रहीम दास का दोहा नंबर 16 – Rahim Ke Dohe 16
आज की दुनिया में ज्यादातर लोग ऐसे हैं जो स्वार्थी होते हैं और खुद के बारे में ही हमेशा सोचते रहते हैं और किसी का भला नहीं करते है। ऐसे लोगों के लिए रहीम दास जी ने अपने इस दोहे में बड़ी सीख देने की कोशिश की है।
दोहा:
“तरुवर फल नहीँ खात हैं, सरवर पियहि न पान। कही रहीम पर काज हित, संपति संचही सुजान।”
अर्थ:
पेड़ अपने फ़ल खुद नहीं खाते हैं और नदियाँ भी अपना पानी स्वयं नहीं पीती हैं। इसी तरह अच्छा व्यक्ति वो हैं जो दूसरों को दान के कार्य के लिये अपनी संपत्ति को खर्च करते हैं।
क्या सीख मिलती है:
रहीम दास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें सदैव दूसरों की भलाई के लिए तत्पर रहना चाहिए और जरूरतमंद लोगों की सेवा करनी चाहिए तभी हम एक अच्छे इंसान कहलाएंगे।
रहीम दास का दोहा नंबर 17- Rahim Ke Dohe 17
जो लोग सिर्फ दुख के समय में या फिर विपत्ति के समय में ही ईश्वर को याद करते हैं उन लोगों के लिए रहीम दास जी ने नीचे लिखे गए दोहे के माध्यम से बड़ी सीख देने की कोशिश की है।
दोहा:
“दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय। जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे होय।”
अर्थ:
दुःख में सभी लोग भगवान को याद करते हैं। सुख में कोई नहीं करता, अगर सुख में भी याद करते तो दुःख होता ही नही।
क्या सीख मिलती है:
रहीम दास जी के इस दोहे से हमें सुख के समय में ईश्वर की प्रार्थना करनी नहीं छोड़नी चाहिए और उनका शुक्रियादा अदा करना नहीं भूलना चाहिए ऐसा करने से दुख के समय ईश्वर हमारी प्रार्थना सुनेगा और हमारी परेशानियों का समाधान करेगा।
रहीम दास का दोहा नंबर 18- Rahim Ke Dohe 18
महाकवि रहीम दास जी ने इस दोहे में उन लोगों को सीख दी है जो लोग किसी से दुश्मनी, किसी के प्रति प्यार, शराब का नशा या फिर अपनी खुशी, खून और खांसी को छिपाने की कोशिश करते हैं।
दोहा:
“खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान। रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान।”
अर्थ:
सारा संसार जानता हैं की खैरियत, खून, खाँसी, ख़ुशी, दुश्मनी, प्रेम और शराब का नशा छुपाने से नहीं छिपता हैं।
क्या सीख मिलती है:
महाकवि रहीम दास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें किसी के प्रति प्यार है तो उसे छिपाना नहीं चाहिए क्योंकि वह एक न एक दिन सबके सामने उजागर हो ही जाता है। इसी तरह किसी से दुश्मनी है तो भी नहीं छिपानी चाहिए क्योंकि जो लोग दुश्मन होते हैं उनका पता सबको अपने आप चल जाता है और शराब का नशा करके कभी नहीं छिपाना चाहिए क्योंकि व्यक्ति के हाव-भाव से ही उसके नशा करने का अंदाजा लगा लिया जाता है।
इसके अलावा किसी भी व्यक्ति को अपनी खुशी, खांसी और खैरियत को भी छिपाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।
रहीम दास का दोहा नंबर 19- Rahim Ke Dohe 19
जो लोग अपनी छोटी-मोटी सफलता पर ही घमंडी बन जाते हैं और अपने अभिमान में चूर होकर किसी के साथ सही तरह से व्यवहार नहीं करते हैं उन लोगों के लिए रहीम दास जी ने इस दोहे में बड़ी सीख दी है।
दोहा:
“जो रहीम ओछो बढै, तौ अति ही इतराय। प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ों टेढ़ों जाय।”
अर्थ:
नीच प्रवृत्ति के लोग जब प्रगति करते हैं और अपने जीवन में आगे बढ़ते हैं, तो वो बहुत घमंड करने लगते हैं। वैसे ही जैसे शतरंज के खेल में ज्यादा फ़र्जी बन जाता हैं तो वह टेढ़ी चाल चलने लगता हैं।
क्या सीख मिलती है:
रहीम दास जी के इस दोहे से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपनी छोटी-मोटी सफलता पर कभी अभिमान नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा करने वाले लोगों की सफलता ज्यादा देर तक नहीं टिकती और आगे वे कुछ नहीं कर पाते।
रहीम दास का दोहा नंबर 20- Rahim Ke Dohe 20
रहीम दास जी ने उन लोभियों के लिए इस दोहे में बड़ी सीख दी है जो अक्सर कुछ न कुछ पाने की चाह में लगे रहते हैं और अपनी जिंदगी बेकार कर लेते हैं।
दोहा:
“चाह गई चिंता मिटीमनुआ बेपरवाह। जिनको कुछ नहीं चाहिये, वे साहन के साह।”
अर्थ:
जिन लोगों को कुछ नहीं चाहिये वों लोग राजाओं के राजा हैं, क्योंकि उन्हें ना तो किसी चीज की चाह हैं, ना ही चिन्ता और मन तो पूरा बेपरवाह हैं।
क्या सीख मिलती है:
रहीम दास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें लालची नहीं बनना चाहिए और किसी चीज को पाने की इच्छा नहीं रखनी चाहिए क्योंकि जो लोग किसी चीज को पाने के लिए भागते रहते हैं। ऐसे लोग खुशी से अपनी जिंदगी नहीं बिता पाते।
आपने कबीर दास के दोहे भी रहीम के कहकर यहां पोस्ट किये हैं… और रहीम के कई दोहे अशुद्ध लिखे हैं.. कृपया कर इनके बारे में थोड़ी और जानकारी जुटाईये और पाठको को सही चीज उपलब्ध करवाईये… आपके अधकचरे ज्ञान से नवोदित पाठकवर्ग और छात्रों को भ्रमात्मक जानकारी मिलेगी।
अच्छा संकलन है परंतु दोहों का पाठ (Text) भ्रामक एवं अशुद्ध है। इसे थोड़े प्रयास से ठीक किया जा सकता है।