तिरुपति बालाजी मंदिर | Tirupati Balaji History

Tirupati Balaji Temple in Hindi

विश्व का सबसे प्रसिद्ध और अमीर धार्मिक स्थलों में से एक तिरुपति बालाजी का मंदिर आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले में तिरुमाला की सांतवी पहाड़ी पर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि ये सात चोटियां भगवान विष्णु के सात सिर का प्रतिनिधित्व करती हैं। यह भगवान विष्णु जी को समर्पित एक पवित्र धाम है।

बालाजी और भगवान वेंकटेश्वर को भगवान विष्णु का अवतार माना माना जाता है। इसलिए इस मंदिर को श्री वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। आपको बता दें कि भगवान वेंकटेश्वर को श्रीनिवास और गोविंदा के नाम से भी जाना जाता है। तिरुमाला की पहाड़ियों में बना यह भव्य मंदिर भगवान विष्णु के 8 स्वयंभू मंदिरों में से एक है।

यह विश्व प्रसिद्ध मंदिर द्रवडियन वास्तु शैली का इस्तेमाल कर बनाया गया है, वहीं भगवान विष्णु को समर्पित यह मंदिर दक्षिण भारतीय वास्तुकला और शिल्पकला का एक नायाब नमूना है, जिसके दर्शन के लिए दुनिया के कोने-कोने से श्रद्धालु आते हैं। इस मंदिर का अपना एक अलग धार्मिक महत्व और मान्यताएं हैं, यही वजह है कि बड़ी संख्या में लोगों की इस मंदिर से गहरी आस्था जुड़ी हुई हैं। वहीं श्री वेंकटेश्वर मंदिर में बड़े-बड़े राजेनता, कारोबारियों, फिल्म स्टार आदि के द्धारा हर साल लाखों-करोड़ों रुपए का बेहिसाब चढ़ावा चढ़ाया जाता है।

वैकुंड एकाद्शी के दिन बालाजी मंदिर के दर्शन का बहुत महत्व है, इसलिए इस दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु मत्था टेकने बालाजी के दर पर आते हैं। आइए जानते हैं श्री तिरुपति वेंकटेश्वर मंदिर – Venkateswara Temple, Tirumala के निर्माण, इतिहास और इससे जुड़े कुछ रोचक तथ्यों के बारे में-

तिरुपति बालाजी मंदिर –  Tirupati Balaji History In Hindi

Tirupati Balaji

तिरुपति वेंकटेश्वर मंदिर का संक्षिप्त विवरण – Tirupati Balaji Temple Information

कहां स्थित है तिरुपति बालाजी मंदिर (Tirupati Balaji Mandir Kaha Hai) आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले के तिरुमाला पहाड़ियों पर स्थित है।
कब हुआ इस मंदिर का निर्माण (Tirupati Balaji Temple History) करीब 9वीं शताब्दी
वास्तुकला (Tirupati Temple Architecture) कोविल, द्रवडियन वास्तु शैली का इस्तेमाल कर बनाया गया।
प्रमुख देवी-देवता (Tirupati Temple Lord Muruga) भगवान विष्णु, वेंकटेश्वर या बालाजी महाराज।

तिरुपति वेंकटेश्वर मंदिर का निर्माण व इतिहास – Tirupati Balaji ka Mandir

दुनिया के सबसे प्रसिद्ध और प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक स्वामी तिरुपति वेंकटेश्वर जी के मंदिर के निर्माण को लेकर किसी तरह का पुख्ता प्रमाण नहीं मिलता है, लेकिन कुछ इतिहासकारों के मुताबिक लाखों भक्तों की आस्था से जुड़े इस मंदिर का निर्माण 9वीं सदी में माना जाता है, जब से यहां कांचीपूरम के पल्लव वंश के शासकों ने इस जगह पर अपना अधिकार स्थापित किया था, तब से ही इस मंदिर की उत्पत्ति मानी जाती है।

हालांकि, 15वीं शताब्दी में तिरुमाला की सातवीं पहाड़ी में स्थित इस प्रसिद्ध तिरुपति बालाजी मंदिर को प्रसिद्धि मिली है। इस प्रसिद्ध मंदिर का कार्यभार 1843 ईसवी से लेकर 1933 ईसवी तक हाथीरामजी मठ के महंत ने संभाला था। इसके बाद 1933 में इस मंदिर की देखरेख का जिम्मा मद्रास सरकार ने ले लिया था और फिर बाद में इस मंदिर का प्रबंधन की जिम्मेदारी एक स्वतंत्र प्रबंधन समिति ”तिरुमाला-तिरुपति” को सौंप दी गई थी।

इसके बाद जब आंध्रप्रदेश राज्य का गठन हुआ था, उसके बाद एक तिरुपति बोर्ड बनाया गया जो कि मुंबई, ऋषिकेश, कन्याकुमारी हैदराबाद, गुवाहाटी, नई दिल्ली और चेन्नई समेत कई शहरों और कस्बों में मंदिरों का संचालन करता है। विश्व के इस मंदिर को लेकर ऐसी मान्यता है कि जब 18वीं सदी में 12 साल के लिए इस मंदिर के पट को बंद किया गया था, तब किसी शासक ने 12 लोगों को मौत के घाट उतारकर दीवार पर लटका दिया था।

