Vasco Da Gama in Hindi
वास्को डी गामा दुनिया के सबसे प्रसिद्ध एवं प्रमुख सामुद्रिक खोजकर्ताओं में से एक थे, जिन्होंने भारत में समुद्री मार्गों की खोज की।
वास्को डी गामा की महान खोज ने पूरी दुनिया में व्यापारिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान की आधारशिला रखी। यही नहीं वे यूरोप से समुद्र के माध्यम से भारत पहुंचने वाले भी पहले शख्स थे, जिन्होंने गोवा में पुर्तगाली उपनिवेश भी स्थापित किया था। तो आइए जानते हैं महान खोजकर्ता वास्को डी गामा के बारे में-
भारत में समुद्री मार्गों की खोज करने वाले महान खोजकर्ता वास्को डी गामा का जीवन परिचय – Vasco Da Gama History in Hindi
वास्को डी गामा के बारे में एक नजर में – Vasco Da Gama Information in Hindi
पूरा नाम (Name) | डॉम वास्को डी गामा (Vasco Da Gama) |
जन्म (Birthday) | करीब 1460 से 1469 के बीच में अलेजेंटो के साईनेस में |
माता का नाम (Mother Name) | इसाबेल सोर्ड़े |
पिता का नाम (Father Name) | एस्तेवाओ द गामा |
पत्नी का नाम (Wife Name) | कैटरीना द अतायदे |
मृत्यु (Death) | 24 मई 1524 |
वास्को डी गामा का जन्म एवं प्रारंभिक जीवन – Vasco Da Gama Biography in Hindi
महान खोजकर्ता वास्को डी गामा के शुरुआती जीवन और जन्म के बारे में इतिहासकारों के अलग-अलग मत हैं। हालांकि कुछ इतिहासकार उनका जन्म 1460 में मानते हैं, जबकि कुछ इतिहासकार उनका जन्म 1469 में पुर्तगाल के अलेंटेजो प्रांत के समुद्री तट पर स्थित साइनेस के किले में बताते हैं।
वास्को डी गामा के पिता एस्तेवाओ द गामा भी एक महान खोजी नाविक थे, उनके पिता को नाइट की उपाधि भी मिली थी। वहीं बाद में वास्को डी गामा ने अपने पिता के व्यापार में रुचि ली और वे भी समुद्री यात्रा लिए जा रहे जहाजों की कमान संभालने लगे। आपको बता दें कि उन्हें वास्को दा गामा और वास्को डी गामा दोनों नाम से ही जाना जाता है।
वास्को डा गामा की पहली समुद्री जहाज यात्रा – Vasco Da Gama First Voyage
भारत में व्यापारिक मार्गों की खोज के लिए पहली बार8 जुलाई1497 को वास्को डी गामा अपने 4 जहाजों के एक बेड़े के साथ साउथ अफ्रीका के लिस्बन पहुंचे। इस दौरान उनके पास दो मीडियम साइज के तीन मस्तूलों वाले जहाज थे। इसमें हर जहाज का वजन लगभग 120 टन था, एवं उनका नाम सॉओ रैफल और सॉओ ग्रैब्रिअल था।
करीब 10 हजार किलोमीटर का लंबा सफर तय करने में उन्हें लगभग 3 महीने का लंबा वक्त लगा था। 4 जहाज के अलावा उनके बेडे़ के साथ इस यात्रा के दौरान3 दुभाषिए भी थे। आपको बता दें कि यह बेड़े अपनी खोज और जीते गए जमीनों को चिन्हित करने के लिए अपने साथ पेड्राओ यानि कि पाषाण स्तंभ भी भी ले गए थे।
अपनी पहली समुद्री यात्रा की खोज के दौरान 15 जुलाई को वे केनेरी द्धीप पहुंचे और 26 जुलाई को उनका बेड़ा केप वर्डे द्धीप के सॉओ टियागो पर पहुंचा। यहां करीब 8 दिन रुकने के बाद वास्को डी गामा ने गुयाना की खाड़ी की तेज जलधाराओं से बचने के लिए केप ऑप गुड होप के दक्षिणी अटलांटिक से होते हुए एक घुमावदार रास्ता अपनाया और इस तरह वे अपने विशाल बेड़े के साथ 7 नवंबर को सांता हैलेना खाड़ी जो कि वर्तमान में दक्षिण अफ्रीका में आता है, वहां पर पहुंचे।
इसके बाद 16 नवंबर को वे अपनी पूरी टीम के लिए वहां से निकले लेकिन मौसम में खराबी और तूफान के चलते उनकी केफ ऑफ गुड होप से मुडने का यात्रा को नवंबर तक रोक दिया गया। इसके बाद वास्को डी गामा ने मोस्सेल की खाड़ी की तरफ अपना रुख किया। यहां उन्होंने एक द्धीप पर सामान रखने वाले जहाज एवं पेड्राओ गाड़ा को अलग-अलग होने के लिए कहा।
