“संपूर्ण रामायण” की कहानी और कुछ अनसुनी बाते – Ramayan in Hindi

Sampoorna Ramayan in Hindi

भारतीय साहित्य के दो प्रमुख महाकाव्य है जिसमें से पहला है रामायण और दूसरा है महाभारत। हिंदू धर्म में दोनों ही महकाव्यों का अपना-अपना अलग महत्व है।

आपको बता दें कि यह दोनों ही ग्रंथ, भगवान विष्णु के मनुष्य अवतार, भगवान राम और श्रीकृष्ण, की लीलाओं पर आधारित हैं।

वहीं जहां रामायण में श्रीराम का जन्म मुख्य रूप से बुराई का स्वरूप बन चुके रावण के अंत के लिए हुआ था, वहीं महाभारत में श्रीकृष्ण की भूमिका किसी दैवीय शक्ति की ना होकर मार्गदर्शक, कूटनीतिज्ञ, राजनीतिज्ञ, दोस्त, सलाहकार आदि की थी, मुख्य रूप से इस ग्रंथ की कहानी पांडवों और कौरवों की थी।

जबकि रामायण हिन्दू धर्म का एक ऐसा महाकाव्य है, जिसमें मर्यादा, सत्य, प्रेम, मित्रत्व एवं सेवक के धर्म की परिभाषा का बखूबी वर्णन किया गया है।

अर्थात यह भी कह सकते हैं कि रामायण में मनुष्य जाति के जीवन एवं उनके कर्मों का खास विवरण दिया गया है। इसके साथ ही रामायण में रिश्तों के महत्व और उनके कर्तव्यों को भी समझाया गया है।

इस महाकाव्य में पति-पत्नी के कर्तव्यों के बारे उल्लेख किया गया है और ये भी बताया कि किस तरह पति-पत्नी एक-दूसरे की जिंदगी में सुख-दुख के साथी होते हैं। इसके अलावा रामायण महाकाव्य में आदर्श पिता, आदर्श पुत्र,आदर्श  पत्नी, आदर्श भाई, आदर्श मित्र, आदर्श सेवक और आदर्श राजा को भी दिखाया गया है।

रामायण में भगवान विष्णु के अवतार राम चंद्र जी के चरित्र का पूरा विवरण दिया गया है। आपको बता दें कि इसके पवित्र ग्रंथ में 24 हजार श्लोक, 500 उपखंड और 7 कांड हैं। आइए जानते हैं रामायण की सम्पूर्ण कथा के बारे में लेकिन सबसे पहले जानते हैं इस महाकाव्य की रचना किसने की –

“संपूर्ण रामायण” की कहानी और कुछ अनसुनी बाते – Ramayan in Hindi

Ramayan in Hindi
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महाकाव्य रामायण के रचयिता – महर्षि वाल्मीकि – Ramayana in Hindi Written By – Maharishi Valmiki

हिन्दू धर्म के प्रमुख महाकाव्य रामायण की रचना महर्षि वाल्मीकि ने की थी, जो वास्तव में एक डाकू थे जिनका नाम रत्नाकर था। जिन्होनें एक घटना से प्रेरित होकर अपना पूरा जीवन बदल दिया और फिर रामायण जैसे महाकाव्य की रचना की।

आपको बता दें कि जब डाकू रत्नाकर को अपने पापों का एहसास हो गया था। तब उन्होंने लूटपाट और वे सभी काम जिससे दूसरे को हानि पहुंचे, सब का त्याग कर दिया और नया पथ अपना लिया।

दरअसल, एक बार डाकू रत्नाकर ने नारद जी को ही लूटपाट के लिए बंधी बना लिया था। तब उन्होंने रत्नाकर का सही मार्गदर्शन किया था और उन्हें राम का नाम के जप करने की सलाह दी थी।

जिसके बाद उन्होंने राम नाम का जप करना शुरु किया लेकिन ज्ञान नहीं होने की वजह से वह राम-राम का जप मरा-मरा में बदल गया।

अपने जीवन को बदलने के लिए रत्नाकर ने सच्चे मन से साधना की जिसके बाद उनका नाम वाल्मीकि पड़ा। वहीं उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रहादेव ने उन्हें रामायण लिखने की सलाह दी।

जिनसे प्रेरणा लेने के बाद ही महर्षि वाल्मीकि ने हिन्दू धर्म के प्रमुख महाकाव्य रामायण की रचना की, जिसमें उन्होंने भगवान विष्णु के अवतार राम चन्द्र जी के चरित्र का बखूबी वर्णन किया है।

रामायण कथा के सातों कांड का वर्णन – Ramayana Kandas

रामायण में 7 अलग-अलग तरह के कांड हैं जो कि इस प्रकार है –

  1. बालकांड – Balakanda
  2. अयोध्याकांड – Ayodhya Kanda
  3. अरण्यकांड – Aranya Kanda
  4. किष्किन्धा कांड – Kishkinda Kanda
  5. सुंदर कांड – Sundara Kanda
  6. लंडा कांड – Lanka Kand
  7. उत्तरकांड – Uttara Kanda

इन सभी कांड में कई तरह की प्रेरक कथाएं हैं जिनका वर्णन हम नीचे कर रहे हैं।

बालकांड – Balakanda:

बालकांड रामायण महाकाव्य का पहला भाग है, जिसमें करीब 2080 श्लोकों का उल्लेख किया गया है। बालकांड का वर्णन नारद मुनि ने महर्षि वाल्मिकी को सुनाया था।

आपको बता दें के बालकांड के पहले सर्ग आदिकाव्य में मां निषाद और दूसरे सर्ग में क्रौंचमिथुन की विवेचना की गई है। जबकि तीसरे और चौथे सर्ग में रामायण, रामायण की रचना और लव-कुश प्रसंग का वर्णन किया गया है। इसके अतिरिक्त दशरथ का यज्ञ, पुत्रों (राम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न) का जन्म, राम और लक्ष्मण की विद्या, राक्षसों-वध, सीता विवाह आदि का भी विस्तार पूर्वक विवरण मिलता है।

दशरथ का यज्ञ और भगवान राम का जन्म – Ramayana Story in hindi

महर्षि वाल्मीकि द्धारा रचित महाकाव्य रामायण में दशरथ अयोध्या के रघुवंशी राजा थे और मर्यादा पुरुषोत्तम राम के पिता थे। रामायण में राजा दशरथ को एक आदर्श महाराजा, पुत्रों से अत्याधिक प्रेम करने वाला पिता और अपने वचनों के प्रति पूरी तरह समर्पित रहने वाला और अपने कर्तव्यों को पूरा करने वाला दिखाया गया है।

आपको बता दें कि अयोध्या राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी -उनकी पत्नियों के नाम कौशल्या, कैकई और सुमित्रा था। वहीं राजा दशरथ की काफी दिनों तक कोई संतान नहीं थी, जिससे वह अपने कुल की जिम्मेदारी संभालने को लेकर काफी चिंता में रहते थे।

अपने सूर्यवंश की वृद्धि के लिए राजा दशरथ ने अपने कुल गुरु ऋषि वशिष्ठ की सलाह मानी और इसके लिए अश्वमेघ यज्ञ और पुत्रकामेष्टि यज्ञ करवाए। देखते ही देखते इस पुत्रकामेष्टि यज्ञ से वेदि से एक आलौकिक युज्ञ पुरुष उत्पन्न हुआ और राजा दशरथ को स्वर्णपात्र में प्रसाद देकर अपनी पत्नियों को खिलाने के लिए कहा।

