तानसेन का जीवन परिचय

ग्वालियर में जन्में तानसेन भारत के सबसे प्रसिद्ध और महान थे संगीतकार थे, जिन्होंने शास्त्रीय संगीत के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था। मुगल सम्राट अकबर भी उनकी गायकी से इतने अधिक प्रभावित थे कि उन्होंने तानसेन को अपने दरबार के नौ रत्नों में शामिल किया।

संगीत सम्राट तानसेन एक ऐसे संगीतकार थे, जिनके अंदर गायन के साथ-साथ वादन का भी कौशल था, उन्होंने अपनी संगीत की समझ के चलते कई रागों का निर्माण भी किया था। इसके अलावा तानसेन ने कई रचनाएं भी की थी। उन्हें संगीत सम्राट और मियांतानसेन के नाम से भी जाना जाता है, तो आइए जानते हैं, महान संगीतकार तानसेन के जीवन से जुड़ी कुछ महत्वपर्ण बातें-

भारत के सबसे महान संगीतकार तानसेन का जीवन परिचय – Sangeet Samrat Tansen in Hindi

Tansen

वास्तविक नाम (Real Name) रामतनु पांडेजी (तानसेन)
जन्म (Birthday) 1506
जन्मस्थान ग्वालियर
पिता (Father Name) मुकुंद मिश्रा
मृत्यु (Death) 26 अप्रैल 1586, दिल्ली

तानसेन के पिता मुकुंद मिश्रा एक समृद्ध कवी और लोकप्रिय संगीतकार थे, जो कुछ समय तक वाराणसी के धार्मिक मंदिर में रहते थे। जन्म के समय तानसेन का नाम रामतनु था। तानसेन का जन्म उस समय में हुआ था जब बहुत से पर्शियन और मध्य एशियाई अनुकल्प भारतीय क्लासिकल संगीत का सम्मिश्रण कर रहे थे।

उनके कार्यो और उनकी रचनाओ से ही आधुनिक कवियों को हिन्दुस्तानी क्लासिकल लोकाचार बनाने की प्रेरणा मिली थी। बहुत से वंशज और अनुयायियों ने उनकी परंपरा को समृद्ध बनाया था। बल्कि आज हमें हर हिन्दुस्तानी घर में क्लासिकल म्यूजिक में तानसेन का संबंध जरुर दिखाई देता है। विद्वानों के अनुसार, जानवरों और पक्षियों के आवाज की प्रतिलिप करने के लिये भी वे इतिहास में काफी प्रसिद्ध थे।

केवल 6 साल की अल्पायु में ही तानसेन ने अपने अंदर छुपी संगीत की कला का प्रदर्शन किया था। इसके बाद कुछ समय तक वे स्वामी हरीदास के अनुयायी बने रहे, जो वृन्दावन के विद्वान संगीतकार थे और साथ ही ग्वालियर के राजा मान सिंह तोमर (1486-1516 AD), जो संगीत के ध्रुपद प्रकार में निपुण थे।

तानसेन के संगीत के ज्ञान को जल्द ही पहचान लिया गया था। उस समय में हरिदास को ही सबसे बुद्धिमान और सफल शिक्षक माना जाता था। विद्वानों का ऐसा मानना है की एक बार हरिदास जंगल से गुजर रहे थे और तभी उन्होंने रामतनु (तानसेन) को गाते हुए देखा था, और उन्हें देखते ही हरिदास मंत्रमुग्ध हो गए थे। बल्कि दुसरे सूत्रों के अनुसार तानसेन के पिता ने तानसेन को हरिदास के पास संगीत के अभ्यास के लिये भेजा था।

हरिदास से तानसेन ने केवल उनकी ध्रुपद कला ही नही सीखी बल्कि स्थानिक भाषा में उनकी संगीत रचना भी सीखी। यह ऐसा समय था जब भक्ति काल धीरे-धीरे संस्कृत से स्थानिक भाषा (ब्रजभाषा और हिंदी) में परिवर्तित हो रहा था। और इस समय तानसेन की रचनाओ ने लोगो को काफी प्रभावित किया था।

