Surdas Biography in Hindi
Surdas – सूरदास 15 वी शताब्दी के अंधे संत, कवी और संगीतकार थे। सूरदास का नाम भक्ति की धारा को प्रवाहित करने वाले भक्त कवियों में सर्वोपरि है। सूरदास अपने भगवान कृष्ण पर लिखी भक्ति गीतों के लिये जाने जाते है। सूरदास जी की रचनाओं में भगवान श्री कृष्ण के भाव स्पष्ट देखने को मिलते हैं। जो भी उनकी रचनाओं को पढ़ता है वो कृष्ण की भक्ति में डूब जाता है।
उन्होंने अपनी रचनाओं में भगवान श्री कृष्ण का श्रृंगार और शांत रस में दिल को छू जाने वाला मार्मिक वर्णन किया हैं। सूरदास जी, को हिन्दी साहित्य की अच्छी जानकारी थी, अर्थात उन्हें हिन्दी साहित्य का विद्धान माना जाता था।
संत सूरदास की भक्तिपूर्वक जीवनी – Surdas Biography In Hindi
नाम (Name) | सूरदास (Surdas) |
जन्म (Birthday) | संवत् 1535 विक्रमी (स्पष्ट नहीं है) |
जन्मस्थान (Birthplace) | रुनकता |
पिता का नाम (Father Name) | रामदास सारस्वत |
गुरु (Guru) | बल्लभाचार्य |
पत्नी का नाम (Wife Name) | आजीवन अविवाहित |
मृत्यु (Death) | संवत् 1642 विक्रमी (स्पष्ट नहीं है) |
कार्यक्षेत्र | कवि |
रचनायें | सूरसागर, सूरसारावली,साहित्य-लहरी, नल-दमयन्ती, ब्याहलो |
सर्वश्रेष्ठ कवि सूरदास जी की बायोग्राफी – Surdas Jeevan Parichay
महान कवि सूरदास जी के जन्म के बारे में कोई पुख्ता प्रमाण तो नहीं मिलता है। हिन्दी साहित्य में इनके जन्म को लेकर साहित्यकारों के अलग-अलग मत है। हालांकि कई ग्रंथों से प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर माना जाता है कि सूरदास जी का जन्म साल 1535 में रुनकता नामक गांव में हुआ था। वहीं आज के समय में यह गांव मथुरा-आगरा मार्ग के किनारे स्थित है। इनके जन्म और स्थान को लेकर एक पद्द के माध्यम से बताया गया है।
“रामदास सूत सूरदास ने, जन्म रुनकता में पाया !
गुरु बल्लभ उपदेश ग्रहण कर , कृष्णभक्ति सागर लहराया !!”
भक्तिकाल के महान कवि सूरदास जी के पिता का नाम रामदास था, जो कि एक महान गीतकार थे। आपको बता दें कि महान कवि सूरदास के जन्म से अन्धे होने के बारे में अलग-अलग तरह के मतभेद हैं। उनके जन्मांध होने का कोई प्रमाणिक साक्ष्य नहीं है, जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि वे जन्म से ही अंधे थे।
सूरदास जी शुरु से ही भगवद भक्ति में लीन रहते थे। उन्होनें खुद को पूरी तरह से श्री कृष्ण भक्ति में समर्पित कर दिया था। कृष्णभक्ति में पूरी तरह डूबने के लिए कवि ने महज 6 साल की उम्र में अपनी पिता की आज्ञा से घर छोड़ दिया था। इसके बाद वे युमना तट के गौउघाट पर रहने लगे थे।
सूरदास जी ने गुरू बल्लभाचार्य से ली शिक्षा – Surdas Ke Guru
एक बार जब सूरदास जी अपनी वृन्दावन धाम की यात्रा के लिए निकले तो इस दौरान इनकी मुलाकात बल्लभाचार्य से हुई। जिसके बाद वह उनके शिष्य बन गए। गौऊघाट पर ही उनकी भेंट श्री वल्लभाचार्य से हुई और बाद में वह इनके शिष्य बन गए।