जिसके बाद राजा दशरथ ने यह प्रसाद अपनी तीनो पत्नियों को खिला दिया। इसके बाद राजा दशरथ को चार पुत्रों की प्राप्ति हुई। जिसमें उन्हें अपनी पहली पत्नी कौशल्या से प्रभु श्री राम, कैकई से भरत और सुमित्रा से लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ।

राजा दशरथ के चारों पुत्र दिव्य शक्तियों से परिपूर्ण और यशस्वी थे। उन चारों को राजकुमारों की तरह पाला गया, और उन्हें शास्त्रों को पूरा ज्ञान दिया गया इसके साथ ही उन्हें युद्ध कला भी सिखाई गई।

राम-लक्ष्मण की विद्या – Ramayana Katha in Hindi

भगवान राम और लक्ष्मण दोनों ही बचपन से अलौकिक प्रतिभा के थे। यही वजह है जब श्री राम महज 16 साल के हुए थे तब ऋषि विश्वामित्र ने राजा दशरथ से अपने यज्ञ में विघ्न उत्पन्न करने वाले राक्षसों के आतंक के बारे में बताया और इसके लिए उन्होंने राम और लक्ष्मण को अपने साथ आश्रम ले जाने को कहा।

जिसके बाद राम और लक्ष्मण अपनी कुशलता से उस राक्षस का विनाश कर देते हैं। यह देखकर ऋषि विश्वामित्र का मन प्रसन्न हो जाता है।

इसके बाद उन्होंने भगवान राम और लक्ष्मण को दिव्य शास्त्र की शिक्षा दी और उन्हें युद्ध कला में भी निपुण कर दिया। जिसके बाद प्रभु राम और लक्ष्मण में कई राक्षसों का विनाश किया और तो और महापापी रावण का भी अंत प्रभु राम ने किया।

माता- सीता का जन्म और उनका अद्भुत स्वंयवर – Ram Sita Swayamvar

बालकांड में माता सीता जी के जन्म और उनके अद्भुत स्वंयवर का भी वाल्मीकि जी ने अद्भुद वर्णन किया है। माता सीता राजा जनक की पुत्री थी, जो कि  मिथिला के राजा थे, वो भी संतान सुख के लिए काफी दिनों से तरस रहे थे, क्योंकि उन्हें काफी दिनों तक किसी संतान की प्राप्ति नहीं हुई थी।

वहीं एक बार जब वे हल जोत रहे थे, तब उन्हें धरती में से सोने की डलिया में मिट्टी में लिपटी हुई बेहद सुंदर एक कन्या मिली थी। तब राजा जनक बेहद प्रसन्न हुए और उन्हें अपनी बेटी मानकर अपने घर ले आए। और फिर राजा जनक ने उसका नाम सीता रख दिया।

इस तरह वह धरती मैया से जन्मी थी और उन्हें भूमिजा नाम से भी जाना जाता है। राजा जनक को अपनी पुत्री सीता से बेहद लगाव था। माता-सीता को देवी लक्ष्मी का अवतार भी माना जाता है। आपको बता दें कि माता सीता सर्व गुण संपन्न और अद्वितीय सुंदरता से परिपूर्ण थी।

एक बार माता सीता ने मंदिर में रखे भगवान शिव जी के धनुष को उठा लिया था, जिसे भगवान परशुराम के अलावा किसी ने नहीं उठाया था, तब ही राजा जनक ने फैसला लिया था कि वे अपनी पुत्री का विवाह, अपनी पुत्री की तरह किसी योग्य पुरुष से करवाएंगे, जो भगवान विष्णु के इस धनुष को उठाएगा और उस पर प्रत्यंचा चढ़ाएगा।

वहीं जब माता सीता विवाह योग्य हुईं, तब राजा-जनक ने अपनी सर्व गुण संपन्न कन्या के लिए दिव्य पुरुष को खोजने के लिए स्वयंवर रखने का फैसला लिया और फिर राजा जनक ने सीता के स्वयंवर के लिए कई राज्यों के राजाओं को निमंत्रण दिया।

स्वयंवर में राजा जनक ने शिव धनुष को उठाने वाले और उस पर प्रत्यंचा चाहने वाले से अपनी प्रिय पुत्री सीता से विवाह करने की शर्त रखी। वहीं सीता के गुण और सुंदरता की चर्चा पहले से ही चारों तरफ फैल चुकी थी। जिसके बाद सीता के स्वयंवर की खबर सुनकर बड़े-बड़े राजा सीता के स्वयंवर में भाग लेने के लिए आने लगे।

ऋषि विश्वामित्र भी राम और लक्ष्मण के साथ सीता स्वयंवर को देखने के लिए राजा जनक के नगर मिथिला पहुंचे थे। इसके साथ ही महाप्रतापी रावण भी सीता से विवाह करने की इच्छा के लिए स्वयंवर में हिस्सा लेने पहुंचा था।

इस तरह माता-सीता के स्वयंवर में बड़े-बड़े राजा शामिल हुए लेकिन जब धनुष उठाने की बारी आई तो कई सारे राजा धनुष को उठाने की बात तो दूर वे उसे हिला तक नहीं पाए।

यह सब देखकर राजा जनक बेहद चिंतित हुए और सोचने लगे कि कोई भी राजा उनकी पुत्री के योग्य नहीं है, ऐसे तो उनकी पुत्री कुंवारी रह जाएंगी लेकिन फिर ऋषि विश्वमित्र राजा जनक की चिंता को दूर करने के लिए अपने शिष्य प्रभु राम को धनुष उठाने के लिए बोलते हैं।

जिसके बाद प्रभु राम अपने गुरू की आज्ञा का पालन करते हुए उस धनुष को बड़ी आसानी से एक ही झटके में उठा लेते हैं और वे जैसे ही प्रत्यंचा चढ़ाने के लिए धनुष को मोड़ते हैं वह टूटकर दो हिस्सों में गिर जाता है।

इस तरह प्रभु राम के रूप में माता सीता को वर मिलता है और राजा जनक की एक दिव्य पुरुष की खोज खत्म होती है। और फिर यह देख चारों तरफ फूलो की वर्षा होती है।

प्रभु राम और माता-सीता का विवाह – Ram Sita Story in Hindi

स्वंयवर के बाद शर्त के मुताबिक ही राजा जनक ने अपनी पुत्री सीता का विवाह प्रभु राम से करने के फैसला लिया और इसके साथ ही उन्होनें अपनी तीनों पुत्री का विवाह राजा दशरथ के पुत्रों से करवाने का निश्चय किया।

इस तरह विवाह पंचमी वाले दिन माता सीता का विवाह प्रभु राम से, उर्मिला का विवाह लक्ष्मण से, माधवी का विवाह भरत से और शुतकीर्ति की शादी शत्रुघन से करवाई गई। इसके बाद राजा जनक की चारों पुत्रियां अयोध्या में प्रवेश करती हैं।

इस तरह भगवान राम और माता सीता एक -दूसरे से शादी के बंधन में बंध जाते हैं। लेकिन विवाह के बाद एक बार जब माता सीता दुखी थी और प्रभु राम ने उनकी चिंता का कारण पूछा।

तब सीता जी ने प्रभु राम से कहा कि आप तो राजकुमार हैं और राजकुमार की कई पत्नियां होती है, आपकी भी होंगी और तब आप मुझे भूल जाएंगे तब प्रभु राम ने माता सीता को वचन दिया कि वे कभी दूसरा विवाह नहीं करेंगे।

वे अपनी पत्नी सीता के साथ ही अपना पूरा जीवन व्यतीत करेंगे। जिसे सुन सीता स्तब्ध रह जाती हैं। वहीं श्री राम अपने इस वचन का आजीवन निर्वाह करते हैं। और इस तरह इस महाकाव्य के बालकांड में भगवान राम और देवी सीता मर्यादा का एक नया इतिहास रचते हैं और अपने जीवन से सम्पूर्ण मानव जाति को पति-पत्नी के धर्म का बोध कराते हैं।