उस समय विमान में प्रभु वेंकटेश्वर प्रकट हुए थे।  इसके अलावा भी इस मंदिर से कई ऐसी पौराणिक और धार्मिक मान्यताएं जुड़ी हुईं हैं, जिसके चलते इस मंदिर का महत्व बढ़ता चला गया और इस मंदिर के प्रति लोगों की श्रद्धा बढ़ती चली गई।

तिरुपति बालाजी की वास्तुकला – Tirupati Mandir ki Vastukala

विश्व का यह सार्वधिक धनी मंदिर अपनी अनूठी वास्तुकला और अद्धितीय शिल्पकारी के लिए भी काफी मशहूर है। यह दक्षिण भारतीय वास्तुकला का अनूठा नमूना है। यह मंदिर करीब 865 मीटर की ऊंचाई पर आंध्रप्रदेश की तिरुमाला की दिव्य सात पहाड़ियों के सातवें वेकेटाद्री नामक शिखर पर स्थित है, इन पहाड़ियों में नारायणाद्री, अंजनद्री, नीलाद्री, शेषाद्रि, गरुदाद्री, वृशाभद्री, और वेंकटाद्री / वेंकटचला शामिल हैं।

यह पवित्र तीर्थ स्थल पुष्करणी नामक सुंदर सरोवर के किनारे स्थित है। ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु जी ने कलियुग में मानव जाति को विपत्तियों से बचाने के लिए श्री वेंकटेश्वर जी का अवतार लिया था। वहीं इस मंदिर में वेंकटेश्वर भगवान की स्वयं प्रकट हुई मूर्ति विराजमान है, जिसे आनंद निलायम भी कहा जाता है, इसमें भगवान श्रीवनिवास जी की बेहद आर्कषक और सुंदर प्रतिमा भी है।

लाखों भक्तों की धार्मिक आस्था से जुड़ा यह तिरुपति बालाजी मंदिर करीब  26.75  वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला हुआ है। जिसके आर्कषित गर्भगृह में स्वामी वेंकटेश्वर की करीब 7 फुट ऊंची सुंदर प्रतिमा बनी हुई है, जिसका मुख पूर्व की तरफ बना हुआ है। गर्भ गृह के ऊपर का गोपुरम पूरी तरह से सोने की प्लेट से ढंका हुआ है,जो कि देखने में बेहद सुंदर और आर्कषित लगता है।

इस भव्य मंदिर के तीनों परकोटों पर लगे स्वर्ण कलश पर्यटकों को अपनी तरफ आर्कषित करते हैं। विष्णु भगवान के 8 प्रमुख स्वयंभू मंदिरों में से एक यह तिरुपति बालाजी का मंदिर का मुख्य द्धार को पड़ी कवाली महाद्धार भी कहा जाता है, जिसका एक चतुर्भुज आधार है।

द्रवडियन वास्तु शैली में बने दुनिया के इस सबसे प्रसिद्ध मंदिर में  हनुमान जी, लक्ष्मी नरसिम्हा, वैष्णव, समेत कई देवी-देवताओं की मूर्तियां भी है। हिन्दू धर्म के इस पवित्र तीर्थस्थल के चारों तरफ परिक्रमा करने के लिए एक परिक्रमा पथ भी है, जिसे संपांगी प्रदक्षिणम् कहा जाता है, हालांकि, वर्तमान में यह परिक्रमा पथ यहां आने वाले तीर्थयात्रियों के लिए बंद है।

आपको बता दें कि तिरुपति बालाजी मंदिर के इस परिक्रमा पथ में रंगा मंडपम, सलुवा नरसिम्हा मंडपम, प्रतिमा मंडपम, ध्वजस्तंब मंडपम, तिरुमाला राया मंडपम और आइना महल समेत कई बेहद सुदंर मंडप भी बने हुए हैं।

  • प्रतिमा मंडपम:

समुद्र तल से करीब 865 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस प्रसिद्ध तीर्थधाम के पड़ी कवाली महाद्धार से प्रवेश करने के बाद तीर्थयात्री प्रतिमा मंडपम या फिर कृष्णदेव राय मंडपम नामक खुले मंडप में आते हैं।

इस मंडपम के दक्षिण की तरफ बनी विंग में अराविदु राजवंश के वेंकटपति राया की प्रतिमा के साथ-साथ अच्युत राय एवं उनकी पत्नी वरदज्याम्मा की पत्थर से बनी मूर्तियां बनी हुई है। आपको बता दें कि यह मंडपम विजयनगर काल के बेहद आर्कषित और सुंदर चित्रों से भरा हुआ है।

  • रंगा मंडपम:

इसके अलावा विश्व के इस प्रसिद्ध तीर्थस्थल के परिक्रम पथ के दक्षिण-पूर्वी कोने में बने रंगा मंडपम को रंगनायुकला मंडपम भी कहा जाता है।

