रहीम के दोहे हिंदी अर्थ सहित | Rahim Ke Dohe

रहीम दास का दोहा नंबर 21- Rahim Ke Dohe 21

आज की दुनिया में ज्यादातर लोग अपने बारे में सोचते रहते हैं और अन्य लोगों की परवाह नहीं करते हैं। उन लोगों के लिए रहीम दास जी ने इस दोहे में बड़ी सीख दी है।

दोहा:

“जे गरिब पर हित करैं, हे रहीम बड। कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग।”

अर्थ:

जो लोग गरीब का हित करते हैं वो बड़े लोग होते हैं। जैसे सुदामा कहते हैं कृष्ण की दोस्ती भी एक साधना हैं।

क्या सीख मिलती है:

रहीम दास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें गरीबों  की मद्द करनी चाहिए क्योंकि इसी में हमारा हित छिपा हुआ है।

रहीम दास का दोहा नंबर 22 – Rahim Ke Dohe 22

जिन लोगों को अपने बुरे आचरण वाली संतान पर घमंड होता है और जो लोग अपनी संतान के अवगुण छिपाने की कोशिश में लगे रहते हैं ऐसे लोगों के लिए रहीम दास ने इस दोहे में बड़ी बात कही है।

दोहा:

“जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय। बारे उजियारो लगे, बढे अंधेरो होय।”

अर्थ:

दिए के चरित्र जैसा ही कुपुत्र का भी चरित्र होता हैं। दोनों ही पहले तो उजाला करते हैं पर बढ़ने के साथ अंधेरा होता जाता हैं।

क्या सीख मिलती है:

महान विचारक रहीम दास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपनी संतान पर पूरा ध्यान देना चाहिए और उसके अवगुणों को छिपाना नहीं चाहिए बल्कि उन्हें उजागर कर उसमें सुधार लाना चाहिए। जहां एक अच्छे गुण वाली संतान पूरे कुल को लेकर चलती है वहीं बुरे आचरण वाली संतान सब कुछ नष्ट कर देती है।

रहीम दास का दोहा नंबर 23 – Rahim Ke Dohe 23

रहीम दास जी ने इस दोहे में उन सभी के लिए बड़ी सीख दी है जो व्यक्ति किसी अन्य के पास कुछ पाने की चाह में जाते हैं।

दोहा:

“रहिमन वे नर मर गये, जे कछु मांगन जाहि। उतने पाहिले वे मुये, जिन मुख निकसत नाहि।”

अर्थ:

जो इन्सान किसी से कुछ मांगने के लिये जाता हैं वो तो मरे हैं ही परन्तु उससे पहले ही वे लोग मर जाते हैं जिनके मुंह से कुछ भी नहीं निकलता हैं।

क्या सीख मिलती है:

रहीम दास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें कभी किसी से कुछ पाने की चाहत नहीं रखनी चाहिए।

रहीम दास का दोहा नंबर 24 – Rahim Ke Dohe 24

ये दोहा उन लोगों के लिए हैं जो अच्छे और बुरे इंसानों में फर्क नहीं कर पाते और यूं ही किसी पर भी भरोसा कर अपनी जिंदगी काटते रहते हैं।

दोहा:

“रहिमन विपदा ही भली, जो थोरे दिन होय। हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय।”

अर्थ:

संकट आना जरुरी होता हैं क्योंकि इसी दौरान ये पता चलता है की संसार में कौन हमारा हित सोचता है और कौन हमारा बुरा सोचता हैं।

क्या सीख मिलती है:

रहीम दास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपने बुरे वक्त में काम में आने वालों को ही अपना सच्चा मित्र मानना चाहिए क्योंकि सुख के समय में तो हर कोई मद्द के लिए तत्पर रहता है लेकिन संकट के समय में बेहद कम लोग ही ऐसे होते हैं जो साथ देते हैं और ऐसे लोग ही सच्चे मित्र कहलाने लायक होते हैं।

रहीम दास का दोहा नंबर 25 – Rahim Ke Dohe 25

बुहत सारे लोग लंबे कद के होते हैं जो दिखने में तो बड़े लगते हैं लेकिन हकीकत में वे किसी के काम नहीं आते ऐसे लोगों के लिए रहीम दास जी ने इस दोहे में बड़ी सीख दी है।

दोहा:

“बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर। पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।”

अर्थ:

बड़े होने का यह मतलब नहीं हैं की उससे किसी का भला हो। जैसे खजूर का पेड़ तो बहुत बड़ा होता हैं लेकिन उसका फल इतना दूर होता है की तोड़ना मुश्किल का काम है।

क्या सीख मिलती है:

रहीम दास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि अच्छा कामों से बड़ा बनना चाहिए न कि सिर्फ कद से ऊंचे होकर बड़े बनने की कोशिश करनी चाहिए।

53 thoughts on “रहीम के दोहे हिंदी अर्थ सहित | Rahim Ke Dohe”

  1. के.पी.अनमोल

    आपने कबीर दास के दोहे भी रहीम के कहकर यहां पोस्ट किये हैं… और रहीम के कई दोहे अशुद्ध लिखे हैं.. कृपया कर इनके बारे में थोड़ी और जानकारी जुटाईये और पाठको को सही चीज उपलब्ध करवाईये… आपके अधकचरे ज्ञान से नवोदित पाठकवर्ग और छात्रों को भ्रमात्मक जानकारी मिलेगी।

  2. Satish Pandey

    अच्छा संकलन है परंतु दोहों का पाठ (Text) भ्रामक एवं अशुद्ध है। इसे थोड़े प्रयास से ठीक किया जा सकता है।

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