Sanchi Stupa – साँची का बौद्ध विहार, महान स्तूप के लिये प्रसिद्ध है जो भारत के मध्यप्रदेश राज्य के रायसेन जिले के साँची शहर में स्थित है और भोपाल से उत्तर-पूर्व में 46 किलोमीटर दूर है। साँची स्तूप – Sanchi Stupa के निर्माण कार्य का कारोबार अशोक महान की पत्नी देवी को सौपा गया था, जो विदिशा के व्यापारी की ही बेटी थी।
साँची उनका जन्मस्थान और उनके और सम्राट अशोक महान के विवाह का स्थान भी था। पहली शताब्दी में वहाँ चार आभूषित द्वार बनाये गए थे। साँची के स्तूप का निर्माण मौर्य के समय में ईंटो से किया गया था।
महान साँची स्तूप का इतिहास / Sanchi Stupa History In Hindi
मौर्य पीरियड –
साँची का महान स्तूप भारत की सबसे प्राचीन संरचनाओ में से एक है और असल में तीसरी शताब्दी में सम्राट अशोक महान ने इसे बनवाया था।
इसका नाभिक अर्धगोल ईट संरचना में बौद्ध के अवशेषों के आधार पर बनाया गया है। इसे छत्र का ताज भी पहनाया गया है, यह छत्र बुद्धा की उच्चता को दर्शाता है।
वहाँ रत्नों से आभूषित एक पिल्लर भी स्थापित किया गया है। पिल्लर के उपरी भाग को पास ही के चंदवा में भी रखा गया है। यह पिल्लर अशोक का ही शिलालेख था और गुप्त के समय में शंख लिपि से बनने वाले आभूषण भी इसमें शामिल है।
शुंगा पीरियड –
वास्तविक ईंटो के स्तूप को बाद में शुंगा के समय में पत्थरो से ढँका गया था। अशोकवादना के आधार पर, ऐसा माना गया था की स्तूप को दूसरी शताब्दी में कही-कही पर तोडा-फोड़ा गया था, शुंगा साम्राज्य के विस्तार को लेकर ऐसा माना जाता है की शुंगा के सम्राट ने पुष्यमित्र शुंगा ने मौर्य साम्राज्य का आर्मी जनरल बनकर उसे अपना लिया था।
ऐसा कहा जाता है की पुष्यमित्र ने ही वास्तविक स्तूप को क्षति पहुचाई थी और तोड़-फोड़ की थी और उनके बेटे अग्निमित्र ने इसका पुनर्निर्माण करवाया था। बाद में शुंगा के शासनकाल में ही, स्तूप को पत्थरो से सजाया गया और अब स्तूप अपने वास्तविक आकर से और भी ज्यादा विशाल हो गया था।
एक मध्य भाग में एक चक्र भी लगा हुआ था जिसे स्थानिक लोग धर्म चक्र भी कहते थे लेकिन बाद में वही चक्र कानून के चक्र के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसका पुनर्निर्माण करते समय यहाँ चार आभूषित द्वारा भी बनाये गए थे।
सतावहना पीरियड –
द्वार और कटघरों का निर्माण किया गया और उन्हें रंग भी दिया गया और बाद में कहा जाता है की सतावहना ने ही इसे कमीशन किया था। कहा जाता है की द्वार पर बनायी गयी कलाकृतियाँ और द्वारो के आकार को सतावहना किंग सताकरनी ने ही निर्धारित किया था।
ऐसा कहा जाता है की साँची के द्वार और कटघरों का निर्माण 180-160 सदी से भी पहले बनाये गए थे।
बाद में इन्हें पत्थरो से आभूषित किया गया था। बौद्ध विकार के स्तूप में बुद्धा के जीवन से संबंधित कुछ घटनाये भी वहा प्रदर्शित की गयी है। वहाँ हम आसानी से बुद्धा के जीवन को समझ सकते है। साँची के स्तूप और आस-पास के दुसरे स्तूप की देखभाल के लिये स्थानिक लोग पैसो की सहायता भी करते है।