इस मंडपम में 14 वीं सदी के दौरान श्रीरंगम के भगवान रंगनाध की मूर्ति को रखा गया था, वहीं जब कुछ मुस्लिम राजाओं ने श्रीरंगम पर अपना अधिकार जमा लिया था, तब यादव शासक श्री रंगनाथ यादव राय ने करीब 1320 ईसवी एवं 1360 ईसवी के बीच इस मंडपम का निर्माण करवाया था।

  • तिरुमाला राया मंडपम:

लाखों श्रद्धालुओं की धार्मिक आस्था से जुड़े इस मंदिर के संपांगी प्रदक्षिणम् में रंगा मंडपम के बगल में बने ध्वजस्तंभ मंडपम के सामने पश्चिम की तरफ  मंडपों का एक बड़ा परिसर है,जिसे तिरुमाला राया मंडपम या फिर अन्त्रा अंजल मंडपम के रुप में जाना जाता है।

करीब 1473 ईसवी में सलुवा नरसिम्हा ने इस मंदिर के अंदरूनी भाग का निर्माण प्रभु वेंकटेश्वर के त्योहार को मनाने के लिए किया था, जिसे अत्रा अंजल तिरुनल कहा जाता है।  इस मंडपम में विजयनगर शैली में बने कई छोटे-बड़े स्तंभों का एक परिसर है, जहां कुछ में संगीत भी सुनाई देता है।

  • आइना महल:

आंध्रप्रदेश के तिरुमाला की पहाड़ियों पर स्थित इस पवित्र तीर्थस्थल के परिक्रमा पथ में तिरुमाला राया मंडपम के उत्तरी भाग में आइना महल बना हुआ है,  जिसके सामने एक खुला मंडप है, जिसमें 6 खंभे बने हुए हैं, जबकि इसके पीछे एक तीर्थस्थल है, जिसमें एक आर्कषक गर्भगृह और अंतराल है।

  • ध्वजस्तंभ मंडपम:

तिरुपति बालाजी के मंदिर में बना ध्वजस्तंभ मंडपम में एक ध्वजस्तंभ और भोजन ग्रहण करने के लिए आसन बना हुआ है। इस मंडपम की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इस मंडप को कवर किया गया है ताकि  किसी भी मौसम में हो रहे पूजा अनुष्ठान आदि में अव्यवस्था न फैले और सुविधाजनक तरीके से अनुष्ठानों संपन्न हो सकें।

इसके साथ ही इस ध्वजस्तंभ मंडपम के माध्यम से मंदिर के आंतरिक प्रवेश द्धार तक पहुंचा जा सकता है।

  • मंदिर का पोटू या गुप्त रसोई:

हिन्दू धर्म के इस पवित्र तीर्थ स्थल, तिरुपति बालाजी मंदिर के अंदर एक गुप्त रसाई घर भी बना हुआ है। जहां करीब 3 लाख लड्डुओं का प्रसाद रोज तैयार किया जाता है, वहीं हैरानी की बात यह है कि, इन लड्डुओं को बनाने के लिए यहां 300 साल पुरानी पारंपरिक विधि का इस्तेमाल किया जाता है।

मंदिर में बने हुए इस गुप्त रसोई घर को पोटू के नाम से जाना जाता है, वहीं पोटू के अंदर माता लक्ष्मी को समर्पित एक छोटा सा मंदिर भी है, जिसे पोटू अम्मा या फिर मादापुली नचियार भी कहा जाता है।

  • स्त्रैपना मंडपम:

स्नैपना मंडपम को तिरुविलन कोविल के नाम से भी जाना जाता है। इसके अंदर चार प्रमुख स्तंभ बने हुए हैं, जिनमें योग नरसिम्हा, बाल कृष्ण,  और कालियामर्दन की प्रतिमाओं के साथ-साथ भगवान विष्णु की एक  बेहद सुंदरऔर प्रभावशाली मूर्ति भी रखी गई है। इस मंडपम में तीन हॉल हैं।

  • सयाना मंडपम:

विश्व के इस सबसे प्रसिद्ध और अमीर तीर्थस्थल के आर्कषित गर्भगृह के सामने सयाना मंडपम बना हुआ है। आमतौर पर सयाना मंडप का इस्तेमाल ऐसे धार्मिक अनुष्ठानों के लिए किया जाता है, जो कि इस भव्य मंदिर के गर्भगृह में नहीं हो सकते हैं।

  • मंदिर का आर्कषक गर्भगृह:

आंध्रप्रदेश में स्थित इस पवित्र तीर्थ धाम का गर्भगृह बेहद शानदार तरीके से बनाया गया है, वहीं इसके गर्भगृह में भगवान वेंकटेश्वर की बेहद सुंदर प्रतिमा रखी गई है। यह मूर्ति एक सोने के गुंबद से नीचे रखी गई है, जिसे आनंद निलय दिव्य विमना कहा जाता है। बता दें कि सामान्य तौर पर तीर्थयात्रियों को गर्भगृह में घुसने की इजाजत नहीं है।

  • कल्याण मंडपम:

