Tulsidas Ke Dohe
Tulsidas – तुलसीदास जी भारतीय और विश्व साहित्य में सबसे महान कवियों में गिने जाते थे। मुख्य रुप से उन्हें भक्ति काल के रामभक्ति शाखा के महान कवि के रूप में जाना जाता है। वह भगवान राम की भक्ति के लिए मशहूर थे और वे “रामचरितमानस” (Ramcharitmanas) महाकाव्य के लेखक के रूप में भी जाने जाते थे।
उन्होनें रामचरित मानस में भगवान राम का जीवन एक मर्यादा की डोर पर बांधा है। एक शानदार महाकाव्य के लेखक और कई लोकप्रिय कार्यों के प्रणेता तुलसीदास जी ने भी अपने दोहों और रचनाओं के माध्यम से लोगों को एक अलग राह दिखाई है।
यही नई उन्होंने करोड़ों लोगों को अपने उत्कृष्ट सोच और दूरदर्शी विचारों से नई ऊर्जा और सोच का अनुभव कराया है। जिन्हें अपनाकर लोग अपनी जिंदगी में कई बदलाव ला सकते हैं और जीवन जीने की कला सीख सकते हैं।
वहीं अगर आप भी अपने जीवन में कुछ करना चाहते हैं और सफलता हासिल करना चाहते हैं तो आप भी तुलसीदास जी के बेहद उम्दा ज्ञानवर्धक और जीवन को उत्कृष्ट बनाने वाले दोहे को पढ़कर सफलता हासिल कर सकते हैं।
हम आपको अपने इस लेख में महान कवि तुलसीदास के सकारात्मक ऊर्जा से भरे और प्रेरणादायक दोहे जिसे “तुलसी दोहावली” – Tulsi Dohawali भी कहा जाता हैं उसके अर्थ समेत समझाएंगे। इसके साथ ही आपको यह भी बताएंगे कि हमें इन दोहें से क्या सीख मिलती है और वर्तमान में परिस्थतियो्ं में ये किस प्रकार शिक्षाप्रद हैं तो आइए जानते हैं तुलसीदास जी के दोहे – Tulsidas Ke Dohe के बारे में –
तुलसीदास जी के दोहे हिंदी अर्थ सहित / Tulsidas Ke Dohe In Hindi
तुलसीदास जी का दोहा नंबर 1 – Tulsidas Ke Dohe 1
आज के समय में संसार में कई मनुष्य ऐसे भी हैं जो बेकसूर और निर्दोष लोगों को ठेस पहुंचाते हैं और जिनमें दयाभाव ही नहीं हैं। तो कई लोग ऐसे हैं जो अपने अभिमान में चूर होकर बुरे कामों को करते है, जिसकी वजह से कई लोगों को नुकसान पहुंचता है या फिर कई लोग तो दया करना ही नहीं जानते या फिर यूं कहें कि उनमें बचपन से ही दया का भाव नहीं पैदा किया जाता ऐसे स्वभाव वाले लोगों के लिए तुलसीदास जी ने निम्नलिखित दोहे में बड़ी शिक्षा दी है-
दोहा:
“दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान, तुलसी दया न छोडिये जब तक घट में प्राण।”
अर्थ:
तुलसीदास जी ने कहा की धर्म, दया भावना से उत्पन्न होती और अभिमान तो केवल पाप को ही जन्म देता हैं, मनुष्य के शरीर में जब तक प्राण हैं तब तक दया भावना कभी नहीं छोड़नी चाहिए।
क्या सीख मिलती है:
इस दोहे से हमें यह शिक्षा मिलती है कि, हमें हमेंशा लोगों की मद्द करनी चाहिए और सभी के प्रति दया का भाव रखना चाहिए और खुद पर कभी गुरुर नहीं करना चाहिए।
तुलसीदास जी का दोहा नंबर 2 – Tulsidas Ke Dohe 2
जो लोग मद्द के लिए आए लोगों का तिरस्कार करते हैं। उनके लिए तुलसीदास जी ने निम्नलिखित दोहे में बड़ी शिक्षा दी है –
दोहा:
“सरनागत कहूँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि, ते नर पावॅर पापमय तिन्हहि बिलोकति हानि।”
अर्थ:
जो इन्सान अपने अहित का अनुमान करके शरण में आये हुए का त्याग कर देते हैं वे क्षुद्र और पापमय होते हैं। दरअसल, उनको देखना भी उचित नहीं होता।
क्या सीख मिलती है –
तुलसीदास जी के इस दोहे से यह सीख मिलती है कि, हमें हमेशा मद्द के लिए आए लोगों की सहायता करनी चाहिए।
तुलसीदास जी का दोहा नंबर 3 – Tulsidas Ke Dohe 3
आजकल ज्यादातर युवा पीढ़ी अपने घमंड में इतने चूर है कि, मीठी बोली तो दूर सही से बात तक नहीं करते, या फिर कई लोग ऐसे भी हैं जो अपनी कड़वी बोली से दूसरे लोगों का दिल दुखाते हैं। जिसकी वजह से उन्हें कई बार इसका नुकसान भी उठाना पड़ता है। ऐसे लोगों के लिए महाकवि तुलसीदास जी ने यह दोहा लिखा है –
दोहा:
“तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुँ और, बसीकरण इक मंत्र हैं परिहरु बचन कठोर.”
