पंढरपुर का विठोबा मंदिर – Vithoba Pandharpur Temple
मंदिरों की परंपरा हमारे यहाँ सदियों से चलती आ रही है और इसी तरह से आगे भी चलती रहेंगी। अगर हम मंदिरों की बात करे तो हमें पता चलेगा की महाभारत और रामायण के ज़माने से मंदिरों की परम्परा शुरू हुई थी।
उस समय में भी अलग अलग देवी देवता के मंदिर बनाये जाते थे। खुद भगवान श्री राम ने भी शिवलिंग स्थापित करके उसकी पूजा की थी और उसे मंदिर के रूप में परिवर्तित कर दिया था।
वैसे ही महाराष्ट्र के पंढरपुर में एक मंदिर हैं जिसे विठोबा मंदिर से जानते हैं। आज इसी मंदिर के बारेमें जानेंगे।
पंढरपुर का विठोबा मंदिर – Vithoba Pandharpur Temple
भगवान विट्ठल का मंदिर का चंद्रभागा नदी के किनारे पर स्थित है यह मंदिर इस नदी की ओर की दिशा में बनाया गया है। कुछ लोग इस नदी को भीमा नदी नाम से भी बुलाते है।इस मंदिर के शुरुवात में ही संत नामदेव और और संत चोखामेला की समाधी है।
तीर्थयात्री सबसे पहले इन दो महान भक्तों के दर्शन करते है और उसके बाद ही मंदिर में प्रवेश करते है। इस मंदिर में भगवान गणेश का भी एक छोटासा मंदिर है और यह इस मंदिर का पहला मंदिर है लोग पहले भगवान गणेश के दर्शन करते है और फिर आगे की और बढ़ते है।
उसके बाद में आगे एक छोटासा भवन है जिसमे सभी भक्त ‘भजन’ करते है। वहापर गरुड़ का भी एक मंदिर है।
इस मंदिर के आगे कुछ सीढिया चढ़ने के बाद हम भगवान विट्ठल के दर्शन कर सकते है। इस तरह के भगवान के दर्शन को मुख दर्शन कहते है और इसके लिए लम्बी लम्बी लाईनों में खड़े रहने की जरुरत भी नहीं पड़ती।
भगवान के ‘पद दर्शन’ करने के लिए लम्बी कतारों में खड़ा रहना पड़ता है और उसके लिए एक बडासा भवन भी तयार किया गया है जहापर सभी भक्त लाईनों में खड़े रहते है।इस पद दर्शन में भक्तोंको भगवान के कमल जैसे पैरों को स्पर्श करने का सुनहरा अवसर मिलता है।
जब हम भगवान के पैरों को छुते है तो हमें बेहद ख़ुशी होती है, आनंद का अनुभव होता है। यहापर अन्य देवी देवता के भी मंदिर है उन मंदिरों में रुक्मिणी देवी, सत्यभामा देवी, राधिका देवी, भगवान नरसिम्हा, भगवान वेंकटेश्वर, देवी महालक्ष्मी, नागराज, गणेश, अन्नपूर्णा देवी इन सभी देवी देवता के मंदिरे मौजूद है।
यहापर एक और खास मंडप भी है जहापर जिस तरह से भगवान कृष्ण सभी गोपिका के साथ खेलते थे उसी तरह से भक्त इस भवन में खेल सकते है।
महाराष्ट्र में स्थित विठोबा का मंदिर पुरे देश में बहुत ही प्रसिद्ध है। इस मंदिर में जब यात्रा का आयोजन किया जाता है, लोग लाखों की संख्या में देखने को मिलते है। हमारे यहाँ कई सारे मंदिरे है लेकिन पंढरपुर के विठोबा मंदिर की कुछ अलग ही विशेषता है।
क्यों की इस मंदिर में जब आषाढ़ी एकादशी मनाई जाती है उसकी शुरुवात कई दिनों पहले करनी पड़ती है। कुछ कुछ जगह के लोग तो एक महिना पहले इसके तयारी में लग जाते क्यों की इस आषाढ़ी एकादशी के लिए ज्यादातर लोग दिंडी में शामिल हो जाते है।
इस दिंडी में शामिल होने वाले भक्त एक महीने तक अपने पैरों पर चलकर आते है। इस यात्रा के दौरान वह किसी भी बस, ट्रेन या निजी वाहन का बिलकुल इस्तेमाल नहीं करते। इस यात्रा में जितने भी लोग शामिल होते उन्हें सभी ‘वारकरी’ कहकर बुलाते है।
पंढरपुर यात्रा – Pandharpur Yatra
जून जुलाई के महीने में (आषाढ़ शुक्ल पक्ष) महाराष्ट्र में आषाढ़ी एकादशी का त्यौहार बड़े पैमाने पर मनाया जाता है। यह महाराष्ट्र का एक धार्मिक त्यौहार है।
