Ramdhari Singh Dinkar Biography in Hindi
रामधारी सिंह दिनकर एक हिंदी कवी, निबंधकार, देशभक्त और विद्वान इंसान थे। जिन्हें भारत के मुख्य आधुनिक कवियों में से एक माना जाता है। भारतीय स्वतंत्रता अभियान के समय में उन्होंने अपनी कविताओ से ही जंग छेड़ दी थी। रामधारी सिंह दिनकर देशभक्ति पर कविताये लिखकर लोगो को देश के प्रति जागरूक करते थे।
देशभक्ति पर आधारित कविताओ के लिये उन्हें राष्ट्रकवि का दर्जा भी दिया गया था। हिंदी कवी सम्मलेन के वे दैनिक कवी थे जो उस समय में काफी प्रसिद्ध हुआ करता था। सम्मलेन में प्रसिद्ध कवी मिलकर लोगो को अपने कविताये सुनाते थे।
रामधारी सिंह दिनकर की जीवनी – Ramdhari Singh Dinkar Biography in Hindi
भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रश्मिरथी के इंग्लिश अनुवाद किये जाने पर, लीला गुजधुर सरूप को सराहना का सन्देश भी भेजा था। उन्हें सम्मान देने के उद्देश्य से सन 2008 में भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उनकी देशभक्त कविताओ को भारतीय संसद भवन के हॉल में भी लगवाया था।
23 अक्टूबर 2012 को भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 21 प्रसिद्ध लेखको और सामाजिक कार्यकर्ताओ को राष्ट्रपति भवन में आयोजित कार्यक्रम के दौरान उन्हें राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ साहित्य रत्न सम्मान देकर सम्मानित भी किया था।
इस अवसर पर भारत के राष्ट्रपति ने आज़ादी के संघर्ष में रामधारी सिंह के योगदान को लोगो के सामने उजागर किया था। भारत के कवी और भूतपूर्व प्रधानमंत्री, अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने भाषणों में दिनकरजी को उच्च सम्मान भी दिया है।
दुसरे और भी बहुत से लोग है जिन्होंने दिनकरजी की कविताओ और हिंदी साहित्य में उनके योगदान की सराहना की और प्रशंसा भी की, उन लोगो में मुख्य रूप से शिवराज पाटिल, लाल कृष्णा अडवाणी, सोमनाथ चटर्जी, सुलब खंडेलवाल, भवानी प्रसाद मिश्रा और सेठ गोविन्द दास शामिल है।
भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के समय दिनकर क्रांतिकारी अभियान की सहायता करने लगे थे लेकिन बाद में वे गाँधी विचारो पर चलने लगे थे।
जबकि बहुत सी बार वे खुद को बुरा गांधियन भी कहते थे। क्योकि वे अपनी कविताओ से देश के युवाओ में अपमान का बदला लेने की भावना को जागृत कर रहे थे।
कुरुक्षेत्र में उन्होंने स्वीकार किया की निश्चित ही विनाशकारी था लेकिन आज़ादी की रक्षा करने के लिये वह बहुत जरुरी था।
तीन बार दिनकर राज्य सभा में चुने गए और 3 अप्रैल 1952 CE से 26 जनवरी 1964 CE तक वे इसके सदस्य भी बने रहे और उनके योगदान के लिये उन्हें 1959 में पद्म भुषण अवार्ड से सम्मानित भी किया गया। इसके साथ-साथ वे 1960 के शुरू-शुरू में भागलपुर यूनिवर्सिटी (भागलपुर, बिहार) के वाईस-चांसलर भी थे।
आपातकालीन समय में जयप्रकाश नारायण ने रामलीला मैदान पर एक लाख लोगो को जमा करने के लिये दिनकर जी की प्रसिद्ध कविता भी सुनाई थी : सिंघासन खाली करो के जनता आती है।
रामधारी सिंह दिनकरजीवन के बारेमें जानकारी – Ramdhari Singh Dinkar Information in Hindi
दिनकर का जन्म 23 सितम्बर 1908 को बिहार के मुंगेर जिले के सिमरिया ग्राम में हुआ था। उनके पिता का नाम बाबु रवि सिंह और माता का नाम मनरूप देवी था। स्कूल और कॉलेज में, उन्होंने हिंदी, संस्कृत, मैथिलि, बंगाली, उर्दू और इंग्लिश साहित्य का अभ्यास किया था।
दिनकर ज्यादातर इकबाल, रबिन्द्रनाथ टैगोर, कीट्स और मिल्टन के कार्यो से काफी प्रभावित हुए थे। भारतीय आज़ादी अभियान के समय में दिनकर की कविताओ ने देश के युवाओ को काफी प्रभावित किया था।
एक छात्र के रूप में दिनकर, दैनिक समस्याओ से लढते थे, जिनमे कुछ समस्याए उनके परिवार की आर्थिक स्थिति से भी संबंधित थी। जब वे मोकामा हाई स्कूल के छात्र थे तब स्कूल के बंद होने तक, चार बजे तक स्कूल में रहना उनके लिये संभव नही था।
