श्री रामकृष्ण परमहंस की जीवनी | Ramakrishna Paramahansa Biography

19 शताब्दी में धार्मिक क्षेत्र में श्री रामकृष्ण परमहंस – Ramakrishna Paramahansa सबसे उचे स्थान पर विराजमान थे वह एक रहस्यमयी और महान योगी पुरुष थे जिन्होंने काफी सरल शब्दों में अध्यात्मिक बातो को सामान्य लोगो के सामने रखा। जिस समय हिन्दू धर्म बड़े संकट में फस गया था उस समय श्री रामकृष्ण परमहंस ने हिन्दू धर्मं में एक नयी उम्मीद जगाई। श्रीरामकृष्ण परमहंस के पास में अद्भुत शक्तिया थी। ऐसा कहा जाता है की श्री रामकृष्ण परमहंस भगवान विष्णु के अवतार थे।

Ramakrishna Paramahansa

श्री रामकृष्ण परमहंस की जीवनी – Ramakrishna Paramahansa Biography

श्री रामकृष्ण परमहंस का जन्म सन 1836 में बंगाल के गाव के परिवार में हुआ था। उनके घर में पाच बच्चे थे जिनमे श्री रामकृष्ण परमहंस चौथे नंबर पर थे। उनके माता पिता बहुतही सरल स्वभाव के थे मगर ब्राह्मण होने की वजह से वह काफी धार्मिक थे।

जब एक बार श्री रामकृष्ण परमहंस के पिताजी खुदीराम गया के लिए तीर्थयात्रा पर जा रहे थे तो उन्हें भगवान विष्णु का दृष्टान्त हुआ और उसमे भगवान विष्णु ने कहाँ की उनका जो अगला लड़का होंगा उसके रूप में खुद भगवान विष्णु अवतार लेने वाले है।

ठीक उसी तरह ही रामकृष्ण की माँ चन्द्र देवी को भी भगवान विष्णु ने सपने में आकर कहा की उनका जो अगला बच्चा होगा वह दैवी गुणों से संपूर्ण होगा और वह भगवान के समान ही होगा। उसके कुछ ही समय बाद चन्द्र देवी ने श्री रामकृष्ण परमहंस को जन्म दिया।

एक आम बच्चे की तरह ही श्री रामकृष्ण परमहंस को स्कूल में जाना, पढ़ना, लिखना बिलकुल अच्छा नहीं लगता था। बचपन से ही उन्हें अध्यात्म में अधिक रुची थी। कम उम्र से ही वह लम्बे समय तक विचार करते थे। बचपन से ही उन्हें भारतीय अध्यात्म से जुड़े नाट्य में अधिक रुची थी।

जब बंगाल में सब तरफ़ लोग ब्राह्मण और ख्रिश्चन धर्म की और बहुत ज्यादा आकर्षित हो रहे थे और हिन्दू धर्मं पूरी तरह से खतरे में था उस समय श्री रामकृष्ण परमहंस ने हिन्दू धर्म को ख़तम होने से बचाया ही नहीं बल्की हिन्दू धर्मं को इतना शक्तिशाली बनाया की लोगो को फिर से एक बार हिन्दू धर्म अपनी और आकर्षित करने लगा था।

दक्षिणेश्वर मंदिर में श्री रामकृष्ण परमहंस एक पुजारी के रूप में

जब श्री रामकृष्ण परमहंस 16 साल के थे तो उनके भाई रामकुमार उनके काम में हात बटाने के लिए कोलकाता लेके गए थे। सन 1855 में राणी रासमणि ने दक्षिणेश्वर में देवी काली का मंदिर बनवाया था और उस मंदिर में रामकुमार एक मुख्य पुजारी थे। जब उनकी मृत्यु हो गयी तो श्री रामकृष्ण परमहंस को उस मंदिर का पुजारी बना दिया गया।

श्री रामकृष्ण पूरी तरह से काली के ध्यान में लीन हो जाते थे और बहुत सारे घंटो तक देवी का ही ध्यान करते थे, इस दौरान वह एक पुजारी की जो जिम्मेदारिया होती थी उसे भी भूल जाते थे। धीरे धीरे श्री रामकृष्ण परमहंस देवी काली के ध्यान में इतने व्यस्त रहते थे की उन्हें देवी के चारो तरफ़ भव्य आभा दिखने लगी थी।

