पूरा नाम – सत्यजित राय सुकुमार राय
जन्म – 2 मे 1921
जन्मस्थान – कलकत्ता
पिता – सुकुमार राय
माता – सुप्रभा राय
सत्यजित राय की जीवनी / Satyajit Ray Biography In Hindi
सत्यजित राय भारतीय फिल्म निर्माता थे जो 20 वी शताब्दी में अपनी महानतम फिल्म निर्माणों के लिये जाने जाते है. राय का जन्म कलकत्ता के बंगाली परिवार में हुआ था, उनका परिवार कला और साहित्य से जुड़ा हुआ था. उन्होंने एक कमर्शियल आर्टिस्ट के रूप में अपने करियर की शुरुवात की थी.
बाद में फ्रेंच फिल्म निर्माता जीन रेनिओर और वित्टोरियो दे सिका की इटालियन फिल्म बाइसिकल थीव्स (1948) में लन्दन यात्रा के बाद वे एक बेहतरीन भारतीय फिल्म निर्माता बने.
सत्यजित राय / Satyajit Ray ने 37 फिल्मो का निर्देशन किया है, जिनमे फीचर फिल्म, डाक्यूमेंट्री और लघु फिल्म शामिल है. इसके साथ ही वे काल्पनिक कहानी लेखक, प्रकाशक, चित्रकार, सुलेखक, संगीत कंपोजर, ग्राफ़िक डिज़ाइनर भी थे.
उन्होंने बहोत सी लघु कथाये और उपन्यास और बच्चो पर आधारित किताबे भी लिखी है. फेलुदा, द स्लयूथ और प्रोफेसर शोंकू उनकी कहानियो के कुछ प्रसिद्ध पात्र है. ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा उन्हें डिग्री से भी सम्मानित किया गया है.
सत्यजित राय की पहली फिल्म पथेर पांचाली (1995) ने बहोत से इंटरनेशनल अवार्ड जीते जिसमे 1956 के कैनंस फिल्म फेस्टिवल में दिया गया बेस्ट ह्यूमन डाक्यूमेंट्री अवार्ड भी शामिल है. इस फिल्म के साथ अपराजितो (1956) और अपुर संसार (1959) को भी कई पुरस्कार मिले.
राय खुद स्क्रिप्टिंग, कास्टिंग, स्कोरिंग और एडिटिंग और डिजाइनिंग करते थे. अपने फ़िल्मी करियर में राय को बहोत से पुरस्कार मिले, जिसमे दादासाहेब फालके पुरस्कार, 32 इंडियन नेशनल फिल्म अवार्ड, कुछ इंटरनेशनल फिल्म अवार्ड और 1992 में दिया गया अकादमी पुरस्कार शामिल है. 1992 में ही भारत सरकार ने उन्हें भारत के सर्वोच्च पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया था.
सत्यजित राय का जीवन और करियर – Satyajit Ray Life And Career
सत्यजित राय का जन्म कलकत्ता में हुआ था. उनके पिता का नाम सुकुमार और उनकी माता का नाम सुप्रभा राय था. जिस समय सत्यजित राय केवल तीन साल के थे तभी उनके पिता सुकुमार राय की मृत्यु हो गयी थी और उनके परिवार का गुजारा सुप्रभा सत्यजित राय की अत्यल्प (बहुत कम) कमाई से होता था.
राय ने कलकत्ता के बल्लीगुंग गवर्नमेंट हाई स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की और प्रेसीडेंसी कॉलेज, कलकत्ता से ही उन्होंने इकनोमिक में बी.ए की पढाई पूरी की. पहले से ही सत्यजीत को कला क्षेत्र में काफी रूचि थी.
1940 में, उनकी माता चाहती थी की सत्यजीत अपनी पढाई रबिन्द्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित विश्व भारती यूनिवर्सिटी से करे. सत्यजित राय को कलकत्ता से बहोत प्यार था इसीलिये वे कभी इसे छोड़कर नही जाना चाहते थे, लेकिन फिर भी अपनी माँ के जबरदस्ती करने के बाद उन्हें शान्तिनिकेतन भेजा गया.
शान्तिनिकेतन में सत्यजित राय के कला की काफी प्रशंसा की गयी थी. बाद में जानकारों के अनुसार उन्होंने प्रसिद्ध पेंटर नंदलाल बोस और बेनोड़े बहरी मुखर्जी से काफी कुछ सिखा. बाद में उन्होंने मुखर्जी पर आधारित एक डाक्यूमेंट्री फिल्म ‘द इनर ऑय’ बनाई. भारतीय कला को पहचानने में अजंता, एल्लोरा और एलीफेंटा ने उनकी काफी सहायता की.
1943 में सत्यजित राय ने ब्रिटिश एडवरटाइजिंग एजेंसी डी.जे. केमेर में “जूनियर विसुअलायज़र” के पद पर काम किया और उस काम के लिये उन्हें महीने के 80 रुपये मिलते थे. उन्हें विसुअल डिजाईन काफी पसंद था लेकिन फर्म में ब्रिटिश और भारतीय कर्मचारियों के बीच हमेशा कुछ ना कुछ मतभेद रहता था.
राय के अनुसार ब्रिटिश कर्मचारियों को ज्यादा पैसे दिये जाते थे. बाद में राय सिग्नेट प्रेस के लिये भी काम करते थे जिसे डी.के. गुप्ता ने शुरू किया था.