इसी दौरान कुछ समय के बाद तानसेन के पिता की भी मृत्यु हो गयी थी और इस वजह से तानसेन को घर वापिस आना पड़ा था और कहा जाता है की घर वापिस आ जाने के बाद वे शिव मंदिर में स्थानिक भाषा में भक्तिगीत गाते थे। इसके साथ ही किसी भी उत्सव में तानसेन मुहम्मद घुस के दरबार में जाते थे और अपनी कला का प्रदर्शन करते थे। जब तानसेन घुस परंपरा से जुड़े थे तो उससे पहले उन्होंने स्वामी हरिदास से भक्ति गीत का प्रशिक्षण ले रखा था। और उनके समय में तानसेन के कार्य को काफी लोकप्रियता मिली थी।

तानसेन की संगीत रचना में हमें ब्रज और हिंदी भाषा का सम्मिश्रण दिखाई देता है। तानसेन ने ज्यादातर भक्ति गीतों की रचना कृष्णा और शिव की भक्ति में ही की है। ग्वालियर के दरबार में तानसेन दुसरे गायकों से काफी प्रभावित हुए थे और उन्होंने उनसे बहुत कुछ सिखा भी था। ग्वालियर के दुसरे संगीतकारों में बैजू बावरा शामिल है। परिणामस्वरूप, तानसेन रेवा के राजा रामचंद्र बाघेला के दरबार में शामिल हो गए।

जहाँ वे 1555 से 1562 तक रहे। कहा जाता है की इसी समय में मुघल सम्राट अकबर ने तानसेन की कला और प्रतिभा के बारे में सुना था और उन्होंने जलालुद्दीन कुरेची को रामचंद्र के दरबार में तानसेन को लाने के लिये भी भेजा था। और इसके बाद तानसेन अकबर के दरबार में चले गए थे। 57 साल की आयु में 1562 में तानसेन अकबर के दरबार में गए थे। तानसेन अचानक ही अकबर के दरबार में शामिल हुए थे।

मुघल शासक अकबर ने ही तानसेन को “मिया” का शीर्षक दिया था और आज भी हम तानसेन को “मिया तानसेन” के नाम से ही जानते है। इतिहासिक जानकारों के अनुसार अकबर ने तानसेन के पहले कला प्रदर्शन पर इनाम में 100,000 सोने के सिक्के दिये थे। सदियों से अकबर के दरबार में संगीतकार तानसेन का होना चर्चा का विषय बना हुआ है।

लेकिन इतिहासिक जानकारों के अनुसार अकबर तानसेन की संगीत कला से काफी प्रभावित थे और इसीलिए उन्होंने तानसेन को अपने नौ-रत्नों में भी शामिल कर लिया था।

ऐतिहासिक किला फतेहपुर सीकरी तानसेन के कार्यकाल से काफी हद तक जुड़ा हुआ है। शासक के कमरे के नजदीक ही एक तालाब बनवाया गया था जिसके बिच में एक छोटा द्वीप भी था, जहाँ तानसेन अपनी कला का प्रदर्शन करते थे। आज इस छोटे तालाब को अनूप तलाव कहते है, जिसे हम दीवान-ए-आम के पास ही देख सकते है। कहा जाता है की तानसेन दिन में अलग-अलग समय में अलग-अलग मौको पर अलग-अलग राग गाते थे। उनके प्रदर्शन से खुश हुए लोग उन्हें तोहफे में सिक्के भी देते थे।

मृत्यु –

कुछ ऐतिहासिक सूत्रों के अनुसार तानसेन की मृत्यु 26 अप्रैल 1586 को दिल्ली में हुई थी और अकबर और उनके सभी दरबारी उनकी अंतिम यात्रा में उपस्थित थे। जबकि दुसरे सूत्रों के अनुसार 6 मई 1589 को उनकी मृत्यु हुई थी। उन्हें जन्मभूमि बेहात (ग्वालियर के पास) पर दफनाया गया।

मिया तानसेन अकबर के लोकप्रिय नवरत्नों में से एक – Akbar ke Navratna

अकबर को संगीत का बहुत शौक था और तानसेन के बारे में अकबर ने बहुत से लोगो से उनकी आवाज़ और संगीत कला की प्रशंसा भी सुनी थी, इसीलिए अकबर किसी भी हालत में तानसेन को अपने दरबार में लाना ही चाहते थे बल्कि इसके लिये तो वे युद्ध करने को भी राजी थे। इसीलिए जब तानसेन अकबर के दरबार में शामिल हुए तब अकबर ने उन्हें अपने नवरत्नों में शामिल किया।