अयोध्याकांड – Ayodhya Kanda

महर्षि वाल्मीकि द्धारा रचित महाकाव्य रामायण का अयोध्याकांड दूसरा भाग है।

जिसमें अयोध्या के राजा दशरथ को प्रभु राम को राजगद्दी पर बिठाने का विचार, राम के राज्यभिषेक की तैयारी, राम को युवराज बनाए जाने पर दासी मंथरा का कैकयी को भड़काना, कैकयी का कोपभवन में प्रवेश, राजा दशरथ से कैकयी का वरदान मांगना, राजा दशरथ की चिंता, भरत को राज्यभिषेक और राम को 14 साल का वनवास, राजा दशरथ का अपनी पत्नी सुमित्रा के पास विलाप करते हुए प्राणत्याग का वर्णन किया गया है।

आपको बता दें कि इस महाकाव्य के अयोध्याकांड में 119 सर्ग हैं  और इस सर्गों में 4 हजार 2 सौ 86 श्लोक शामिल किए गए हैं। इस कांड का पाठ पुत्रजन्म, विवाह और गुरुदर्शन के लिए किया जाना चाहिए।

श्री राम के राज्यभिषेक की तैयारी – Ram Rajyabhishek

वहीं अब राजा दशरथ बुजुर्ग हो चले थे, इसके साथ ही उन्हें अपने बडे़ पुत्र राम की अलौकिक प्रतिभा का अंदाजा हो गया था। इसलिए वह राम को अयोध्या के सिंहासन पर बिठाना चाहते थे।

वहीं दूसरी तरफ अयोध्या नगरी की पूरी प्रजा भी श्री राम द्धारा किए कामों से बेहद प्रसन्न थी, क्योंकि श्री राम बेहद परोपकारी और उदार ह्रदय के थे और प्रजा चाहती थी प्रभु राम अयोध्या नगरी के राजसिंहासन पर बैठे।

इसके लिए राजा दशरथ ने अपने सभी मंत्रियों को भी राम के राज्यभिषेक की तैयारी के आदेश दे दिए थे जिसके बाद राम के राज्यभिषेक की तैयारियां जोरों से शुरू हो गई थी।

दासी मंथरा द्धारा माता कैकयी को भड़काना:

वहीं जब राजा दशरथ ने राम को अयोध्या का उत्तराधिकारी बनाने का फैसला लिया तो पहले रानी कैकयी इस बात से खुश थी लेकिन कैकयी की दासी मंथरा को यह बिल्कुल पसंद नहीं आया, उसने रानी कैकयी को इस बात पर खुश देखकर नाराजगी जताई और फिर रानी कैकयी को भड़काना शुरु कर दिया और फिर मंथरा रानी कैकयी की बुद्धि फेर दी।

मंथरा ने रानी कैकयी से उनके पुत्र भरत को उत्तराधिकारी बनाने के लिए कहा और सलाह दी कि रानी कैकयी को इसके लिए क्या करना चाहिए, तब दासी मंथरा ने राजा दशरथ द्धारा दिए गए 2 वचनों के बारे में कहा। इसके बाद कैकयी अपनी दासी की सलाह पर कोपभवन चली गईं।

रानी कैकयी का कोप भवन जाना:

मंथरा के कहने पर रानी कैकयी कोप भवन में जाकर रहने लगी और उन्होनें अन्न-जल सब का त्याग कर दिया। वहीं दूसरी तरफ राजा दशरथ अपने पुत्र राम के राज्यभिषेक को लेकर काफी खुश थे और पूरा महल खुशियां मना रहा था।

और यह खुशी राजा दशरथ अपनी प्रिय रानी कैकयी से भी बांटना चाहते थे इसके लिए वे कैकयी के कक्ष में जाते हैं लेकिन वहां जाकर वे रानी कैकयी की हालत देखकर उनकी चिंता के बारे में पूछते हैं, तब रानी कैकयी उनकी किसी भी बात का कोई जवाब नहीं देती हैं, तब राजा दशरथ उन्हें अपने राम के राज्यभिषेक करने के फैसले के बारे में बताते हैं।

जिसके बाद रानी कैकयी मंथरा के बहकावे में आकर राजा दशरथ से दो वचन मांगती हैं। जो कि राजा दशरथ ने कई साल पहले उनकी जान बचाने के लिए कैकई ने से मांगने के लिए कहा था।

रानी कैकई, राजा दशरथ से अपने पहले वचन के रूप में राम को 14 साल का वनवास और दूसरे वचन के रूप में अपने पुत्र भरत को अयोध्या के राजसिंहासन पर बिठाने के लिए कहती हैं।

कैकयी के इन दोनो वचनों को सुना राजा दशरथ चौंक गए और फिर कैकयी को समझाते हुए इन दोनों वचनों पर दोबारा से विचार करने और इन वचनों  को वापस लेने के लिए बोले लेकिन कैकयी अपनी बात पर अटल रहीं।

श्री राम को 14 वर्ष का वनवास – Ram Vanvas

रानी कैकयी के दोनों वचनों को सुनकर राजा दशरथ बेहद आहात हुए थे और वे रानी कैकयी के दोनों वचनों को मानने से मना कर देते हैं लेकिन रानी कैकयी कहती हैं कि – यह रघुकुल की रीति है कि प्राण जाए पर वचन नहीं जाए, और आप अपने वचनों से पीछे नहीं हट सकते।

इस तरह राजा दशरथ को रानी कैकयी के वचनों का न चाहते हुए भी मानना पड़ता है। इसके बाद उन्होनें भरत को राजगद्दी सौंप दी और प्रभु राम को 14 साल के लिए वनवास जाने के लिए कहा। वहीं भगवान राम तो मर्यादा पुरुषोत्तम थे।

इसलिए वे रघुकुल की रीती की रक्षा के लिए और अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन करने के लिए वनवास जाने को तैयार हो जाते हैं। वहीं जब माता सीता और उनके भाई लक्ष्मण को वनवास जाने के बारे में पता चला तो उन्होंने भी राम के साथ वनवास जाने का आग्रह किया।

पहले तो श्री राम ने माता सीता को वन ले जाने के लिए मना कर दिया, तब सीता ने प्रभु राम से कहा कि जिस वन में आप जाएंगे वही मेरा अयोध्या है और आपके बिना अयोध्या मेरे लिए नरक की तरह है।

जिसके बाद वे सीता को अपने साथ ले जाने के लिए तैयार हो गया और बाद में लक्ष्मण को भी अपने साथ वन ले जाने की अनुमति दे दी। इस तरह प्रभु राम, माता सीता और लक्ष्मण तीनों अपने 14 साल के वनवास के लिए निकल पड़े।

वियोग में निकले राजा दशरथ के प्राण:

राजा दशरथ का राम से अत्याधिक लगाव था और उनका बिछड़ना मन ही मन उन्हें परेशान कर रहा था। वह यह वियोग सहन नहीं कर सके। और कुछ समय बाद अपने पुत्र के वियोग में उन्होंने प्राण त्याग दिए।

इस दौरान भरत अपने मामा के यहां गए हुए थे, तभी उन्होंने इस घटना के बारे में सुना। जिसके बाद वह अपनी माता कैकयी पर अत्यंत क्रोधित हुए और उन्होंने अपनी माता का त्याग कर दिया।

