व्ही.व्ही. गिरी का जीवन परिचय | V. V. Giri biography in Hindi

वराहगिरी वेंकट गिरी साधारणतः व्ही.व्ही. गिरी – V. V. Giri के नाम से जाने जाते है, वे 24 अगस्त 1969 से 24 अगस्त 1974 तक आज़ाद भारत के राष्ट्रपति थे।

राष्ट्रपति के रूप में, गिरी ने राष्ट्रपति के कार्यालय को प्रधानमंत्री के अधीन कर दिया था और उस समय वे “रबर स्टेम्प प्रेसिडेंट” के रूप में पहचाने जाने लगे थे। इसके बाद 1974 में गिरी का कार्यकाल समाप्त होने के बाद फखरुद्दीन अली अहमद उनकी जगह राष्ट्रपति बने। उनका कार्यकाल समाप्त होने के बाद गिरी को भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। इसके बाद 1980 में गिरी की मृत्यु हो गयी थी।

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व्ही.व्ही. गिरी का जीवन परिचय / V. V. Giri biography in Hindi

गिरी का जन्म ओडिशा के गंजम जिले के बेरहामपुर में एक तेलगु ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता व्ही.व्ही. जोग्या पंतुलु एक सफल वकील और भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के प्रसिद्ध राजनीतिक कार्यकर्ता थे। गिरी की माता सुभाद्रम्मा असहकार और असहयोग आंदोलन के समय में बेरहामपुर की एक सक्रीय स्वतंत्रता सेनानी थी। लेकिन आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने की वजह से उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था।

गिरी ने सरस्वती बाई से शादी कर ली थी और उनके कुल 14 बच्चे थे। गिरी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा खालिकोट कॉलेज, बेरहामपुर से प्राप्त की थी।

1913 में वकिली की पढाई करने के लिए वे आयरलैंड गये और वहाँ उन्होंने 1913 से 1916 के बीच यूनिवर्सिटी कॉलेज डबलिन से शिक्षा प्राप्त की थी। अपने आयरलैंड के सहयोगियों के साथ वाला उनका समूह आयरलैंड में भी अपने हक़ की लढाई लढ रहा था, उनके समूह में उनके आर्ट शिक्षक थॉमस मैकडोनाघ, जेम्स कंनोली, पार्से और युवा यामों दे वालेरा शामिल थे।

करियर:

1916 में भारत वापिस आने के बाद गिरी मद्रास हाई कोर्ट में दाखिल हुए। भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के लखनऊ सेशन में उपस्थित रहकर वे भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के सदस्य भी बने और इसके तुरंत बाद वे एनी बेसेंट के होम रूल आंदोलन में शामिल हो गये।

इसके बाद 1920 में महात्मा गांधी बुलाये गये असहकार आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए गिरी ने अपना वकिली का करियर दाव पर लगाया था।

1922 में मदिरा बेचने वालो के खिलाफ आंदोलन करने की वजह से उन्हें पहली बार गिरफ्तार किया गया था।

मजदुर अभियान में उनकी भूमिका:

गिरी मजदूरो और भारत के ट्रेड यूनियन मूवमेंट से आंतरिक रूप से जुड़े हुए थे। इसके साथ-साथ गिरी ऑल इंडिया रेलवे मैन फेडरेशन के संस्थापक सदस्य भी थे, जिसकी स्थापना 1923 में की गयी थी और तक़रीबन एक दशक से भी ज्यादा के समय तक उन्होंने जनरल सेक्रेटरी के पद पर रहते हुए फेडरेशन की सेवा की थी।

1926 में पहली बार उनकी नियुक्ती ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस के प्रेसिडेंट के पद पर नियुक्ती की गयी थी। गिरी ने बंगाल नागपुर रेलवे एसोसिएशन की भी स्थापना की है और 1928 में उन्होंने बंगाल नागपुर रेलवे एसोसिएशन को असहकार आंदोलन के अहिंसा आंदोलन में शामिल किया था।

उनका यह आंदोलन सफल रहा और ब्रिटिश इंडियन गवर्नमेंट और रेलवे मैनेजमेंट कंपनी को मजदूरो की साड़ी शर्तो को मानना पड़ा था और यह अभियान भारत के इतिहास में एक माइलस्टोन बनकर रह गया।

1929 में इंडियन ट्रेड यूनियन फेडरेशन (ITUF) की स्थापना गिरी, एन.एम. जोशी और दुसरे सदस्यों ने मिलकर की। लेकिन फिर रॉयल कमीशन को सहयोग करने को लेकर AITUS के साथ उनके मतभेद हुए। गिरी और ITUF कमीशन को सहयोग करना चाहते थे, जबकि AITUC उसका विरोध करना चाहते थे।

लेकिन फिर 1939 में ITUF पूरी तरह से AITUC में ही मिल गया और 1942 में गिरी दूसरी बार AITUC के अध्यक्ष बने।

1927 में ILO में आयोजित इंटरनेशनल लेबर कांफ्रेंस में गिरी भारतीय मजदूरो का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। इसके बाद टेबल कांफ्रेंस के दुसरे राउंड में वे भारतीय औद्योगिक कामगारों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। अपने करियर में मजूदर यूनियन के साथ जुड़े रहने के साथ-साथ वे भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के साथ भी जुड़े हुए थे।

