Ranthambore fort – रणथम्बोर किला सवाई माधोपुर नगर के पास के रणथम्बोर नेशनल पार्क में स्थित है, यह पार्क पहले जयपुर के महाराजाओ का शिकार करने का मैदान हुआ करता था और भारत को आज़ादी मिलने तक यहाँ पर लोग आकर शिकार करते थे।
यह एक दुर्जेय किला है जो राजस्थान के केंद्र में स्थित है। यह किला चौहान साम्राज्य के हम्मीर देव की वीरता और गौरव के लिये जाना जाता है।
वीरता और गौरव का रणथम्बोर किला – Ranthambore fort history in Hindi
2013 में, वर्ल्ड हेरिटेज कमिटी के 37 वे सेशन में रणथम्बोर किले के साथ-साथ राजस्थान के 5 और किलो को यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साईट में शामिल किया गया।
रणथम्बोर किले का निर्माण चौहान शासक ने किया था, लेकिन शासक का नाम आज भी अस्पष्ट है। लेकिन ज्यादातर लोगो का यही मानना है की किले का निर्माण 944 CE में सपलदक्षा के समय में ही हुआ था।
एक और कथा के अनुसार किले का निर्माण 1110 CE में जयंत के साम्राज्य में किया गया था। राजस्थान सरकार के आमेर डेवलपमेंट & मैनेजमेंट अथॉरिटी के अनुसार, इसका निर्माणकार्य 10 वी शताब्दी के बीच में सपलदक्षा के समय में शुर हुआ था और आगे की कुछ शताब्दियों तक चलता रहा।
Ranthambore fort history
चौहान के तहत –
इसका प्राचीन नाम रणस्तंभ और रणस्तंभपुर था। प्राचीन समय में 12 वी शताब्दी में यह चौहान साम्राज्य के पृथ्वीराज प्रथम के साम्राज्य के जैन धर्म से जुड़ा हुआ था।
12 वी शताब्दी में रहने वाली सिद्धसेनासुरी ने इसे जैन धर्म के पवित्र और प्रमुख तीर्थ स्थानों में से भी एक बताया था। मुघल समय में किले में मल्लिनाथ का मंदिर बनवाया गया था।
12 वी शताब्दी में पृथ्वीराज चौहान के शासन करने से पहले यादव इस किले पर शासन करते थे। भारतीय आर्कियोलॉजिकल सर्वे के अनुसार ऐसा दर्शाया जाता है की किले के प्रवेश द्वारा पर पहले हर्जाना लिया जाता था।
दिल्ली के सुल्तान इल्तुमिश ने 1226 में ही रणथम्बोर को हथिया लिया था लेकिन 1236 में इल्तुमिश की मृत्यु के बाद चौहान ने इसे पुनः हासिल कर लिया था।
इसके बाद सुल्तान नासिर उद्दीन महमूद की सेना को बाद में सुल्तान बलबन सँभालने लगे थे, लेकिन 1248 और 1253 में उन्हें कई किले मुहासिर करने पड़े थे। लेकिन 1259 में उन्होंने जैत्रसिंह चौहान से उन्हें पुनः हासिल कर लिया था।
1283 में शक्तिदेव ही जैत्रसिंह का उत्तराधिकारी बना और उसने रणथम्बोर और अपना विशाल साम्राज्य पुनः हासिल किया। इसके बाद सुल्तान जलाल उद्दीन फिरूज़ खिलजी ने 1290 से 91 तक सभी किलो को मुहसिर करा दिया था।
1299 में महाराव हम्मीर देव चौहान, अलाउद्दीन खिलजी के रिबेल जनरल मुहम्मद शाह के पास आश्रय के लिये रुके थे और अपने साम्राज्य को सुल्तान को देने से मना कर दिया।
मेवाड़ के तहत –
मेवाड़ के तहत किलो को राणा हम्मीर सिंह और राणा कुम्भ ने हासिल किया था। राणा कुम्भ के शासनकाल के बाद उनका उत्तराधिकारी राणा उदय सिंह बना। इसके बाद गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने 1532 से 1535 तक किलो को हथिया लिया था। इसके बाद 1569 में मुघल सम्राट अकबर ने किले पर अधिकार जमा लिया था।
इसके बाद यह किला 17 वी शताब्दी में जयपुर के महाराजा कचवाह के हाथ में गया और यह भारतीय स्वतंत्रता तक जयपुर का ही एक हिस्सा बना रहा। यह किले जिस जगह पर बना है वहाँ पर पहले शाही लोग शिकार करते थे। 1949 में जयपुर को भारत के राजस्थान राज्य का भाग बनाया गया था।
रणथम्बोर किले के अंदर तीन हिन्दू मंदिर भी है, जिनमे से एक गणेश, शिव और रामलालजी का भी मंदिर है जिनका निर्माण 12 वी और 13 वी शताब्दी में लाल करौली पत्थर से किया गया था। किले में जैन भगवान सुमतिनाथ (पाँचवे जैन तीर्थकार) और भगवान संभवनाथ का भी मंदिर है।
रणथम्बोर किला एक शक्तिशाली किला है।
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jaankari wrong hai bahudur shan jafar last mugal shashak tha 1837 se 1857 tak WO kaha se as geya 1500 me
Ajay Ji, Aap agar article dhyan se padhonge to apako samajh ayenga ki… ye vo bahudur shan nahi hain. ye to gujarat ka sultan tha. jo 1500 me hua tha. ab agar naam same hain to ham kya kar sakte hain.
he is not talking about Bahadur shah jafar. He is talking about bahadur shah of Gujrat.
Yha k raja ka mahal m jaane kyu nhi diya jaata h