Rani Ki Vav in Hindi
अपनी अद्भभुत संरचना और बेमिसाल खूबसूरती के लिए विश्व भर में विख्यात रानी की वाव भारत के गुजरात शहर के पाटन गांव में स्थित है। यह भारत की सबसे प्राचीनतम और ऐतिहासिक धरोहरों में से एक है। गुजरात में सरस्वती नदी के तट पर बना यह एक भव्य सीढ़ीनुमा कुआं है, जिसकी इमारत सात मंजिला है।
अपने प्रकार की यह इकलौती बावड़ी ”रानी की वाव” चारों तरफ से बेहद आर्कषक कलाकृतियों और मूर्तियों से घिरी हुई है। इस ऐतिहासिक बावड़ी का निर्माण 11वीं सदी में सोलंकी वंश के राजा भीमदेव की याद में उनकी पत्नी रानी उदयमती ने करवाया था। सरस्वती नदी के किनारे स्थित इस बावड़ी को इसकी अद्भुत एवं विशाल संरचना की वजह से यूनेस्को द्धारा साल 2014 में विश्व धरोहर की सूची में भी शामिल किया गया है।
यह अपने आप में इसकी अद्धितीय और अनूठी संरचना है, जो कि भूमिगत पानी के स्त्रोतों से थोड़ी अलग है। इस विशाल ऐतिहासिक संरचना के अंदर 500 से भी ज्यादा मूर्तिकलाओं का बेहद शानदार ढंग से प्रदर्शन किया गया है। इस ऐतिहासिक बावड़ी को साल 2018 में RBI द्धारा जारी 100 रुपए के नए नोट पर भी प्रिंट किया गया है, तो आइए जानते हैं दुनिया भर में मशहूर इस बावड़ी के इतिहास और इससे जुड़ो रोचक तथ्यों के बारे में-
अपनी अद्भुत कलाकृति और अद्धितीय संरचना के लिए मशहूर ”रानी की वाव” – Rani Ki Vav In Hindi
रानी की वाव की संक्षिप्त जानकारी एक नजर में- Rani Ki Vav Information
कहां स्थित है | पाटन जिला, गुजरात (भारत) |
कब हुआ निर्माण | 1063 ईसवी में |
किसने करवाया निर्माण | रानी उदयमति(सोलंकी राजवंश की रानी ) |
वास्तुकला | मारू–गुर्जर स्थापत्य शैली |
प्रकार | सांस्कृतिक, बावड़ी |
युनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल | 22 जून 2014 |
रानी की वाव का निर्माण एवं इसका इतिहास – Rani Ki Vav History In Hindi
अपनी अनूठी वास्तुशैली के लिए विश्व भर में मशहूर यह विशाल रानी की वाव गुजरात के पाटन शहर में स्थित है। इस भव्य बावड़ी का निर्माण सोलंकी वंश के शासक भीमदेव की पत्नी उदयमति ने 10वीं-11वीं सदी में अपने स्वर्गवासी पति की स्मृति में करवाया था। करीब 1022 से 1063 के बीच इस 7 मंजिला बावड़ी का निर्माण किया गया था।
आपको बता दें कि सोलंकी राजवंश के शासक भीमदेव ने वडनगर गुजरात पर 1021 से 1063 ईसवी तक शासन किया था। अहमदाबाद से करीब 140 किलोमीटर की दूरी पर बनी यह ऐतिहासिक धरोहर रानी की वाव प्रेम का प्रतीक मानी जाती है।
ऐसा माना जाता है कि इस अनोखी बावड़ी के निर्माण पानी का उचित प्रबंध करने के लिए किया गया था, क्योंकि इस क्षेत्र में वर्षा बेहद कम होती थी, जबकि कुछ लोककथाओं के मुताबिक रानी उदयमती ने जरूरतमंद लोगों को पानी प्रदान कर पुण्य कमाने के उद्देश्य से इस विशाल बावड़ी का निर्माण करवाया था।
सरस्वती नदी के तट पर स्थित यह विशाल सीढ़ीनुमा आकार की बावड़ी कई सालों तक इस नदीं में आने वाली बाढ़ की वजह से धीमे-धीमे मिट्टी और कीचड़ के मलबे में दब गई थी, जिसके बाद करीब 80 के दशक में भारतीय पुरात्तव सर्वेक्षण विभाग ने इस जगह की खुदाई की। काफी खुदाई करने के बाद यह बावड़ी पूरी दुनिया के सामने आई।
