ने उन्हें साल 1921 से लेकर 1923 तक मांडले जेल में कैद कर लिया, लेकिन ब्रिटिश सरकार को उनका यह दांव उल्टा पड़ गया क्योंकि उस समय लाला लाजपत राय की ख्याति इतनी बढ़ गई थी कि लोग ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन करने लगे जिसके बाद लोगों के दबाव में आकर अंग्रेज सरकार ने अपना फैसला बदलकर लाला लाजपत राय को जेल से रिहा कर दिया था।
वहीं जब दो साल बाद लाला लाजपत राय जेल से छूटे तो उन्होनें देश में बढ़ रही साम्प्रदायिक समस्याओं पर ध्यान दिया, दरअसल उस समय इस तरह की समस्याएं देश के लिए बड़ी खतरा बन चुकी थी।
दरअसल उस समय की परिस्थितियों में हिन्दू-मुस्लिम एकता के महत्व को उन्होंने समझ लिया था। इसी वजह से साल 1925 में उन्होंने कलकत्ता में हिन्दू महासभा का आयोजन किया, जहां उनके ओजस्वी भाषण ने बहुत से हिन्दुओं को देश के स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित किया था।
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान –
लाला लाजपत राय एक ऐसे व्यक्तित्व थे जिनके अंदर हर किसी को प्रभावित करने का हुनर था और उनके अंदर देश की सेवा करने का भाव बचपन से ही था अर्थात वे एक सच्चे देशभक्त थे जिनका एक मात्र उद्देश्य था, देश की सेवा करना और इसी उद्देश्य से वह हिसार से लाहौर शिफ्ट हो गए, जहां पर पंजाब हाई कोर्ट था, यहां पर उन्होंने समाज के लिए कई काम किए।
इसके अलावा उन्होंने पूरे देश में स्वदेशी वस्तुएं अपनाने के लिए एक अभियान चलाया था। वहीं जब 1905 में बंगाल का विभाजन कर दिया तो उन्होंने इसका जमकर विरोध किया और इस आंदोलन में बढ़-चढकर हिस्सा लिया।
उस समय उन्होंने सुरेंद्रनाथ बनर्जी और बिपिन चंद्र पाल जैसे आंदोलनकारियों के साथ मिलकर ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीतियों के खिलाफ विरोध किया। इस तरह वे लगातार देश की सेवा में तत्पर रहते थे और देश के सम्मान के लिए लगातार काम करते रहते थे।
वहीं साल 1907 में उनके द्वारा लायी गयी क्रान्ति से लाहौर और रावलपिंडी में परिवर्तन की लहर दौड़ पड़ी थी, जिसकी वजह से उन्हें 1907 में गिरफ्तार कर मांडले जेल भेज दिया गया।
लाला जी ने अपने जीवन में कई संघर्षों को पार किया है। आपको बता दें कि एक समय ऐसा भी आया कि जब लाला जी के विचारों से कांग्रेस के कुछ नेता पूरी तरह असहमत दिखने लगे।
क्योंकि उस समय लाला जी को गरम दल का हिस्सा माने जाने लगा था, जो कि ब्रिटिश सरकार से लड़कर पूर्ण स्वराज लेना चाहती थी। वहीं कुछ समय तक कांग्रेस से अलग रहने के बाद साल 1912 में उन्होंने वापिस कांग्रेस को ज्वॉइन कर लिया। फिर इसके दो साल बाद वह कांग्रेस की तरफ से प्रतिनिधि बनकर इंग्लैंड चले गए। जहां उन्होंने भारत की स्थिति में सुधार के लिए अंग्रेजों से विचार-विमर्श किया।
इस दौरान उन्होंने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर गरम दल की विचारधारा का सूत्रपात कर दिया था और वह जनता को यह भरोसा दिलाने में सफल हो गए थे कि अगर आजादी चाहिए तो यह सिर्फ प्रस्ताव पास करने और गिड़गिड़ाने से मिलने वाली नहीं है।
वहीं इसके बाद वह अमेरिका चले गए जहां उन्होंने स्वाधीनता प्रेमी अमेरिकावासियों के सामने भारत की स्वाधीनता का पक्ष बड़ी प्रबलता से अपने क्रांतिकारी किताबों और अपने प्रभावी भाषणों से पेश किया। उन्होंने भारतीयों पर ब्रिटिश सरकार के द्धारा किए गए अत्याचारों की भी खुलकर चर्चा की।
इस दौरान अमेरिका में उन्होंने इंडियन होम रूल लीग की स्थापना की इसके अलावा एक “यंग इंडिया” नाम का जर्नल भी प्रकाशित करना शुरू किया, जिसमें भारतीय कल्चर और देश की स्वतन्त्रता की जरूरत के बारे में लिखा जाता था और इस पेपर की वजह से पूरी दुनिया में वे मशहूर होते चले गए।
असहयोग आंदोलन में-
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान जब भारतीय सरकार ने कांग्रेस से युद्ध में सहायता की मांग की थी तो उसने यह भी वादा किया था कि युद्ध समाप्ति पर भारतीय नागरिकों को अपनी सरकार निर्माण करने का अधिकार प्रदान कर देगी।