भरत अपने माता के किए पर बेहद दुखी हुए और उन्होंने अयोध्या की राजगद्दी पर बैठने से मना कर दिया और वह अपने भाई राम को अयोध्या लाने के लिए उन्हें वन में ढूंढने के लिए चले गए। और फिर वन में जाकर वे अपने प्रिय भाई राम-लक्ष्मण और सीता से मिले और उनसे अयोध्या लौटने का आग्रह किया।

लेकिन तब राम ने अपने पिता के वचनों का पालन करते हुए अयोध्या वापस लौटने से मना कर दिया।

जिसके बाद भरत, भगवान राम की चरण पादुका अपने साथ लेकर अयोध्या वापस लौट आए और उन्होंने राम की चरण पादुका को अयोध्या के राजसिंहासन पर रख दिया और भरत अपने राजदरबारियों से बोले जब तक भगवान वनवास से नहीं लौटते और तब तक उनकी चरण पादुका अयोध्या के राज सिंहासन पर रखी रहेंगी और वे उनके दास बनकर अयोध्या का कार्यभाल संभालेंगे।

इस महाकाव्य के अयोध्याकांड में बाद में रानी कैकयी को भी अपनी गलती पर पश्याताप हुआ। लेकिन जब तक बहुत देर हो चुकी थी।

अरण्य कांड – Aranya Kanda

महर्षि वाल्मीकि द्दारा रचित महाकाव्य रामायण के अरण्य कांड में सीता -अनसूया मिलन, शूर्पणखा वध, मारीच प्रसंग और राक्षस रावण द्धारा सीता हरण का उल्लेख किया गया है।

शूर्पनखा का राम और लक्ष्मण से मिलना:

रामायण काल में जब भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण के साथ अपने वनवास का आखिरी साल काट रहे थे।  तो वे इस दौरान ऋषि, मुनियों की सहायता करते थे और उनकी पूजा-अर्चना या फिर साधना भंग करने वाले राक्षसों को दंडित करते थे और उनकी रक्षा भी करते थे।

प्रभु राम एक जगह से दूसरे स्थान पर भ्रमण करते रहते थे। वहीं एक बार अपने भ्रमण के दौरान जब भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण गोदावरी नदी के किनारे जा रहे थे तो सीता जी को यह स्थान बेहद रमणीय लगा। आपको बता दें कि इस जगह का नाम था पंचवटी।

जिसके बाद भगवान राम ने माता-सीता की भावना को समझते हुए वनवास का शेष समय पंचवटी में ही बिताने का फैसला किया और फिर तीनों अपनी एक छोटी सी कुटिया बनाकर रहने लगे।

वनवास का समय शांतिपूर्वक बीत रहा था, पहले की तुलना में राक्षसों का आतंक भी कम हो चुका था। वहीं इसी दौरान राक्षस कन्या शूर्पनखा वन भ्रमण के लिए निकली जहां उन्होनें पहले राम को देखा और वे उनके रंग रूप से इतनी आकर्षित हुई कि वह उनसे विवाह करना चाहती थी लेकिन राम ने मजाक-मजाक में यह इशारा अपने छोटे भाई लक्ष्मण की तरफ किया जिसके बाद लक्ष्मण से शादी करने के उद्देश्य से शूर्पनखा लक्ष्मण जी के पास पहुंची जहां उन्होनें उनसे विवाह करने की इच्छा प्रकट की।

तब लक्ष्मण जी ने कहा कि मै तो अपने भैया राम और अपनी भाभी सीता का दासी हूं। अगर तुम मुझसे शादी करोगी तो तुम्हें दासी बनकर रहना होगा तभी शूर्पनखा ने इसे अपना अपमान समझा और माता सीता की हत्या करने का प्रयास किया, जिसे देख लक्ष्मण बेहद क्रोधित हो उठे और उन्होंने शूर्पनखा को रोकते हुए उसके नाक और कान काट दिए।

जिसके बाद शूर्पनखा ने इसके बारे में अपने राक्षस भाई खर को बताया और फिर खर, अपने राक्षस साथियों के साथ अपनी बहन के अपमान का बदला लेने के लिए निकल पड़े और पंचवटी में भगवान प्रभु की कुटिया में हमला कर दिया। जिसके बाद भगवान राम और लक्ष्मण ने खर और उसके सभी राक्षसों का विनाश कर दिया।

इसके बाद शूर्पनखा खुद को और भी ज्यादा अपमानित महसूस करने लगी और पहले से ज्यादा क्रोध से भर गईं और फिर वह अपने दूसरे भाई राक्षसों के राजा और लंकाधिपति रावण के पास गईं और अपनी व्यथा अपने भाई को सुनाई और फिर उसने अपने अपमान का बदला लेने के लिए राम और लक्ष्मण के साथ युद्ध करने के लिए उकसाया। इस दौरान शूर्पनखा ने अपने भाई रावण से सीता जी के सुंदर रूप का भी बखान किया।

माता-सीता के अपहरण की कथा – Sita Haran Story

सीता के सौंदर्य रूप से तो रावण पहले ही बहुत प्रभावित था और अब इसके बाद उसके ह्रदय में सीता को पाने की इच्छा और भी ज्यादा जाग्रत हो उठी लेकिन उसे भगवान राम और लक्ष्मण के वीरता और योग्यता का भी अंदाजा था।

इसलिए वह इसके लिए राक्षस मारीच के पास गया। आपको बता दें कि मारीच ने तप द्धारा कुछ ऐसी शक्तियां प्राप्त कर ली थीं, जिससे वह कोई भी रूप धारण कर सकता था। वहीं मारीच की इसी शक्ति का राक्षस रावण फायदा उठाना चाहता था, इसलिए उसने अपनी चाल में उसे शामिल होने के लिए कहा।

वहीं मारीच भी चाहता था कि उसका वध प्रभु राम के द्धारा हो इसलिए वह भी रावण के कहने पर  कुकृत्य करने के लिए तैयार हो गया। फिर राक्षस मरीचि ने स्वर्ण मृग बनकर सीता का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया।

वहीं स्वर्ण मिर्ग की सुंदरता पर मोहित होकर सीता ने राम जी को उसे पकड़ने को भेज दिया। अपनी पत्नी सीता की इच्छा को पूरा करने के लिए प्रभु राम उस स्वर्ण मिर्ग के पीछे जंगल को ओर चले गए।

प्रभु राम तो अंर्तयामी थे, इसलिए माता सीता की रक्षा के लिए वह अपने भाई लक्ष्मण को को छोड़ गए।

लेकिन काफी देर तक जब भगवान राम नहीं लौटे तो माता सीता को अपने प्रभु की चिंता होने लगी और उन्होंने अपने देवर लक्ष्मण से आग्रह किया कि वह उनके पीछे जाएं लेकिन लक्ष्मण ने माता सीता को यह समझाने की बहुत कोशिश की, भगवान राम अजय हैं, और उनका कोई भी कुछ नहीं कर सकता, क्योंकि लक्ष्मण अपने भ्राता राम की आज्ञा का पालन करते हुए माता सीता की रक्षा करना चाहते थे।

लेकिन सीता जी ने लक्ष्मण की एक बात नहीं सुनी और उनको अपने प्रभु को सकुशल ढूंढकर लाने का आदेश दिया। जिसके बाद लक्ष्मण को अपनी भाभी के आदेश के पालन के लिए अपने भाई की आदेश की अवहेलना करनी पड़ी और वे प्रभु राम की खोज में जाने के लिए तैयार हो गए।

इसके बाद लक्ष्मण ने माता सीता की रक्षा के लिए कुटिया के चारों तरफ लक्ष्मण रेखा खींच दी ताकि कोई भी उस रेखा के अंदर प्रवेश नहीं कर सके और माता सीता से भी इस रेखा से बाहर नहीं निकलने का आग्रह किया। और फिर लक्ष्मण भगवान राम की खोज में निकल पड़े।