श्री वेंकटेश्वर मंदिर के परिक्रमा पथ के पश्चिम में एक छोटा सा मंडप है, जो कि तिरुमाला राया मंडपम के सामान है,  जिसमें विवाह उत्सव मनाए जाते हैं। आपको बता दें कि इस हिन्दू धर्म के पवित्र तीर्थस्थल में जाने के लिए तीर्थयात्रियों को करीब 3 हजार 600 सौ सीढ़ियां पार करनी होती है यह करीब 8 किलोमीटर की लंबी चढ़ाई है।

जिसमें कुछ किलोमीटर की पैदल यात्रा है, जबकि कुछ  कदमों की पैदल चढ़ाई है। वहीं इस मंदिर तक पहुंचने में करीब 3 से 4 घंटे का औसत समय लगता है।

तिरुपति बाला जी से जुड़ी पौराणिक कथाएं एवं धार्मिक मान्यताएं – Tirupati Balaji Story

आंध्रप्रदेश के तिरुमाला की पवित्र पहाडि़यों में स्थित तिरुपति बालाजी के मंदिर  से जुड़ी प्रख्यात पौराणिक कथा के मुताबिक एक बार पृथ्वी पर जब विश्व कल्याण के लिए यज्ञ का आयोजन किया गया था, तब इस यज्ञ का फल ब्रम्हा, विष्णु और महेश तीनों भगवान में किसे अर्पित किया जाए इसे जानने के लिए इसकी जिम्मेदारी अपने क्रोध के लिए पहचाने जाने वाले भृगु ऋषि को सौंपी गई थी, क्योंकि भृगु ऋषि ही देवताओं की परीक्षा लेने का साहस कर सकते थे।

जिसके बाद ऋषि भृगु सबसे पहले ब्रहा् जी के पास गए, लेकिन ब्रह्रा जी अपने वीणा की धुन में इतने तल्लीन थे कि उन्होनें भृगु ऋषि पर कोई ध्यान नहीं दिया, जिससे क्रोधित होकर भृगु ऋषि ने ब्रह्रा जी को श्राप दिया कि, पृथ्वीलोक में अब कोई भी उनकी पूजा नहीं करेगा।

इसके बाद ऋषि भृगु महेश यानि कि भगवान शिव के पास गए, जहां भगवान शिव अपनी पत्नी पार्वती से बात करने में इतने खोए हुए थे, कि उन्होंने भी ऋषि भृगु की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया, जिससे  क्रोधित ऋषि भृगु ने भगवान शिव को श्राप दिया कि उनके केवल लिंग की पूजा होगी।

क्रोधित होकर माता लक्ष्मी, विष्णु जी को वैकुंठ में छोड़कर चली गईं:

वहीं जब ऋषि भृगु ने यज्ञ का फल देने के लिए ब्रह्रा और महेश भगवान को ठीक नहीं समझा तब वे सबसे आखिरी में विष्णु भगवान के पास गए, जहां भगवान विष्णु भी उस वक्त आराम कर रहे थे।

जिसके बाद ऋषि भृगु ने उन्हें कई आवाजें दी लेकिन भगवान विष्णु ने जब उनकी एक भी आवाज नहीं सुनी तब क्रोधित होकर ऋषि भृगु ने भगवान विष्णु के सीने पर लात मार दी, जिसके बाद भगवान विष्णु ने क्रोध करने की बजाय ऋषि भृगु का पैर पकड़ लिया और मालिश करते हुए ऋषि से पूछा कि कहीं उनको चोट तो नहीं लगी, जिससे प्रसन्न होकर ऋषि भृगु ने विष्णु जी को यज्ञ का पुरोहित बना दिया।

हालांकि, ऋषि भृगु की इस हरकत से माता लक्ष्मी जी बेहद क्रोधित हो गई, क्योंकि भगवान विष्णु जी का वक्षस्थान, जो कि माता लक्ष्मी का निवास स्थान है और वहां ऋषि भृगु को लात मारने का दुस्साहस किया। साथ ही माता लक्ष्मी को भगवान विष्णु पर भी गुस्सा आया कि ऋषि भृगु को दंड देने की बजाय विष्णु जी ने ऋषि के पैर पकड़कर माफी मांग ली। जिसके बाद क्रोधित माता लक्ष्मी जी वैकुंठ धाम में विष्णु जी को छोड़कर चली गईं।

जिसके बाद विष्णु जी ने माता लक्ष्मी की बहुत खोज की औऱ जब वे कहीं नहीं मिली तो तब उन्होंने धरतीलोक पर आंध्रप्रदेश की एक पहाड़ी पर शरण ली, जो कि आज वेंकटाद्री के पवित्र पहाड़ी के नाम से जानी जाती है।

आज भी है भगवान वेंकटेश्वर की मूर्ति में चोट का निशान:

जब ब्रह्म और भगवान शिव ने विष्णु जी का दर्द देखा तब ब्रह्म जी गाय का और शंकर जी ने बछड़े का रुप धारण कर धरती पर प्रकट हुए। जिन्हें चोल देश के एक शासक ने खरीद लिया और वे उन्हें वेंकट पहाड़ी के खेतो में चरने के लिए रोजाना भेजते हैं, लेकिन जब एक दिन गाय ने उन्हें दूध देना बंद कर दिय, तब उन्होंने गाय पर एक आदमी को नजर रखने के लिए कहा, तब उस आदमी ने देखा कि गाय वेंकट पहाड़ी पर अपना सारा दूध गिरा देती है।

