What is Consumer Rights in India
हर कोई एक उपभोक्ता होता है क्योंकि हर किसी को अपने जीवन यापन के लिए सामान की जरूरत होती है, जिसके लिए कोई भी शख्स राशन या फिर रोजमर्रा में इस्तेमाल होने वाला सामान किसी दुकान या फिर मॉल से खरीदता है, लेकिन आमतौर पर ज्यादातर उपभोक्ताओं को अपने अधिकारों के बारे में जानकारी नहीं होती है।
क्या आप जानते हैं हमारे देश में उपभोक्ता के अधिकार कौनसे हैं? – What is Consumer Rights in India
आपको बता दें कि उपभोक्ता के अधिकार के तहत गुणवत्ता, क्षमता, मात्रा, शुद्धता, मूल्य और माल या सेवाओं के मानक के बारे में जानकारी रखने के अधिकार होते हैं।
इसलिए अगर आप कोई वस्तु खरीद रहे हैं तो इन तत्वों को गहराई से देख लें और अगर किसी भी तरह की गड़बड़ी आपको दिख रही है तो आप उपभोक्ता के अधिकार के लिए लड़ भी सकते हैं।
इसके साथ ही अगर आपको उपभोक्ता के सभी अधिकारों की जानकारी होगी तो आप धोखाधड़ी से भी बच सकेंगे। इसलिए हर उपभोक्ता के लिए इन अधिकारों को जानना बेहद जरूरी है।
हालांकि उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा के लिए भारत में मजबूत और स्पष्ट कानून हैं। भारत में उपभोक्ता अधिकारों – Consumer Rights in India की रक्षा के लिए लागू किए गए अलग-अलग कानूनों में से सबसे महत्वपूर्ण उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 है।
इसके मुताबिक कोई व्यक्ति जो अपने इस्तेमाल के लिये सामान अथवा सेवाएं खरीदता है, वह उपभोक्ता है। विक्रेता की अनुमति में से ऐसे सामान/सेवाओं का इस्तेमाल करने वाला व्यक्ति भी उपभोक्ता है। इसिलए हम में से हर कोई किसी न किसी रूप में उपभोक्ता ही है।
उपभोक्ता आन्दोलन का इतिहास – Consumer Rights History
रिपोर्टस के अनुसार उपभोक्ताओं के हक के लिए पहली बार आवाज अमेरिका में रल्प नाडेर नाम के व्यक्ति दारा किया गया था नाडेर के आन्दोलन के बाद अमेरिका के राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी द्वारा उपभोक्ता संरक्षण पारित किया गया था। अमेरिका की कांग्रेसी सरकार ने अधिनियम में चार विशेष प्रवाधान रखे थे
- उपोभक्ता सुरक्षा का अधिकार,
- उपभोक्ता को चुनाव करने का अधिकार
- उपभोक्ता को सुनवाई का अधिकार
- उपभोक्ता को सूचना का अधिकार
भारत में उपभोक्ता संरक्षण का इतिहास – History Of Consumer Rights In India
भारत में उपभोक्ता संरक्षण के लिए आवाज साल 1966 मे जेआरडी टाटा के नेतृत्व में कुछ उद्योगपतियों ने उठाई थी। जिसके तहत उन्होनें उपभोक्ता संरक्षण के लिए मुंबई में फेयर प्रैक्टिस एसोसिएशन की स्थापना की थी। जिसके बाद अलग – अलग राज्यों में उपभोक्ता संरक्षण के लिए संस्थाओं का संगठन हुआ।
और देश में उपभोक्ता कानून की मांग उठने लगी। जिसे देखते हुए साल 1986 में प्रधानमंत्री राजीव गाँधी की पहल पर संसद में उपभोक्ता संरक्षण विधेयक पारित किया गया और राष्ट्रपति के हस्ताक्षरित के होने के बाद देश में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम लागू किया गया।
इसके बाद साल 1993 और दूसरी बार 2002 में इसमें संशोधन किए गए। उपभोक्ता सरंक्षण अधिनियम के अंतर्गत आदेंशो का पालन न करने पर धारा 27 के तहत कारावास और दण्ड का प्रवाधान है।
उपभोक्ता के अधिकारों के प्रकार – Types of Consumer Rights
आइए अब हम आपको भारत में उपभोक्ता के अधिकारों – List of Consumer Rights in India के बारे में बताएंगे –
- सुरक्षा का अधिकार – Right to Safety
- सूचना प्राप्त करने का अधिकार – Right to Information