श्री रामकृष्ण परमहंस द्वारा दी गयी शिक्षा – Sri Ramakrishna Paramahamsa Education

श्री रामकृष्ण परमहंस ने अपने पुरे जीवन में एक भी किताब नहीं लिखी और नाही कभी कोई प्रवचन दिया। वह प्रकृति और रोज के जिंदगी के उदहारण लेकर बहुत ही सरल भाषा में लोगो को समझाते थे। परमहंस जब भी कुछ सिख देते थे तो लोग अपने आप उनकी तरफ़ आकर्षित हो जाते थे। उन्होंने जितनी भी शिक्षा दी उसको उनके शिष्य महेन्द्रनाथ गुप्ता ने बंगाली भाषा में ‘श्री श्री रामकृष्ण कथाम्रिता’ किताब में लिखा है।

उनकी दी गयी शिक्षा पर सन 1942 में ‘द गोस्पेल ऑफ़ श्री रामकृष्ण’ नाम की इंग्लिश में किताब भी प्रकाशित की गयी। यह किताब आज भी सभी को उतनी ही आकर्षित करती है जीतनी पहले करती थी।

श्री रामकृष्ण परमहंस के भक्त – Devotees of Sri Ramkrishna Paramahansa

जिस तरह से एक फुल के चारो तरफ़ मधुमख्खिया घुमती रहती है ठीक उसी तरह श्री रामकृष्ण को मिलने के लिए उनके भक्त आते रहते थे। उन्होंने अपने भक्तों को दो मुख्य हिस्सों में विभाजित किया था। उनके कुछ भक्त गृहस्ती सँभालने वाले थे। उन्हें वह सिखाते थे की परिवार की जिम्मेदारी सँभालने के साथ साथ किस तरह से भगवान की अनुभूति की जा सकती है।

उनका भक्तों का दूसरा अहम वर्ग था वह मध्यम वर्ग के युवा का था। उन्हें वह भिक्षुक बनाने की पूरी शिक्षा देते थे और उनके माध्यम से अपना सन्देश समाज के हर कोने में पहुचाना चाहते थे। उन भिक्षुको में सबसे पहले शिष्यों में नरेन्द्रनाथ का भी नाम आता है जिन्हें आज सभी स्वामी विवेकानंद नाम से जानते है।

स्वामी विवेकानंद ने ही वेदांत का सन्देश पूरी दुनिया में पहुचाया, उन्होंने ही एक बार फिर से हिन्दू धर्म की जाग्रति की, भारत के सभी लोगो को फिर से नींद से जगाने का काम किया। उन्होंने ही रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी और अपने गुरु का कार्य जारी रखने का कार्य किया था।

श्री रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु – Death of Shri Ramkrishna Paramahansa

सन 1885 में श्री रामकृष्ण परमहंस को गले का कैंसर हुआ था। कलकता में अच्छे डॉक्टर से उपचार कराने के लिए उनके भक्त श्यामपुकुर के घर में रखा गया था। लेकिन जैसे जैसे समय गुजरता जा रहा था उसके साथ साथ उनकी तबियत भी अधिक ख़राब होती गयी। उसके बाद में उन्हें कोसिपुर के बड़े घर में रखा गया। मगर फिर भी उनकी तबियत अधिक बिगडती गयी और 16 अगस्त 1886 में कोसिपुर के घर में उनकी मृत्यु हो गयी।

उनकी मृत्यु के बाद भी उनका प्रभाव ख़तम नहीं हुआ बल्की उनके जो सबसे प्रभावी शिष्य स्वामी विवेकानंद थे उन्होंने अपने गुरु द्वारा दी गयी शिक्षा और तत्वज्ञान को रामकृष्ण मिशन की सहायता से प्रसार करने का कार्य जारी रखा। उनकी जो शिक्षा थी वह पुराने ऋषि मुनियों की तरह ही थी लेकिन उन्होंने जो ज्ञान दिया था वह किसी भी समय में उपयोगी साबित हुआ है।

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2 COMMENTS

  1. बहुत ही प्रेरणादायक जीवनी रामकृष्ण परमहंस द्वारा दी गयी शिक्षा जीवन के हर जगह काम आ सकती है |

    • शुक्रिया अनुराग जी, आपने हमारे इस पोस्ट को पढ़ा। वाकई में रामकृष्ण परमहंस जी की जीवनी हमें प्रेरित करती है और उनके प्रवचन हमारे अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं।

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