इसके बाद वे 25 दिसंबर को नटाल के तट पर पहुंचे। फिर अपने इस अभियान को आगे बढ़ाते हुए वे 11 जनवरी, 1498 को नटाल के तट पर पहुंचे। इसके बाद वास्को डी गामा अपने इस बेड़े के साथ नटाल और मोजांबिक के बीच एक छोटी सी नदी के पास पहु्चे, जिसे उन्होंने ”रियो द कोबर नाम दिया”।
फिर अपने इस अभियान को आगे बढ़ाते हुए वे आधुनिक मोजांबिक में क्लीमेन नदी पर पहुंचे, जिसे उन्होंने ”रियो डोस बोन्स सिनाइस” नाम दिया। वहीं इस अभियान के दौरान जहाज दल के कई मेंबर विटामिन सी की कमी से होने वाले रोग स्कर्वी रोग से पीड़ित हो गए, जिसके चलते करीब 1 महीने तक यह अभियान रोक दिया गया। फिर इसके बाद 2 मार्च को बेड़ा मोजांबिक द्धीप पहुंचा।
इस द्धीप में वास्को डी गामा को अरब के व्यापारियों के साथ उनके व्यापार के बारे में जानकारी हासिल हुई। वहां पर सोने, चांदी और मसालों से भरे चार अरबी जहाज भी खड़े हुए थे। इसके अलावा उन्हें मोजांबिक के शासक प्रेस्टर जॉन के कई तटीय शहरों पर कब्जा होने का भी पता चला।
हालांकि, प्रेस्टर जॉन ने वास्को डी गामा को दो पोत चालक उपलब्ध करवाए, जिसमें एक उस दौरान भाग गया जब उसे पुर्तगालियों के ईसाई होने के बारे में पता चला। इस तरह अभियान दल 14 अप्रैल को मालिंदी में पहुंचा, जहां पर भारत के दक्षिण-पश्चिम किनारे पर स्थित कालीकट का रास्ता जानने वाले एक चालक को अपने साथ ले लिया।
वहीं हिन्द महासागर में कई दिनों की यात्रा के बाद उनका बेड़ा 20 मई, 1498 को भारत के दक्षिण-पश्चिम के तट पर स्थित कालीकट पहुंचा जहां पर वास्को डी गामा ने अपने भारत पहुंचने के प्रमाण के रुप में स्थापित किया। आपको बता दें कि उस दौरान कालीकट भारत के सबसे अधिक प्रसिद्ध एवं महत्वपूर्ण व्यापारिक केन्द्रों में से एक था, हालांकि इस दौरान वास्को डी गामा ने कालीकट के शासक से कारोबार के लिए हामी भरवा ली।
इसके बाद करीब 3 महीने तक यहां रहने के बाद कालीकट के शासक के साथ कुछ मतभेदों के चलते वास्को डी गामा को अगस्त में कालीकट को छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। वहीं इस दौरान वास्को डी गामा द्वारा भारत की खोज की खबर फैलने लगी। दरअसल वास्को डी गामा ने यूरोप के व्यापारियों, सुल्तानों और लुटेरों के लिए एक समुद्री रास्ते की खोज की।
जिसके बाद भारत पर कब्जा जमाने की मंशा से यूरोप के कई राजा और व्यापारी आए और अपना अधिकार जमाने की कोशिश की। यही नहीं पुर्तगालियों की वजह से ही ब्रिटिश लोग भी भारत आने लगे। हालांकि, इसके बाद वास्को डी गामा मालिंदी के लिए निकले, इस यात्रा के दौरान 8 जनवरी, 1499 को वे अजिंदीव द्धीप पहुंचे।
इस दौरान प्रतिकूल हवाओं और समुद्री तूफान के कारण अरब सागर को क्रॉस करने में उन्हें लगभग 3 महीने का लंबा वक्त लग गया। इसके साथ ही इस दौरान उनके अभियान दल के कई सदस्य गंभीर बीमारी की चपेट में आ गए और उनकी मृत्यु हो गई।
मालिंदी पहुंचने पर इस तरह उनकी अभियान दल की संख्या बेहद कम रह गई थी, जिसकी वजह से सॉओ रैफल जहाज को जला देने के आदेश दे दिए गए थे। इस तरह वास्को डी गामा ने वहां पर भी अपने एक पेड्राओ को गाड़ा। आपको बता दें कि वे 1 फरवरी को मोजांबिक पहुंचे जहां पर उन्होंने अपना आखिरी पेड्राओ स्थापित किया।