अवार्ड –

हर साल दिसम्बर में बेहत में तानसेन की कब्र के पास ही राष्ट्रिय संगीत समारोह ‘तानसेन समारोह’ आयोजित किया जाता है। महान संगीतज्ञ तानसेन द्वारा संगीत के क्षेत्र में किए गए महान योगदानों के लिए उनके सम्मान में “तानसेन पुरस्कार” दिया जाता है।

भारत सरकार द्वारा यह पुरस्कार संगीत के क्षेत्र में उत्कृष्ट काम करने वाले संगीतकारों द्वारा दिया जाता है। उनके द्वारा निर्मित राग सदा उनकी बहुमुखी प्रतिभा के गौरवमय इतिहास का स्मरण कराते रहेंगे। भारतीय संगीत के अखिल भारतीय गायकों की श्रेणी में संगीत सम्राट तानसेन का नाम सदैव अमर रहेंगा।

रचनाएं और संगीत में योगदान –

महान संगीतज्ञ तानसेन न सिर्फ एक महान गायक और वादक थे, बल्कि एक महान कवि भी थे, उन्होंने कई हिन्दू पौराणिक कहानी पर आधारित रचनाएं की थी, उन्होंने अपनी रचनाओं में भगवान गणेश, शंकर और विष्णु की महिमा और प्रशंसा का वर्णन किया था, उन्होंने ध्रुपद शैली में अपनी रचनाओं को लिखा था। तानसेन द्वारा की गई रचनाओं में मुख्य रुप से इन तीन रचनाओं का उल्लेख मिलता है। जिनके नाम इस प्रकार है-

  • “श्रीगणेश स्तोत्र”
  • “रागमाला”
  • “संगीतसार”

इसके अलावा तानसेन के कई ध्रपदों की भी रचनाएं की थी। इसके साथ ही तानसेन ने भैरव, मल्हार, रागेश्वरी, दरबारीरोडी, दरबारी कानाडा, सारंग, जैसे कई रागों का निर्माण किया था। उन्होंने भारत में शास्त्रीय संगीत के विकास में अपना अपूर्व योगदान दिया है। इसलिए उन्हें भारतीय शास्त्रीय संगीत का जनक भी माना जाता है।

इसके साथ ही संगीत की ध्रुपद शैली भी तानसेन की ही देन है। तानसेन द्वारा निर्मित कई रागों को सरलता और आसानी से समझाने के लिए कई भागों में वर्गीकृत किया है। संगीत के क्षेत्र में उनका योगदान अमूल्य है, अखिल भारतीय गायकों में तानसेन की गिनती होती है। वहीं उनके आश्चर्यजनिक संगीत कौशल की वजह से उन्हें संगीत सम्राट भी कहा जाता है।

फिल्में –

संगीत रचयिता तानसेन की अलौकिक संगीत प्रतिभा का पूरे विश्व में परिचित करवाने के लिए कई फिल्में बनाईं गईं है, जिसमें तानसेन की महान जीवन को दर्शाया गया है। संगीत सम्राट तानसेन के जीवन पर साल 1943 में तानसेन, साल 1952 में बैजू बावरा, 1962 में संगीत सम्राट तानसेन फिल्में बनाईं गईं हैं।

शास्त्रीय संगीत के जनक तानसेन ने अपनी अद्भुत प्रतिभा से संगीत के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे वाद्य संगीत के रचनाओं के लिए भी काफी प्रसिद्ध थे। उनके द्वारा निर्मित रागों को युगों-युगों तक याद किया जाता रहेगा। तानसेन जैसे महान संगीतज्ञ का भारतभूमि में जन्म लेना गौरवपूर्ण है।

11 thoughts on “तानसेन का जीवन परिचय”

  1. बहुत सुंदर, सटीक, स्पष्ट शैली, त्रुटि रहित एवं प्रगतिशील लेखन कला युक्त ज्ञानवर्धक लेख।

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