- चयन करने का अधिकार – Right to Choice
- शिकायत निवारण करने का अधिकार – Right to Seek Redressal
- उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार – Right to Consumer Education
सुरक्षा का अधिकार – Right to Safety
सुरक्षा के अधिकार वो अधिकार होता है जिसके तहत उपभोक्ता को सुरक्षा का अधिकार मिलता है।
अर्थात कोई वस्तु या सेवा ऐसी नहीं होनी चाहिए, जो तुरंत या भविष्य में उपभोक्ता के लिए हानिकारक साबित हो। इसके तहत ये जरूरी है कि खरीदी गई वस्तुओं और सेवाओं को सुरक्षात्मक ढंग से पूरा किया जाना चाहिए।
इसके साथ ही दीर्घकालीन हितों पर भी ध्यान देना चाहिए, यह भी सुरक्षा के अधिकार में शामिल किया गया है। इसके साथ ही इसके तहत उपभोक्ताओं को ये भी अधिकार मिलता है कि कोई भी खराब गुणवत्ता वाली वस्तु उपभोक्ता को नहीं दी जा सकती।
इसके तहत जो भी ग्राहक किसी वस्तु को खरीद रहा है तो इसके लिए जरूरी है कि उसे इससे पहले उनकी गुणवत्ता और उत्पादों और सेवाओं की गारंटी पर जोर देना चाहिए। इसके साथ किसी भी ग्राहक को वस्तु की गुणवत्ता के अंकित उत्पादों को खरीदने पर प्राथमिकता लेनी चाहिए, जैसे आईएसआई, एगमार्क आदि।
आपको ये भी बता दें कि अधिनियम की धारा 6 ( क) के मुताबिक जिंदगी और संपत्ति के लिए परिसंकट मय, माल एवं सेवाओं के विपणन के खिलाफ उपभोक्ताओं को संरक्षण का अधिकार प्राप्त है।
इनके इस्तेमाल से उपभोक्ताओं को किसी भी तरह की शारीरिक परेशानी, स्वास्थ्य की हानि, या अन्य कोई कठिनाई पैदा नहीं होगी। इसके साथ ही ये उपभोक्ताओं को अपनी गुणवक्ता एवं सुरक्षा के मानक से संतुष्टि पहुंचाने योग्य होना चाहिए।
वहीं इस तरह अगर किसी भी ग्राहक को, सुरक्षा में किसी भी तरह की कोई कमी दिखती है तो वह इसकी शिकायत उपभोक्ता कोर्ट में कर सकते है।
सूचना पाने का अधिकार – Right to Information
सूचना प्राप्त करने के अधिकार के तहत किसी भी ग्राहक को किसी भी वस्तु के बारे में उसकी गुणवत्ता और मात्रा के बारे में जानने का पूरा अधिकार है। इसके अलावा किसी भी वस्तु की सर्विस की शुद्धता, मानक और मूल्य जानने का भी पूरा हक है। ये इसलिए जानना बेहद जरूरी है, ताकि अनुचित व्यापार प्रथाओं के खिलाफ उपभोक्ता को सुरक्षा दी जा सके।
आपको बता दें कि सूचना का अधिकार हमारे मौलिक अधिकारों में से भी एक है, जो कि देश के अहम मुद्दों पर भी फैसला लेने की प्रक्रिया में जनता की भागीदारी सुनिश्चित करता है। इसके साथ ही लोकतांत्रिक व्यवस्था में भी एक जरूरी घटक है।
आपको बता दें कि किसी भी उपभोक्ता को वस्तु की खरीददारी के समय सही फैसला लेने के लिए यही जरूरी है कि सूचित किए जाने के अधिकार के तहत जरूरी जानकारियों से भलभांति अवगत कराया जाए।
वहीं किसी भी वस्तु को खरीदते वक्त इस अधिकार के तहत व्यक्ति सोच-समझकर एवं दायित्व के साथ फैसला लेता है। इसके लिए उन्हें पर्याप्त एवं सही जानकारी उपलब्ध करवाना जरूरी है। आपको बता दें कि सूचित किए जाने के अधिकार के अंतर्गत उपभोक्ता को निम्नलिखित अधिकार प्राप्त है –
- क्रय की जा रही सामग्री के विषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त करना।
- बिक्री के लिए प्रस्तुत वस्तुओं एवं सेवाओं की गुणवत्ता, परिमाण, शुद्धता, वस्तुओं के निर्माण में प्रयुक्त सामग्री एवं कीमतों के संबंध में सूचनाएं प्राप्त करना।
- वस्तुओं और सेवाओं की खरीददारी करते समय चयन संबंधी सही फैसला लेने के लिए समस्त जरूरी जानकारियों को इकट्टा करना, सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के विषय में अपनी पहुंच बनाए रखना।