लेकिन जैसे ही युद्ध खत्म हुआ तो भारतीय सरकार अपने वादे से मुकर गई जिसके बाद कांग्रेस में ब्रिटिश सरकार के लिए पूरी तरह से रोष व्याप्त हो गया।
इस दौरान खिलाफत आन्दोलन और जलियांवाला बाग हत्या कांड की दिल दहला देने वाली घटना के कारण असहयोग आन्दोलन किया गया जिसमें पंजाब से लाला लाजपत राय जी के नेतृत्व की कमान संभाली।
वहीं धीरे-धीरे इनके नेतृत्व में पंजाब में इस आन्दोलन ने बहुत बड़ा रुप ले लिया जिसकी वजह से उन्हें शेर-ए-पंजाब कहा जाने लगा। वहीं इसके बाद लाल जी के इनके नेतृत्व में ही सविनय अवज्ञा आन्दोलन (असहयोग आन्दोलन) के सम्बंध में कांग्रेस की पंजाब में बैठक भी हुई। जिसकी वजह से इन्हें अन्य सदस्यों के साथ सार्वजनिक सभा करने के कारण झूठे केस में गिरफ्तार कर लिया गया।
इसके बाद 7 जनवरी को इनके खिलाफ केस न्यायालय में पेश किया तो इन्होंने न्यायालय की प्रक्रिया में भाग लेने से यह कहते हुये मना कर दिया कि इन्हें ब्रिटेन की न्याय प्रणाली में कोई विश्वास नहीं है अतः इनकी तरफ से न तो कोई गवाही हुई और न ही किसी वकील के द्वारा जिरह पेश की गयी।
इस गिरफ्तारी के बाद लाला लाजपत राय को दो साल की सजा सुनायी गई। लेकिन जेल की परिस्थितियों में लाला जी का स्वास्थ्य खराब हो गया। लगभग 20 महीने की सजा काटने के बाद इन्हें खराब स्वास्थ्य के कारण आजाद कर दिया गया।
लाला जी के जीवन का आखिरी आंदोलन साइमन कमीशन का विरोध
आपको बता दें कि साल 1928 में ब्रिटिश सरकार द्वारा साइमन कमीशन लाए जाने के बाद उन्होंने इसका जमकर विरोध किया और कई रैलियों का आयोजन किया और भाषण दिए। दरअसल साइमन कमीशन भारत में संविधान के लिए चर्चा करने के लिए एक बनाया गया एक कमीशन था, जिसके पैनल में एक भी भारतीय सदस्य को शामिल नहीं किया गया।
वहीं लाला जी इस साइमन कमीशन का विरोध शांतिपूर्वक करना चाहते थे, उनकी यह मांग थी कि अगर कमीशन पैनल में भारतीय नहीं रह सकते तो ये कमीशन अपने देश वापस लौट जाए। लेकिन ब्रिटिश सरकार इनकी मांग मानने को तैयार नहीं हुई और इसके उलट ब्रिटिश सरकार ने लाठी चार्ज कर दिया, जिसमें लालाजी बुरी तरह से घायल हो गए और फिर उनका स्वास्थ कभी नही सुधरा।
निधन –
वहीं इस घटना के बाद लाला लाजपत राय जी पूरी तरह से टूट गए थे और उनका स्वास्थ्य लगातार बिगड़ता चला गया और फिर 17 नवंबर 1928 स्वराज्य का यह उपासक हमेशा के लिए सो गए। इस तरह भारत की आजादी के महान नायक लाला लाजपत राय जी का जीवन कई संघर्षों की महागाथा है।
वहीं उन्होंने अपनी जीवन में कई लड़ाईयां लड़कर देश की सेवा की है और गुलाम भारत को स्वतंत्रता दिलवाने में मद्द की है। लाला लाजपत राय की देश के लिए दी गई कुर्बानियों को हमेशा-हमेशा याद किया जाएगा।
मुख्य किताबें –
भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय एक महान विचारक होने के साथ-साथ एक महान लेखक भी थे। इन्होंने अपने कार्यों और विचारों के साथ ही अपने लेखन कार्यों से भी लोगों का मार्गदर्शन किया। इनकी कुछ पुस्तक निम्नलिखित है-
- “हिस्ट्री ऑफ़ आर्य समाज”
- इंग्लैंड’ज डेब्ट टू इंडिया:इंडिया
- दी प्रॉब्लम ऑफ़ नेशनल एजुकेशन इन इंडिया
- स्वराज एंड सोशल चेंज,दी युनाइटेड स्टेट्स ऑफ़ अमेरिका:अ हिन्दू’स इम्प्रैशन एंड स्टडी”
- मेजिनी का चरित्र चित्रण (1896)
- गेरिबाल्डी का चरित्र चित्रण (1896)
- शिवाजी का चरित्र चित्रण (1896)
- दयानन्द सरस्वती (1898)
- युगपुरुष भगवान श्रीकृष्ण (1898)
- मेरी निर्वासन कथा
- रोमांचक ब्रह्मा
- भगवद् गीता का संदेश (1908)
विचार –
- “मनुष्य अपने गुणों से आगे बढ़ता है न कि दूसरों कि कृपा से”।
- “मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी ब्रिटिश साम्राज्य के कफन में कील साबित होगी”।
- “मेरा विश्वास है कि बहुत से मुद्दों पर मेरी खामोशी लम्बे समय में फायदेमंद होगी”।
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