भारत कोकिला सरोजनी नायडू उस अमर आत्मा का नाम है, जिसने भारत की आजादी के संग्राम में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। सरोजनी नायडू उन क्रांतिकारी महिलाओं में से एक थी, जिन्होंने गुलाम भारत को आजादी दिलाने के लिए काफी संघर्ष किया है।
आपको बता दें कि सरोजनी नायडू ना केवल एक अच्छी राजनीतिज्ञ और महान स्वतंत्रता सेनानी थी बल्कि वो एक फेमिनिस्ट, कवियत्री और अपने दौर की एक महान वक्ता थी। जिन्हें सुनकर बड़े- बड़े दिग्गज भी मंत्रमुग्ध हो जाया करते थे। इसके अलावा वे इंडियन नेशनल कांग्रेस की पहली प्रेसिडेंट थी।
इसके साथ ही वह भारत के उत्तरप्रदेश के राज्यपाल के रूप में नियुक्त होने वाली पहली भारतीय महिला थी। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी एक सक्रिय सहभागिता रही है।
उन्हें भारत की नाइटिंगेल या भारतीय कोकिला भी कहा जाता हैं। उनकी कविता में बच्चों की कविताओं, प्रकृति कविताओं, देशभक्ति कविताओं और प्यार और मृत्यु की कविताएं शामिल हैं, लेकिन वह खासकर बच्चों के ऊपर, कविताएं लिखने के लिए मशहूर थी।
उनकी हर कविता पढ़कर ज्यादातर लोग अपने बचपन में खो जाते हैं या फिर उनके कविता में एक चुलबुलापन होता था, उनकी कविताओं में उनके अंदर के बचपन की झलक भी साफ देखी जा सकती है। इसलिए उन्हें ‘भारत की बुलबुल’ भी कहा जाता है।
आपको बता दें कि इस महान कवियित्री ने महज 12 साल की उम्र में ही अपनी प्रतिभा का परिचय दे दिया था, इस नन्हीं बच्ची की कविता पढ़कर हर कोई आश्चर्यचकित रह जाता था, उन्होंने तभी बड़े अखबारों में आर्टिकल और कविताएं लिखना शुरु कर दिया था।
उनके अंदर देश प्रेम की भावना भी कूट-कूट कर भरी थी यही वजह है कि सरोजिनी नायडू ने राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल होकर गांधी जी का आह्वान भी किया और उनके साथ लोकप्रिय नमक मार्च में भी सहयोग किया। सरोजिनी की बेटी पद्मजा भी स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हुईं और भारत छोड़ो आंदोलन का हिस्सा रही।
जब भी भारत की महान क्रांतिकारी महिलाओं की बात होती है तो सरोजनी नायडू का नाम सबसे पहले याद किया जाता है। सरोजनी नायडू सभी भारतीय महलिाओं के लिए एक आदर्श हैं –
भारत कोकिला सरोजिनी नायडू का जीवन परिचय | Sarojini Naidu Biography in Hindi
पूरा नाम (Name) | सरोजिनी नायडू |
जन्म (Birthday) | 13 फ़रवरी, 1879,हैदराबाद, आंध्र प्रदेश |
मृत्यु (Death) | 2 मार्च, 1949, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश |
पति (Husband Name) | डॉ. एम. गोविंदराजलु नायडू |
संतान (Children) | जयसूर्य, पद्मजा नायडू, रणधीर और लीलामणि |
विद्यालय (Education) | मद्रास विश्वविद्यालय, किंग्ज़ कॉलेज लंदन, गर्टन कॉलेज, कैम्ब्रिज |
नागरिकता | भारतीय |
पुरस्कार – उपाधि (Award) | केसर-ए-हिन्द |
रचनाएँ (Books) | द गोल्डन थ्रेशहोल्ड, बर्ड आफ टाइम, ब्रोकन विंग |
प्रारंभिक जीवन, परिवार और शिक्षा –
भारत की महान क्रांतिकारी सरोजिनी नायडू 13 फरवरी साल 1879 में एक बंगाली परिवार में जन्मी थी। उनके पिता का नाम अघोरनाथ चट्टोपध्याय था जो कि वैज्ञानिक, शिक्षाशास्त्री, डॉक्टर और शिक्षक थे। उन्होंने हैदराबाद के निज़ाम कॉलेज की स्थापना की थी।
हालांकि उनके पिता को बाद में प्रिंसिपल पद से हटा दिया गया था। इसके साथ ही वे इंडियन नेशनल कांग्रेस हैदराबाद के पहले सदस्य भी बने थे। जिन्होंने अपनी नौकरी को छोड़ दिया था और फिर बाद में आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थे। स्वतंत्रता सेनानी सरोजिनी नायडू की माता का नाम वरद सुंदरी देवी था जो कि बंगाली भाषा में कविताएं लिखा करती थी।