- गलत एवं गुमराह करने वाले प्रचार-प्रसार से भ्रमित नहीं होना।
चुनने का अधिकार – Right to Choice
इस अधिकार के तहत उपभोक्ता को अपने मन पसंद की कोई भी चीज या सर्विस चुनने का पूरा अधिकार है। इसके तहत कोई भी व्यक्ति अपनी जरूरत के मुताबिक उपयुक्त एवं मनचाही वस्तु का चयन कर खरीद सकता है।
वहीं इससे ग्राहक को एक कॉम्पटीटिव मार्केट भी मिलता है। वहीं किसी भी वस्तु का मार्केट में कॉम्पीटिशन होने से ग्राहक को सही दाम और उचित गुणवत्ता वाली वस्तु मिलती है।
इसका अर्थ है- कॉम्पटीशन से दाम पर वस्तुओं की किस्मों और सेवाओं पर जहां तक संभव हो, पहुंच पाने का अधिकार सुनिश्चित करना। वहीं एकाधिकार के मामलों में, इसका अर्थ है सही कीमत पर संतोषजनक गुणवत्ता और सेवाओं का आश्वासन पाने का अधिकार। जिसमें मूलभूत वस्तुओं और सेवाओं का अधिकार भी शामिल है।
वहीं कोई भी ग्राहक जब कोई भी वस्तु खरीदता है तो हमेशा उसकी यही कोशिश रहती है वो अपनी मनपसंद की वस्तु के लिए ही धन खर्च करे ताकि उसे संतुष्टि प्राप्त हो।
वहीं बाजार में भी एक ही तरह की चीजे अलग-अलग वैराइटी में उपलब्ध होती है। जहां से किसी भी ग्राहक को अपनी मनपसंद की चीज का चयन करना होता है।
इस तरह चयन करने का अधिकार उपभोक्ताओं को बेहतर तरीके से संरक्षण प्रदान करता है। वहीं यह ग्राहकों पर निर्भर करता है कि वे सजगता के साथ अपने इस अधिकार का इस्तेमाल करें।
सुने जाने का अधिकार – Right to be Heard or Right to Representation
सुने जाने का अधिकार का मतलब है कि उपभोक्ताओं के हितों की वकालत करते समय एवं उन्हें आर्थिक और अन्य नीतियों को बनाते समय पूरी तरह से सहानुभूतिपूर्वक उपभोक्ताओं को सुना जाए।
वहीं यह अधिकार उपभोक्ताओं को शासकीय और अन्य नीति निर्माण करने वाली संस्थाओं के साथ-साथ उत्पादकों और अपनी सेवा देने वालो को भी अपना प्रतिनिधित्व करने का अधिकार देता है।
इसके साथ ही सुने जाने के अधिकार के तहत किसी भी ग्राहक की बात सुनी जाना चाहिए। वहीं अगर कोई दुकानदार, किसी ग्राहक के साथ बुरा बर्ताव कर रहा है या किसी ग्राहक के साथ बेईमानी करता है तो सुने जाने के अधिकार के तहत ग्राहक उस दुकानदार के खिलाफ अपनी आवाज उठा सकता है।
इस अधिकार के तहत कोई भी ग्राहक अपने विचारों को जिला, राज्य और एवं राष्ट्रीय फोरम में अभिव्यक्त कर सकता है।
इस तरह के सुने जाने के अधिकार के तहत कोई भी ग्राहक अपने विचार व्यक्त कर सकता है। इसके साथ ही निरीक्षण करने और शिकायत करने के मौके भी प्रदान करता है।
उपभोक्ता अधनियिम से जुड़े अहम कानून – Consumer Rights Act India
जीवन बीमा अधिनियम 1956 – जीवन बीमा की सेवा वाले लोगो के लिए ये अधिनियम है ताकि जीवन बीमा को लेकर समस्या आने पर उपभोक्ता इस अधिनियम के तहत अपना हक पा सकें
खाद्य पदार्थ मिलावट अधिनियम 1954 – इस अधिनियम के तहत खाद्य पदार्थों में मिलावट पाए जाने पर ग्राहक विक्रेता के खिलाफ शिकायत दर्ज करा सकता है।
चिट फण्ड अधिनियम 1982 – इस के तहत चिट फण्ड में गड़बड़ी होने पर ग्राहक के हितों का ख्याल रखते हुए कंपनी के खिलाफ कार्यवाही की जाती है।
इसके अलावा पोस्ट ऑफिस अधिनियम 1898 – सिविल न्यायालय से संबंधित भारतीय वस्तु विक्रय अधिनियम 1930 जैसे कई अधिनियम है जो अलग – अलग क्षेत्रों में ग्राहकों के अधिकारों की रक्षा करते हैं।
उपभोक्ता कब कब शिकायत कर सकता है:
- किसी व्यापारी द्वारा अनुचित पद्धि के प्रयोग से ग्राहक को हानि या क्षति पहुंचाए
