हिंदी भाषा के लेखक “यशपाल” | Yashpal Biography

Yashpal – यशपाल हिंदी भाषा के लेखक थे, जिन्हें प्रेमचंद के बाद काफी पहचान मिली थी। वे एक राजनितिक वक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता थे, जो खास तौर पर गरीबो और बेसहारा लोगो को सहायता करते थे। अपने करियर में उन्होंने बहुत से निबंध, उपन्यास, लघु कथा, नाटक और दो यात्रा किताब और एक जीवनी की रचना की है।

उनके द्वारा रचित उपन्यास, मेरी तेरी उसकी बात के लिए 1976 में उन्हें साहित्य अकादमी अवार्ड से सम्मानित भी किया गया और साथ ही उन्हें पद्म भूषण से भी सम्मानित किया जा चूका है। यशपाल ने अपने शुरुवाती करियर और जीवन में भारतीय स्वतंत्रता अभियान के लिए लिखना शुरू किया था।

Yashpal
हिंदी भाषा के लेखक यशपाल – Yashpal Biography

यशपाल का जन्म 1903 में काँगड़ा पहाडियों के पास बसे हुए गाँव में हुआ था। उनकी माता काफी गरीब थी और उनपर ही उनके दोनों बेटो के पालन पोषण की जिम्मेदारी थी। वह उस काल में बड़े हुए जहाँ भारतीय जनता ब्रिटिश राज के खिलाफ आज़ादी पाने के लिए संघर्ष कर रही थी और उस समय उनकी माता भी आर्य समाज की समर्थक थी।

यशपाल भी हरिद्वार के आर्य समाज गुरुकुल में गये थे, क्योकि उनका परिवार उस समय बहुत गरीब था। ऐसे स्कूल को उस समय ब्रिटिश अधिकारी राजद्रोहपूर्ण स्कूल समझते थे, क्योकि ऐसी स्कूलो में ही उस समय भारतीय संस्कृति और भारत की उपलब्धियों के बारे में बताया जाता और यही भारतीयों को अपने देश के प्रति लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था।

ब्रिटिश उस समय नही चाहते थे की उनके खिलाफ कोई भी खड़ा हो सके और इसीलिए वे ऐसी स्कूलो का विरोध करते थे। यशपाल ने बाद में बताया की अपने स्कूल के दिनों में उन्होंने पहले से ही दिन में भारत की आज़ादी का सपना देख लिया था।

इसके बाद लाहौर में वे फिर अपनी माँ से मिले। यशपाल ने फेरोजपुर कैंटोनमेंट से भली-भांति मेट्रिक की परीक्षा पास कर पढाई पूरी की थी।

17 साल की उम्र से ही यशपाल महात्मा गांधी की कांग्रेस संस्था के अनुयायी बन चुके थे, उस समय साथ में वे अपने हाई स्कूल की पढाई भी पूरी कर रहे थे।

महात्मा गाँधी के असहकार आंदोलन के संदेश को जनमत तक पहुचाने के लिए उन्होंने बहुत से गाँवो की यात्रा की लेकिन कुछ से समय बाद इस काम से उनका मन उठ गया और इसके-साथ उन्हें इस बात का अहसास भी हो गया कांग्रेस संस्था द्वारा किये जा रहे कार्यो का कोई प्रभाव नही होता। ऐसे ही एक टूर के बाद उन्होंने मेट्रिक की परीक्षा भी पास कर ली, जिससे सरकारी कॉलेज में उन्हें शिष्यवृत्ति भी मिली।

इसके बाद वे कांग्रेस कार्यकर्ता लाला लाजपत राय और आर्य समाज द्वारा लाहौर में स्थापित राष्ट्रिय कॉलेज में वे पढना और पढाना चाहते थे। वहाँ पढ़ाते हुए उनका मुख्य उद्देश्य स्कूल में शिक्षा की गुणवत्ता को विकसित करना और सामाजिक कार्यो को प्रोत्साहित करना ही था। यशपाल शुरू से ही ब्रिटिश कॉलेज में पढ़ने और पढ़ाने के इच्छुक नही थे।

कार्य:

यशपाल ने हिंदी भाषा में 50 से भी ज्यादा रचनाये की है, जिनमे से उनकी बहुत सी रचनाओ को दूसरी भाषाओ में भी अनुवादित किया गया है। उनके प्रसिद्ध प्रकाशनों में मुख्य रूप से निचे दी हुई रचनाये शामिल है:

संग्रह:

  • पिंजरे की उड़न (1939)
  • तरक्का तूफ़ान (1943)

उपन्यास:

  • दादा कामरेड (1941)
  • देशद्रोही (1943)
  • दिव्या (1945)
  • पार्टी कामरेड (1946)
  • मनुष्य के रूप (1949)
  • अमिता (1956)
  • झूठा सच (वतन और देश : 1958 और देश का भविष्य : 1960)
  • अप्सरा का शाप (1965)
  • मेरी तेरी उसकी बात (1974)

शताब्दी उत्सव: 2003-2004 में उनके जन्म का शताब्दी उत्सव मनाया गया और 3 दिसम्बर 2003 को भारत सरकार ने उनके नाम का एक पोस्टेज स्टेम्प भी जारी किया था।

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