अर्थ:
तुलसीदास जी कहते हैं कि मीठे वचन सब और सुख फैलाते हैं, किसी को भी वश में करने का ये एक मंत्र होते हैं इसलिए मानव ने कठोर वचन छोड़कर मीठे बोलने का प्रयास करे।
क्या सीख मिलती है:
महाकवि तुलसीदास जी के इस दोहे से हमें यही सीख मिलती है कि हमें हमेशा मीठी बोली
बोलनी चाहिए। कई बार मीठी बोली बोलने से बिगड़े काम भी बन जाते हैं। वहीं मीठी बोली हर किसी को अपनी तरफ मोहित करती है। इसलिए हमेशा कटु वचन बोलने से बचना चाहिए।
तुलसीदास जी का दोहा नंबर 4 – Tulsidas Ke Dohe 4
जो इंसान मंत्री, गुरु और वैद्य की भाषा को नहीं समझते उनके लिए महाकवि तुलसीदास जी ने इस नीचे लिखे गए दोहे में बड़ी सीख दी है –
दोहा:
“सचिव बैद गुरु तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस, राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास.”
अर्थ:
तुलसीदास जी कहते हैं की मंत्री वैद्य और गुरु, ये तीन यदि भय या लाभ की आशा से प्रिय बोलते हैं तो राज्य, शरीर एवं धर्म इन तीन का शीघ्र ही नाश हो जाता हैं।
क्या सीख मिलती है:
महाकवि तुलसीदास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि मंत्री, गुरु और डॉक्टर की भाषा जल्द से जल्द समझ लेनी चाहिए नहीं तो भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।
तुलसीदास जी का दोहा नंबर 5 – Tulsidas Ke Dohe 5
जो लोग आंतरिक और बाहरी सुख चाहते हैं, उनके लिए तुलसीदास जी नीचे लिखे दोहे में कहा है कि –
दोहा:
“रम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार तुलसी भीतर बाहेर हूँ जौं चाहसि उजिआर।”
अर्थ:
मनुष्य यदी तुम भीतर और बाहर दोनों ओर उजाला चाहते हो तो मुखीरूपी द्वार की जिभरुपी देहलीज पर राम-नामरूपी मणिदीप को रखो।
क्या सीख मिलती है:
महाकवि तुलसीदास जी के इस दोहे से हमें यही सीख मिलती है कि, हमें राम का नाम जपते रहना चाहिए तभी हमें सुख की अनुभूति होती है।
तुलसीदास जी का दोहा नंबर 6 – Tulsidas Ke Dohe 6
आजकल समाज में कई ऐसे परिवार भी हैं, जिनमें परिवार के मुखिया को सही ज्ञान नहीं होने की वजह से उनके परिवार का बिखराव हो जाता है, या फिर वे परिवार के सभी लोगों को खुश नहीं रख पाते हैं, ऐसे लोगों के लिए महाकवि तुलसीदास जी ने यह दोहा लिखा है-
दोहा:
“मुखिया मुखु सो चाहिये खान पान कहूँ एक, पालड़ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित बिबेक.”