और अच्छी बात यह रही कि सालों तक मलबे में दबने के बाद भी रानी की वाव की मूर्तियां, शिल्पकारी काफी अच्छी स्थिति में पाए गए।
रानी की वाव की अद्भुत बनावट एवं संरचना – Rani Ki Vav Architecture
गुजरात में स्थित ”रानी वाव” 11 वीं सदी की वास्तुकला का अनुपम उदाहरण है। इस बावड़ी का निर्माण मारू-गुर्जर स्थापत्य शैली का इस्तेमाल कर किया गया है। इस जल संग्रह प्रणाली के इस नायाब नमूने को इस तरह बनाया गया है कि इसमें यह जल संग्रह की उचित तकनीक, बारीकियों और अनुपातों की अत्यंत सुंदर कला क्षमता की जटिलता को बेहतरीन ढंग से प्रदर्शित करती हैं।
सीढ़ियों वाली इस भव्य बावड़ी की पूरी संरचना भू-स्तर के नीचे बसी हुई है, जिसकी लंबाई करीब 64 मीटर, चौड़ाई करीब 20 मीटर है, जबकि यह 27 मीटर गहरी है। यह अपने समय की सबसे प्राचीनतम और अद्भुत स्मारकों में से एक है। इस बावड़ी की दीवारों पर बेहतरीन शिल्पकारी और सुंदर मूर्तियों की नक्काशी की गई है।
इसके साथ ही इस विशाल बावड़ी की सीढ़ियों पर बनी उत्कृष्ट आकृतियां यहां आने वाले सैलानियों का मन मोह लेती हैं। आपको बता दें कि अपने प्रवेश द्धारा से लेकर अपनी गहराई तक यह अनूठी बावड़ी पूरी तरह से उत्कृष्ट शिल्पकारी से सुसज्जित है। इस विशाल बावड़ी की अद्भुत संरचना और अद्धितीय शिल्पकारी अपने आप में अनूठी है।
सबसे खास बात यह है कि यह बावड़ी बाहरी दुनिया के कटे होने की वजह से काफी अच्छी परिस्थिति में है।
भगवान विष्णु से संबंधित है बावड़ी की मूर्तियां और कलाकृतियां:
सीढ़ियों वाली सात मंजिलीं इस अनूठी बावड़ी की दीवारों पर सुंदर मूर्तियां और कलाकृतियों की अद्भुत नक्काशी की गई है। इस अनूठी बावड़ी में 500 से ज्यादा बड़ी मूर्तियां हैं, जबकि 1 हजार से ज्यादा छोटी मूर्तियां हैं। औधें मंदिर के रुप में डिजाइन की गई इस बावड़ी में भगवान विष्णु के दशावतारों की मूर्तियां बेहद आर्कषक तरीके से उकेरी गईं हैं।
यहां विष्णु भगवान के नरसिम्हा, वामन, राम, वाराही, कृष्णा समेत अन्य प्रमुख अवतार की कलाकृतियां उकेरी गईं हैं। इसके अलावा इस विशाल बावड़ी में माता लक्ष्मी, पार्वती, भगवान गणेश, ब्रह्रा, कुबेर, भैरव और सूर्य समेत तमाम देवी-देवताओं की कलाकृति भी देखने को मिलती है।
इसके अलावा इस भव्य बावड़ी पर भारतीय महिला के 16 श्रंगारों को परंपरागत तरीके से बेहद शानदार ढंग से दर्शाया गया है। यहीं नहीं इस बावड़ी के अंदर कुछ नागकन्याओं की भी अद्भुत प्रतिमाएं देखने को मिलती है। 100 रुपए के नोट में छपी इस ऐतिहासिक ‘रानी की वाव’ में हर स्तर पर स्तंभों से बना हुआ एक गलियारा है, जो कि वहां के दोनों तरफ की दीवारों को जोड़ता है।
वहीं इस आर्कषक गलियारे में खड़े होकर रानी के वाव की अद्भुत सीढ़ियों का नजारा ले सकते हैं। अपने प्रकार की इस इकलौती बावड़ी को कलश के आकार में ढाल दिया है। इस अद्भुत बावड़ी की दीवारों पर बने ज्यामितीय और रेखाचित्र देखते ही बनते हैं।
रानी की वाव का गहरा कुंआ – Rani Ki Vav Step Well
गुजरात में सरस्वती नदी के तट के किनारे स्थित विश्व प्रसिद्ध रानी की वाव के सबसे अंतिम स्तर पर एक गहरा कुआं है, जिसे ऊपर से भी देखा जा सकता है। इस कुएं के अंदर गहराई तक जाने के लिए सीढ़ियां निर्मित की गई हैं, लेकिन अगर इसे ऊपर से नीचे की तरफ देखते हैं तो यह दीवारों से बाहर निकले हुए कुछ कोष्ठ की तरह नजर आते हैं, जिनका पहले कभी किसी तरह की वस्तु आदि रखने के लिए उपयोग किया जाता था।
