क्या जवाहरलाल नेहरू की वजह से प्रधानमंत्री नहीं बने सरदार वल्लभभाई पटेल?

क्या जवाहरलाल नेहरू की वजह से प्रधानमंत्री नहीं बने सरदार वल्लभभाई पटेल

अगर अब कोई विश्व में सबसे उची प्रतिमाओ की बात करेगा तो हम अपने देश का नाम ले सकते है और कह सकते है की यह प्रतिमा भारत के सबसे मजबूत इंसान सरदार वल्लभभाई पटेल की जो की देश के पहले गृह मंत्री थे। उनकी प्रतिमा बनने के साथ ही ये प्रचार किया जा रहा है की नेहरु ने कभी पटेल को अहमियत नहीं दी और प्रधानमंत्री नहीं बनने दिया और अगर ऐसा होता तो भारत अलग ही होता। इसमें कितनी सच्चाई है शायद किसी को ही पता हो।

Sardar Vallabhbhai Patel
Sardar Vallabhbhai Patel

क्या जवाहरलाल नेहरू की वजह से प्रधानमंत्री नहीं बने सरदार वल्लभभाई पटेल?

ये है सच

ये बात पूरी तरह गलत है की नेहरु की वजह से पटेल भारत के पहले प्रधानमंत्री नहीं बने। बल्कि पटेल खुद चाहते थे की नेहरु प्रधानमंत्री बने और देश उनके नेतृत्व में आगे बढ़े और हमेशा तरक्की करे। इस सन्दर्भ की पुष्टि होती है नेहरु और पटेल के बीच आदान-प्रदान किये गए पत्र से जिसमे दोनों ने जवाब दिया है।

जब ये तय हो गया था की देश आजाद होगा और 15 अगस्त को अंग्रेज भारत से चले जायेगे तो नेहरु ने सरदार पटेल को 1 अगस्त को एक पत्र लिखा।

नेहरु लिखते है की “कुछ हद तक औपचारिकताएं निभाना जरूरी होने से मैं आपको मंत्रिमंडल में सम्मिलित होने का निमंत्रण देने के लिए लिख रहा हूँ। इस पत्र का कोई महत्व नहीं है, क्योंकि आप तो मंत्रिमंडल के सुदृढ़ स्तंभ हैं।”

इस पत्र का जवाब सरदार ने दिया 3 अगस्त को जिससे ये सारी ग़लतफ़हमी दूर हो जाएगी की नेहरु और सरदार के रिश्ते ठीक नहीं थे। पटेल ने जवाब में लिखा की

“आपके 1 अगस्त के पत्र के लिए अनेक धन्यवाद। एक-दूसरे के प्रति हमारा जो अनुराग और प्रेम रहा है तथा लगभग 30 वर्ष की हमारी जो अखंड मित्रता है, उसे देखते हुए औपचारिकता के लिए कोई स्थान नहीं रह जाता। आशा है कि मेरी सेवाएं बाकी के जीवन के लिए आपके अधीन रहेंगी। आपको उस ध्येय की सिद्धि के लिए मेरी शुद्ध और संपूर्ण वफादारी औऱ निष्ठा प्राप्त होगी, जिसके लिए आपके जैसा त्याग और बलिदान भारत के अन्य किसी पुरुष ने नहीं किया है। हमारा सम्मिलन और संयोजन अटूट और अखंड है और उसी में हमारी शक्ति निहित है। आपने अपने पत्र में मेरे लिए जो भावनाएं व्यक्त की हैं, उसके लिए मैं आपका कृतज्ञ हूं”।

सरदार वल्लभभाई पटेल और जवाहरलाल नेहरू के इस संवाद से कही ना कही ये साफ़ पता चलता है की दोनों में किसी भी तरह का आपसी मनभेद नहीं था, हां कुछ मामलों में मतभेद था लेकिन वो मिटा लिया जाता था।

पटेल का ये संबोधन भी

इस खत के अलावा सरदार पटेल ने एक बार अपने संबोधन में भी ऐसी बात कही थी जो की ये इशारा करती है की उन्हें नेहरु के प्रधानमंत्री बनने से कोई समस्या नहीं थी। दिन था 2 अक्टूबर 1950 का और जगह थी इंदौर जहाँ पटेल एक महिला केंद्र के उद्घाटन में गए हुए थे और उन्होंने अपने भाषण में कहा की “अब चूंकि महात्मा हमारे बीच नहीं हैं, नेहरू ही हमारे नेता हैं।

बापू ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था और इसकी घोषणा भी की थी। अब यह बापू के सिपाहियों का कर्तव्य है कि वे उनके निर्देश का पालन करें और मैं एक गैर-वफादार सिपाही नहीं हूं। ये बात जाहिर करती है की सरदार वफादार सिपाही थे और आज उन्हें गैर-वफादार बनाया जा रहा है। सरदार पटेल की संगठन में बहुत पकड थी लेकिन उन्होंने कभी भी इसका गलत इस्तेमाल नेहरु के खिलाफ नहीं किया।

आज के समय में जिस तरह की बातें कही और बताई जाती है उन्हें सुनकर साफ़ साफ़ लगता है की जानकारियां भ्रामक तरीके से फैलाई जाती है जिनसे आपको बचना चाहिए।

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3 COMMENTS

  1. बहुत अच्छा लेख ,इस लेख से लोंगों के बीच जवाहर लाल नेहरू और सरदार पटेल के बीच मनमुटाव की खबरें जनमानस में रहतीं थीं ,जबकि अधिकतर मामलों में दोनों की एक राय थी यहां तक कश्मीर इशू में भी वो एक थे ,दोनो कश्मीर में भारत की सेना भेजने के पक्षधर थे पर माउंटबेटेन इसके लिए तैयार नही हुए थे,इसी प्रकार पाकिस्तान से ट्रेन में जब डेड बॉडी भेजी जा रही थी उस समय भी ये सूचना गांधी जी के पास पहुंची के सरदार भी प्रतिक्रियास्वरूप ऐसा करने को कह रहे है,इस पर भी सरदार ने इनकार किया।

  2. बहुत अच्छी जानकारी ।

    सर आप यह सब जानकारी कहाँ से लाते है – YouTube, Google या किसी किताब से ।

    • धन्यवाद विक्रम जी। हमें जानकर खुशी हुई कि आपको हमारा ये पोस्ट पसंद आया। आपको बता दें कि हम एक टॉपिक पर किताब, गूगल और यू-ट्यूब समेत अन्य सोर्सो द्धारा रिसर्च करते हैं और फिर सही जानकारी अपने पाठकों तक पहुंचाने की कोशिश करते हैं।

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