जिसे देख गाय पर नजर रख रहे आदमी ने क्रोधित होकर  गाय को कुल्हाड़ी फेंक कर मारी  तब भगवान विष्णु प्रकट हो गए, और वो कुल्हाड़ी विष्णु जी के माथे पर लग गई और वे पूरी तरह से खून से लतपत हो गई, वहीं उस चोट का निशान आज भी भगवान वेंकटेश्वर की मूर्तियों में दिखता है।

वहीं कुल्हाड़ी लगने के बाद भगवान विष्णु ने पहले तो चौल वंश के शासक को असुर बनने का श्राप दिया, लेकिन फिर बाद में राजा के द्धारा माफी मांगने पर विष्णु जी ने उस राजा को एक पद्मवती नाम की पुत्री होने का वरदान दिया और वह अपनी बेटी का विवाह श्रीनिवास से करेगा। इस तरह भगवान विष्णु श्री निवास का रुप धारण कर  वराह में रहने लगे।

इसके कुछ सालों बाद भगवान विष्णु के अवतार श्रीनिवास और माता लक्ष्मी के अवतार पद्मावती दोनों का विवाह हो गया। वहीं पौराणिक कथाओं के मुताबिक ऐसी भी मान्यता है कि भगवान विष्णु ने विवाह का खर्चा उठाने के लिए यह कहकर धन कुबेर से उधार लिया कि  वे उनके ऋण को कलियुग के अंत तक चुका देंगे।

वहीं भगवान विष्णु के कर्ज में डूबे होने के कारण ऐसी मान्यता है कि कोई भी भक्त तिरुपति बाला जी के मंदिर में अपनी श्रद्धा से जो कुछ भी चढ़ाता है तो वह भगवान विष्णु के ऊपर कुबेर के कर्ज को चुकाने में मद्द करता है। वहीं इस मान्यता की वजह से बड़े उद्योगपति और धनवान लोग यहां खूब चढ़ावा चढ़ाते हैं, यही  वजह है कि यह मंदिर विश्व के सबसे अमीर मंदिरों में गिना जाता है।

वहीं जो भक्त वैकुंड एकादशी के मौके पर श्री वेंकटेश्वर भगवान के दर्शन के लिए यहां आते, उनके सारे दुख-दर्द दूर हो जाते हैं एवं उनकी सारी मुरादें पूरी होती हैं।

तिरुपति बाला जी के अंदर बने देवी-देवताओं के मंदिर एवं दर्शनीय स्थल:

श्री पद्मावती समोवर मंदिर, तिरुचनूर

यह मंदिर भगवान वेंकटेश्वर की पत्नी और मां लक्ष्मी का अवतार मानी जाने वाली श्री पद्मावती को समर्पित है। ऐसी मान्यता है कि तीर्थयात्रियों की तिरुमला की यात्रा तब तक पूर्ण नहीं होती, जब तक वे इस मंदिर के दर्शन नहीं कर लेते।

श्री कपिलेश्वरस्वामी मंदिर –

तिरुपति से करीब 3 किलोमीटर दूर तिरुमला की पवित्र पहाड़ियों के नीचे एक इकलौता शिव मंदिर है, जहां कपिला तीर्थम नाम का एक झरना भी है। इस तीर्थस्थल को अलवर तीर्थम के नाम से भी जाना जाता है।

श्री कोदादंरमस्वामी मंदिर –

यह भव्य मंदिर तिरुपति के बीचोंबीच स्थित है। यहां माता सीता, प्रभु राम और लक्ष्मण की पूजा होती है।

श्री गोविंदराजस्वामी मंदिर –

भगवान बालाजी के बड़े भाई श्री गोविंदराजस्वामी जी को समर्पित यह मंदिर तिरुपति का मुख्‍य आकर्षण है।

श्री कल्याण वैंकटेश्वरस्वामी मंदिर, श्रीनिवास मंगापुरम –

तिरुपति से करीब 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस मंदिर का धार्मिक और पौराणिक महत्व की वजह से यहां काफी संख्या में भक्तगण आते हैं। मान्यता है कि भगवान वेंकटेश्वर और श्री पद्मावती शादी के बाद तिरुमला जाने से पहले यहां ठहरे थे।

श्री वराहस्वामी मंदिर –

तिरुमला के उत्तर में स्थित यह प्रसिद्ध मंदिर भगवान विष्णु के अवतार वराह स्वामी को समर्पित है। ऐसी मान्यता है कि भगवान वेकंटेश्वर ने यहां अपना निवास स्थान बनाया था।

पापनाशन तीर्थ–

बाला जी से करीब 3 मीले आगे यहां एक जल प्रपात है, जहां स्नान करने का बेहद महत्व है।

वैकुण्ठ तीर्थ–

बालाजी से करीब दो मील पहले एक पर्वत में वैकुण्ठ गुफा से शीतल जलधारा प्रवाहित होती है।

श्री चेन्नाकेशवस्वामी मंदिर, तल्लपका –

तिरुपति से करीब 100 किलोमीटर की दूरी पर श्री चेन्नाकेशवस्वामी जी का मंदिर स्थित है। इस मंदिर को श्री अन्नामचार्य जी का जन्म स्थल माना जाता है।