आपको बता दें कि सरोजनी नायडू के 8 भाई-बहन थे जिनमें वह सबसे बड़ी थी। उनके एक भाई वीरेंद्रनाथ चट्टोपाध्याय एक क्रांतिकारी थे, जिन्होंने बर्लिन कमेटी में अपनी अहम भूमिका निभाई थी, जिन्हें 1937 में एक अंग्रेज ने मार डाला था।
जबकि सरोजनी नायडू के दूसरे भाई हरिन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय एक जाने-माने कवि, कथाकार और कलाकार थे जो कि सफल प्लेराईटर भी थे। वहीं उनकी बहन सुनालिनी देवी भी एक अच्छी डांसर और एक्ट्रेस थी।
आपको बता दें कि सरोजिनी नायडू बचपन से ही एक होनहार छात्रा थीं, जिन्हें उर्दू, तेलगू, इंग्लिश, बांग्ला और फारसी भाषा का अच्छा ज्ञान था।
महज 12 साल की छोटी उम्र में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास कर ली थी। उन्होंने मद्रास प्रेसीडेंसी में पहला स्थान हासिल किया था। आपको बता दें कि देश के लिए खुद को सर्मपित करने वाली महान क्रांतिकारी महिला सरोजनी नायडू के पिता अघोरनाथ चट्टोपध्याय चाहते थे कि वो गणितज्ञ या वैज्ञानिक बने लेकिन सरोजनी जी को बचपन से ही कविताएं लिखने का शौक था।
कविताएं लिखने का गुण सरोजनी जी में अपनी मां से आया था। उन्होंने बचपन में 1300 लाइन की कविता लिख डाली थी। उनकी कविता हर किसी को अपनी तरफ प्रभावित करती थी। वहीं उनकी कविता से हैदराबाद के निज़ाम भी बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने सरोजिनी नायडू को विदेश में पढ़ने के लिए भी छात्रवृत्ति दी थी।
वह जब वे 16 साल की उम्र में इंग्लैंड गईं थी तो वहां पहले उन्होंने किंग्स कॉलेज लंदन में एडमिशन लिया था। उसके बाद उन्होंने कैम्ब्रिज के ग्रिटन कॉलेज से शिक्षा हासिल की थी। जहां उनकी मुलाकात उस समय के इंग्लिश के प्रसिद्ध कवि आर्थन साइमन और इडमंड गोसे से हुई थी। जिन्होंने सरोजिनी जी को भारतीय विषयों को ध्यान में रख कर लिखने और डेकन (दक्षिण के पठार) की भारतीय कवियित्री बनने की सलाह दी।
इसके बाद महान कवियित्री सरोजनी जी को भारत के पर्वतों, नदियों, मंदिरों और सामाजिक परिवेश को भी अपनी कविता में समाहित करने की प्रेरणा मिली। वहीं आगे चलकर सरोजनी भारत की एक महान कवियित्री बनी जिन्होंने अपनी कविताओं से लाखों दिलों में अपनी एक अलग जगह बनाई।
विवाह –
भारत की महान कवियित्री सरोजनी नायडू जब इंग्लैंड में अपनी पढ़ाई कर रही थी, उसी दौरान उनकी मुलाकात गोविंद राजुलू नायडू से हुई थी, तभी सरोजिनी को उनसे प्रेम हो गया था। आपको बता दें कि वो उस समय इंग्लैंड में फिजिशयन बनने गए थे। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद भारत लौटने पर सरोजनी जी ने परिवारजनों की आशीर्वाद के साथ महज 19 साल की उम्र में उनसे शादी कर ली थी।
साल 1898 में उनका विवाह ब्राह्मो मेरिज एक्ट (1872) के तहत मद्रास में हुआ था। उन्होंने अंर्तजातीय विवाह (इंटर-कास्ट मैरिज) किया था यानि कि दूसरी कास्ट में शादी की थी और उस समय अन्य जाति से शादी करना एक गुनाह से कम नहीं था क्योंकि तब अंतर-जातीय विवाह को भारतीय समाज में मान्यता नहीं मिली थी।
यह एक तरह का क्रांतिकारी कदम था, इसके लिए उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा था, लेकिन उनके पिता ने समाज की परवाह नहीं करते हुए अपनी निडर और होनहार बेटी सरोजनी का इसमें पूरा सहयोग दिया था।
