Swamimalai Temple
स्वामीमलाई मंदिर मुरुगन (कार्तिकेय) को समर्पित एक हिन्दू मंदिर है। जो कुम्बकोणं से 5 किलोमीटर की दुरी पर स्वामीमिलाई के पास कावेरी नदी के तट पर स्थित है और साथ ही यह मंदिर भारत के तमिलनाडु की राजधानी, चेन्नई से 250 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है।
मुरुगन (कार्तिकेय) को समर्पित स्वामीमलाई मंदिर – Swamimalai Temple
यह मंदिर मुरुगन (कार्तिकेय) के छः पवित्र तीर्थस्थलो में से एक है, जिन्हें अरुपदैवीडु के नाम से जाना जाता है।
मुख्य देवता स्वामिनाथ स्वामी का मंदिर छोटी पहाड़ी के शीर्ष पर 60 फीट (18 मीटर) की ऊंचाई पर स्थित है और माता मिनाक्षी (पार्वती) और पिता शिव (सुंदरेश्वर) का मंदिर भी पहाड़ी के निचे स्थित है।
मंदिर में कुल तीन प्रवेश द्वार, तीन परिसर और साठ सीढियाँ है। मंदिर में रोजाना समय पर सुबह 5:30 बजे से रात 9:00 तक दैनिक अनुष्ठान होते हैं और हर साल तीन वार्षिक उत्सव मनाए जाते है। हर साल “वैकासी विसंगम” नामक वार्षिक उत्सव में हजारो श्रद्धालु दूर-दूर से आते है।
हिन्दू किंवदंतियों के अनुसार, शिवजी के पुत्र मुरुगन ( कार्तिकेय) इसी स्थल पर अपने पिता के प्रणव मंत्र ॐ का उच्चार करते थे और इसीलिए इसका नाम स्वामिनाथ स्वामी मंदिर रखा गया।
माना जाता है की परन्तक चोल प्रथम ने इस मंदिर में कुछ सुधार किये थे। लेकिन 1740 में हैदर अली और ब्रिटिश के बीच हुए एंग्लो-फ्रेंच युद्ध ने इस मंदिर को काफी क्षति पहुचाई। वर्तमान समय में मंदिर की देखभाल तमिलनाडु सरकार का धार्मिक और एंडोमेंट बोर्ड करता है।
स्वामीमलाई मंदिर से जुडी कहानी – Story of Swamimalai Temple:
हिन्दू कंवदंतियो के अनुसार सृष्टि के निर्माता ब्रह्माजी ने शिवजी के निवासस्थान कैलाश पर्वत की यात्रा करते समय मुरुगन (भगवान शिव के पुत्र) का अपमान किया था। इससे बालक मुरुगन ब्रह्माजी से क्रोधित हो गये और उन्होंने उनसे पूछ लिया की कैसे उन्होंने जीवित चीजो की रचना की।
ब्रह्मा जी ने जवाब दिया की वेदों की सहायता से उन्होंने जीवित चीजो की रचना की है। इसके बाद ब्रह्मा जी ने पवित्र प्रणव मंत्र ‘ॐ’ का जाप करना शुरू किया। उसी समय मुरुगन ने ब्रह्मा जी को रोका और उनसे प्रणव मंत्र का अर्थ बताने के लिए कहा।
ब्रह्मा जी को बिल्कुल भी इस बात का अंदाजा नही था के इतना छोटा बालक ऐसा प्रश्न पूछ सकता है और इसी वजह से ब्रह्मा जी इस प्रश्न का जवाब नही दे पाए। इसके बाद मुरुगन ने अपनी बंधी हुई मुट्ठी को हल्के से ब्रह्मा जी के माथे पर दे मारा और सजा के तौर पर उन्हें कैद किया गया। इसके बाद मुरुगन ने सृष्टि के रचना की जिम्मेदारी संभाली।
यह सब सुनने के बाद सारे देवता ब्रह्मा जी की अनुपस्थिति में आश्चर्यचकित हो चुके थे और उन्होंने विष्णु जी से प्रार्थना की के वह मुरुगन से जाकर ब्रह्मा जी को रिहा करने की बात कहे। लेकिन विष्णुजी ने भी देवताओ की सहायता नही की और अंततः शिवजी ही ब्रह्मा जी को बचाने के लिए निकल पड़े।
इसके बाद शिवजी मुरुगन के पास आए और ब्रह्मा जी को रिहा करने के लिए कहा। लेकिन मुरुगा ने यह कहकर ब्रह्मा जो को रिहा करने से मना कर दिया की उन्हें प्रणव मंत्र ॐ का अर्थ नही पता।
इसके तुरंत बाद शिवजी ने मुरुगन से उसका अर्थ बताने के लिए कहा और मुरुगन ने शिवजी के सामने प्रणव मंत्र का गुणगान कर दिया।
शिवजी इस समय एक शिष्य की तरह व्यवहार कर रहे थे और अपने पुत्र द्वारा कही जा रही हर एक बात को ध्यान से सुन रहे थे और तभी उन्होंने अपने पुत्र को “स्वामिनाथ स्वामी” का नाम दिया। उनके इस नाम का अर्थ “भगवान शिव के शिक्षक” से होता है।
इसी किंवदंती के आधार पर भगवान शिव के पुत्र मुरुगन का मंदिर पहाड़ी के शीर्ष पर जबकि शिवजी का मंदिर पहाड़ी के निचले भाग में है।
स्वामिमलाई मुरुगन के छः मुख्य मंदिरों में से एक है, जो उनके जीवन के विविध चरणों से जुड़े हुए है। हिन्दू मान्यताओ के अनुसार, स्वामिमलाई वही स्थान है जहाँ बाल्यावस्था में मुरुगन ने शिवजी को प्रणव मंत्र का अर्थ समझाया था। मुरुगन का पंथ तमिल लोगो के लिए गर्व की बात है।
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मुरुगन (कार्तिकेय) को समर्पित स्वामीमलाई मंदिर के बारे में व् पुराणों में वर्णित लोककथा की आपने बहुत उपयोगी जानकारी दी , शुक्रिया