इसीलिए वे बीच की छुट्टी में ही स्कूल छोड़कर वापिस घर आ जाते थे। हॉस्टल में रहना उनके लिये आर्थिक रूप से संभव नही था और इसीलिए वे स्कूल खत्म होने तक स्कूल में नही रुकते थे।
बाद में उन्होंने अपनी कविताओ के मध्यम से गरीबी के प्रभाव को समझाया। और ऐसे ही वातावरण में दिनकर जी पले-बढे और आगे चलकर राष्ट्रकवि बने। 1920 में दिनकर जी ने महात्मा गांधी को पहली बार देखा था।
रामधारी सिंह दिनकर के कार्य – Ramdhari Singh Dinkar Works
उनका ज्यादातर कार्य वीर रस से जुड़ा हुआ ही रहा है, लेकिन उर्वशी इसमें शामिल नही है। उनके कुछ प्रसिद्ध कार्यो में राष्मिराथिंद परशुराम की प्रतीक्षा शामिल है। भुषण के समय से ही उन्हें वीर रस का सबसे प्रसिद्ध और बुद्धिमान कवी माना जाता है।
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लिखा था की दिनकर जी उन लोगो के बीच काफी प्रसिद्ध थे जिनकी मातृभाषा हिंदी नही थी और अपनी मातृभाषा वालो के लिये वे प्यार का प्रतिक थे।
हरिवंशराय बच्चन के अनुसार वे भारतीय ज्ञानपीठ अवार्ड के हकदार थे। रामब्रिक्ष बेनीपुरी ने लिखा था की दिनकर की कविताओ ने स्वतंत्रता अभियान के समय में युवाओ की काफी सहायता की है।
नामवर सिंह ने लिखा था की वे अपने समय के सूरज थे। अपनी युवावस्था में, भारत के गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने उनकी काफी प्रशंसा की थी।
हिंदी लेखक राजेन्द्र यादव के उपन्यास ‘सारा आकाश’ में उन्होंने दिनकरजी की कविताओ की चंद लाइने भी ली है, जो हमेशा से ही लोगो की प्रेरित करते आ रही है।
कविताओ के साथ-साथ दिनकरजी ने सामाजिक और राजनैतिक मुद्दों पर भी अपनी कविताये लिखी है, जिनमे उन्होंने मुख्य रूप से सामाजिक-आर्थिक भेदभाव को मुख्य निशाना बनाया था।
उनके द्वारा रचित कुरुक्षेत्र एक बेहतरीन कविता थी जो महाभारत के शांति पर्व पर आधारित थी। यह कविता उस समय में लिखी गयी थी जब कवी और लोगो के दिमाग में द्वितीय विश्व युद्ध की यादे ताज़ा थी।
इसके साथ कुरुक्षेत्र में उन्होंने कृष्णा की चेतावनी कविता भी लिखी। इस कविता को स्थानिक लोगो का काफी अच्छा प्रतिसाद मिला था।
उनका द्वारा रचित रश्मिरथी, हिन्दू महाकाव्य महाभारत का सबसे बेहतरीन हिंदी वर्जन माना जाता है।
रामधारी सिंह दिनकर को मिले हुए अवार्ड और सम्मान – Ramdhari Singh Dinkar Awards
उन्हें काशी नागरी प्रचारिणी सभा, उत्तर प्रदेश सरकार और भारत सरकार की तरफ से महाकाव्य कविता कुरुक्षेत्र के लिये बहुत से अवार्ड मिल चुके है।
संस्कृति के चार अध्याय के लिये उन्हें 1959 में साहित्य अकादमी अवार्ड मिला। भारत सरकार ने उन्हें 1959 में पद्म भुषण से सम्मानित किया था।
भागलपुर यूनिवर्सिटी ने उन्हें LLD की डिग्री से सम्मानित किया था। राजस्थान विद्यापीठ, उदयपुर की तरफ से 8 नवम्बर 1968 को उन्हें साहित्य-चौदमनी का सम्मान दिया गया था।
उर्वशी के लिये उन्हें 1972 में ज्ञानपीठ अवार्ड देकर सम्मानित किया गया था। इसके बाद 1952 में वे राज्य सभा के नियुक्त सदस्य बने। दिनकर के चहेतों की यही इच्छा है की दिनकर जी राष्ट्रकवि अवार्ड के हक़दार है।
रामधारी सिंह दिनकर की मुख्य कविताये – Ramdhari Singh Dinkar ki Rachna
- विजय सन्देश (1928)
- प्राणभंग (1929)
- रेणुका (1935)
- हुंकार (1938)
- रसवंती (1939)
- द्वन्दगीत (1940)
- कुरुक्षेत्र (1946)
- धुप छाह (1946)
- सामधेनी (1947)
- बापू (1947)
- इतिहास के आंसू (1951)
- धुप और धुआं (1951)
- मिर्च का मज़ा (1951)
- रश्मिरथी (1952)
- दिल्ली (1954)
- नीम के पत्ते (1954)
- सूरज का ब्याह (1955)
- नील कुसुम (1954)
- चक्रवाल (1956)
- कविश्री (1957)
- सीपे और शंख (1957)
- नये सुभाषित (1957)
- रामधारी सिंह ‘दिनकर’
- उर्वशी (1961)
- परशुराम की प्रतीक्षा (1963)
- कोयला एयर कवित्व (1964)
- मृत्ति तिलक (1964)
- आत्मा की आंखे (1964)
- हारे को हरिनाम (1970)
- भगवान के डाकिये (1970)
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Mujhe Ramdhari Singh Dinkar ki jivni likhani thi
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