इस तरह विपरीत परिस्थितियों के बाद भी उनका वैवाहिक जीवन सफल रहा था और इस शादी ने उन्हें चार संतान जयसूर्या, पदमजा, रणधीर और लीलामणि हुए थे। वहीं सरोजिनी जी की बेटी पद्दाजा उनकी तरह एक कवित्री बनी। इसके साथ ही वे राजनीति में भी उतरी और साल 1961 में पश्चिम बंगाल की गर्वनर बनी।
राजनीतिक जीवन और स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका –
सरोजनी जी सामान्य महिलाओं से एकदम अलग थी, उनके अंदर हमेशा से ही कुछ करने का जज्बा था, इसलिए उन्होंने अपने लिखने के काम को विवाह के बाद भी जारी रखा। वहीं उनकी कविताओं के प्रशंसकों में धीमे-धीमे बढ़ोतरी भी होने लगी थी और उनकी लोकप्रियता बढ़ने लगी थी। वह कविता लिखने की मास्टर थी उन्हें साहित्य की अच्छी समझ थी।
वे अपने ईर्द-गिर्द की चीजें या फिर भारत की प्रकृति समेत अन्य विषय से संबंधित चीजों का बखान अपनी कविताओं के माध्यम से बेहद सुंदर ढंग से किया करती थीं।
उनकी कविताओं को लोग बेहद पसंद करते थे और गाने के रूप में गाते थे। साल 1905 में उनकी कविता बुल बुले हिन्द प्रकाशित हुई जिसके बाद सरोजनी जी की लोकप्रियता और भी ज्यादा बढ़ गई। इसके बाद लगातार उनकी एक के बाद एक कविता प्रकाशित होने लगी, जिसके चलते उन्होंने लोगों के बीच अपने लिए जगह बना ली थी।
आपको बता दें कि उनके प्रशंसकों की लिस्ट में जवाहरलाल नेहरू, रवीन्द्रनाथ टैगोर जैसे महान लोग भी शामिल थे। वहीं सरोजनी जी अपनी कविताएं इंग्लिश में भी लिखती थी। उनकी कविताओं में भारत की संस्कृति की अनोखी झलक भी दिखती है।
महान कवियित्री सरोजनी नायडू की मुलाकात जब भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी गोपाल कृष्ण गोखले से हुई तो उनकी जिंदगी में काफी बदलाव आया। दरअसल गोखले जी ने सरोजनी नायडू से अपनी कलम की ताकत आजादी की लड़ाई में दिखाने के लिए कहा।
गोखले जी ने महान कवियित्री सरोजनी जी को अपनी बुद्धि और शिक्षा को पूरी तरह से देश को समर्पित करने की सलाह भी दी। इसके साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि वे क्रांतिकारी कविताएं लिखे और आजादी की लड़ाई में छोटे गांव के लोगों को प्रोत्साहित करें, जिससे गुलामी का दंश झेल रहे लोग स्वतंत्र भारत में चैन की सांस ले सके और इस लड़ाई में अपनी भागीदारी शामिल कर सकें।
जिसके बाद सरोजनी जी ने गोखले जी की बात को गहराई से सोचा और अपने प्रोफेशनल लेखन को बंद कर खुद को राजनीति में पूरी तरह समर्पित कर दिया।
आपको बता दें कि साल 1905 में बंगाल के विभाजन के दौरान महान क्रांतिकारी महिला सरोजनी नायडू भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल हुईं थी, वहीं इससे वे काफी आहत भी हुईं थी। इसके बाद उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने का फैसला लिया था।
देश की आजादी के लिए वे एक सच्चे देश भक्त की तरह लगातार कोशिश करती रहती थी। लोगों को अंदर देश की आजादी का जुनून भरने के लिए वह पूरे देश में घूमी और लोगों के अंदर देश-प्रेम की भावना विकसित करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
सरोजनी नायडू ने मुख्य रूप से महिलाओं के अंदर देश को आजाद करवाने के लिए क्रांतिकारी विचार प्रकट किए। आपको बता दें कि जब सरोजनी नायडू महिलाओं के अंदर इस तरह के क्रांतिकारी विचारों के बीज बो रहीं थी, उस समय महिलाओं घर की चार दीवारी के अंदर घूंघट में रहती थी।
अर्थात उस दौर में महिलाओं की स्थिति कफी पिछड़ी हुई थी। ऐसे में स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेना तो दूर महिलाओं को घर से बाहर निकलने तक की इजाजत नहीं थी।