अर्थ:
मुखिया मुख के समान होना चाहिए जो खाने पीने को तो अकेला हैं, लेकिन विवेकपूर्वक सभी अंगो का पालन-पोषण करता है।
क्या सीख मिलती है:
महाकवि तुलसीदास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि – परिवार के मुखिया को विवेकपूर्ण तरीके से अपने परिवार का भरण-पोषण करना चाहिए और सभी का ध्यान रखना चाहिए, नहीं तो परिवार में बिखराव पैदा हो सकता है।
तुलसीदास जी का दोहा नंबर 7 – Tulsidas Ke Dohe 7
तुलसीदास जी ने नीचे लिखे गए दोहे में राम नाम के स्मरण करने की महत्वता का बखान किया है और उन लोगों को इस दोहे से सीख दी है जो राम का नाम नहीं लेते हैं अर्थात अपनी दुनिया में ही मग्न रहते हैं –
दोहा:
“नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु। जो सिमरत भयो भाँग ते तुलसी तुलसीदास।”
अर्थ:
राम का नाम कल्पतरु (मनचाहा पदार्थ देनेवाला)और कल्याण का निवास (मुक्ति का घर) हैं, जिसको स्मरण करने से भांग सा ( (निकृष्ट ) तुलसीदास भी तुलसी के समान पवित्र हो गया।
क्या सीख मिलती है:
महान दार्शनिक कवि और भक्ति काल के महान संत के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि अगर हमें अपने चरित्र को सुधारना है और अपने जीवन में सफलता हासिल करनी है तो राम के नाम का जप करना चाहिए।
तुलसीदास जी का दोहा नंबर 8 – Tulsidas Ke Dohe 8
वर्तमान में कई लोग ऐसे भी हैं तो अपने गुरुओं का आदर नहीं करते या फिर उनकी हितकारी वचनों का पालन नहीं करते हैं और खुद को ही महान मानकर अपने जीवन के कार्यों को करते हैं, ऐसे लोगों के लिए महानकवि तुलसीदास ने निम्नलिखित दोहे में बड़ी सीख दी है-
दोहा:
“सहज सुहृद गुर स्वामि सिख जो न करइ सिर मानी, सो पछिताई अघाइ उर अवसि होई हित हानि।”
अर्थ:
अपने हितकारी स्वामी और गुरु की नसीहत ठुकरा कर जो इनकी सीख से वंचित रहता है, वह अपने दिल में ग्लानि से भर जाता है और उसे अपने हित का नुकसान भुगतना ही पड़ता है।
क्या सीख मिलती है:
तुलसीदास जी के इस दोहे से हमें यही सीख मिलती है कि, हमें सदैव अपने गुरुओं का आदर करना चाहिए और अपने गुरुओं की आज्ञा का पालन करना चाहिए अगर हम ऐसा नहीं करेंगे तो इसका खामियाजा भुगतना होगा।
तुलसीदास जी का दोहा नंबर 9 – Tulsidas Ke Dohe 9
जो लोग अपनी बुद्धि से काम नहीं करते हैं या फिर अपने स्वार्थ के लिए अनाप- शनाप बोलते हैं उन लोगों के लिए कवि तुलसीदास जी ने निम्नलिखित दोहे में शिक्षाप्रद सीख दी है –
दोहे:
“बिना तेज के पुरुष की अवशि अवज्ञा होय, आगि बुझे ज्यों राख की आप छुवै सब कोय।”
अर्थ:
तेजहीन व्यक्ति की बात को कोई भी व्यक्ति महत्व नहीं देता है, उसकी आज्ञा का पालन कोई नहीं करता है। ठीक वैसे ही जैसे, जब राख की आग बुझ जाती हैं, तो उसे हर कोई छूने लगता है।
क्या सीख मिलती है:
महाकवि तुलसीदास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमेशा बुद्धि का इस्तेमाल करना चाहिए क्योंकि अनपढ़ और मूर्ख व्यक्ति के बातों का कोई महत्व नहीं होता।
तुलसीदास जी का दोहा नंबर 10 – Tulsidas Ke Dohe 10
समाज में कई मनुष्य ऐसे भी होते हैं जो, विपत्ति में अपना आपा खो देते हैं, या फिर विपत्ति का सामना किए बिना उससे दूर भागते हैं और भगवान को इसके लिए दोष देते हैं। ऐसे लोगों के लिए तुलसीदास जी ने नीचे लिखे गए दोहे के माध्यम से शिक्षा दी है –
दोहा:
“तुलसी साथी विपत्ति के विद्या विनय विवेक, साहस सुकृति सुसत्यव्रत राम भरोसे एक।”