इस अनूठी बावड़ी की सबसे खास बात यह है कि इस वाव के गहरे कुएं में अंदर तक जाने पर शेष शैय्या पर लेटे हुए भगवान विष्णु की अद्भूत मूर्ति देखने को मिलती है, जिसे देखकर यहां आने वाले पर्यटक अभिभूत हो जाते हैं एवं इसे धार्मिक आस्था से भी जोड़कर देखा जाता है।
विश्व ऐतिहासिक धरोहर के रुप में रानी की वाव – Rani Ki Vav World Heritage Site
सात मंजिला इस ऐतिहासिक और विशाल बावड़ी को इसकी अनूठी शिल्पकारी, अद्भुत बनावट एवं इसकी भव्यता के साथ भूमिगत जल के उपयोग एवं बेहतरीन जल प्रबंधन कि व्यवस्था के चलते इसके वर्ल्ड हेरिटेज साइट यूनेस्कों ने साल 2014 में इसे विश्व धरोहर की लिस्ट में शामिल किया है।
रानी की वाव से जुड़े कुछ रोचक तथ्य – Facts About Rani Ki Vav
- गुजरात के पाटन में स्थित यह ऐतिहासिक बावड़ी ”रानी की वाव’ दुनिया की ऐसी इकलौती बावड़ी है, जिसें अपनी अद्भुत संरचना और अनोखी बनावट एवं ऐतिहासिक महत्व के चलते वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल किया गया था। यही नहीं विश्व प्रसिद्ध यह वावड़ी इस बात का भी प्रमाण है कि प्राचीन भारत में वॉटर मैनेजमेंट सिस्टम कितना बेहतरीन और शानदार था।
- प्रेम का प्रतीक मानी जाने वाली इस विशाल बावड़ी का निर्माण करीब 10-11वीं सदी में सोलंकी राजवंश की रानी उदयमती ने अपने स्वर्गवासी पति भीमदेव सोलंकी (सोलंकी राजवंश के संस्थापक) की याद में करवाया था।
- सरस्वती नदी के तट पर स्थित इस बावड़ी के बारे में यह भी कहा जाता है कि कई सालों तक बाढ़ की वजह से यह बावड़ी धीमी-धीमे कीचड़, रेत और मिट्टी के मलबे में दबती चली गई और फिर 80 के दशक के अंतिम सालों में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) ने इस जगह की खुदाई की पूरी तरह से यह बावड़ी पूरी दुनिया के सामने आई और खास बात यह रही कि कई सालों तक मलबे में दबे रहने के बाबजूद भी इस भव्य रानी की वाव की मूर्तियां, शिल्पकारी बेहतर स्थिति में मिले।
- मारु-गुर्जर स्थापत्य शैली में बनी यह बावड़ी करीब 64 मीटर ऊंची, 20 मीटर चौड़़ी और करीब 27 मीटर गहरी है, जो कि करीब 6 एकड़ के क्षेत्रफल में फैली हुई है। यह अपने प्रकार की सबसे विशाल और भव्य संरचनाओं में से एक है।
- यह विश्वप्रसिद्ध सीढ़ीनुमा बावड़ी के नीचे एक छोटा सा गेट भी है, जिसके अंदर करीब 30 किलोमीटर लंबी एक सुरंग बनी हुई है, जो कि पाटण के सिद्धपुर में जाकर खुलती है। ऐसा माना जाता है कि, इस रहस्यमयी सुरंग पाटन के सिद्धपुर में जाकर खुलती है। पहले इस खुफिया रास्ते का इस्तेमाल राजा और उसका परिवार युद्ध एवं कठिन परिस्थिति में करते थे। फिलहाल अब इस सुरंग को मिट्टी और पत्थरों से बंद कर दिया गया था।
- अपनी अनूठी संरचना और अद्भुत बनावट के लिए पूरे विश्व भर में प्रसिद्ध गुजरात की यह बावड़ी भूमिगत जलसंसाधन एवं भंडारण प्रणाली का एक उत्कृष्ट नमूना है।