श्री बेदी अंजनेयस्वामी मंदिर –

यह भगवान हनुमान जी को समर्पित एक प्रसिद्ध मंदिर है। हनुमान जयंती पर यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं का तांता लगता है।

सप्तगिरी/ सप्तरिशी

तिरुमाला की पवित्र सात पहाड़ियों को सप्तगिरी और सप्तरिशी कहा जाता है, इन सातों पर्वतों के नाम नीचे लिखे गए हैं –

  • नीलान्द्री – नील देवी का पर्वत। मान्यता है कि श्रद्धालुओं द्धारा जो बाल दिए जाते हैं, उन्हें नील देवी अपनाती है।
  • नाराय्नाद्री – नारायण पर्वत कहलाता है।
  • वृशाभाद्री – भगवान् शिव के वाहन नंदी का यह पवित्र पर्वत है।
  • वेंकटाद्री – भगवान् विष्णु के अवतार भगवान वेंकटेश्वर जी का पर्वत है।
  • गरुदाद्री – भगवान् विष्णु के वाहन, गरुड़ का पर्वत है।
  • अन्जनाद्री – भगवान हनुमान जी का पर्वत है।
  • सेशाद्री – सेषा पर्वत।

इसके अलावा भी यहां कई मंदिर, तीर्थ और दर्शनीय स्थल हैं, जिनसे अलग-अलग धार्मिक मान्यताएं जुड़ी हुई हैं।

तिरुपति बाला जी मंदिर में बनाए जाने वाले प्रमुख उत्सव और त्योहार – Tirupati Balaji Festival

भारत के इस सबसे प्रसिद्ध तीर्थस्थल, तिरुपति बालाजी मंदिर में कुल 433 त्योहार मनाए जाते हैं, जिसे “नित्य कल्याणं पच्चा तोरणं” कहा जाता है। यह मनाए जाने वाले सबसे प्रमुख त्योहार ‘ब्रह्मोत्सवम’ है, जो कि कन्या राशि में सूर्य के आगमन पर मनाया जाता है। इस त्योहार का उत्सव करीब 9 दिनों तक चलता है।

तिरुपति बाला जी मंदिर से जुड़े रोचक और हैरान कर देने वाले तथ्य – Facts about Tirupati Balaji

  • भगवान वेंकटेश्वर की प्रतिमा पर लगे हैं असली बाल:

ऐसी मान्यता है कि कि विश्व प्रसिद्ध इस मंदिर में भगवान वेंकटेश्वर जी की मूर्ति पर लगे बाल असली है, जो कि बिना उलझे हमेशा मुलायम रहते हैं, ये प्रभु की साक्षात प्रतिमा का प्रमाण माना जाता है।

  • तिरुपति बालाजी मंदिर के मुख्य द्धार पर रखी है अद्भुत छड़ी:

दुनिया से इस सबसे समृद्ध और संपन्न मंदिर के मुख्य दरवाजे पर एक अद्भुत छड़ी रखी हुई है। ऐसा कहा जाता है कि, इस छड़ी से बालाजी भगवान की बाल अवस्था में पिटाई करने से उनकी ठुड्डी पर  चोट लग गई थी, वहीं इस चोट को भरने के लिए हर शुक्रवार को इसमें चंदन का लेप भी लगाया जाता है।

  • बालाजी की मूर्ति पर लगाया जाता है पचाई कपूर:

श्री वेंकटेश्वर भगवान जी की प्रतिमा पर बेहद खास तरह का पचाई कपूर भी लगाया जाता है, वहीं वैज्ञानिकों की माने तो यह कपूर जिस भी पत्थर पर लगाया जाता है, तो वह कुछ समय बाद  ही चटक जाता है, लेकिन वेंककटेश्वर जी की प्रतिमा पर पचाई कपूर लगाने का कोई असर नहीं होता है।

  • स्वयं प्रकट हुई थी बाला जी की मूर्ति:

ऐसी मान्यता है कि 18 वीं सदी में जब मंदिर को 12 साल के लिए बंद किया गया था, तब एक राजा ने करीब 12 लोगों को उनकी गलती की सजा देने के लिए दीवार पर लटका दिया था, और फिर भगवान वेंकटेश्वर स्वयं प्रकट हुए थे।

  • सुनाई देती है समुद्र की लहरों की आवाज:

यह जानकर आश्चर्य जरूर होगा, लेकिन मंदिर के पंडित एवं दर्शानार्थियों के मुताबिक भगवान वेंकटेश्वर भगवान की इस अद्भुत मूर्ति से कान लगाकर सुनने पर समुद्र की ध्वनि की आवाज सुनाई देती है, इसके साथ ही मंदिर की मूर्ति हमेशा नम भी रहती है।

  • बिना तेल/घी डाले ही हमेशा जलता रहता है मंदिर का दीपक:

लाखों भक्तों की आस्था से जुड़े इस तिरुपति बालाजी मंदिर में एक दीपक बिना तेल और घी डाले ही हमेशा जलता रहता है, जो कि अपने आप में एक चमत्कार माना जाता है। वहीं इस दीपक के जलने के रहस्य का आज तक पता नहीं लगाया जा सका है।