महाकवि सूरदास ने बल्लभाचार्य से ही भक्ति की दीक्षा प्राप्त की। श्री वल्लभाचार्य ने सूरदास जी को सही मार्गदर्शन देकर श्री कृष्ण भक्ति के लिए प्रेरित किया।
आपको बता दें कि भक्तिकाल के महाकवि सूरदास जी और उनके गुरु वल्लभाचार्य के बारे में एक रोचक तथ्य यह भी हैं कि सूरदास और उनकी आयु में महज 10 दिन का अंतर था।
विद्धानों के मुताबिक गुरु बल्लभाचार्य का जन्म 1534 में वैशाख् कृष्ण एकादशी को हुआ था। इसलिए कई विद्धान सूरदास का जन्म भी 1534 की वैशाख शुक्ल पंचमी के आसपास मानते हैं।
आपको बता दें कि सूरदास जी के गुरु बल्लभाचार्य, अपने शिष्य को अपने साथ गोवर्धन पर्वत मंदिर पर ले जाते थे। वहीं पर ये श्रीनाथ जी की सेवा करते थे, और हर दिन दिन नए पद बनाकर इकतारे के माध्यम से उसका गायन करते थे।
बल्लभाचार्य ने ही सूरदास जी को ही ‘भागवत लीला’ का गुणगान करने की सलाह दी थी। इसके बाद से ही उन्होंने श्रीकृष्ण का गुणगान शुरू कर दिया था। उनके गायन में श्री कृष्ण के प्रति भक्ति को स्पष्ट देखा जा सकता था।
इससे पहले वह केवल दैन्य भाव से विनय के पद रचा करते थे। उनके पदों की संख्या ‘सहस्राधिक’ कही जाती है, जिनका संग्रहित रूप ‘सूरसागर’ के नाम से काफी मशहूर है।
कृष्ण भक्त के रूप में सूरदास जी – Surdas Story
अपने गुरु बल्लभाचार्य से शिक्षा लेने के बाद सूरदास जी पूरी तरह से भगवान श्री कृष्ण की भक्ति में लीन हो गए। सूरदास जी की कृष्ण भक्ति के बारे में कई सारी कथाएं प्रचलित हैं।
एक कथा के मुताबिक, एक बार सूरदास जी श्री कृष्ण की भक्ति नें इतने डूब गए थे कि वे कुंए में तक गिर गए थे, जिसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने खुद साक्षात दर्शन देकर उनकी जान बचाई थी।
जिसके बाद देवी रूकमणी ने श्री कृष्ण से पूछा था कि, हे भगवन, तुमने सूरदास की जान क्यों बचाई। तब कृष्ण भगवान ने रुकमणी को कहा के सच्चे भक्तों की हमेशा मदद करनी चाहिए, और सूरदास जी उनके सच्चे उपासक थे जो निच्छल भाव से उनकी आराधना करते थे।
उन्होंने इसे सूरदास जी की उपासना का फल बताया, वहीं यह भी कहा जाता है कि जब श्री कृष्ण ने सूरदास की जान बचाई थी तो उन्हें नेत्र ज्योति लौटा दी थी। जिसके बाद सूरदास ने अपने प्रिय कृष्ण को सबसे पहले देखा था।
इसके बाद श्री कृष्ण ने सूरदास की भक्ति से प्रसन्न होकर उनसे वरदान मांगने को कहा। जिसके बाद सूरदास ने कहा कि – मुझे सब कुछ मिल चुका हैं और सूरदास जी फिर से अपने प्रभु को देखने के बाद अंधा होना चाहते थे।
क्योंकि वे अपने प्रभु के अलावा अन्य किसी को देखना नहीं चाहते थे। फिर क्या था भगवान श्री कृष्ण ने अपने प्रिय भक्त की मुराद पूरी कर दी और उन्हें फिर से उनकी नेत्र ज्योति छीन ली। इस दौरान भगवान श्री कृष्ण ने सूरदास जी को आशीर्वाद दिया कि उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैले और उन्हें हमेशा याद किया जाए।
सम्राट अकबर की सर्वश्रेष्ठ कवि सूरदास से मुलाकत –