बौद्ध स्तूप को कोई शाही संरक्षण नही है। पुरुष और महिला दोनों भक्त मूर्ति और स्तूप की देखभाल के लिये सहायता करते रहते है। और कयी लोग पैसो की सहायता से वहाँ बुद्धा के जीवन से संबंधित किसी घटना को वहा रेखांकित करते है और वहाँ उनका नाम भी लिखा जाता है।
जैसे की बुद्धा के चरण चिन्ह, बोधि वृक्ष इत्यादि। कहा जाता है की वहाँ के स्थानिक लोग बुद्धा से काफी हद तक जुड़े हुए है।
कुछ लोगो के अनुसार स्तूप के देखने के लिये आने वाले विदेशी लोग भी बुद्धा के भक्त हो जाते है और उन्हें पूजने लगते है। बौद्ध स्तूप पर कयी प्रकार के त्यौहार भी मनाये जाते है।
शिलालेख –
विशेषतः साँची के स्तूप में बहुत से ब्राह्मी शिलालेख है। उनमे से कुछ छोटे है और कुछ लोगो के डोनेशन से भी बनाये गए है, वहाँ बने सभी शिलालेख इतिहासिक वास्तुकला को दर्शाते है। 1837 में जेम्स प्रिन्सेप ने इसका वर्णन अपने लेखो में भी किया था।
डोनेशन देने वाले लोगो के रिकॉर्ड को देखकर यह पता चला की ज्यादातर डोनेशन देने वाले लोग स्थानिक लोग ही थे, और बाकी दाताओ में से ज्यादातर उज्जैन, विदिशा, कुरारा, नदिनगर, महिसती, कुर्घरा, भोगावाधन और कम्दगीगम से थे।
शिलालेखो में मौर्य, शुंगा, सतावहना (175 BC – 15 AD), कुषाण (100 – 150 AD), गुप्त (600 – 800 AD) कालीन शिलालेख भी शामिल है। साथ ही साँची में रहने वाला शांत वातावरण भी लोगो का मन मोह लेता है। विदेशी सैलानी भी बड़ी मात्रा में हर साल इसे देखने के लिये आते है।
भारत में साँची का स्तूप ही बेहद प्राचीन माना जाता है। बौद्ध धर्म के लोगो के लिये यह एक पावन तीर्थ के ही समान है।
साँची के स्तूप शांति, पवित्रतम, धर्म और साहस के प्रतिक माने जाते है। सम्राट अशोक ने इसका निर्माण बौद्ध धर्म के प्रसार-प्रचार के लिये किया था।
आज भी इस स्थान का मुख्य आकर्षण बौद्ध धर्म और भगवान गौतम बुद्धा से जुडी चीजे ही है। बौद्ध धर्म का प्रचार करने वालो के लिये यह एक मुख्य जगह है। भारत में सभी धर्म के लोग इस स्तूप का काफी सम्मान करते है।
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बहुत ही अच्छी जानकारी | बेहतरीन लेखन | आपके पोस्ट को पढ़ के बहुत अच्छा लगा | इसी प्रकार से भारतीय इतिहास के बारे में जानकारी शेयर करते रहे | बहुत बहुत धन्यवाद |
Bahut hi shaandar history hai Aisa lagta hai ki baar baar isse hi padhu
Stupa me kounsa stone use hua iska jikra kahi nhi h kripa kar bataye
बहुत ही अच्छी जानकारी। मैं आपके ब्लॉग का first time विजिटर हूँ, आपका ब्लॉग और आपके ब्लॉग लिखने का तरीका मुझे बहुत पसंद आया। मुझे गर्व होता है, जब मैं internet पर हिंदी ब्लॉग देखता हूँ।
भारत के इतिहास में “साँची के स्तूप का इतिहास” एक बहुत ही मुख्य चीज है ! इसके विषय में हर किसी को जानना चाहिए ! इस अच्छे पोस्ट के लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ !