विनायक मंदिर – Vinayaka Temple Kanipakam
प्रथम देवता गणेशजी का कनिपकम का मंदिर की कई सारी विशेषताए है। आंध्र प्रदेश में भगवान गणेशजी के कई सारे मंदिरे है। लेकिन इस विनायक मंदिर की बात सबसे निराली है।
इस मंदिर में गणेशजी की जो मूर्ति है वो बहुत ही सुन्दर है और साथ ही चमत्कारिक भी है। गणेश जी की मूर्ति एक ही आकार में स्थित नहीं रहती बल्की जैसे जैसे समय बिताता जा रहा है उसके साथ ही इस मूर्ति का आकार भी बढता जा रहा है।
कनिपकम का विनायक मंदिर – Vinayaka Temple, Kanipakam
चित्तूर जिले में केवल तिरुपति, तिरुमाला और श्रीकालहस्ती की वजह से लोग नहीं आते बल्की यहापर के कनिपक्कम के वजह से भी यात्रियों की भीड़ यहापर देखने को मिलती है।
यह ऐतिहासिक मंदिर प्रथम पूज्य गणेशजी का है। इस मंदिर को पानी के देवता का मंदिर भी कहा जाता है और यह मंदिर चित्तूर जिले के इरला मंडल में स्थित है। सब लोगो का ऐसा मानना है की इस मंदिर की भगवान गणेश के मूर्ति धीरे धीरे आकार में बढती जा रही है।
ऐसी अद्भुत और चमत्कारिक मूर्ति के कारण इस मंदिर को महान मंदिर कहा जाता है। ऐसा कहा जाता हैं इस मंदिर परिसर में मिलने वाला पवित्र जल के कारण कई सारी बीमारिया ख़तम हो जाती है। सभी भक्त तिरुपति जाने से पहले इस विनायक मंदिर में आकर भगवान गणेश के दर्शन करते है।
कनिपकम विनायक मंदिर का इतिहास – History of Kanipakam Vinayak Temple
इस मंदिर का निर्माण 11 वी शताब्दी में चोल राजा कुलोठुन्गा चोल प्रथम ने करवाया था और बाद में फिर विजयनगर वंश के राजा ने सन 1336 में इस मंदिर को बहुत बड़ा मंदिर बनाने का काम किया था। कनिपकम एक नदी के किनारे होने कारण इसे कनिपकम नाम दिया गया था।
कनिपकम विनायक मंदिर में मनाये जाने वाले त्यौहार – Festivals celebrated in Kanipakam Vinayak Temple
इस मंदिर में सितम्बर और अक्तूबर महीने में ब्रह्मोत्सवं और गणेश चतुर्थी के त्यौहार एक साथ मनाये जाते है। इसी वजह यहापर जो उत्सव मनाया जाता है वो 20 दिन तक चलता है।
ब्रह्मोत्सव के दौरान यहापर सभी तरफ और भक्तों के बिच में से रथ की यात्रा निकाली जाती है। इस त्यौहार के दौरान दुसरे दिन से ही रथयात्रा सुबह में एक बार और शाम में एक बार निकाली जाती है।
कनिपकम विनायक मंदिर से जुडी कहानी – Story related to Kanipakam Vinayak Temple
इस विनायक मंदिर से कई सारी कहानिया जुडी है। इनमे एक कहानी तीन किसानो की है जो जन्म से ही बैरे, अंधे और गूंगे भी थे। उन्हें अपने खेत की फसलो के लिए जल की आवश्यकता थी। लेकिन उनका कुवा पूरी तरह से सुखा गया था इसीलिए उन्होंने कुवे को निचे खोदने का फैसला किया था।
उन तीनो मे से एक ने अपने लोहे के हतियार से कुवा खोदना शुरू किया तभी वो आश्चर्यचकित हो गया क्यों की कुवा खोदने के दौरान वहाके पत्थर से आवाजे आने लगी। उसकी खुदाई शुरू ही थी, अचानक उस पत्थर से खून निकलना शुरू हों गया।
इसी वजह से जल्द ही वहा का सारा पानी लाल बन गया। इस घटना को देखने के लिए उसने दुसरे दो किसानो भी वहा बुला लिया।
इस चमत्कार को देखने के बाद वो तीनो किसान की सारी तकलीफे दूर हो गयी। जब गाव में सभी लोगो ने उन तीनो में आये इस बदलाव को देखकर सब हैरान हो गए और सभी उस कुवे की तरफ़ दौड़ने लगे और वो सभी उस कुवे को और खोदने लगे मगर ऐसा करने में वो नाकामयाब रहे और उसी वक्त उस कुवे से भगवान विनायक की मूर्ति बाहर आ गयी।
आज भी भगवान गणेशजी की मूर्ति इसी कुवे में स्थित है और इस कुवा का पानी कभी भी खतम नहीं होता। बारिश के दिनों में तो पानी कुवे के ऊपर से बहता है और इस जल को तीर्थ के रूप में सभी भक्तों को दिया जाता है।
विनायक मंदिर तक कैसे पहुचे ? – How to reach Vinayak Temple?
रास्ते से: यह मंदिर तिरुपतिबस स्टेशन से केवल 72 किमी पर है।
रेलगाड़ी से: इस मंदिर के नजदीक में तिरुपति रेलवे स्टेशन है और यह मंदिर से केवल 70 किमी की दुरी पर है।
हवाईजहाज से: तिरुपति हवाईअड्डा इस मंदिर से केवल 86 किमी की दुरी पर है।
गणेशजी का यह मंदिर पूरी तरह से नदी के बिच में है। जिस नदी में यह मंदिर है उस नदी जल भी कभी ख़तम नहीं होता।
ऐसा माना जाता है की एक बार खुद ब्रह्मदेव पृथ्वी पर आये थे और तभी से इस मंदिर में 20 दिन का ब्रह्मोत्सव मनाया जाता है। इस त्यौहार की शुरुवात गणेश चतुर्थी के दिन की जाती है। इस त्यौहार के दौरान रथमे भगवान गणेशजी को बिठाया जाता है। इस तरह का उत्सव बहुत कम मंदिरों में मनाया जाता है।
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