महाकवि सूरदास जी के भक्तिमय गीत हर किसी को भगवान की तरफ मोहित करते हैं। वहीं सूरदास जी की पद-रचना और गान-विद्या की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई थी। वहीं इसको सुनकर सम्राट अकबर भी कवि सूरदास से मिलने से लिए खुद को नहीं रोक सके।
साहित्य में इस बात का जिक्र किया गया है कि अकबर के नौ रत्नों में से एक संगीतकार तानसेन ने सम्राट अकबर और महाकवि सूरदास जी की मथुरा में मुलाकात करवाई थी।
सूरदास जी की पदों में भगवान श्री कृष्ण के सुंदर रूप और उनकी लीलाओं का वर्णन होता था। जो भी उनके पद सुनता था, वो ही श्री कृष्ण की भक्ति रस में डूब जाता था। इस तरह अकबर भी सूरदास जी का भक्तिपूर्ण पद-गान सुनकर अत्याधिक खुश हुए।
वहीं यह भी कहा जाता है कि सम्राट अकबर ने महाकवि सूरदास जी से उनका यशगान करने की इच्छा जताई लेकिन सूरदास जी को अपने प्रभु श्री कृष्ण के अलावा किसी और का वर्णन करना बिल्कुल भी पसंद नहीं था।
इसके अलावा सूरदास जी के पद – रचनाओं ने महाराणा प्रताप जैसी सूरवीर को भी प्रभावित किया है।
सूरदास की रचनाएं – Surdas Poems
भक्तिकाल के सर्वश्रेष्ठ कवि सूरदास को हिन्दी साहित्य का विद्धान कहा जाता था। सूरदास जी की रचनाओं में श्री कृष्ण के प्रति अटूट प्रेम और भक्ति का वर्णन मिलता है। आपको बता दें कि सूरदास जी ने अपनी रचनाओं में वात्सल्य रस, शांत रस, और श्रंगार रस को अपनाया था।
सूरदास जी ने अपनी कल्पना के माध्यम से श्री कृष्ण के अदभुत बाल्य स्वरूप, उनके सुंदर रुप, उनकी दिव्यता वर्णन किया है। इसके अलावा सूरदास ने भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का भी वर्णन किया है।
आपको बता दें कि सूरदास जी के दोहों में श्री नाथ जी के अद्भुत स्वरूपों का इस तरह वर्णन है किया गया है कि मानो यह सब सूरदास जी ने सब कुछ अपनी आंखों से देखा हो। सूरदास जी की रचनाओं में सजीवता बिखरी हुई है।
सूरदास जी ने रचनाओं में “भक्ति और श्रुंगार” को मिलाकर संयोग-वियोग जैसा दिव्य वर्णन किया है। इसके अलावा सूरदास जी की रचनाओं में प्रकृति का भी इस तरह वर्णन किया गया है कि जो मन को भाव-विभोर करता है और हर किसी को भगवान की भक्ति की तरफ आर्कषित करता है।
सूरदास जी की रचनाओं में श्री कृष्ण के प्रति गहरा भाव देखने को मिलता है, जो कि बेहद लुभावनी है।
इसके अलावा यशोदा मैया के पात्र के शील गुण पर सूरदास जी द्धारा लिखे चित्रण काफी सराहनीय है। सूरदास जी की कविताओं में पूर्व कालीन आख्यान, और ऐतिहासिक स्थानों का भी वर्णन किया गया है।
अष्टछाप के कवियों में सूरदास जी सर्वश्रेष्ठ कवि माने गए हैं, आपको बता दें कि अष्टछाप का संगठन वल्लभाचार्य के बेटे विट्ठलनाथ ने किया था।
सूरदास जी की रचनाएं – Surdas Bhajans
सूरदास जी द्वारा लिखित 5 ग्रन्थ बताएं जाते हैं। जिनमें से सूर सागर, सूर सारावली और साहित्य लहरी, नल-दमयन्ती और ब्याहलो के प्रमाण मिलते हैं। सूरसागर में करीब एक लाख पद होने की बात कही जाती है। लेकिन वर्तमान संस्करणों में करीब 5 हजार पद ही मिलते हैं। सूर सारावली में 1107 छन्द हैं।