  • बाली जी के ह्रदय पर लगे चंदन में दिखती है माता लक्ष्मी की अनोखी छवि:

तिरुपति बालाजी मंदिर में होने वाले कुछ चमत्कारों की वजह से ऐसा माना जाता है कि भगवान वेंकटेश्वर जी भगवान यहां साक्षात विराजित हैं। वहीं इस मंदिर में हर गुरुवार के दिन जब बालाजी का पूरा श्रंगार उतारकर उन्हें स्नान करवाकर चंदन का लेप लगया जाता है, तब बालाजी के ह्रदय पर लगे चंदन में माता लक्ष्मी की अनोखी छवि दिखती है।

  • बाला जी की पीठ रहती है गीला, मूर्ति को आता है पसीना:

विश्व प्रसिद्ध इस श्री वेंकटेश्वर मंदिर से जुड़ी एक यह भी मान्यता है कि इस मंदिर में विराजित बाला जी की प्रतिमा पर पसीना आता है और उनकी पीठ को कई बार कपड़े से पोछने पर भी इस पर नमी बनी रहती है।

  • बालाजी मंदिर के पास एक ऐसा गांव जहां बाहरी लोगों का प्रवेश है वर्जित:

तिरुमाला की सप्तगिरी की पहाड़ियों पर स्थित इस अद्भुत मंदिर से करीब 23 किलोमीटर की दूरी पर एक ऐसा गांव स्थित है, जहां बाहरी व्यक्तियों को घुसने की इजाजत नहीं है। इस गांव में सभी लोग नियम -कानून के साथ रहते हैं, वहीं गांव की महिलाएं ब्लाउज नहीं पहनती हैं।

  • बालाजी भगवान की मूर्ति के पीछे फेंक दी जाती हैं फूल-मालाएं:

भारत के इस अद्भुत और चमत्कारी तिरुपति बालाजी मंदिर में बालाजी की प्रतिमा पर जो भी फूल-मालाएं आदि चढ़ाईं जाती हैं उन्हें मूर्ति के पीछे फेंक दिया जाता है, इनको देखना अशुभ और पाप माना जाता है।

  • विश्व का सार्वधिक धनी और समृद्ध मंदिर के रुप में तिरुपति बालाजी मंदिर:

सप्तगिरी की पहाड़ियों पर बना हुआ यह अद्भुत मंदिर विश्व के सबसे समृद्ध और अमीर मंदिरों में से एक है, इस मंदिर से भक्तों की गहरी आस्था जुड़ी हुई है, इसलिए यहां बड़े-बड़े उद्योगपति, राजनेता एवं फिल्मस्टार करोड़ों रुपए का चढ़ावा चढ़ाते हैं। यहां रोजाना 50 हजार से करीब 1 लाख तक लोग दर्शन के लिए आते हैं। वहीं इस मंदिर के ट्रस्ट के खजाने में करीब 50 हजार करोड़ रुपए से भी ज्यादा की संपत्ति है।

तिरुपति बाला जी की  ऐसे करें यात्रा तभी मिलेगा मनवांछित फल:

जो भी पर्यटक तिरुपति बालाजी मंदिर की यात्रा करने का मन बना रहे हैं, जो उन्हें नियमानुसार तिरुपति जी के दर्शन करने से पहले कपिल तीर्थ पर स्नान कर कपिलेश्वर मंदिर के दर्शन करने चाहिए और फिर वेंकटाचल पर्वत पर विराजित बालाजी के दर्शन करना चाहिए। वहीं तिरुपति बाला जी यात्रा तभी पूरी मानी जाती है कि जब भक्तजन तिरुण्चानूर में स्थित श्री पद्मावती समोवर मंदिर के दर्शन कर लेते हैं।

ऐसे पहुंचे तिरुपति बालाजी – How to Reach Tirupati Balaji

आंध्रप्रदेश में चित्तूर जिले के पास स्थित है तिरुपति की चेन्नई से दूरी करीब 130 किलोमीटर है, यहां तिरुपति मुख्य रेलवे स्टेशन है। तिरुपति रेलवे स्टेशन से तिरमाला पहाड़ी तक की दूरी करीब 26 किलोमीटर है, जहां टैक्सी, बस आदि के के माध्यम से पहुंचा जा सकता है।

वहीं तिरुपति रेलवे स्टेशन भारत के प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। दर्शानार्थी  करीब 3600 सीढि़यां और कुछ किमी की पैदल यात्रा कर इस मंदिर में दर्शन के लिए पहुंच सकते हैं।

मान्यताएँ:

चूँकि भगवान वेंकटेश्वर को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है, इसलिए धारणा है कि प्रभु श्री विष्णु ने कुछ समय के लिए तिरुमला स्थित स्वामी पुष्करणी नामक तालाब के किनारे निवास किया था। मन्दिर से सटे पुष्करणी पवित्र जलकुण्ड के पानी का प्रयोग केवल मन्दिर के कार्यों, जैसे भगवान की प्रतिमा को साफ़ करने, मन्दिर परिसर का साफ़ करने आदि के कार्यों में ही किया जाता है।

