India’s First Female Truck Mechanic
आपने बहुत सी कामयाबी की कहानियां सुनी होंगी लेकिन अक्सर हम उन्ही कहानियों को कामयाब मानते है जिनमें अंत में कदमों में नाम और शौहरत आ जाती है। लेकिन असल कामयाबी की कहानियां वो होती है जो समाज में बदलाव की नींव रखती है और जिनका संघर्ष जीवन भर चलता रहता है। ऐसी ही एक कहानी है शांति देवी – Shanti Devi की। एक ऐसी महिला की जिन्हें आज लोग भारत की पहली ट्रैक मैकनिक के तौर पर जानते है।
भारत की पहली ट्रैक मैकनिक शांति देवी की कहानी…..
हालांकि एक ट्रैक मैकनिक होना कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन एक महिला का ट्रैक मैकनिक होना जरुर बहुत बड़ी बात है क्योंकि जिस समाज में महिलाओं को हमेशा से पुरुषों के मुकाबले शारीरिक रुप से कमजोर समझा जाता हो उस समाज में किसी महिला का ट्रैक के बड़े टॉयर उठाना और ट्रैकों को ठीक करना थोड़ा असंभव सा लगता है लेकिन बदलाव की शुरुआत कहीं ना कही से होती है और ऐसे ही बदलाव अक्सर इतिहास लिख जाते है।
शांति देवी मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव से थी जहां पर लड़कियों के लिए समाज की सोच काफी पिछड़ी हुई थी। शांति देवी की तीन बहने ओर थी शांति देवी के अनुसार उन्हें पढ़ने का शौक था लेकिन घर की आर्थिक स्थिति को देखते हुए घरवालों ने स्कूल बीच ही छुड़ावा दिया और एक फैक्ट्ररी में काम पर लगा दिया। हालांकि शांति देवी का भाई स्कूल जाता था। शांति देवी ने जो काम करके पैसे कमाए उन्ही पैसों से उनके माता पिता ने कम उम्र में उनकी शादी कर दी।
शांति देवी को लगा चलो शादी के बाद शायद उनकी जिंदगी बदल जाएगी। लेकिन शादी के बाद उनकी जिंदगी ओर बुरी हो गई। शांति देवी के पति उनको बहुत मारते थे। लेकिन फिर भी शांति देवी सबकुछ सहती रही। लेकिन एक दिन उनके पति ने लालच में आकर उन्हें ही बेचने की ठान ली। शांति देवी अपने पति के घर से भागकर अपने बच्चों के साथ अपनी नंद के यहां दिल्ली आ गई। और गुजरे के लिए एक फैक्ट्ररी में काम करने लगी। काफी सालों तक फैक्ट्ररी में काम करने के बाद उनकी जान पहचान श्यामलाल से हुई जो वहीं रिक्शा चलाते थे। उनकी भी पहली पत्नी का देहांत हो चुका था। शांति देवी श्यामलाल से दूसरी शादी की।
लेकिन परिवार बड़ा होने की वजह से घर का गुजारा मुश्किल हो रहा था। इसलिए शांति देवी ने अपने बचाए हुए पैसों से अपने पति के साथ मिलकर एक छोटी सी चाय की दुकान खोली साथ ही ट्रैक रिपेरिंग की दुकान खोली।
शुरुआत में ट्रैक मैकनिक के लिए एक व्यक्ति को शांति देवी के पति ने नौकरी पर रखा था। लेकिन इसी दौरान शांति देवी ने भी ट्रैक मैकनिक का सारा काम सीख लिया और मैकनिक के नौकरी छोड़ने के बाद खुद ही ट्रैक मैकनिक का काम करने लगी।
शांति देवी पिछले 22 सालों से समयपुर बादली में ट्रक मैकनिक का काम कर रही है। और हजारों युवाओं के लिए एक उदाहरण है जो थोड़े में ही हिम्मत खो बैठते है। हम लोगों को शायद शांति देवी से ये समझना जरुरी है कि कामयाबी की कहानी लिखने के लिए हार को भी जीत में बदलना आना चाहिए।
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