- विश्व प्रसिद्ध रानी की वाव के बारे में सबसे ऐतिहासिक और रोचक तथ्य यह है करीब 50-60 साल पहले इस बावड़ी के आसपास तमाम तरह के आयुर्वेदिक पौधे थे, जिसकी वजह से रानी की वाव में एकत्रित पानी को बुखार, वायरल रोग आदि के लिए काफी अच्छा माना जाता था। वहीं इस बावड़ी के बारे में यह मान्यता भी है कि इस पानी से नहाने पर बीमारियां नहीं फैलती हैं।
- गुजरात के पाटन में स्थित इस अनूठी बावड़ी की इसकी अद्भुत बनावट और भव्यता की वजह से 22 जून, साल 2014 में यूनेस्कों ने विश्व धरोहर की लिस्ट में शामिल किया है।
- 11 वीं सदी की वास्तुशैली की इस उत्कृष्ट ऐतिहासिक कृति के अंदर भगवान विष्णु से संबंधित बहुत सारी कलाकृतियां और सुंदर मूर्तियां बनी हुई हैं। यहां पर भगवान विष्णु के दशावतार के रुप में कई मूर्तियां बनी हुई हैं, जिनमें से मुख्य रुप से नरसिम्हा, कल्कि राम, वामन, कृष्णा वाराही और दूसरे मुख्य अवतार भी शामिल हैं। इसके अलावा इस भव्य बावड़ी में मां दुर्गा, लक्ष्मी, भगवान गणेश, शिव, ब्रह्रा जी, सूर्य समेत कई देवी-देवताओं की मूर्तियां बनी हुई हैं।
- गुजरात में स्थित रानी की वाव में 500 से भी ज्यादा विशाल मूर्तियां और करीब एक हजार से ज्यादा छोटी मूर्तियां पत्थरों पर बेहद शानदार ढंग से उकेरी गई हैं। इस बावड़ी में की दीवारों और खंभों की शिल्पकारी और नक्काशी यहां आने वाले पर्यटकों को अपनी तरफ लुभाती है।
- 7 मंजिला इस बावड़ी का चौथा तल सबसे गहरा बना हुआ है, जिसमें से एक 9.4 मीटर से 9.5 मीटर के आयताकार टैंक तक जाता है।
- विश्व धरोहर की लिस्ट में शामिल यह अनूठी बावड़ी में भारतीय महिलां के परंपरागत सोलह श्रंगार को भी मूर्तियों के जरिए बेहद शानदार तरीके से प्रदर्शित किया गया है।
- अपनी अनूठी मूर्तिकला के लिए विश्व भर में विख्यात इस अद्भुत बावड़ी में 11वीं और 12वीं सदी में बनी दो मूर्तियां भी चोरी कर ली गईं थी, इनमें से एक मूर्ति गणपति और दूसरी ब्रह्म-ब्रह्राणि की थीं।
- इस सात मंजिली सीढ़ीनुमा बावड़ी मुख्य रुप से पीने के पानी के उचित प्रबंध के लिए बनवाई गई थी, हालांकि इसके निर्माण के पीछे कई लोककथाएं भी प्रचलित हैं, जिनमें से एक कथा के मुताबिक, रानी उदयमति ने इस विशाल बावड़ी का निर्माण इसीलिए करवाया क्योंकि वे जरूरतमंद लोगों को पानी पिलाकर पुण्य-धर्म कमाना चाहती थीं।
- सात मंजिला इस अनूठी बावड़ी में पहले सीढि़यों की कतारों की संख्या 7 हुआ करती थीं, जिसमें से अब 2 गायब हो चुकी हैं।
- इस ऐतिहासिक बावड़ी की देखरेख का जिम्मा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की है। यह भव्य रानी की वाव गुजरात के भूकंप वाले क्षेत्र में स्थित है, इसलिए भारतीय पुरातत्व को इसके आपदा प्रबंधन को लेकर हर समय सतर्क रहना पड़ता है।
- अपनी कलाकृति के लिए मशहूर इस विशाल ऐतिहासिक बावड़ी को साल 2016 में दिल्ली में हुई इंडियन सेनीटेशन कॉन्फ्रेंस में ”क्लीनेस्ट आइकोनिक प्लेस” पुरस्कार से नवाजा गया है।
- साल 2016 में भारतीय स्वच्छता सम्मेलन में गुजरात के पाटन में स्थित इस भव्य रानी की वाव को भारत का सबसे स्वच्छ एवं प्रतिष्ठित स्थान का भी दर्जा मिला था।
जल संग्रह प्रणाली के इस नायाब नमूने रानी की वाव को जुलाई, 2018 में RBI ने अपने नए 100 रुपए के नोट पर प्रिंट किया है।
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