तभी गुप्ता ने राय से सिग्नेट प्रेस की किताब का कवर डिजाईन करने के लिये कहा और उन्होंने राय को पूरी आर्टिस्टिक आज़ादी दे दी. राय ने बाद में बहोत सी किताबो के कवर को डिजाईन किया जिसमे मुख्य रूप से जिबनानंदा दास की बनलता सेन और रूपसी बंगला, बिभूतिभूषण बनद्योपाध्याय की चंदर पहर, जिम कॉर्बेट की मनेअटेर्स ऑफ़ कुमाओं (Maneaters of Kumaon) और पंडित जवाहरलाल नेहरु की डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया शामिल है.
उन्होंने पथेर पांचाली के चिल्ड्रेन वर्जन पर भी काम किया है, जो की बिभूतिभूषण बनद्योपाध्याय का बंगाली उपन्यास है. वे किताबो के कवर को डिजाईन करने के साथ-साथ उसपर चित्रकारी भी करते थे, राय के कामो की काफी प्रशंसा की जाती थी.
चिदानंदा दासगुप्ता और दुसरे सहकर्मियों के साथ मिलकर राय ने 1947 में कलकत्ता फिल्म सोसाइटी की स्थापना की. उन्होंने मिलकर बहोत सी विदेशी फिल्मो को स्क्रीन भी किया है, जिनमे से बहोत सी फिल्मो को राय ने स्वयं देखा और उनपर अभ्यास भी किया है.
अपने द्वारा स्थापित कलकत्ता फिल्म सभा में उन्होंने कई विदेशी फिल्मे भी देखि है. उन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध में कोलकाता में स्थापित अमेरिकन सैनिको से दोस्ती कर ली जो उन्हें शहर में दिखाई जा रही नयी-नयी फिल्मो के बारे में सुचना देते थे.
1949 में राय ने दूर की रिश्तेदार और लम्बे समय से उनकी प्रियतमा बिजोय राय से विवाह किया.
1950 में डी.जे. केमर ने राय को एजेंसी के मुख्यालय लन्दन भेजा. लन्दन में बिताये तीन महीनो में राय ने 99 फिल्मे देखी. जिनमे मुख्य रूप से वित्तोरियो दे सिका की नवयथार्थवादी फिल्म लाद्री दी ब्रिसिक्लेते (बाइसिकल चोर) जिसने उन्हें अन्दर से काफी प्रभावित किया. सत्यजित राय ने बाद में बताया की जब उन्होंने इन फिल्मो को देखा तभी उन्होंने फिल्म निर्देशक बनने का निर्णय लिया.
सत्यजित राय के अवार्ड और सम्मान – Satyajit Ray Awards
सत्यजित राय को अपने जीवन में बहोत से पुरस्कार मिले जिनमे भारत सरकार द्वारा दिए गये 32 नेशनल फिल्म अवार्ड और इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल अवार्ड भी शामिल है.
1979 के 11 वे मोस्को इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में सिनेमा के क्षेत्र में उनके अतुल्य योगदान के लिये उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था. बर्लिन इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में वो बेस्ट डायरेक्टर के सिल्वर बियर अवार्ड एक से ज्यादा बार जीतने वाले तीन डायरेक्टरो में से एक और गोल्डन बियर पुरस्कार के लिये सबसे ज्यादा बार उनका नाम निर्देशन भी किया गया था.
वेनिस फिल्म फेस्टिवल में, जहा इससे पहले भी उन्हें अपराजितो (1956) के लिये गोल्डन लायन अवार्ड मिला था वहा 1982 में उन्हें पुनः गोल्डन लायन पुरस्कार से सम्मानित किया गया. उसी साल उन्हें 1982 के कैनंस फिल्म फेस्टिवल में “होमेज ए सत्यजित राय” अवार्ड से सम्मानित किया गया.
सत्यजित राय दुसरे फिल्म चरित्र है जिन्हें ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी ने डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया था.
1985 में उन्हें दादासाहेब फालके पुरस्कार भी दिया गया था और 1987 में फ्रांस के राष्ट्रपति द्वारा उनका सत्कार भी किया गया था. 1965 में उनकी उपलब्धियों को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण और उनकी मृत्यु के कुछ समय पहले ही भारत के सर्वोच्च पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया था.
द अकादमी ऑफ़ मोशन पिक्चर आर्ट्स एंड साइंस ने 1992 में उन्हें लाइफ टाइम अचीवमेंट के लिये ऑस्कर पुरस्कार से सम्मानित किया था. शारीरिक बीमारी के चलते वे उस समय अवार्ड फेस्टिवल में तो उपस्थित नही हो पाए थे लेकिन विडियो के जरिये उन्होंने अपना भाषण जरुर दिया था.
1992 में सेन फ्रांसिस्को इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में उन्हें अकिरा कुरोसावा अवार्ड दिया गया. जिसे उनकी तरफ से शर्मीला टैगोर ने स्वीकार किया था.
1992 में ही साईंट एंड साउंड क्रिटिक ने उन्हें दुनिया के “टॉप टेन डायरेक्टर” की सूचि में 7 वे पायदान पर रखा. 2002 में सभी समय के प्रसिद्ध और चहेते डायरेक्टर की सूचि में साईंट एंड साउंड क्रिटिक ने उन्हें 22 वे पायदान पर रखा. उस समय के वे एशिया के चौथे सर्वोच्च डायरेक्टर थे.
1996 में एंटरटेनमेंट वीकली मैगज़ीन ने राय को “ग्रेटेस्ट 50 डायरेक्टर” की सूचि में 25 वे पायदान पर रखा. उसी तरह 2007 में टोटल फिल्म मैगज़ीन ने राय को “100 ग्रेटेस्ट फिल्म डायरेक्टर एवर” की सूचि में भी शामिल किया.
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Mujhe ek sacche kalakar ke bare me maine zaana
Satyajit Roy ki Shiksha Nahi bata rakhi
mujhe mere exam ka tyaar hogya thanks