इस कुण्ड का जल पूरी तरह से स्वच्छ और कीटाणु रहित है। श्रद्धालु ख़ासकर इस कुण्ड के पवित्र जल में डुबकी लगाते हैं। माना जाता है कि वैकुण्ठ में विष्णु इसी कुण्ड में स्नान किया करते थे। यह भी माना जाता है कि जो भी इसमें स्नान कर ले, उसके सारे पाप धुल जाते हैं और सभी सुख प्राप्त होते हैं। बिना यहाँ डुबकी लगाए कोई भी मन्दिर में प्रवेश नहीं कर सकता है। डुबकी लगाने से शरीर और आत्मा पूरी तरह से पवित्र हो जाते हैं।

दरअसल, तिरुमला के चारों ओर स्थित पहाड़ियाँ, शेषनाग के सात फनों के आधार पर बनी सप्तगिरि कहलाती हैं। श्री वेंकटेश्वर का यह मन्दिर सप्तगिरि की सातवीं पहाड़ी पर स्थित है, जो वेंकटाद्रि के नाम से प्रसिद्ध है। माना जाता है कि वेंकट पहाड़ी के स्वामी होने के कारण ही विष्णु भगवान को वेंकटेश्वर कहा जाने लगा। इन्हें सात पहाड़ों का भगवान भी कहा जाता है।

भगवान वेंकटेश्वर को बालाजी, गोविन्दा और श्रीनिवास के नाम से भी जाना जाता है। जो भक्त व श्रद्धालु वैकुण्ठ एकादशी के अवसर पर यहाँ भगवान के दर्शन के लिए आते हैं, उनके सारे पाप धुल जाते हैं। ऐसी भी मान्यता है कि यहाँ आने के पश्चात व्यक्ति को जन्म-मृत्यु के बन्धन से मुक्ति मिल जाती है।

जो भी तिरुपति आता है, प्रभु वेंकटेश्वर के दर्शन के बिना वापस नहीं जाता। भक्तों की लम्बी कतार देखकर इस मन्दिर की प्रसिद्धिका अनुमान स्वत: ही लगाया जा सकता है। पुराणों के अनुसार, कलियुग में भगवान वेंकटेश्वर का आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद ही मुक्ति सम्भव है।

माना जाता है कि भगवान वेंकटेश्वर का दर्शन करने वाले प्रत्येक भक्त को उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है। दर्शन करने वाले भक्तों के लिए विभिन्न स्थानों तथा बैकों से एक विशेष पर्ची कटती है। इसी पर्ची के माध्यम से श्रद्धालु भगवान वेंकटेश्वर के दर्शन कर सकते हैं।

बाल देना / मुंडन – Tirupati Balaji Mundan (Hair Tonsuring)

बहोत से श्रद्धालु यहाँ आकर भगवान् को अपने बाल भेट स्वरुप देते है, जिसे “मोक्कू” कहा जाता है। रोज़ लाखो तन बाल इकट्टे किये जाते है। रोज़ इन बालो को जमा किया जाता है और बादमे मंदिर की संस्था द्वारा इसे नीलाम कर बेच दिया जाता है। कुछ समय पहले ही मंदिर की संस्था ने बालो को बेचकर 6 मिलियन डॉलर की कमाई की थी। मंदिर में किसी भी स्त्रोत से आने वाली यह दूसरी सबसे बड़ी कमाई है।

सात पर्वत:

इन सात पर्वतो को सप्तगिरी या सप्तरिशी भी कहा गया है। कभी-कभी इसे सप्थागिरी भी कहा गया है। इसीलिए भगवान् को सप्तागिरिनिवासा कहा जाता है।

  • वृशाभाद्री – नंदी का पर्वत, भगवान् शिव का वाहन
  • अन्जनाद्री – भगवान् हनुमान का पर्वत
  • नीलान्द्री – नील देवी का पर्वत। कहा जाता है की भक्तो द्वारा जो बाल दिए जाते है उन्हें नील देवी अपनाती है।
  • गरुदाद्री – गरुड़ पर्वत, भगवान् विष्णु का वाहन।
  • सेशाद्री – सेषा पर्वत, भगवान् विष्णु और देश
  • नाराय्नाद्री – नारायण पर्वत, श्रीवरी पदालू यहाँ स्थापित है।
  • वेंकटाद्री – भगवान् वेंकटेश्वर का पर्वत।

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53 thoughts on “तिरुपति बालाजी मंदिर | Tirupati Balaji History”

  1. Abadhesh tiwari

    भगवान वेंकटेश्वर के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ सच मे एक अलग अनुभूति को एहसास हुआ ऐसा लगा की मैने सच मे केवल ढाई घंटे में दर्शन किये जो की एक सुखद क्षण था।

  2. RAMESH JAGANNATH NIRMAL

    HOW BHAGWAN VENKATESHA CAME HERE, WITH WHOM HE LIVES, WITH WHOM HE MARRIED, WHY HE CAME ON EARTH, SPECIALLY THE REASON BEHIND THEIR “AVATAR” WAS NOT GIVEN IN YOUR INFORMATION, PLEASE UPDATE.

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