वहीं दूसरी तरफ रावण घात लगाए बैठा था कि कब राम और लक्ष्मण कुटिया से दूर जाएं और वह माता सीता का अपहरण कर पाए।

अपना रास्ता साफ होते देख रावण, एक साधु का वेश धारण कर माता-सीता की कुटिया के आगे पहुंच गया और भिक्षा मांगने लगा।

वहीं माता सीता भी उसकी कुटिलता को नहीं समझ सकी और उसके ही भ्रमजाल में फंस कर उन्होंने लक्ष्मण रेखा के बाहर कदम रख दिया। जिसके बाद रावण माता-सीता को बलपूर्वक खींचता हुआ अपने पुष्पक -विमान में बैठा कर लंका की तरफ प्रस्थान कर गया और इस तरह माता सीता का हरण हो गया।

माता सीता ने इस दौरान बुद्धिमानी से अपने आभूषणों को जमीन पर फेंकना शुरु कर दिया ताकि प्रभु राम, माता सीता को खोज सकें। वहीं रास्ते में एक विशालकाय पक्षी जटायु ने माता सीता को बचाने की कोशिश की लेकिन वह इस प्रयास में बलशाली राक्षस रावण से माता सीता को बचाने में सफल नहीं हो सका।

उधर लक्ष्मण और भगवान राम एक-दूसरे से वन में मिल चुके थे और लक्ष्मण जी ने प्रभु राम को बताया कि माता सीता ने उनकी कराहती हुई आवाज सुनी जिसके बाद उनकी रक्षा के लिए उनके पास आने के लिए विवश कर दिया।

इससे भगवान राम समझ गए कि यह किसी असुर शक्ति का मायाजाल है और सीता जी किसी कठोर संकट में हैं। जिसके बाद दोनों माता सीता की खोज  करते हुए जटायु से मिले, तब उन्हें पता चला कि उनकी पत्नी सीता को लंकापति रावण उठाकर ले गया है।

और फिर दोनों भाई सीता को बचाने के लिए निकल पड़े वहीं इस दौरान उनकी मुलाकात राक्षस कबंध और परम तपस्वी साध्वी शबरी से भी हुई। उन दोनों ने उन्हें सुग्रीव और हनुमान तक पहुंचाया और सुग्रीव से मित्रता करने का सुझाव दिया।

किष्किन्धा कांड – Kishkinda Kanda

महाकाव्य रामायण मे वर्णित किष्किन्धा कांड में राम-हनुमान मिलन, वानर राजा सुग्रीव से, प्रभु राम की मित्रता, सीता को खोजने के लिए सुग्रीव की प्रतिज्ञा, बाली और सुग्रीव का युद्ध, बाली-वध, अंगद का युवराज पद, ऋतुओं का वर्णन, वानर सेना का संगठन का विस्तार पूर्वक वर्णन मिलता है।

वहीं ऐसी मान्यता है कि इस महाकाव्य का किष्किन्धाकांड का पाठ करने से मित्रलाभ और बिछड़े परिजनों से मिलन होता है

आपको बता कें जो लोग किष्किन्धा कांड का पाठ करते हैं। उन्हें एक मित्र के महत्व के बारे में पता चलता है और भक्त के भाव और गुणों का एहसास होता है।इसके साथ ही  इसमें दोस्ती के रिश्ते को जाति-पाति और सभी धर्मों से ऊपर रखा गया है –

सुग्रीव और बाली की लड़़ाई – Sugriv Bali Vadh

दक्षिण के ऋषयमुका पर्वत पर सुग्रीव नाम का वानर अपने कुछ साथियों के साथ रहते हैं। आपको बता दें कि सुग्रीव किश्किन्दा के राजा बाली के छोटे भाई होते हैं, जिनके बीच किसी बात को लेकर मतभेद हो जाते हैं। जिसकी वजह से बाली, सुग्रीव को अपने राज्य किश्किन्दा से निकाल देते हैं और उनकी पत्नी को भी अपने पास रख लेते हैं।

इस तरह दोनों भाई एक-दूसरे की जान के दुश्मन बन जाते हैं और सुग्रीव, बाली से किसी तरह अपनी जान बचाते हैं और वे उनसे छिपने के लिए ही ऋषयुमका पर्वत पर एक गुफा में रहते हैं।

वहीं जब राम और लक्ष्मण माता सीता की खोज में मलय पर्वत की तरफ आते हैं, तब सुग्रीव के वानर उन्हें देखते हैं और वे सुग्रीव को बताते हैं कि दो अच्छे कद के हष्ट-पुष्ट नौजवान हाथ में धनुष बाण लेकर पर्वत की तरफ आ रहे हैं।

जिसे सुनकर सुग्रीव को यही लगता है कि उनके दुश्मन भाई बाली की कोई चाल हैं। वह इसके बारे में जानने के लिए अपने मित्र हनुमान को उनके पास भेजते हैं।

राम का अपने प्रिय भक्त हनुमान से मिलन – Ram Hanuman Milan

सुग्रीव की आज्ञा का पालन करते हुए हनुमान जी भगवान राम के पास जाते हैं, एक ब्राह्मण का वेष बदलकर वे प्रभु राम से पूछते हैं कि राजा जैसा आर्कषित व्यक्तित्व के होकर वे जंगलों में क्या कर रहे हैं, लेकिन प्रभु राम चुप्पी साधे रहते हैं।

जिसके बाद  हमुमान खुद अपनी सच्चाई उनके सामने बोलते हैं और बताते हैं कि वे एक वानर हैं और सुग्रीव के कहने पर यहां आए हैं। जिसके बाद राम उन्हें अपने बारे में बताते हैं।

वहीं जब हनुमान जी को यह पता चलता है कि वे मर्यादा पुरुषोत्तम राम हैं तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता है और भावुक होकर प्रभु राम के चरणों में गिर जाते हैं। दरअसल हनुमान जी जन्म से ही प्रभु राम के बहुत बड़े भक्त होते हैं और उन्हें हमेशा से ही उन्हें भगवान राम से मिलने का इंतजार था। इस तरह भगवान राम का अपने प्रिय भक्त हनुमान से मिलन होता है।

राम-हनुमान के मिलन के बाद लक्ष्मण जी उन्हें बताते हैं कि सीता-माता का किसी ने अपहरण कर लिया है, और वे उन्हीं को ढूंढ़ते-ढूंढते यहां तक आ पहुंचे हैं।

यह सुनकर हनुमान जी उन्हें वानर सुग्रीव के बारे में बताते हैं और यह भी बोलते हैं कि सुग्रीव, माता-सीता को खोजने में उनकी मद्द करेंगे। इसके बाद हनुमान राम-लक्ष्मण को लेकर सुग्रीव के पास जाते हैं।

इस तरह भक्त हनुमान की मद्द से प्रभु राम और सुग्रीव की दोस्ती हो गई और फिर सुग्रीव ने अपने भाई बालि को मारने के लिए भगवान राम से मद्द भी मांगी थी।

बालि का वध – Bali Ka Yudh

एक सच्चे दोस्त होने के नाते प्रभु राम, वानर सुग्रीव के दुखी मन को समझ जाते हैं और उसके दुश्मन भाई बालि से उसके राज्य किश्किन्धा को वापस लाने का प्रण लेते हैं। अपने दोस्त सुग्रीव के साथ मिलकर मर्यादा पुरुषोत्तम राम बालि का वध करते हैं।

इस तरह सुग्रीव का उनका राज्य किश्किन्धा  और उनकी पत्नी को वापस दिलवाते हैं। जिसके बाद सुग्रीव, भगवान राम को उनकी पत्नी सीता को खोजने में उनकी मद्द करने का वचन देते हैं।