अर्थ:
तुलसीदासजी कहते हैं की मुश्किल वक्त में ये चीजें मनुष्य का साथ देती है, ज्ञान, विनम्रता पूर्वक व्यवहार, विवेक, साहस, अच्छे कर्म, आपका सत्य और भगवान का नाम।
क्या सीख मिलती है:
महाकवि तुलसीदास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि, हमें विपत्ति के समय में साहस और धैर्य से काम करना चाहिए, तभी हम बड़ी से बड़ी परेशानी का चुटकियों में समाधान निकाल सकते हैं।
तुलसीदास जी का दोहा नंबर 11 – Tulsidas Ke Dohe 11
हमारे समाज में कई लोग ऐसे भी हैं जो अपने ही गुणों का बखान खुद करते रहते हैं और अपने कामों के लिए खुद की प्रशंसा करते रहते हैं। ऐसे लोगों के लिए महाकवि तुलसीदास ने इस दोहे में बड़ी शिक्षा दी है –
दोहा:
“सुर समर करनी करहीं कहि न जनावहिं आपु, विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।”
अर्थ:
शूरवीर युद्ध में अपना परिचय कर्मों के द्वारा करते हैं। उन्हें खुद का बखान करने की जरूरत नहीं होती। जो अपने कौशल या गुणों का बखान खुद अपने शब्दों से करते हैं वे कायर होते हैं।
क्या सीख मिलती है:
महाकवि तुलसीदास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपने अच्छे कामों की प्रशंसा खुद नहीं करनी चाहिए क्योंकि अच्छे कर्म सभी को खुद व खुद दिख जाते हैं।
तुलसीदास जी का दोहा नंबर 12 – Tulsidas Ke Dohe 12
वर्तमान समय में एक कहावत चली है कि जो दिखता है वही बिकता है। या फिर जो लोग आंतरिक गुणों की कदर नहीं करते और बाहरी सुंदरता के ही कायल हो जाते हैं और बिना सोचे समझे रंग-रूप देखकर ही फैसला कर लेते हैं। वहीं ऐसे ही दिखावे के पीछे भागने वाले लोगों के लिए महाकवि तुलसीदास जी ने नीचे लिखे गए दोहे में सीख दी है –
दोहा:
“तुलसी देखि सुबेषु भूलहिं मूढ़ न चतुर नर, सुंदर केकिहि पेखु बचन सुधा सम असन अहि।”
अर्थ:
तुलसीदास जी कहते हैं कि सुंदर वेष देखकर न केवल मुर्ख अपितु बुद्धिमान मनुष्य भी धोखा खा जाते है। सुंदर मोर को ही देख लो उसका वचन तो अमृत के समान हैं लेकिन आहार सांप का हैं।
क्या सीख मिलती है:
महाकवि तुलसीदास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें इंसान की सुंदरता से पहले उसके गुणों को समझना चाहिए और मधुर वाणी बोलने वालों को नहीं बल्कि मधुर और उच्च विचार रखने वालों को प्राथमिकता देनी चाहिए।
तुलसीदास जी का दोहा नबर 13 – Tulsidas Ke Dohe 13
आज की दुनिया में कई लोग दूसरे को बुरा बताकर खुद को सबसे अच्छा बताने की दौड़ में शामिल है, और इस तरह से वे कामयाबी हासिल करने का प्रयास करते हैं ऐसे लोगों के लिए तुलसीदास जी ने यह दोहा लिखा है –
दोहा:
तुलसी जे कीरति चहहिं, पर की कीरति खोइ। तिनके मुंह मसि लागहैं, मिटिहि न मरिहै धोइ।।
अर्थ:
इस दोहे में महाकवि तुलसी दास जी कहते हैं कि जो लोग दूसरों की बुराई कर खुद प्रतिष्ठा पाना चाहते हैं, वे खुद अपनी प्रतिष्ठा खो देते हैं। वहीं ऐसे व्यक्ति के मुंह पर एक दिन ऐसी कालिख पुतेगी जो कितनी भी कोशिश करे लेकिन मरते दम तक साथ नहीं छोड़ने वाली।
यानि कि वह अपना यश और प्रतिष्ठा खोकर इस तरह से अपमानित होता हैं, कि कई कोशिशों के बाद भी उस सम्मान को दोबारा प्राप्त नहीं कर सकता हैं।
क्या सीख मिलती है:
महाकवि तुलसीदास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें कामयाबी हासिल करने के लिए दूसरी की प्रतिष्ठा को दांव पर नहीं लगाना चाहिए और खुद की योग्यता के बल पर ही काबिलियत हासिल करना चाहिए।