इसकी रचना संवत 1602 में होने का प्रमाण मिलता है। वहीं साहित्य लहरी 118 पदों की एक लघु रचना है। रस की दृष्टि से यह ग्रन्थ श्रृंगार की कोटि में आता है। सूरदास जीं ने अपने अधिकतर पद ब्रज भाषा में लिखे हैं। सूरदास जी के 5 ग्रंथों के बारे में नीचे वर्णन किया गया है जो कि इस प्रकार है।
सूरसागर(Sursagar)
सूरसागर, सूरदास जी का सबसे मशहूर ग्रंथ है। इस ग्रंथ में सूरदास ने श्री कृष्ण की लीलाओं का बखूबी वर्णन किया है। इस ग्रंथ में सूरदास जी के कृष्ण भक्ति के सबसे ज्यादा सवा लाख पदों का संग्रह होने की बात कही जाती हैं। लेकिन अब केवल सात से आठ हजार पद का ही अस्तित्व बचा हैं। सूरसागर की अलग-अलग जगहों पर सिर्फ 100 से ज्यादा कॉपियां ही प्राप्त हुईं हैं।
वहीं इस ग्रंथ की जितनी भी कॉपियां मिली है। वह सभी 1656 से लेकर 19वीं शताब्दी के बीच तक की हैं।
आपको बता दें कि सूरदास के सूरसागर में कुल 12 अध्यायों में से 11 संक्षिप्त रूप में और 10वां स्कन्ध काफी विस्तार से मिलता हैं। इस रस में इसमें भक्तिरस की प्रधानता हैं।
सूरसारावली(Sursaravali)
सूरदास के सूरसारावली भी प्रमुख ग्रंथों में से एक है। इसमें कुल 1107 छंद हैं। सूरदास जी ने इस ग्रन्थ की रचना 67 साल की उम्र में की थी। यह पूरा एक “वृहद् होली” गीत के रूप में रचित है। वहीं इस ग्रंथ में सूरदास जी की श्री कृष्ण के प्रति अलौकिक प्रेम देखने को मिलता है।
साहित्य-लहरी (Sahitya-Lahri)
साहित्यलहरी सूरदास का जी का अन्य प्रसिद्ध काव्य ग्रंथ है। इस ग्रंथ में पद्य लाइनों के माध्यम से कई तरह की कृष्णभक्ति की कई रचनाएं प्रस्तुत की हैं। साहित्यलहरी 118 पदों की एक लघुरचना हैं।
इस ग्रन्थ की सबसे खास बात यह हैं इसके आखिरी पद में सूरदास ने अपने वंशवृक्ष के बारे में बताया हैं। जिसके अनुसार सूरदास का नाम “सूरजदास” हैं और वह चंदबरदाई के वंशज हैं। सूरदास जी के ये ग्रंथ श्रृंगार रस की कोटि में आता है।
नल–दमयन्ती(Nal-Damyanti)
नल-दमयन्ती सूरदास की कृष्ण भक्ति से अलग एक महाभारतकालीन नल और दमयन्ती की कहानी हैं।
ब्याहलो (Byahlo)
ब्याहलो सूरदास का नल-दमयन्ती की तरह एक अन्य मशहूर ग्रन्थ हैं। जो कि उनके भक्ति रस से अलग हैं।
सूरदास जी की मृत्यु – Surdas Death
सूरदास जी के जन्म की तरह मृत्यु के बारे में भी कई मतभेद है। सूरदास जी ने भक्ति के मार्ग को ही अपनाया। सूरदास जी ने अपने जीवन के आखिरी पल ब्रज में गुजारे। कई विद्धानों के मुताबिक सूर का निधन 1642 में हुआ था।
इस तरह महान कवि सूरदास जी का पूरा जीवन श्री कृष्ण की भक्ति को समर्पित था।
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Hloo frnds…
Ek satya ye bi hai ki surdas g janam SE andhe nhi the. Unhone apni ankhye khud tyag di thi . ek bhut bda reason tha iske piche
It would be really interesting to know the reason mohit!! 🙂
Pad ke bahuymaja aaya
Bahut achha lga padh ke itne purane log ka share kiya post.thank you so much
Good line iam very happy
Thoda eses bada biography dijiye