रसखान का दोहा नंबर 11 – Raskhan ke Dohe 11
इसमें कवि रसखान से श्री कृष्ण के अति मनोरम बाल लीलाओं का वर्णन किया है। इसके साथ ही प्रभु कृष्ण के हाथ से माखन रोटी छीनने वाले कौवे के भाग्य की सराहना की है –
दोहा:
काग के भाग बडे सनती हरि हाथ सौं ले गयो माखन रोटी।
दोहे का अर्थ:
कृष्ण की बाल लीलाएं अत्यंत मनोहारी हैं। रसखान ने उन्हें परमात्मा के स्वरुप में पहचान लिया है। उन्होनें उस कौवे के भाग्य की सराहना की है, जिसने प्रभु के हाथ से माखन रोटी लेने का सौभाग्य प्राप्त किया है।
रसखान का दोहा नंबर 12 – Raskhan ke Dohe 12
इस दोहे में रसखान ने श्री कृष्ण के प्रति अपनी मन की भावना को प्रकट किया है –
दोहा:
काह कहूं रतियां की कथा बतियां कहि आबत है न कछू री
आइ गोपाल लियो करि अंक कियो मन कायो दियौ रसबूरी।
दोहे का अर्थ:
इस दोहे में कवि रसखान जी कहते हैं कि रात की बात क्या कही जाए। कोई बात कहने में नही आती है। श्रीकृष्ण आकर मुझे अपने गोद में भर लिया और मेरे साथ खूब मनमानी करने लगे। मेरे मन एवं शरीर में आनन्द से रस का सराबोर हो गया।
रसखान का दोहा नंबर 13 – Raskhan ke Dohe 13
रसखान प्रेमी भक्ति कवि थे और इस दोहे में उन्होंने श्री कृष्ण के प्रति अपने प्रेम को उजागर किया है –
दोहा:
तब बा वैश्णवन की पाग में श्री नाथ जी का चित्र हतैा
सो काठि के रसखान को दिखायो
तब चित्र देखत हीं रसखान का मन फिरि गयो।
दोहे का अर्थ:
उन वैश्णवों के हाथों में जो श्री कृष्ण का चित्र था उसे निकाल कर उन्होंने जब रसखान को दिखाया, तो उसे देखते हीं उनका मन चित्त हृदय परिवर्तित हो गया और वे संसार से विमुख होकर श्री कृष्ण के प्रेम में मग्न हो गये।
रसखान का दोहा नंबर 14 – Raskhan ke Dohe 14
कवि रसखान के इस दोहे में उनकी कृष्ण भक्ति की झलक को स्प्ष्ट देखा जा सकता है –
दोहा:
जैसो शिंगार वा चित्र में हतो तैसोई वस्त्र आभूशन अपने श्रीहस्त में धारण किए गाय ग्वाल सखा सब साथ लै के आप पधारे।
दोहे का अर्थ:
चित्र में श्रीकृष्ण का जैसा श्रृंगार था कृष्ण ठीक उसी प्रकार का वस्त्र आभूषण पहन कर पीताम्बर रूप में अपने ग्वाल बाल गोपों के साथ वे रसखान से मिलने गोपीकुंड पहुंच गये, जहां रसखान बैठकर कृष्ण के प्रेम में आंसू बहा रहे थे।
रसखान का दोहा नंबर 15 – Raskhan ke Dohe 15
इसमें कवि रसखान ने श्री कृष्ण की के गोकुलधाम में बसने का जिक्र किया है –
दोहा:
प्रेम निकेतन श्रीबनहिं आई गोबर्धन धाम
लहयौ सरन चित चाहि के जुगल रस ललाम।
दोहे का अर्थ:
रसखान श्रीकृष्ण के लीला धाम वृंदावन आ गये और अपने हृदय चित्त एवं मानस में राधाकृष्ण को बसाकर उनके प्रेमरस में डूब गए।
रसखान का दोहा नंबर 16 – Raskhan ke Dohe 16
इसमें प्रेम भक्ति कवि रसखान जी ने प्रेम को हरि का रूप या पर्याय बताया है –
दोहा:
प्रेम हरि को रुप है त्यौं हरि प्रेमस्वरुप
एक होई है यों लसै ज्यों सूरज औ धूप।
दोहे का अर्थ:
रसखान प्रेमी भक्त कवि थे। वे प्रेम को हरि का रुप या पर्याय मानते हैं और ईश्वर को साक्षात प्रेम स्वरुप मानते हैं। प्रेम एवं परमात्मा में कोई अन्तर नहीं होता जैसे कि सूर्य एवं धूप एक हीं है और उनमें कोई तात्विक अन्तर नहीं होता।
निष्कर्ष:
प्रेमी भक्ति कवि रसखान जी ने जिस तरह कृष्ण की महिमा का वर्णन अपने दोहों में किया है और अपनी प्रेम भावनाओं को अपने प्रभु के लिए प्रकट किया है।
वो वाकई सरहानीय है, ऐसा तो सिर्फ कृष्ण के प्रेम रस में डूबा कवि ही कर सकता है अर्थात इनके दोहों को पढ़कर कृष्ण भक्तों का मन अभिभूत हो गया। इस तरह रसखान ने लोगों को कृष्ण भक्ति का बोध कराया है।
Read More:
- रहीम के दोहे हिंदी अर्थ सहित
- सूरदासजी के दोहे हिंदी अर्थ सहित
- तुलसीदास जी के दोहे हिंदी अर्थ सहित
- Kabir Ke Dohe
I hope these “Raskhan ke Dohe in Hindi” will like you. If you like these”Raskhan ke Dohe” then please like our facebook page & share on whatsapp. and for latest update download : Gyani Pandit free Android app.
–>