तुलसीदास जी का दोहा नंबर 14 – Tulsidas Ke Dohe 14
आज के समाज में कई ऐसे चेहरे भी देखने को मिलते हैं जो बेहद अभिमानी और अहंकारी होते हैं और दूसरे लोगों को हेय दृष्टी से देखते हैं। ऐसे लोगों को महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी के इस दोहे से जरूर शिक्षा लेनी चाहिए-
दोहा:
तनु गुन धन महिमा धरम, तेहि बिनु जेहि अभियान। तुलसी जिअत बिडंबना, परिनामहु गत जान।।
अर्थ:
तन की सुंदरता, सद्गुण, धन, सम्मान और धर्म आदि के बिना भी जिन्हें अभिमान होता है, ऐसे लोगों का जीवन बेहद परेशानियों से भरा होता है, और उसका परिणाम भी बेहद बुरा होता है।
क्या सीख मिलती है:
तुलसीदास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें कभी घमंड नहीं करना चाहिए और दूसरे की खुशी से ईर्ष्या नहीं करना चाहिए। ऐसा करने वालों का अंत बेहद बुरा होता है।
तुलसीदास जी का दोहा नंबर 15 – Tulsidas Ke Dohe 15
समाज में कई लोग ऐसे भी हैं जो सिर्फ दूसरे की धन-दौलत देखकर दोस्त बनते हैं और फिर मौका लगते ही उनसे फायदा लेने की सोचते या फिर उन पर वार करते हैं ऐसे कपटी लोगों के लिए तुलसीदास जी ने निम्मलिखित दोहे में बड़ी शिक्षा दी है-
दोहा:
मार खोज लै सौंह करि, करि मत लाज न ग्रास। मुए नीच ते मीच बिनु, जे इन के बिस्वास।।
अर्थ:
निबुर्द्धि मनुष्य ही कपटियों और ढोंगियों का शिकार होते हैं। ऐसे कपटी लोग शपथ लेकर दोस्त बनते हैं और फिर मौका मिलते ही हमला करते हैं। ऐसे लोगों को न भगवान का भय होता है और न ही समाज का भय होता है, अर्थात ऐसे लोगों से बचना चाहिए।
क्या सीख मिलती है:
महाकवि तुलसीदास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें कपटी दोस्तों से मित्रता नहीं करनी चाहिए। ऐसे लोगों से दोस्ती करने से हमेशा नुकसान ही होता है। इसलिए ऐसे लोगों से बचना चाहिए।
तुलसीदास जी का दोहा नंबर 16 – Tulsidas Ke Dohe 16
आज के समाज के कई ऐसे लोग हैं जो दिखावे पर ही जीते हैं, यहां तक की मित्रता भी सिर्फ झूठे दिखावे के लिए ही करते हैं लेकिनऐसे दोस्त सही और गलत पर फर्क नहीं बता पाता उन लोगों के लिए तुलसीदास जी का यह दोहा काफी शिक्षा देने योग्य है –
दोहा:
जिन्ह कें अति मति सहज न आई। ते सठ कत हठि करत मिताई। कुपथ निवारि सुपंथ चलावा। गुन प्रगटै अबगुनन्हि दुरावा।
अर्थ:
जिनके स्वभाव में इस प्रकार की बुद्धि न हो वे मूर्ख केवल हठ करके हीं किसी से मित्रता करते हैं। सच्चा मित्र गलत रास्ते पर जाने से रोक कर अच्छे रास्ते पर चलाते हैं और अवगुण छिपाकर केवल गुणों को प्रकट करते हैं।
क्या सीख मिलती है:
तुलसीदास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हम ऐसे लोगों से दोस्ती करनी चाहिए जो हमारे बुरे वक्त पर काम आ सके और हमें अच्छे और बुरे में फर्क बता सकें।
तुलसीदास जी का दोहा नंबर 17 – Tulsidas Ke Dohe 17
वर्तमान में अक्सर ऐसे लोग देखे जाते हैं जो अच्छे समय में तो मित्र के साथ रहते हैं लेकिन कठिन समय में उन्हें छोड़कर भाग जाते हैं, ताकि उनका दोस्त उनसे किसी तरह की मद्द नहीं मांग ले ऐसे लोगों के लिए महाकवि तुलसीदास जी ने यह दोहा लिखा है –
दोहा:
देत लेत मन संक न धरई। बल अनुमान सदा हित करई।
विपति काल कर सतगुन नेहा। श्रुति कह संत मित्र गुन एह।
अर्थ:
