Yakub Memon – याकूब अब्दुल रज़ाक मेमन एक आतंकवादी था जिसने 1993 में बॉम्बे बम विस्फोट में विशेष आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियां में शामिल होने के लिए अदालत ने दोषी ठहराया था।
1993 बॉम्बे बम विस्फोट का दोषी याकूब मेमन – Yakub Memon History in Hindi
याकूब मेमन 30 जुलाई 1962 को एक मुस्लिम मेमन परिवार में पैदा हुआ था और मुंबई के भालुला इलाके में बड़ा हुआ जहां उसने एंटोनियो डिसूजा हाई स्कूल में पढाई की। बादमें उसने बुहरानी कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड आर्ट्स में कॉमर्स में स्नातक पूरा किया। 1986 में, मेमन ने भारत के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स संस्थान में दाखिला लिया और 1990 में चार्टर्ड एकाउंटेंट के रूप में अध्ययन पूरा किया।
1991 में, याकूब मेमन ने अपने बचपन के दोस्त चेतन मेहता के साथ चार्टर्ड अकाउंटेंसी फर्म ‘मेहता एंड मेमन एसोसिएट्स’ की स्थापना की। अगले वर्ष, वो दोनों अलग हो गए और याकूब मेमन ने अपने पिता के नाम पर एक और अकाउंटेंसी फर्म ‘एआर एंड संस’ की स्थापना की, यह फर्म इतनी सफल रही कि मेमन ने मुंबई के मेमन समुदाय से “बेस्ट चार्टर्ड अकाउंटेंट ऑफ द इयर” पुरस्कार जीता।
1993 बॉम्बे बम विस्फोट
बम विस्फोट में भाग
भारतीय अधिकारियों के मुताबिक, मेमन ने अपने भाई टाइगर मेमन और दाऊद इब्राहिम को विस्फोटों की योजना में वित्तीय रूप से सहायता प्रदान की।
गिरफ़्तार करना
भारतीय केंद्रीय जांच ब्यूरो ने दावा किया है कि मेमन को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर 5 अगस्त 1994 को गिरफ्तार किया गया था। हालांकि, मेमन का दावा है कि उसने 28 जुलाई 1994 को नेपाल में पुलिस को आत्मसमर्पण कर दिया। मेमन को एक ब्रीफकेस के साथ गिरफ्तार किया गया जिसमें कराची में हुए बातचीत की रिकॉर्डिंग थी।
मेमन को येरवाड़ा केंद्रीय जेल में रखा गया था, और अगस्त 2007 में नागपुर केंद्रीय जेल में स्थानांतरित किया गया था। जेल में रहते हुए, उन्होंने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय में अध्ययन किया और दो मास्टर डिग्री अर्जित की: पहली, 2013 में, अंग्रेजी साहित्य में और दूसरी डिग्री, 2014 में, राजनीति विज्ञान में।
1993 बॉम्बे बम विस्फोट के पंद्रह वर्षो तक चले मुकदमे में विशेष टाडा न्यायाधीश पीडी कोदे ने जुलाई 2007 में 12 लोगों को मौत की सजा सुनाई थी, जिसमें से एक याकूब मेमन था। उस पर धमाकों की साजिश में शामिल होने के अलावा वारदात के लिए वाहनों का इंतजाम व विस्फोटक लदे वाहनों को सही जगहों पर खड़ा करवाने का आरोप था। फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद से वो नागपुर सेंट्रल जेल में बंद था।
अपने फांसी पर पुनर्विचार करने के लिए याकूब मेमन ने अपने वकील की जरिये भारतीय सर्वोच्च न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दाखिल की लेकिन साल 2014 को भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के द्वारा भी उसकी दया याचिका खारिज की गई और फांसी की सजा बरक़रार रखी गईं आखिरकार 30 जुलाई 2015 को सुबह 6:30 प्रातः याकूब मेमन को फाँसी दी गई।
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