सु्ग्रीव ने निभाई मित्रता – Sugriva

फिलहाल भगवान राम की मद्द से सुग्रीव को किश्किंधा की राजगद्दी पर बिठा दिया गया था, लेकिन इस दौरान वह राजसुख में इतना मग्न हो जाता है कि वह भगवान राम को दिया गया वचन ही भूल जाता है।

जिसकी सूचना बाली की पत्नी तारा, लक्ष्मण को देती हैं। जिसे सुनकर लक्ष्मण क्रोधित हो उठते हैं और सुग्रीव को संदेश भेजते हैं कि अगर वह भगवान राम को दिया गया वचन भूल गए हैं तो वे पूरी वानर सेना को तबाह कर देंगे।

इसके बाद सुग्रीव को अपने दोस्त प्रभु राम को दिया गया वचन याद आता है और वे लक्ष्मण की यह बात मानते हुए अपने वानर के दलों को संसार के चारों कोनों में माता सीता की खोज में भेजते हैं। वहीं उत्तर, पश्चिम और पूर्व दल के वानर खोजकर्ता खाली हाथ वापस लौट आए।

जबकि दक्षिण दिशा का खोज दल अंगद और हनुमान के नेतृत्व में था, और वह सभी सागर के किनारे जाकर रुक गए। तब अंगद और हनुमान को जटायु का बड़ा भाई संपाती से यह सूचना मिली कि माता सीता को लंकापति नरेश रावण बलपूर्वक लंका ले गया है। इसके बाद सुग्रीव भगवान राम, लक्ष्मण और अपनी सेना के साथ माता सीता को बचाने के लिए लंका की तरफ प्रस्थान करते हैं।

सुंदरकांड का पाठ – Sunderkand Paath

महर्षि वाल्मीकि द्धारा रचित रामायण का सुंदरकांड का पाठ पांचवां सोपान है। आपको बता दें कि सुंदरकांड के पाठ में पवनसुत हनुमान जी के यश का गुणगान किया गया है।

इस सोपान के नायक हनुमान जी है जिनके द्धारा किए गए महान कामों का बखान इस पाठ में खूब देखने को मिलता है। सुंदरकांड में हनुमान जी का लंका की ओर प्रस्थान, विभीषण से भेंट, सीता से भेंट करके उन्हें श्री राम की मुद्रिका देना, अक्षय कुमार का वध, लंका दहन और लंका से वापसी तक के घटनाक्रम आते हैं।

आपको बता दें कि रामायण में सुंदरकांड की कथा सबसे अलग है। संपूर्ण रामायण कथा श्री राम के गुणों और उनके पुरुषार्थ को दर्शाती है लेकिन सुंदरकांड एकमात्र ऐसा अध्याय है, जो सिर्फ हनुमानजी की शक्ति और विजय का कांड है। वहीं महाकाव्य रामायण में सुंदरकांड के पाठ का अपना एक अलग महत्व है।

ऐसी मान्यता है कि जब भी किसी व्यक्ति के जीवन में ज्यादा परेशानियां हों, कोई काम नहीं बन रहा हो, आत्मविश्वास की कमी हो तो सुंदरकांड का पाठ करने से सारी समस्‍याओं का समाधान खुद ही निकलने लगता है।

आपको बता दें कि कई बार विद्वान पंडित और ज्‍योतिष भी कष्‍टों का निवारण करने के लिए सुंदरकांड का पाठ करने की सलाह देते हैं। आइए जानते हैं इस पाठ की कथा के बारे में –

हनुमान जी का अशोक वाटिका में प्रवेश और सीता जी से भेंट – Sita Ki Khoj

माता सीता की खोज करते-करते पवनपुत्र हनुमान विशाल रुप धारण कर और विशाल समुद्र पार करते हुए लंका पहुंचते हैं। जहां वह माता-सीता की तलाश चारों तरफ करते हैं।

काफी खोज के बाद वे देखते हैं कि माता सीता अशोक वाटिका में एक पेड़ की नीचे बैठी हैं और श्री राम से मिलने के लिए दुखी हैं और राक्षस रावण की बहुत सारी राक्षसी दासियां माता-सीता को रावण से विवाह करने के लिए बाध्य कर रही थीं।

सभी राक्षसी दासियों के चले जाने के बाद पवनपुत्र हनुमान माता-सीता तक पहुंचे और माता सीता को प्रणाम किया और श्री राम के बारे में बताया कि, भगवान राम ने उनके लिए अंगूठी दी है और कहा है कि  – श्री राम, उनको जल्द  लेने आएंगे।

वहीं माता सीता भी राम के परम भक्त हनुमान जी को जुड़ामणि देती हैं और कहती हैं। यह प्रभु राम को देना और कहना कि वह अपने स्वामी राम का इंतजार कर रही हैं।

इसके बाद हनुमान जी अशोक वाटिका में लगे फलों को माता-सीता की अनुमति लेकर खाते हैं। इस दौरान वह कुछ पेड़ों को उखाड़ देते हैं।

वहीं यह सब देखकर अशोक वाटिका की देखभाल करने वाला योद्धा उनको पकड़ने के लिए भागता है लेकिन हनुमान जी उन्हें भी नहीं छोड़ते हैं, और हनुमान जी, इस दौरान राक्षस रावण की लंका की कुछ सेना को भी मार देते हैं तो कुछ को अपनी शक्ति से घायल कर देते हैं।

रावण के पुक्ष अक्षय कुमार का वध – Ravana Son Akshay Kumar

वहीं जब यह सूचना लंकापति रावण के पास पहुंचती है तो वे उस वानर का वध करने के लिए अपनी कुछ सेना को भेजते हैं, लेकिन राम भक्त हनुमान एक-एक कर असुर रावण की सेना का वध कर देते हैं।

जिसे देख रावण बेहद क्रोधित हो जाता है और अपने पुत्र अक्षय कुमार को हनुमान जी का वध करने के लिए भेजता है। लेकिन पवनसुत हनुमान जी ने रावण के दुष्ट बेटे अक्षय कुमार को भी नहीं छोड़ा और उसका वध कर दिया।

अपने बेटे की मौत की खबर सुनकर रावण और ज्यादा भड़क जाता है और फिर वह अपने दूसरे पुत्र मेघनाथ को हनुमान जी को जिंदा पकड़कर सभा में लाने का आदेश देता है।

लेकिन मेघनाथ, हनुमान जी की शक्तियों से वाकिफ था इसलिए उसने ब्रम्हास्त्र का इस्तेमाल कर हनुमान जी का सामना किया और पवनपुत्र हनुमान को बंदी बनाकर रावण के समक्ष दरबार में पेश करता है।

पवन पुत्र हनुमान और महाबलशाली राक्षस रावण के बीच संवाद:

जब मेघनाथ, हनुमान जी को रावण के दरबार में पेश करता है। तब क्रोधित रावण, हनुमान जी के लिए अपशब्द बोलता हैं और उनका घोर अपमान करता है।

लेकिन पवनपुत्र हनुमान पर इसका कोई असर नहीं पड़ता है बल्कि वे महापापी रावण की बातों पर हंसते हैं जिसके बाद रावण को और ज्यादा गुस्सा आता है और वह हनुमान जी से पूछता है कि तुम्हें मृत्यु से डर नहीं लगता और तुम्हें यहां किसने भेजा है?