ऐसे में सरोजनी जी के लिए महिलाओं को रसोईघर से बाहर निकालकर देश की आजादी की लड़ाई में भागीदारी के लिए प्रोत्साहित करना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं थी लेकिन सरोजनी जी ने बेहद प्रभावशाली तरीके से महिलाओं को देश की आजादी की लड़ाई में आगे आने के लिए प्रोत्साहित किया था।
वे इसके लिए गांव-गांव में जाकर महिलाओं को उनके अधिकारों के बारे समझाती थी और अपने विचारों से उन्हें आगे बढ़ने के लिए उत्साहित करती थीं। इसके साथ ही उन्होंने महिला सशक्तिकरण और उनके अधिकारों के लिए भी अपनी आवाद बुलंद की थी।
वहीं साल 1916 में जब वे भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से मिलीं तो वे उनके विचारों से अत्याधिक प्रभावित हुईं और उनकी सोच पूरी तरह से बदल गई। सरोजनी जी, महात्मा गांधी को अपना आदर्श मानने लगी थी, उन्होंने गांधी जी से प्रेरणा लेकर अपनी पूरी ताकत देश को आजाद करवाने में लगा दी।
साल 1919 में क्रूर ब्रिटिश शासको द्धारा रॉलेट एक्ट पारित किया गया, जिसके तहत राजद्रोह दस्तावेजों का कब्जा अवैध माना गया था, तो महात्मा गांधी ने इस एक्ट के विरोध में असहयोग आंदोलन का नेतृत्व किया था।
जिसमें सरोजनी नायडू ने गांधी जी का पूर्ण समर्थन दिया और गांधी जी की शांतिपूर्ण नीति और अहिंसावादी विचारों का पालन किया था। इसके अलावा उन्होंने मोंटगु- चेम्सफोर्ड सुधार, खिलाफत आंदोलन, साबरमति संधि, सत्याग्रह और नागरिक अवज्ञा आंदोलन जैसे अन्य आंदोलनों का भी समर्थन किया।
यही नहीं सविनय अवज्ञा आंदोलन में वे गांधी जी के साथ जेल भी गईं। साल 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी उन्हें 21 महीने के लिए जेल में रहना पड़ा था, इस दौरान उन्हें कई तरह की यातनाएं भी झेलना पड़ी थी। इस तरह स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उन्होंने कई दिन जेल में गुजारे और एक सच्चे देश भक्त के कर्तव्य को बखूबी निभाया।
राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष और राज्यपाल के रूप में –
सरोजनी नायडू के द्धारा आजादी की लड़ाई में दिए गए अभूतपूर्व योगदान और स्वतंत्रता संग्राम में उनकी हिस्सेदारी के बाद उनके क्रांतिकारी विचारों का गहरा प्रभाव आम जन पर पड़ा था। इस दौरान उनकी लोकप्रियता और भी ज्यादा बढ़ गई थी।
वहीं उनके विचारों ने आजाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को भी अत्याधिक प्रभावित किया था। वहीं सरोजनी जी की प्रतिभा को देखते हुए साल 1925 में उन्हें कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षा के रूप में नियुक्त किया गया था। जिसके बाद साल 1932 में वे भारत की प्रतिनिधि बनकर दक्षिण अफ्रीका भी गई थी।
आपको बता दें कि उन दिनों भारत की क्रांतिकारी महिला सरोजनी नायडू ने भारत की स्वतंत्रता के लिए भारतीयों द्धारा किए जाने वाले अहिंसक संघर्ष की बारीकियों को प्रस्तुत करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
यही नहीं उन्होंने गांधीवादी सिद्धांतों का प्रसार करने के लिए यूरोप ही नहीं बल्कि संयुक्त राज्य अमेरिका तक की यात्रा की और भारत की आजादी के बाद उत्तरप्रदेश की पहली गर्वनर (राज्यपाल) बनी।
इसके साथ ही आपको यह भी बता दें कि वे स्वतंत्र भारत की पहली महिला गर्वनर थी। देश के सबसे बड़े राज्य की राज्यपाल बनी सरोजनी नायडू ने अपने महानविचारों और गौरवपूर्ण व्यवहार से अपने राजनीतिक कर्तव्यों को बखूबी निभाया जिनके लिए आज भी उन्हें याद किया जाता है।
