रसखान का दोहा नंबर 6 – Raskhan ke Dohe 6
इस दोहे के माध्यम से कवि रसखान जी ने लोगों को श्री कृष्ण की भक्ति का बोध कराने की कोशिश की है, इसमें कवि कहते हैं कि भगवान श्री कृष्ण के दर्शन मात्र से ही सारे दुख-दर्द अपने आप ही दूर हो जाते हैं –
दोहा:
ए सजनी लोनो लला लह्यो नंद के गेह
चितयो मृदु मुसिकाइ के हरी सबै सुधि गेह।
दोहे का अर्थ:
इस दोहे में महाकवि रसखान जी कहते हैं कि हे प्रिय सजनी श्याम लला के दर्शन का विशेष लाभ है। जब हम नंद के घर जाते हैं तो वे हमें मधुर मुस्कान से देखते हैं और हम सब की सुधबुध हर लेते हैं अर्थात हमारी सारी परेशानियों का हल निकल जाता है।
रसखान का दोहा नंबर 7 – Raskhan ke Dohe 7
इस दोहे में रसखान जी ने श्री कृष्ण के अति सुंदर रूप का वर्णन किया है।
दोहा:
मोहन छवि रसखानि लखि अब दृग अपने नाहिं
उंचे आबत धनुस से छूटे सर से जाहिं।
दोहे का अर्थ:
इस दोहे में रसखान कहते हैं कि मदन मोहन कृष्ण की सुंदर रुप छटा देखने के बाद अब ये आँखें मेरी नही रह गई हैं जिस तरह धनुष से एक बार बाण छूटने के बाद अपना नही रह जाता है। और तीर फिर दोबारा लौटकर नहीं आताहै, वापिस नही होता है।
रसखान का दोहा नंबर 8 – Raskhan ke Dohe 8
इस दोहे के माध्यम से कवि रसखान जी अपनी आस्था को श्री कृष्ण के प्रति व्यक्त किया है और कहा कि उन्होनें पूरी तरह से अपना मन श्री कृष्ण को समर्पित कर दिया है।
दोहा:
मन लीनो प्यारे चितै पै छटांक नहि देत
यहै कहा पाटी पढी दल को पीछो लेत।
दोहे का अर्थ:
इस दोहे में कवि रसखान कहते हैं उनका मन प्रियतम श्रीकृष्ण ने ले लिया है लेकिन इसके बदले उन्हें इसका कुछ भी नहीं मिला है। इसके साथ ही कवि कहते हैं कि उन्होंने यही पाठ पढ़ा है कि पहले अपना सर्वस्व दो तब मुझसे कुछ मिलेगा।
रसखान का दोहा नंबर 9 – Raskhan ke Dohe 9
इस दोहे में कवि रसखान जी ने अपने मन को पूरी तरह भगवान श्री कृष्ण को न्योछावर करने की बात कही है –
दोहा:
मो मन मानिक लै गयो चितै चोर नंदनंद
अब बेमन मैं क्या करुं परी फेर के फंद।
दोहे का अर्थ:
इस दोहे में भगवान श्री कृष्ण के प्रति अपनी प्रेम भावना उजागर करते हुए कहते हैं कि मेरे मन का माणिक्य रत्न तो चित्त को चुराने बाले नन्द के नंदन श्री कृष्ण ने चोरी कर लिया है। अब बिना मन के वे क्या करें। वे तो भाग्य के फंदे के-फेरे में पड़ गये हैं। अब तो बिना समर्पण कोई उपाय नही रह गया है। अर्थात जब उनका मन ही श्री कृष्ण के पास है तो वे पूरी तरह से समर्पित हो चुके हैं।
रसखान का दोहा नंबर 10 – Raskhan ke Dohe 10
इस दोहे में रसखान ने श्री कृष्ण की महिमा का वर्णन करते हुए कहा है कि जब वे श्री कृष्ण को देखते हैं तो उनका हद्य प्रफुल्लित हो जाता है-
दोहा:
बंक बिलोचन हंसनि मुरि मधुर बैन रसखानि
मिले रसिक रसराज दोउ हरखि हिये रसखानि।
दोहे का अर्थ:
इस दोहे में कवि रसखान जी कहते हैं कि तिरछी नजरों से देखकर मुस्कुराते और मीठी बोली बोलने बाले मनमोहन कृष्ण को देखकर उनका हृदय आनन्दित हो जाता है। अर्थात जब रसिक और रसराज कृष्ण मिलते हैं तो हृदय में आनन्द का प्रवाह होने लगता है।