जिसके बाद हनुमान जी ने उस असुर से कहा कि वह इस सृष्टि के पालन कर्ता हैं, जिन्होंने शिवजी का धनुष तोड़ा है और जिन्होंने बालि जैसे महान योद्धा का वध किया है और जिनकी पत्नी का तुमने छलपूर्वक हरण किया है।

इसके साथ ही हनुमान जी ने रावण से प्रभु राम से माफी मांगने को भी कहा और माता-सीता को सम्मान के साथ वापस करने के लिए कहा। और फिर असुर रावण को और भी ज्यादा गुस्सा आया और उसने अपने योद्दाओं को हनुमान जी का वध करने का आदेश दिया।

लंका दहन – Lanka Dahan

अपने राक्षस भाई रावण के इस आदेश पर विभीषण ने उन्हें रोकते हुए कहा कि यह दूत है और किसी दूत को सभा में मारना नियमों के खिलाफ हैं, जिसके बाद वह हनुमान जी की पूंछ में आग लगाने के आदेश देते हैं।

फिर क्या था हनुमान जी ने उछलते हुए एक महल से दूसरे महल, एक छत से दूसरी छत पर जाकर पूरी लंका नगरी में आग लगा देते हैं। लेकिन वह सिर्फ विभीषण का महल छोड़ देते हैं।

इस तरह पूरी लंका नगरी जलकर राख हो जाती है। इसके बाद वे समु्द्र में जाकर अपनी पूंछ की आग बुझाते हैं और वापस विशाल रूप धारण कर किष्किंधा पहुंच जाते हैं, जहां वह भगवान राम और लक्ष्मण को माता-सीता की पूरी जानकारी देते हैं।

लंका कांड – Lanka Kand

लंका कांड, महर्षि वाल्मीकि द्धारा रचित महाकाव्य रामायण का छठवां सोपन है। महाकाव्य के इस भाग में 5692 श्लकों की संख्या है।

इस कांड में लंका पर चढ़ाई के लिए रामसेतु का निर्माण, रावण का भेदी भाई विभीषण का प्रभु राम की शरण लेना, राम-रावण के बीच हुए युद्ध की कथा और श्री राम द्धारा रावण का वध और वनवास पूरा करने के बाद अयोध्या वापसी तक का घटनाक्रम शामिल किया गया है।

ऐसा मानना है कि रामायण के लंकाकांड या फिर युद्धकांड का पाठ करने से शत्रु की जय, उत्साह और अपवाद के दोषों से मुक्ति मिलती है।

रामसेतु का निर्माण – Ramsetu

माता सीता को राक्षस रावण के चंगुल से लंका से वापस लाने के लिए जब भगवान राम समुद्र तट तक पहुंच गए थे। उसके बाद उस विशाल समुद्र को पार करने के लिए राम की सेना के दो वानर, जिनका जिक्र नल-निल नाम से किया गया है, उन्होनें रामसेतु के पुल का निर्माण किया था।

आपको बता दें कि विशेष तरह के पत्थरों में वानर सेना ने राम नाम लिखकर इस पुल का समुद्र के बीचों-बीच निर्माण किया था। ऐसा माना जाता था कि 30 मील लंबा ये पुल भारत और श्री लंका को भू-भार्ग से आपस में जोड़ता है।

रामसेतु पुल तमिलनाडु-भारत के दक्षिण पूर्वी तट के किनारे रामेश्वरम द्धीप के बीच चूना पत्थर से बनी एक लंबी श्रंखला है, जिस पर राम-लक्ष्मण और वानर सेना चढ़कर माता-सीता को लाने लंका पहुंचे थे।

दूत बनकर अंगद गए थे रावण के पास, लेकिन घमंडी रावण ने एक न सुनी:

शांति से माता सीता को वापस लाने के लिए प्रभु राम के दूत बनकर लंकाधिपति रावण के पास गए थे, इस दौरान उन्होंने रावण के सभी योद्धाओं को चुनौती भी दी थी, उन्होंने अपना पैर जमीन में जमाकर उसे हिलाने के लिए कहा था।

लेकिन धूर्त रावण के योद्धाओं में से कोई भी एक योद्धा उनके पैर को हिला तक नहीं सका।

ये देखकर रावण, प्रभु राम के दूत अंगद के चरण को हिलाने के लिए आया तभी अंगद ने उनसे कहा चरण मेरे नहीं मूर्ख भगवान राम के पकड़ो, जिन्होंने इस पूरी सृष्टि का निर्माण किया है और अपने किए पर माफी मांग लो इसके साथ ही प्रभु राम की धर्मपत्नी को सम्मान के साथ लौटा दो लेकिन बलशाली और घमंड में चूर रावण ने एक नहीं सुनी क्योंकि वह सिर्फ और सिर्फ युद्ध चाहता था।

लक्ष्मण-मेघनाथ का युद्ध, हनुमान जी का संजीवनी पर्वत लाना – Lakshman Meghnath Vadh

वहीं जब शांति से माता-सीता को वापस लाने की सारी कोशिशें नाकाम हो गईं तो युद्ध शुरु हो गए। सबसे पहले  लक्ष्मण और रावण के भाई मेघनाथ में युद्ध शुरु हुआ। इस युद्द में लक्ष्मण शक्तिबाण के वार से घायल हो जाते हैं।

जिसके बाद वैद्य हनुमान जी को संजीवनी लाने के लिए कहता है। लेकिन हनुमान जी को औषधि की पहचान नहीं होने पर वह पूरा की पूरा संजीवनी पर्वत ही लक्ष्मण के उपचार के लिए ले जाते हैं। जिसके बाद लक्ष्मण ठीक हो जाते हैं और फिर अपनी शक्ति का इस्तेमाल कर दुष्ट मेधनाथ का वध कर देते हैं।

कुभ्मकरण को नींद से जगाना – Kumbhkaran

प्रभु राम और रावण के बीच होने वाले युद्ध के लिए रावण कुम्भकर्ण को जगाने के लिए भेजता है। वहीं युद्द में कुंभकर्ण को भी प्रभु राम के हाथों से परगति की प्राप्ति होती है।

राम-रावण का युद्ध – Ram Ravan Yudh

लंका-कांड में एक के बाद एक कई युद्ध होते हैं लेकिन भगवान राम और महाबलशाली रावण के बीच हुआ युद्ध काफी बड़ा युद्ध था।

जिसमें रावण की विशाल सेना ने प्रभु राम की वानर सेना को हराने का कठोर षणयंत्र रचा था और बलशाली सैनिकों को भी इस युद्द में उसकी तरफ से हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित किया था।

लेकिन भगवान राम की महिमा के आगे रावण की सारी साजिशें नाकाम साबित हुईं और प्रभु राम के हाथों उस महापापी असुर का अंत हुआ।

विभीषण को सौंपा लंका का राज्य:

राक्षस रावण की मौत के बाद प्रभु राम ने लंका का कार्यभार संभालने के लिए विभीषण का चयन किया और उसे लंका की राजगद्दी पर बिठा दिया।

जिसके बाद विभीषण का राज्यभिषेक भी बड़ी धूम-धूम से किया गया और यहां की जनता भी रावण की प्रताड़ना से परेशान हो चुकी थी और वह एक प्रतापी और न्याय करने वाला राजा की खोज में थी।

इस तरह प्रजा को भी विभीषण के रूप में एक अच्छा राजा मिलता है।

लंका में राम-सीता मिलन, माता-सीता की अग्निपरीक्षा और अयोध्या वापसी – Sita Agni Pariksha

रावण के वध के बाद भगवान राम का माता सीता से मिलन होता हैं। वहीं इसके बाद प्रभु राम, ना चाहते हुए भी माता सीता को अपनी पवित्रता सिद्ध करने के लिए अग्निपरीक्षा से गुजरने के लिए कहते हैं, क्योंकि प्रभु राम, माता सीता की पवित्रता के लिए फैली अफवाहों को गलत साबित करना चाहते हैं।

