भारत की पहली महिला चिकित्सक रुख्माबाई का जीवन – Rukhmabai in Hindi

Rukhmabai

हमारे समाज में महिला और पुरुष को सम्मान के साथ रहने का अधिकार है और आज के समय में महिला और पुरुष को कंधे से कन्धा मिलाकर काम करने का अधिकार है। लेकिन पहले समय में जब भारत अंग्रेजो की गुलामी में था उस वक्त महिलाओ को आज के जैसे अधिकार नहीं थे। उन्हें घर के बाहर जाकर काम करने पर पाबन्दी थी। लेकिन उस समय में कुछ बहादुर महिलाये थी जो खुद को बदलना चाहती थी, खुद की नई पहचान बनाना चाहती थी।

वे चाहती थी की समाज में बदलाव आये, समाज का विकास किया जाए। लेकिन यह सब कुछ अकेले पुरुष नहीं कर सकते थे। लेकिन उस समय में ऐसे विचार करने का कोई महिला साहस भी नहीं करती थी। मगर जब परिस्थिति विपरीत हो तो किसी को बड़ा कदम उठाना ही पड़ता है। कुछ ऐसा ही उस समय रुख्माबाई ने किया था

रुख्माबाई – Rukhmabai उसी समय केवल घर से बाहर नहीं गयी बल्की उन्होंने तो दुसरे देश में जाकर डॉक्टर बनने का सम्मान भी हासिल किया। इसी वजह से 2017 में 22 नवंबर को उनके जन्मदिन पर गूगल ने डूडल कर उन्हें सन्मान दिया। इस डॉक्टर महिला की सारी जानकारी हम आपको देनेवाले है।

Rukhmabai

भारत की पहली महिला चिकित्सक रुख्माबाई का जीवन – Rukhmabai in Hindi

नामरूख्माबाई राउत
जन्म22 नवंबर 1864
जन्मस्थानमुंबई
माताजयंतीबाई
पिताजनार्धन पांडुरंग
मृत्यु25 सितम्बर 1955

रुख्माबाई एक प्रसिद्ध भारतीय चिकित्सक थी और महिलाओ के कल्याण के लिए काम करती थी, एक तरीके से कहा जाए तो वे एक नारीवादी थी। भारत जब अंग्रेजो के कब्जे में था तो उस वक्त कुछ गिने चुने पहले महिला डॉक्टर में रुख्माबाई का नाम आता है।

रुख्माबाई का पूर्व जीवन – Rukhmabai History

रूखमाबाई का जन्म 22 नवंबर 1864 को एक मराठी परिवार में हुआ था। जनार्धन पांडुरंग उनके पिताजी थे और जयंतीबाई उनकी माँ थी। रुख्माबाई जब दो साल की थी तब उनके पिताजी गुजर गए थे और उस समय माँ केवल सतरा साल की थी। लेकिन उसके छे साल बाद जयंतीबाई ने डॉ। सखाराम अर्जुन ने विवाह किया था। डॉ सखाराम अर्जुन एक प्रसिद्ध डॉक्टर और सामाजिक कार्यकर्ता थे वे बॉम्बे में रहते थे। उस समय सुतार एक ऐसा समाज था जिसमे विधवा महिलाओ को फिर से शादी करने छुट दी गी थी।

उसके ढाई साल बाद रुख्माबाई 11 साल की हो चुकी थी और उस समय उनकी 19 साल के दादाजी भिकाजी से विवाह कर दिया गया।

बाद में रुख्माबाई घर में ही रहकर फ्री चर्च मिशन लाइब्रेरी की क़िताबे लाकर पढाई करती थी। उनके पिताजी हमेशा धार्मिक और सामाजिक सुधारको के साथ में रहते थे इसीलिए खुद रुख्माबाई भी विष्णु शास्त्री पंडित जैसे समाज सुधारको से मिलती थी।

उस समय भारत के पश्चिम इलाके में वे महिलाओ की उन्नति और विकास के लिए काम करते थे। वे उनकी माँ के साथ प्रार्थना समाज और आर्य महिला समाज की हर हफ्ते होनेवाली मीटिंग में मौजूद रहती थी।

रुख्माबाई का करियर – Rukhmabai Career

डॉ एडिथ पेची रुख्माबाई को अच्छे से जानते थे और उन्हें मदत भी करते थे। उस समय वे कामा अस्पताल में काम किया करते थे। वे रुख्माबाई को पढाई के लिए प्रेरित करते ही थे लेकिन उन्हें आगे की शिक्षा मिलनी चाहिए इसके लिए पैसे इकट्ठा करते थे।

ईवा मैकलारेन और वाल्टर मैकलारेन जी मताधिकार के लिए काम करनेवाले कार्यकर्ता, डफरिन फण्ड की कुछ महिलाये भारत में रहनेवाली महिलाओ के लिये चिकित्सक सहायता करती थी। एडिलेड मन्निंग और अन्य कई लोगो ने मिलकर एक द रुख्माबाई डिफेन्स समिति की स्थापना की थी क्यों की वे इसके माध्यम से उनकी पढाई के लिए पैसा इकट्ठा करते थे और सन 1889 में रुख्माबाई डॉक्टर की पढाई करने के लिए इंग्लैंड चली गयी थी।

सन 1894 में उन्होंने लन्दन स्कूल ऑफ़ मेडिसिन में डॉक्टर की डिग्री हासिल की। उन्होंने रॉयल फ्री हॉस्पिटल में भी कुछ समय तक पढाई की थी।

सन 1895 में वे भारत में वापस आ गयी और ऊन्होने सूरत के महिला अस्पताल में मुख्य चिकित्सा अधिकारी के रूप में काम किया। महिला वैद्यकीय सेवा में काम करने से उन्होंने इंकार कर और उसकी जगह उन्होंने राजकोट को जानना अस्तपाल के सन 1929 तक काम किया और वही पर उन्होंने निवृत्ति ली। उसके बाद उन्होंने बॉम्बे (मुंबई) में रहने का फैसला किया।

रुख्माबाई की मृत्यु – Rukhmabai Death

25 सितम्बर 1955 को रुख्माबाई की मृत्यु हो गयी।

सच में रुख्माबाई एक बहुत ही बहादुर और होशियार महिला थी। उन्हें बचपन से ही पढाई से लगाव था। इसीलिए वे किसी भी चीज को बड़ी आसानी से सिख जाती थी।

उसकी वजह से वे इंग्लैंड जा सकी और डॉक्टर बन सकी। लेकिन उनकी सबसे बड़ी बात यह है की वे डॉक्टर बनने के बाद भारत के लोगो की सेवा में लग गयी।

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