इस त्यौहार के दौरान भगवान की पालखी को बहुत ही सुन्दरता से सजाया जाता है फिर उसमे भगवान के ‘पादुका’ को रखा जाता है इसके बाद में सभी लोग इकट्टा होकर साथ में निकल पड़ते है और इस यात्रा के दौरान सभी भगवान का नाम लेकर गीत, भजन गाते हुए उनपर नृत्य करते है। इन सब लोगो का जो समहू बनता है उसे ही ‘दिंडी’ कहा जाता है।
ऐसा कहा जाता है की यह दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे पुराणी यात्रा है जिसमे इस खास अवसर पर लोग इकट्टा होते है और दिंडी में हिस्सा लेते है।
यह यात्रा करीब 250 किमी की होती है। लन्दन के वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकार्ड्स में भी इस ‘पंढरपुर आषाढ़ी एकादशी वारी’ – Pandharpur Wari का नाम शामिल किया जा चूका है।
यह ऐसी जगह है जहापर एक दिन में दुनिया के सबसे अधिक लोग भगवान के दर्शन करने के लिए आते है। इसी वजह से ही इस अनोखी ‘वारी’ यानि ‘दिंडी’ का नाम वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकार्ड्स में दर्ज किया जा चूका है।
जब से इस दिंडी यात्रा की शुरुवात हुई है तबसे यह यात्रा लगातार हर वर्ष होती है इतने साल गुजर गए लेकिन किसी भी साल यह यात्रा नहीं हुई ऐसा कभी भी नहीं हुआ।इतनी लड़ाईया हुई, कभी अकाल पड़ा तो कभी बाढ़े आयी लेकिन एक भी साल इस वारी में रुकावट नहीं आयी। हर साल पचास से भी अधिक संतो की पालखिया पंढरपुर में विठोबा के दर्शन करने के लिए आती है।
महाराष्ट्र में वारकरी लोगो का एक बहुत ही बड़ा समुदाय है और इसमें अधिकतर खेतीबाड़ी का काम करने वाले किसान अधिक मात्रा में होते है। खेती में बुआई करने के बाद सभी किसान 21 दिन की इस यात्रा पर निकल पड़ते है। इस यात्रा में हर धर्म, और जाती के लोग हिस्सा लेते है। ज्ञानी ऋषि भी इस यात्रा का अनुभव लेते है।
जब पंढरपुर की तरफ़ यात्रा निकल पड़ती है तो सभी तीर्थयात्री यानि वारकरी बाहर की दुनिया को भूलकर केवल भगवान को ही याद करते हुए उसके नाम को लेकर गीत और नृत्य करते है।
जब यह अनोखी दिंडी पंढरपुर की तरफ़ निकाल पड़ती है तो इस दिंडी के दौरान कुछ लोग गरीब और जरुरतमंद लोगो की सेवा करते है इससे हमें यह भी समझता की भगवान सभी रूपों में स्थित है क्यों की भगवान तो सर्वव्यापी है।
इस तरह की सेवा इस यात्रा में की जाती है इसीलिए इसे ‘सेवा दिंडी’ भी कहा जाता है। इस दिंडी के दौरान लोग सभी तरह की सेवा करते है जिसमे अमृत कलश, नारायण सेवा, मरीजो की सेवा, गाव के इमारतों की मरम्मत करना आदि शामिल किया जाता है।
इस आषाढ़ी एकादशी और सेवा दिंडी में हिस्सा लेने वाले तीर्थयात्री को कई तरह के लाभ होते है जैसे की उनकी तबियत बिलकुल स्वस्थ रहती है,उनका जीवन शांतता और खुशहाली से भर जाता है।
इस पूरी यात्रा के दौरान लोग केवल भगवान के नाम में इतने डूब जाते है की वह बाहरी दुनिया को पूरी तरह से भूलकर केवल भगवान पर ही ध्यान केन्द्रित करते है,इस यात्रा के दौरान वह पूरी तरह से पवित्र हो जाते है उनका मन, शरीर और आत्मा पूरी तरह से एक होकर पावन हो जाता है और उसे भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस तरह का अनुभव लेने से इन्सान पूरी तरह से विकसित हो जाता है और उसे अपने जीवन का सही उद्देश्य मिल जाता है।
पंढरपुर के विठोबा मंदिर को कई सारे लोग श्री विट्ठल रुक्मिणी मंदिर नाम से भी जानते है और यह मंदिर महाराष्ट्र के पंढरपुर में स्थित है। महाराष्ट्र का यह सबसे महत्वपूर्ण मंदिर है और इस मंदिर में सभी विठोबा और और उनकी पत्नी देवी रुक्मिणी के दर्शन करने के लिए आते है।
विठोबा भगवान विष्णु और भगवान कृष्ण के अवतार है। महाराष्ट्र के इस मंदिर में लाखों की संख्या में भक्त आते है और दर्शन करते है।
इस मंदिर में आषाढी एकादशी और कार्तिक एकादशी के अवसर पर मंदिर में बड़ी यात्रा का आयोजन किया जाता है और इस पावन पर्व पर भगवान विठोबा के दर्शन करने के लिए भक्त समूह बनाकर पंढरपुर की तरफ़ निकल पड़ते है और उनके समूह को दिंडी कहा जाता और भक्तों को सभी वारकरी कहते है।
पंढरपुर चंद्रभागा नदी के किनारे पर स्थित है और ऐसा कहा जाता है की इस नदी में स्नान करने से इन्सान के सारे पाप धुल जाते है। इस मंदिर में आने के बाद में हर भक्त को भगवान को बहुत नजदीक से देखने का मौका मिलता है और भक्त भगवान के पैरों को भी छु सकता है।
मई 2014 से इस मंदिर में महिला को आने की अनुमति दी गयी है और पिछड़े वर्ग के लोगो को भी पुजारी बनने का मौका दिया गया। यह भारत का ऐसा पहला मंदिर है जिस मंदिर में पिछड़े वर्ग के लोगो को पहली बार मंदिर का पुजारी बनने का मौका दिया गया।
इस मंदिर के कुछ वस्तुए और इमारतों के देखने के बाद पता चलता है की यह मंदिर 12 वी 13 वी सदी से मौजूद है लेकिन अभी हम जिस मंदिर को देखते है उसे 17 वी सदी के बाद के समय में दक्खन शैली में बनवाया गया है। इस मंदिर में बड़े बड़े गुबंद और मेहराब नजर आते है।
भगवान विष्णु ने विठोबा के रूप में जन्म लिया। लेकिन भगवान को क्यों और किस लिए यह अवतार लेना पड़े इसके पीछे भी एक बहुत ही दिलचस्प और रहस्यमयी कहानी छिपी है। इस रोचक कहानी को हम आपके सामने जरुर रखना चाहेंगे। ज्यादा वक्त बर्बाद ना करते हुए हम सीधे आपको कहानी की तरफ़ ले जाते है।
भक्त पुंडलिक की कहानी – Bhakta Pundalik Story
पुंडलिक अपने माता पिता की बहुत सेवा करता था। वह जिस लगन से माता पिता की सेवा कर रहा था उसे देखकर भगवान भी बहुत प्रसन्न हुए और भगवान विष्णु ने जल्द ही उसे दर्शन देने का फैसला किया।
इसीलिए पुंडलिक को दर्शन देने के लिए भगवान विष्णु वैकुण्ठ छोड़कर पुंडलिक से मिलने के लिए आश्रम आ पहुचे।
भगवान विष्णु उसके दरवाजे पर आये और दरवाजे को खटखटाने लगे लेकिन उस वक्त पुंडलिक अपने माता पिता को खाना परोस रहा था। दरवाजे की आवाज सुनकर उसे अहसास हुआ की भगवान उसके दरवाजे पर खड़े है।
लेकिन वह अपने माता पिता की सेवा करने में व्यस्त था क्यों की वह चाहता था की सबसे पहले वह उसके कर्तव्य को पूरा करे और बाद में जाकर दरवाजा खोले। लेकिन पुंडलिक माता पिता की सेवा में इतना डूब गया था की उसने कुछ अलग ही किया।
उसने दरवाजे के बाहर एक इट फेक दी और भगवान को उसपर खड़ा रहने के लिए कह दिया जब तक वह अपने माता पिता की पूरी सेवा ना कर सके।
पुंडलिक की माता पिता के प्रति सेवा देखकर भगवान विष्णु बहुत ही आनंदित और प्रभावित हुए और भगवान अपने प्यारे भक्त की राह देखने लगे।
जब पुंडलिक माता पिता की सेवा करके बाहर आया तो वह देरी से दरवाजा खोलने के लिए भगवान से माफ़ी मांगने लगा लेकिन भगवान उसे माफ़ करने की बजाये उसके कार्य से बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने पुंडलिक को आशीर्वाद दिया।
पुंडलिक ने भगवान को एक बार फिर से पृथ्वी पर आकर अपने भक्तों को आशीर्वाद देने की विनती की।
भगवान ने उसकी बात को मान लिया और उसे कहा की वह भगवान विठोबा के रूप में एक नया अवतार लेंगे क्यों की जो भगवान इट पर खड़ा है उसे सभी विठोबा नाम से जानेंगे और वहापर विठोबा का एक बड़ा मन्दिर भी होगा। आज इस मंदिर में भगवान विठोबा के साथ में देवी रखुमाई (माता रुक्मिणी भगवान कृष्ण की पत्नी) की भी पूजा की जाती है।
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