जिसके बाद माता सीता अपने प्रभु के आदेश का पालन करने के लिए अग्नि परीक्षा के लिए तैयार हो जाती है, वहीं जब वे अग्नि में प्रवेश करती तो, उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचा है।

जिससे वह यह साबित करती हैं कि अग्नि की तरह पवित्र है। वहीं अब भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण का 14 साल का वनवास का समय पूरा हो चुका था।

जिसके बाद वे अयोध्या वापस आते हैं जहां उनका जोरदार स्वागत होता है। इसी दिन कार्तिक महीने की अमावस्या की घोर अंधेरी रात होती है लेकिन भगवान राम के आगमन से पूरी अयोध्या नगरी दीपकों की रोशनी से जगमगा उठती है।

अयोध्या लौटने के बाद भगवान राम का राज्यभिषेक होता है। और फिर रामराज्य की शुरुआत होती है।

उत्तरकांड – Uttara Kanda

उत्तराकांड, हिन्दू धर्म के महाकाव्य रामायण का आखिरी सोपन है। इसमें  111 सर्ग और 3432 श्लकों की संख्या है।  उत्तरकाण्ड में राजा राम के सुखद जीवन की व्याख्या, सीता जी का त्याग और लव-कुश के जन्म का वर्णन मिलता है।

पुराणों के अनुसार, उत्तरकाण्ड का पाठ आनंदमय जीवन और सुखद यात्रा के लिए किया जाता है। उत्तरकाण्ड को रामायण का सार भी कहा जा सकता है। इस भाग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के सभी लक्षणों का वर्णन किया गया है।

लव-कुश का जन्म – Luv Kush Ka Janam

भगवान श्री राम के राजा बनने के बाद भगवान राम अपनी पत्नी माता सीता के साथ सुखद जीवन व्यतीत करते हैं। वहीं कुछ समय बाद माता सीता गर्भवती हो जाती हैं।

इस दौरान अयोध्या में माता-सीता के लंका में रहने की खबर आग की तरह फैलने लगी थी, उस समय अगर कोई पत्नी एक रात भी अपने पति से दूर रहती थी उसे दोबारा पति के घर में दाखिल होने की इजाजत नहीं थी।

वहीं इसको लेकर राजा राम पर सवाल उठने लगे। और फिर से अयोध्या वासी सीता जी के अग्नि परीक्षा की मांग करते हैं लेकिन ये सब देखकर माता सीता खुद अयोध्या छोड़कर चली जाती हैं।

जिसके बाद वाल्मीकि जी सीता जी को आश्रय देते हैं, जहां माता सीता भगवान राम के दो जुड़वा पुत्र लव और कुश को जन्म देती है। और इस तरह लव और कुश महर्षि वाल्मीकि के शिष्य बन जाते हैं और उनसे शिक्षा ग्रहण करते हैं।

अश्वमेघ यज्ञ – Ashwamedha Yagya

साहित्य के मुताबिक जब महर्षि बाल्मीकि ने लव-कुश को इसके बारे में जानकारी दी, तभी उन्होंने इस महाकाव्य रामायण की रचना की थी और लव कुश को इसके बारे जानकारी दी।

वहीं जब भगवान राम अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन करते हैं, जिसमें महर्षि वाल्मीकि लव और कुश के साथ उसमें शामिल होते हैं। भगवान राम और उनकी जनता के समक्ष लव और कुश महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण का गायन करते हैं। गायन करते हुए लव कुश को माता सीता को वनवास दिए जाने की खबर सुनाई जाती है, तो भगवान राम बहुत दुखी होते हैं।

तब वहां माता सीता आ जाती हैं। उसी समय भगवान राम को माता सीता, लव-कुश के बारे में बताती हैं। इस तरह भगवान राम को ज्ञात होता है कि लव कुश उनके ही पुत्र हैं।

और फिर माता सीता धरती मां को अपनी गोद में लेने के लिए पुकारती हैं, और धरती के फटने पर माता सीता उसमें समा जाती हैं। वहीं कुछ सालों के बाद देवदूत आकर भगवान राम को यह सूचना देते हैं कि उनके रामअवतार का प्रयोजन अब पूरा हो चुका है, और उनका यह जीवन काल भी खत्म हो चुका है।

तब भगवान राम अपने सभी सगे-संबंधी और गुरुजनों का आशीर्वाद लेकर सरयू नदी में प्रवेश करते हैं। और वहीं से अपने वास्तविक विष्णु रूप धारण कर अपने धाम चले जाते हैं। और इस तरह इस संपूर्ण रामायण कथा का अंत होता है ।

रामायण से हमें क्या सीख मिलती है – Moral of Ramayana in Hindi

इस तरह महाकाव्य रामायण से हमें बुराई पर अच्छाई की जीत की सीख मिलती है अर्थात बुरे करने वालों का हमेशा रावण की तरह अंत होता है विविधता में एकता की भी सीख मिलती है अर्थात राजा दशरथ की तीन रानियों को अलग-अलग दिखाया गया है, फिर भी परिवार में एकजुटता बनी रहती है जो कि दुख की घड़ी से बाहर निकलने में मद्द करती है।

इससे साथ ही रामायण से अच्छी संगति करने की सीख भी मिलती है। रामायण में अच्छी संगति के महत्व को भी बखूबी समझाया गया जिस तरह कैकयी अपने बेटे भरत से ज्यादा राम को चाहती थी।

लेकिन अपनी दासी मंथरा के बहकावे में आकर राजा दशरथ से भरत को राजगद्दी और राम को 14 साल के लिए वनवास भेजने का वरदान मांगती है, वहीं अगर मंथरा उन्हें नहीं भड़काती तो प्रभु राम को 14 साल का वनवास नहीं होता इसलिए अच्छी संगति का असर अच्छा ही होता है।

इसके अलावा रामायण में प्राण जाए लेकिन वचन नहीं जाए का बेहद महत्व है अर्थात अगर एक बार वचन दे दिया तो उसे निभाने की सीख मिलती है भले ही इसके लिए प्राण क्यों न गंवाने पड़े।

इसके अलावा सच्ची भक्ति और अटल विश्वास और समर्पितता की भी सीख भी मिलती है। जैसे रामायण में हनुमान जी ने अटल विश्वास और प्यार का परिचय दिया और खुद को प्रभु राम की भक्ति में सच्ची भावना से समर्पित कर दिया।

रामायण से सबसे साथ एक जैसे व्यवहार करने की सीख भी मिलती है, जैसे कि भगवान राम के विनम्र आचरण हम सबको सिखाता है कि हमें सबका सम्मान करना चाहिए, इसके साथ ही प्रभु राम ने जाति- धर्म से ऊपर शबरी के प्रेम पूर्वक दिए गए झूठे बैरों का भी सेवन किया था।

जिससे यह सीख मिलती है कि हम सब एक सामान हैं और हमें जात-पात की भावना को मिटाकर प्रेम से रहना चाहिए। इसके अलावा प्रभु राम के प्यार और दया के भाव  से यही सीख मिलती है हमें हमेशा दया करना चाहिए।

त्याग, बलिदान, सेवा और स्त्रियों के सम्मान की भी सीख हमें रामायण से मिलती है। रामायण का पाठ यह भी सिखाता है कि माफ करना बदला लेने से अच्छा चरित्र है जिस तरह रावण एक ज्ञानी पुरुष था।

लेकिन माता-सीता का अपहरण करना उसके पतन का कारण बन गया। इससे यह पता चलता है कि हम दूसरे के नुकसान पहुंचाने के चक्कर में बदले की आग में खुद को ही जला बैठते हैं।

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