मित्र लेन देन करने में शंका न करे। अपनी शक्ति अनुसार सदा मित्र की भलाई करे। वॆदों के मुताबिक संकट के समय वह सौ गुणा ज्यादा स्नेह प्रेम करता है। अच्छे मित्र का यही गुण है।
क्या सीख मिलती है:
रामभक्ति में डूबे रहने वाले महाकवि तुलसीदास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें कठिन समय में अपने मित्र की मद्द करनी चाहिए और कभी लेन-देन से झिझकना नहीं चाहिए क्योंकि बुरे वक्त में ही अच्छे मित्र की पहचान होती है।
तुलसीदास जी का दोहा नंबर 18 – Tulsidas Ke Dohe 18
तुलसीदास जी ने यह दोहा उनके लिए लिखा है जो गुस्से में आकर अपना आपा खो देते हैं और गलत फैसला कर लेते हैं –
दोहा:
लखन कहेउ हॅसि सुनहु मुनि क्रोध पाप कर मूल। जेहि बस जन अनुचित करहिं चरहिं विस्व प्रतिकूल।
अर्थ:
क्रोध सभी पापों की जड़ है, क्रोध में मनुष्य सभी अनुचित काम कर लेते हैं और संसार में सबका अहित ही करते हैं।
क्या सीख मिलती है:
इस दोहे से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपनी गुस्सा पर काबू करना चाहिए क्योंकि गुस्से में किया गए काम से कभी किसी का भला नहीं हो सकता।
तुलसीदास जी का दोहा नंबर 19 – Tulsidas Ke Dohe 19
जो लोग अपने शत्रु को कमजोर समझते हैं उन लोगों के लिए तुलसीदास जी ने इस दोहे में बड़ी सीख दी है –
दोहा:
रिपु तेजसी अकेल अपि लघु करि गनिअ न ताहु। अजहु देत दुख रवि ससिहि सिर अवसेशित राहु।
अर्थ:
बुद्धिमान शत्रु के अकेले रहने पर भी उसे छोटा नही मानना चाहिए, राहु का केवल सिर बच गया था परन्तु वह आजतक सूर्य एवं चन्द्रमा को ग्रसित कर दुख देता है।
क्या सीख मिलती है:
महान कवि तुलसीदास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि दुश्मन चाहे कितना भी कमजोर क्यों न हो हमेशा उससे बचकर ही रहना चाहिए।
तुलसीदास जी का दोहा नंबर 20 – Tulsidas Ke Dohe 20
जो लोग भगवान की भक्ति नहीं करते या फिर बुरे कर्म करते रहते हैं, उन लोगों के लिए महाकवि तुलसीदास जी ने इस दोहे में बड़ी सीख दी है –
दोहा:
भरद्वाज सुनु जाहि जब होइ विधाता वाम
धूरि मेरूसम जनक जम ताहि ब्यालसम दाम।
अर्थ:
महाकवि तुलसीदास जी ने यह कहा है कि- जब ईश्वर विपरीत हो जाते हैं तब उसके लिये धूल पर्वत के समान, पिता काल के समान और रस्सी सांप के समान हो जाती है।
क्या सीख मिलती है:
महाकवि तुलसीदास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें हमेशा सच्चे मन से प्रभु की भक्ति करनी चाहिए और अच्छे कर्म करने चाहिए। क्योंकि अगर भगवान क्रोधित हो गए तो इंसान का बुरा वक्त शुरु हो जाता है।
तुलसीदास जी का दोहा नंबर 21 – Tulsidas Ke Dohe 21
समाज में कई लोग ऐसे हैं जो कि अत्याधिक लोभी होंते हैं जिनके पास सब कुछ होते हुए भी और अधिक पाने का लालच होता है, उन लोगों को सीख देने के लिए तुलसीदास जी ने यह दोहा लिखा है-
दोहा:
सुख संपति सुत सेन सहाई।जय प्रताप बल बुद्धि बडाई।
नित नूतन सब बाढत जाई।जिमि प्रति लाभ लोभ अधिकाई।
अर्थ:
सुख धन संपत्ति संतान सेना मददगार विजय प्रताप बुद्धि शक्ति और प्रशंसा
जैसे जैसे नित्य बढते हैं- वैसे वैसे प्रत्येक लाभ पर लोभ बढता है।
क्या सीख मिलती है:
महाकवि तुलसीदास जी के इस दोहे से हमें सीख मिलती है कि, हमें कभी लोभ नहीं करना चाहिए क्योंकि लोभ करने वाले कभी संतुष्ट नहीं होते अर्थात उनकी इच्छाएं कभी पूरी नहीं होती।
अगले पेज पर और भी दोहे हैं…
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