Bobbili Fort
केवल बोबिली किले का नाम लेने से हमें उससे जुड़े वीरता और गर्व की बाते याद आती है। बोबिली का किला आंध्र प्रदेश के विजयनगरम जिले में आता है।
किले को 19 शताब्दी के मध्य में बोबिली के राजा चिन्ना रंगा राव ने निर्माण कराया था। उनके बाद में जितने भी उनके वंश के 19 वी शताब्दी में राजे हुए उन सबने बोबिली किले को और बेहतर बनाने का काम किया था।
बोबिली किले का इतिहास – Bobbili Fort History
बोबिली के राजा गजबलुदु और विक्रमुदु ने एक युद्ध में विजयनगरम के राजा को मार डाला था। यह बात बोबिली और भारत के नजरिये से देखी जाये तो बहुत ही महत्वपूर्ण है। बोबिली युद्ध के दौरान राजा के बहन की अचानक हुई मौत और राजा के पुरे वंश का खात्मा हो चूका था।
ऐसे हालात में बोबिली का राजा बहुत दुखी हो गया था। इसीलिए उन सब की मौत का बदला लेने के लिए राजा ने ख़ुद अकेले ही उस युद्ध को लड़ा था।
बोबिली हाउस का निर्माता पेद्दा रायुडु जाती से वेलामा था। वो और विजयनगरम का माधव वर्मा के बिच हमेशा युद्ध हुआ करता था। करीब 1652 के दौरान उन दोनों के बिच में हमेशा लड़ाई हुआ करती थी।
आखिरकार पेद्दा रायुडु का समर्पण देखकर शेर मोहमंद खान ने उन्हें सम्मानित किया था। शेर मोहम्मद खान चिकाकोले का फौजदार था।
जब रायुडु का लड़का लिंगाप्पा सिंघासन पे आया था तब उसने बोबिली में रहने का फैसल किया था और उसने वहापर किला भी बनवाया था और पेद्दा पुली(बड़ा बाघ) नाम का शहर भी बनवाया था।
फिर बाद में वेंकटगिरी राजा ने दक्षिण में जो लड़ाईयां लड़ी उसके लिए इनाम के रूप में श्रीकाकुलम का नवाब शेर मुहम्मद खान ने उस किले को वेंकटगिरी को सौप दिया था।
फिर आगे चल कर किले को पेबुली नाम पड़ा, फिर बेबुली और आखिरकार बोबिली किला नाम पड़ा।
जब शेर खान के लड़के को दुश्मनों के लोगों ने कब्जे में कर लिया था तब लिगाप्पा ने उसकी जान बचाई थी और उसके बदले में उसे 12 गाव का अधिकार और रंगा राव का पद सौपा था।
लिंगाप्पा के बाद में उसका बेटा वेंगल रंगा राव पद पर आया और उसके बाद में रंगापति और बाद में रायदापा सिंघासन पर आया और सबसे आखिरी में रायदापा ने गोपालकृष्ण को गोद लिया था वो सिंघासन पर आया था।
गोपालकृष्ण के शासन के दौरान 1753 में हैदराबाद के निज़ाम ने उत्तरी सिरकार को फ्रेंच लोगों को सौप दिया था। फ्रेंच जनरल बुस्सी ने चिकाकोल और राजमुंद्री सिरकार को विजयनगरम के राजा पेद्दा विजय रामा राजू को किराये पर देने का फ़ैसला कर लिया था।
लेकिन कुछ समय बाद ही बुस्सी और निज़ाम के बिच में दरार पड़ गयी थी जिसके कारण बुस्सी की ताकत कम पड़ने लगी थी।
लेकिन विजय रामा राजू ने बुस्सी का साथ दिया और उसे उसकी ताकत वापस दिलाने में मदत की। विजय रामा राजू ने उसके जानी दुश्मन बोबिली के राजा को हराने के लिए बुस्सी को मना लिया था और इसी कारण 24 जनवरी 1757 को बुस्सी और विजय रामा राजू ने साथ में मिलकर बोबिली के किले पर हमला कर दिया था।
गोपालकृष्ण को मालूम था की वो बुस्सी और विजय रामा राजू के तगड़ी सेना का सामना नहीं कर सकता फिर भी उसने और उसकी सेना ने आखिर तक जी जान लगाकर लड़ाई लड़ी थी।
तन्द्रा पपरयुदु उस समय उसके वीरता और शौर्य जाना जाता था और इसीलिए सभी उसे सम्मान से बाघ समझते थे। उस वक्त वो राजम में राज्य करता था। बुस्सी को पता था की राजम को पार किए बिना बोबिली तक पहुच ही नहीं सकता।
क्यु की बिच के रास्ते में पपरयुदु डेरा डाल कर बैठा हुआ था। तो बुस्सी ने बोबिली तक पहुचने के लिए अलग रास्ता खोज निकला था लेकिन बिच में पपरयुदु की बहन रानी मल्लाम्मा देवी ने उस हमले की खबर को उसके भाई तक पहुचाने की कोशिश की थी।
लेकिन बिच रास्ते में ही उस संदेश को दुश्मनों ने रोक दिया था जिसके कारण वो संदेश कभी भी पपरयुदु तक पहुच नहीं सका।
रंगा राव और उसके साथियों को दुश्मनों ने लम्बे समय तक कैद कर रखा था और उसे अहसास हो गया था की वो कैद से छुट नहीं सकता।
वो नहीं चाहता उसके राज्य के बच्चे और औरतो पर अन्याय हो इसीलिए उसने उन्हें मंरने का आदेश दिया था। इसीलिए उसकी पत्नी रानी मल्लाम्मा देवी नी भी आत्महत्या कर ली थी।
तन्द्रा पपरयुदु ने जब उनके रिश्तेदार और उसके बहन को जब सामने मरते हुए देखा तो वो बहुत दुखी हुआ था और उसी समय उसने विजय रामा राजू को मारने की कसम ली थी।
दूसरी तरफ़ विजय रामा राजू ख़ुद की जीत का एक तम्बू में जश्न मना रहा था। तभी पपरयुदु ख़ुद देवुलापल्ली पेद्दन्ना और बुद्ध राजू वेंकैया के साथ उसकी तंबू में जाकर पंहुचा। पपरयुदु तंबू के पीछे के दरवाजे से अंदर तक पहुच गया था और उसके साथ के लोग तंबू के बाहर पहरा दे रहे थे।
उसने जोर जोर से’ पुली पुली बोबिली पुली’ चिल्लाना शुरू कर दिया था। उसे अंदर आते देखकर विजय रामा राजू ने डरपोक कह के पुकारा था तो उसके जवाब में पपरयुदु ने कहा था की उसने गैर क़ानूनी तरीक़े के उसके पुरे वंश को ख़तम कर दिया और ऐसा कहते ही उसने विजय रामा राजू पर हमला करके मार डाला।
उसकी चीखे सुनकर पूरी सेना चौकन्नी हो गयी थी लेकिन उसका कुछ उपयोग होनेवाला नहीं था। पपरयुदु और उसके दोस्तों ने ख़ुद को ही बाद में मार दिया था।
वास्तुकला
किले में अंदर जाने के लिए शुरुवात में एक सुन्दर और आलीशान इंडो सर्सनिक वास्तुकला में बना हुआ द्वार दिखाई देता है। किले के अंदर कई सारे दरबार, मंडप, चार बड़े महल और दो मंदिरे है।
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