ब्रिटिश भारत में निर्वाचक करियर:

1934 में गिरी राजसी वैधानिक असेंबली के सदस्य बने थे। तक़रीबन 1937 तक वे उसके सदस्य बने हुए थे और फिर इसके बाद ट्रेड यूनियन और मजदूरो के हक़ के लिए वे वहाँ से निकल गये थे।

1936 के जनरल चुनाव में, गिरी ने मद्रास वैधानिक असेंबली का सदस्य बनने के लिए बोब्बिली को पराजित किया। 1937 से 1939 के बीच वे सी. राजगोपालाचारी द्वारा कांग्रेस सरकार के साथ आयोजित लेबर एंड इंडस्ट्री के मिनिस्टर बने। इसके बाद 1938 में भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के राष्ट्रिय निति आयोग में उनकी नियुक्ती गवर्नर के पद पर की गयी थी।

1939 में कांग्रेस के सभी मिनिस्टरो ने द्वितीय विश्व युद्ध में भारत को बचाने के लिए रिजाइन कर दिया। और फिर जब गिरी दोबारा मजदुर आंदोलन करने लगे तो ब्रिटिश अधिकारियो ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था और इसके बाद मार्च 1941 तक पुरे 15 महीनो तक उन्हें जेल में ही रहना पड़ा था।

इसके बाद भारत छोडो आंदोलन के समय भी 1942 में गिरी को जेल जाना पड़ा था। इसके बाद 1943 में AITUC के नागपुर मिलन तक वे जेल में ही थे।

जेल से आने के बाद उनकी नियुक्ती अध्यक्ष के पद पर की गयी थी। जेल में रहते हुए भी उन्होंने वेल्लोर और अमरावती में जेल के मजदूरो की सहायता की थी। अंत में जेल जाने के बाद वे पुरे तीन साल जेल में रहे, जो उनके जीवन का सबसे बड़ा जेलावास था, 1945 में उन्हें जेल से रिहाई मिली थी।

जेल से आने के बाद 1946 के जनरल चुनाव में, उनकी नियुक्ती पुनः मद्रास वैधानिक असेंबली में की गयी और वे दोबारा मिनिस्टर बने।

आज़ाद भारत में करियर:

1947 से 1951 के बीच गिरी ने भारत के पहले हाई कमिश्नर के पद पर रहते हुए सेवा की थी। इसके बाद 1951 के जनरल चुनावो में उनकी नियुक्ती पथापथ्नम लोक सभा क्षेत्र (मद्रास राज्य) से पहली लोक सभा के लिए की गयी थी।

भारत के राष्ट्रपति:

24 अगस्त 1969 को गिरी भारत के राष्ट्रपति बने और 24 अगस्त 1974 को फखरुद्दीन अली अहमद के राष्ट्रपति बने रहने तक वे भारत के राष्ट्रपति के पद पर कार्यरत थे। चुनाव में गिरी की नियुक्ती राष्ट्रपति के पद पर की गयी थी लेकिन वे केवल एक्टिंग प्रेसिडेंट का ही काम कर रहे थे और वे एकमात्र ऐसे राष्ट्रपति थे जिनकी नियुक्ती एक स्वतंत्र उम्मेदवार के रूप में की गयी थी।

राष्ट्रपति के रूप में उन्होंने उस समय में भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निर्णयों को भी सुना था। राष्ट्रपति के पद पर रहते हुए उन्होंने 22 देशो के 14 राज्यों का भ्रमण किया। जिनमे दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया, यूरोप और अफ्रीका भी शामिल है।

गिरी को भारत के उन राष्ट्रपतियों में गिना जाता है जिन्होंने अपने अधिकारों को प्रधानमंत्री के अधीन कर दिया था और वे स्वयं को “प्रधानमंत्री का राष्ट्रपति” कहते थे। वे एक सम्माननीय और रबर स्टेम्प प्रेसिडेंट कहलाते थे। 1974 में जब गिरी का कार्यकाल समाप्त हुआ तब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उनकी पुनर्नियुक्ति करने की बजाए फखरुद्दीन अली अहमद को 1974 में राष्ट्रपति पद के लिए चुना।

भारत रत्न:

गिरी को भारत के सर्वोच्च अवार्ड भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। 1975 में सामाजिक मुद्दों पर उनके सहयोगो के लिए उन्हें भारत रत्न अवार्ड से सम्मानित किया गया था।

राष्ट्रपति रहते हुए गिरी ने स्वः प्रेरणा से 1972 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भारत रत्ना देने की इच्छा जताई थी। लेकिन फिर 1975 में प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की प्रेरणा पर ही उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। भारत के पाँच राष्ट्रपतियों को मिलने वाले भारत रत्ना अवार्ड में से गिरी चौथे राष्ट्रपति थे।

मृत्यु:

24 जून 1980 को हार्ट अटैक की वजह से गिरी की मृत्यु हुई थी। मृत्यु के अगले दिन पुरे राज्य ने उन्हें अंतिम विदाई दी थी और भारत सरकार ने उनके सम्मान में सुबह का मौन भी घोषित किया था। इसके साथ ही उन्हें सम्मान देते हुए भारत सरकार ने दो दिन की राज्य सभा भी स्थगित कर दी थी।

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