मृत्यु –
देश की आजादी के लिए कठोर संघर्ष करने वाली महान स्वतंत्रता सेनानी और महात्मा गांधी जी की प्रिय शिष्या सरोजनी नायडू जी को 2 मार्च, 1949 को ऑफिस में काम करते वक्त हार्ट अटैक पड़ा और उनकी मौत हो गई।
और इस तरह उन्होंने अपना पूरा जीवन देश की सेवा के लिए समर्पित कर दिया। सरोजनी नायडू जी ने अपने जीवन में काफी ख्याति और सम्मान भी अर्जित किया था। इसके साथ ही वे लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत बनी।
वहीं 13 फरवरी साल 1964 को भारत सरकार ने सरोजनी जी की जयंती के मौके पर उनके सम्मान में 15 नए पैसे का एक डाकटिकट भी जारी किया था।
साहित्यिक योगदान –
सरोजनी नायडू ने न सिर्फ महान क्रांतिकारी और एक अच्छी राजनीति के रूप में ख्याति प्राप्त की थी बल्कि वे एक अच्छी कवियत्री के रुप में भी विख्यात हुईं थी।
जिन्होंने अपनी कविताओं से न सिर्फ लोगों के अंदर क्रांतिकारी विचार पैदा किए बल्कि भारतीय संस्कृति की भी अनूठी व्याख्या की। वह बच्चों की साहित्य की स्वामी थी जो कि बाल कौतुक के रूप में मशहूर थी।
यही नहीं उनकी खूबसूरत कविताओं और गीतों की वजह से उन्हें भारत कोकिला (भारत की नाइटिंगल) के रूप में सम्मानित किया गया था।
आपको बता दें कि साल 1905 में उनकी कविताओं का संग्रह “गोल्डन थ्रेसहोल्ड” नाम के टाइटल से प्रकाशित हुआ। इसके बाद उन्होंने अपने 2 अन्य पब्लिकेशन “दी बर्ड ऑफ़ टाइम” और “दी ब्रोकन विंग्स” भी प्रकाशित किए।
जो न सिर्फ भारत के लोगों द्धारा ही पसंद किए गए बल्कि इस किताब को इंग्लैंड में भी बड़ी संख्या में पाठकों द्धारा पसंद किया गया और इसी के बाद उन्हें एक शक्तिशाली लेखिका के रूप में पहचाना जाना लगा।
प्रख्यात कवियत्री सरोजनी जी ने कविताओं के अलावा कुछ आर्टिकल और निबंध भी लिखे थे जैसे “वर्ड्स ऑफ़ फ्रीडम” जो कि उनके राजनीतिक विचारों पर आधारित थी इसके अलावा उन्होंने महिला सशक्तिकरण जैसे सामाजिक मुद्दों को अपने किताबों के माध्यम से उठाया था, जिसका समाज में गहरा प्रभाव पड़ा था। द फेदर ऑफ़ द डॉन को उनकी बेटी पद्मजा ने 1961 में एडिट करके पब्लिश करवाया था।
उनके कुछ अन्य साहित्य “दी बर्ड ऑफ़ टाइम: सोंग ऑफ़ लाइफ,डेथ एंड दी स्प्रिंग,दी ब्रोकन विंग: सोंग ऑफ़ लव, डेथ एंड स्प्रिंग,मुहम्मद जिन्ना:अन एम्बेसडर ऑफ़ यूनिटी, दी सेप्ट्रेड फ्लूट: सोंग्स ऑफ़ इंडिया, इलाहबाद: किताबिस्तान, दी इंडियन वीवर्स, फीस्ट ऑफ़ यूथ, दी मैजिक ट्री एंड दी विज़ार्ड मास्क भी काफी चर्चित और प्रख्यात रहे हैं। इसके साथ ही उनकी कुछ कविताओं में सुंदर और लयबद्ध शब्दों की वजह से उन्हें गाया भी जा सकता है।
एक नजर में –
- 13 साल की उम्र में सरोजिनी इन्होंने 1200 पंक्तियों का ‘ए लेडी ऑफ लेक’ नाम का खंडकाव्य लिखा।
- 1918 में उन्होंने मद्रास प्रांतीय संमेलन का अध्यक्ष पद भुशवाया।
- 1919 में आखिल भारतीय होमरूल लोग के प्रतिनिधि मंडल में के सदस्य इस हक़ से वो इग्लंड का दौरा कर के आया।
- 1930 में महात्मा गांधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरु किया। गुजरात के धारासना यहाँ का ‘नमक सत्याग्रह’, का नेतृत्व सरोजिनी नायडु इन्होंने बड़े धैर्य के साथ किया।
- 1942 के ‘चले जाव’ आंदोलन में उन्होंने हिस्सा लिया और जेल गयी।
- 1947 में उन्होंने दिल्ली में हुयें आशियायी परिषद् का अध्यक्ष स्थान भुशवाया।
- 1947 में स्वतंत्र भारत में के उत्तर प्रदेश के पहली राज्यपाल के रूप में उन्हें चुना गया।
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