- खरीदे गए सामान पर खराबी होने पर
- किराये के लिए उपभोग के लिए ली गई सेवाओं में कमी होने पर
- इस तरह के किसी भी कारण होने पर उपभोक्ता शिकायत दर्ज करा सकते है।
शिकायतें कहां दर्ज कराई जाती है:
शिकायत कहां दर्ज करानी है ये सेवा या वस्तु पर निर्भर करता है। अगर नुकसान की राशि 20 लाख से कम है तो जिला फोरम मे शिकायत दर्ज कराई जा सकती है। यदि राशि राशि 20 लाख से ज्यादा है तो राज्य आयोग के समक्ष शिकायत दर्ज करानी होती है वहीं 1 करोड़ से ज्यादा राशि के खिलाफ शिकायत राष्ट्रीय आयोग में दर्ज की जाती है।
शिकायत निवारण का अधिकार – Right to Seek Redressal
इस अधिकार के तहत कोई भी ग्राहक अगर किसी चीज को खरीदने के बाद उसकी गुणवत्ता, मात्रा या फिर कोई ऐसा प्रोडक्ट जिसकी वजह से उसे स्वास्थ्य हानि हुई हो तो, इसके अलावा प्रोडक्ट से संबंधित कोई भी शिकायत अगर वह करता है तो इसके तहत ग्राहक की वास्तविक शिकायत का निवारण किया जाता है।
वहीं शिकायत निवारण का अधिकार का अर्थ है कि उपभोक्ताओं के धोखाधड़ी द्वारा शोषण या अनुचित व्यापार प्रथाओं के खिलाफ शिकायत निवारण का अधिकार। इसलिए इस अधिका के तहत उपभोक्ताओं को अपनी वास्तविक शिकायतों के लिए शिकायत जरूर करवानी चाहिए।
उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार – Right to Consumer Education
उपभोक्ता शिक्षा अधिकार के तहत उपभोक्ता को शिक्षा दिए जाना का अधिनियम शामिल है। इससे तात्पर्य है कि ग्राहक को पूरे जीवन ज्ञान और कौशल अर्जित करने का अधिकार है। जिससे ग्राहक एक जानकार और समझदार उपभोक्ता के रूप में अपनी पहचान बना सके।
इस अधिकार के माध्यम से कोई भी उपभोक्ता अपनी जानकारी और कुशलता का उचित तरीके से इस्तेमाल कर, किसी भी वस्तु को खरीदते वक्त सही फैसला कर सकता है। उपभोक्ता शिक्षा, हर व्यक्ति को समझदार, बुद्धिमान उपभोक्ता के रूप में विकसित होने के लिए जरूरी जानकारी उपलब्ध कराती है।
इस तरह से यह एक संगठित आंदोलन है, जिससे द्धारा समाज में उपभोक्ताओं को एक समझदार और कुशल उपभोक्ता के रूप में तैयार किया जाता है।
इसके अलावा हाल ही में मोदी सरकार ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम पेश किया है जिसका मुख्य मकसद उपभोक्ता के अधिकारों का संरक्षण करना है। आपको बता दें कि इस नए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम को 1986 के उपभोक्ता फोरम की जगह पास किया गया –
अधिनियम 2018 के तहत उपभोक्ता के निम्नलिखित अधिकार हैं –
- इसके अंतर्गत उन वस्तुओं या सेवाओं से उपभोक्ताओं को सुरक्षित करता है जो कि मनुष्य के जीवन को नुकसान पहुंचा सकती है।
- दुकानदार को वस्तु या सेवा की मात्रा, गुणवत्ता, शुद्धता और मूल्य आदि के बारे में जानकारी देना जरूरी होगा।
- गलत या प्रतिबंधित व्यापार के इस्तेमाल पर तय सजा का भी प्रावधान है, जिससे व्यापारी किसी तरह से गलत व्यापार नहीं करें।
विज्ञापनों के कारण होने वाले शोषण से बचने के लिए करें एमआरटीपी का इस्तेमाल:
इनदिनों झूठे विज्ञापनों को दिखाकर कंपनियां अपने प्रोडक्ट बेचती है कई बार इसे ग्राहक की सेहत या अन्य वस्तु को क्षति पहुंचती है। ऐसे में झूठे विज्ञापनों से उपभोक्ताओँ का शोषण रोकने के लिए केंद्र सरकार द्वारा मोनोपोलिस एंड रेस्ट्रिक्टिव ट्रेड प्रेक्टिसेस एक्ट 1969 लागू किया है। जिसे शॉर्ट में एमआरटीपी एक्ट भी कहते हैं। एमआरटीपी कमशीन इस तरह के मामलों से ग्राहक का शोषण रोकता है।
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