फिर इसके बाद समुद्री तूफान की वजह से सॉओ ग्रैब्रिएल और बेरिओ दोनों अलग-अलग हो गए। बेरिओ करीब 10 जुलाई को पुर्तगाल की ट्रैगॉस नदी पर पहुंचा जबिक सॉओ ग्रेबिएल ने एजोर्स के दर्सीरा द्धीप के लिए अपनी यात्रा जारी रखी और 9 सितंबर को लिस्बन पहुंचा।
वास्को डी गामा की दूसरी समुद्री यात्रा – Vasco Da Gama Second Voyage
1502 में वास्को डी गामा ने एडमिरल के रुप में करीब 10 जहाजों का नेतृत्व का दिया। जिसमें ने हर जहाज की मद्द के लिए करीब 9 बेड़े थे। अपनी दूसरी समुद्री यात्रा को आगे बढ़ाते हुए 14 जून, 1502 को वास्को डी गामा का यह बेड़ा पूर्वी अफ्रीका के सोफला पोर्ट पर पहुंचा। फिर इसके बाद वे दक्षिणी अरब तट का चक्कर लगाने लाए गोवा पहुंचे।
वहीं दक्षिण-पश्चिम भारत के कालीकट के उत्तर में स्थित कन्त्रागोर पोर्ट में वे अरबी जहाजों को लूटने के इंतजार में रुके। इस दौरान उन्होंने माल से लदे अरबी जहाज का माल जब्त करने के बाद उसमें आग लगा दी। आपको बता दें कि इस अरबी जहाज पर माल के साथ-साथ महिलाएं, बच्चे समेत तमाम यात्री मौजूद थे, जो कि इस जहाज के साथ जलकर मर गए थे।
यह वास्को डी गामा के व्यवसायिक जीवन का सबसे भयावह और दिल दहलाने वाला कुकृत्य था। कालीकट के हिन्दू शासक जमोरी के दुश्मन कन्त्रानोर के शासक के साथ एक संधि के बाद वास्को डी गामा का अभियान कालीकट के लिए रवाना हो गया।
वहीं इसको देखते हुए जमोरीं ने वास्को डी गामा ने दोस्ती के हाथ आगे बढ़ाए, लेकिन वास्को डी गामा ने उनके इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया और फिर वास्को डी गामा ने पहली पोर्ट से सभी मुस्लिमों को निकालने की धमकी दी और फिर पोर्ट पर जमकर बमबारी भी दी। यही नहीं वास्को डी गामा ने जहाज पर अपना सामान बेचने आए करीब 38 हिन्दू मछुआरों की भी जान ले ली।
इसके बाद पुर्तगाली अपने अभियान को आगे बढ़ाते हुए कोचीन के पोर्ट पहुंचे और यहां के शासक जो कि जामोरीं के दुश्मन थे उनसे संधि कर ली। इसके बाद पुर्तगालियों का कालीकट के पास एक युद्द हुआ, जिसके बाद उन्हें यहां से भागने के लिए मजबूर होना पड़ा और वे 1503 में पुर्तगाल वापस लौट गए और फिर वहां करीब 20 साल रहने के बाद फिर से भारत आए।
इसके बाद किंग जॉन तृतीय ने 1524 में उन्हें भारत का पुर्तगाली वाइसरॉय नियुक्त किया फिर सितंबर में गोवा पहुंचने के बाद वास्को डी गामा ने यहां कई प्रशासनिक कुप्रथाओं को सुधारा।
वास्को डी गामा की मौत – Vasco Da Gama Death
वास्को डी गामा अपनी तीसरी भारत यात्रा के दौरान मलेरिया रोग से ग्रसित हो गए, जिसके चलते 24 मई 1524 उनकी मौत हो गई। इसके बाद वास्को डी गामा जी के शव को पुर्तगाल लाया गया। लिस्बन जहां से उन्होंने अपने भारत यात्रा की शुरुआत की थी, वहां पर उनका स्मारक भी बनाया गया है।
इस तरह वास्को डी गामा की भारत में समुद्री मार्गों की खोज ने दुनिया में व्यापार के लिए कई नए अवसर खोले और आज उनकी खोज की वजह से ही सामुद्रिक मार्गों से व्यापार इतना आसान है। वास्को डी गामा की उनकी महान खोज के लिए हमेशा याद किया जाएगा।
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Vasco we game is real historical life
REAL STORY HAI YEH WASKODGAMA KI BHAIYO
Basko de Gama 170 nhi balki 160logo ke sath Bharat ke liye rawana hua tha
Hlo yr Ek movie dekhi South ki usme to Vasco da gama ko Bhut galat insaan batya h Jo bharat pr aakrmn krta h
Sahi baat hai bro ye vascodigama kamina chor literature tha . I know very well.
sir ji ve 1498 m bharat aaye the 1499 m nahi