क़ुतुब मीनार का इतिहास और रोचक तथ्य | Qutub Minar History In Hindi

Qutub Minar History In Hindi

भारत की राजधानी दिल्ली में स्थित कुतुब मीनार एशिया की सबसे ऊंची मीनार है। यह मुगलकालीन वास्तुकला का एक अद्भुत नमूना है, जो कि भारत की सबसे भव्य और मशहूर ऐतिहासिक इमारतों और मुख्य पर्यटन स्थलों में से एक है।

इसके आर्कषण की वजह से इसे यूनेस्कों की विश्व धरोहरों की लिस्ट में भी शामिल किया गया है। इस आर्टिकल में आज हम आपको 12वीं-13वी सदी के बीच में बनी भारत की इस भव्य मीनार के बारे में बताएंगे, तो आइए जानते हैं कुतुब मीनार के बारे में –

क़ुतुब मीनार का इतिहास – Qutub Minar History In Hindi

Qutub Minar History In Hindi

कुतबमीनार का निर्माण कब और किसने करवाया था? – Qutub Minar Kisne Banaya

भारत की सबसे ऊंची मीनार कुतुब मीनार दिल्ली के महरौली इलाके में छत्तरपुर मंदिर के पास स्थित है। यह विश्व की दूसरी सबसे ऊंची मीनार है, जिसका निर्माण 12वीं और 13वीं शताब्दी के बीच में कई अलग-अलग शासकों द्धारा करवाया गया हैं।

1193 ईसवी में दिल्ली के पहले मुस्लिम एवं गुलाम वंश के शासक कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा कुतुबमीनार का निर्माण काम शुरु करवाया गया था। उन्होंने कुतुबमीनार की नींव रख सिर्फ इसका बेसमेंट और पहली मंजिल बनवाई थी।

कुतुबुद्धीन ऐबक के शासनकाल में इस भव्य इमारत का निर्माण कार्य पूरा नहीं हो सका था, जिसके बाद कुतुब मीनार की इमारत का निर्माण दिल्ली के सुल्तान एवं कुतुब-उद-दिन ऐबक के उत्तराधिकारी और पोते इल्तुमिश ने करवाया था, उन्होंने इस ऐतिहासिक इमारत मीनार की तीन और मंजिलें बनवाईं थी।

जबकि, साल 1368 ईसवी में एशिया की इस सबसे ऊंची मीनार की पांचवी और अंतिम मंजिल का निर्माण फिरोज शाह तुगलक के द्धारा करवाया गया थी।

वहीं 1508 ईसवी में आए भयंकर भूकंप की वजह से कुतुब मीनार की इमारत  काफी क्षतिग्रस्त हो गई थी, जिसके बाद लोदी वंश के दूसरे शासक सिकंदर लोदी के द्धारा इस मीनार की सुध ली गई थी और इसकी मरम्मत करवाई गई थी।

इस भव्य मीनार के निर्माण में लाल बलुआ पत्थर और मार्बल का इस्तेमाल किया गया है, जिसमें अंदर गोल करीब 379 सीढ़ियां हैं। इसके साथ ही आपको बता दें कि कुतुबमीनार की अदभुत इमारत जाम की मीनार से प्रेरित होकर बनाई गई थी।

ऐसे पड़ा इस ऐतिहासिक मीनार कुतुब- मीनार का नाम? – Qutub Minar Information in Hindi

करीब 73 मीटर ऊंची भारत की इस सबसे ऊंची और भव्य मीनार  के नाम को लेकर इतिहासकारों के अलग-अलग मत हैं। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इस भव्य मीनार का नाम गुलाम वंश के शासक और दिल्ली सल्तनत के पहले मुस्लिम शासक कुतुब-उद-दिन ऐबक के नाम पर रखा गया है। कुतुब’ शब्द का अर्थ है ‘न्याय का ध्रुव’।

जबकि कुछ इतिहासकारों के मुताबिक मुगलकाल में बनी इस भव्य इमारत का नाम मशहूर मुस्लिम सूफी संत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर रखा गया था।

कुतबमीनार की  अद्भुत बनावट एवं शानदार संरचना – Qutub Minar Architecture

12वीं-13वीं सदी के बीच में बनी इस मुगलकालीन वास्तुकला की सर्वश्रेष्ठ ऐतिहासिक मीनार का निर्माण दिल्ली सल्तनत के कई शासकों द्धारा करवाया गया है, इसे इतिहास में विजय मीनार के नाम से भी जाना जाता है।

दिल्ली में स्थित इस मीनार के परिसर में कई अन्य अद्धितीय ऐतिहासिक स्मारक भी स्थित हैं, जो कि इस ऐतिहासिक मीनार के आर्कषण को दो गुना करती हैं।

भारत में बनी इस ऐतिहासिक मीनार की भव्यता और आर्कषण के चर्चे तो दुनिया भर में हैं, क्योंकि जो भी इस मीनार को देखता है, इसकी तारीफ किए बिना नहीं रह पाता है।

आपको बता दें कि इस अद्भुत कुतुबमीनार के निर्माण में मुगलकालीन वास्तु शैली का इस्तेमाल किया गया है। मध्यकालीन भारत में बनी इस इमारत को मुगल काल की वास्तुकला की सबसे सर्वश्रेष्ठ इमारत भी माना जाता है, क्योंकि वास्तुकारों और शिल्पकारों ने छोटी-छोटी बारीकियों को ध्यान में रखकर इस मीनार की बेहद खूबसूरत नक्काशी की है।

दिल्ली में स्थित मुगल काल में बनी कुतुबमीनार  एक बहुमंजिला इमारत हैं, जिसकी 5 अलग-अलग मंजिल हैं, जिसमें हर मंजिल के सामने एक बॉलकनी भी बनी हुई है।

इस मीनार की खास बात यह है कि कुतुबमीनार की मंजिलों का निर्माण अलग-अलग शासकों द्धारा करवाया गया है।

1193 ईसवी में दिल्ली के सुल्तान कुतुबुद्धीन ऐबक ने इस भव्य मीनार की ग्राउंड और सबसे पहली मंजिल का निर्माण करवाया था, जबकि अन्य मंजिलों का निर्माण इल्तुतमिश और फिरोजशाह तुगलक द्धारा करवाया गया, जबकि इस मीनार के पुर्ननिर्माण का कार्य लोदी वंश के शासक सिकंदर लोदी ने करवाया था।

आपको बता दें कि भारत की भव्य कुतुबमीनार की पहली तीन मंजिलों का निर्माण सिर्फ लाल बलुआ पत्थर से किया गया था, जबकि इसकी चौथी और पांचवी मंजिल का निर्माण में संगममर (मार्बल) एवं लाल बलुआ पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है।

करीब 73 मीटर ऊंची कुतुब- मीनार की हर मंजिल की बनावट पर खास ध्यान दिया गया है।

मीनार की हर मंजिल में बेहद शानदार शिल्पकारी की गई है, जिसकी खूबसूरती को देखते ही बनता है, वहीं भारत की इस सबसे ऊंची मीनार की सबसे आखिरी मंजिल से पूरे दिल्ली शहर का शानदार और अद्भुत नजारा दिखाई देता है।

दिल्ली के महरौली इलाके में स्थित इस भव्य मीनार के  निर्माण में संगममर और लाल बलुआ पत्थरों का इस्तेमाल  किया गया हैं। कुछ इतिहासकारों की माने तो इस ऐतिहासिक मीनार को बनाने के लिए करीब 27 हिन्दू मंदिरों को तोड़कर पत्थर उपलब्ध करवाए गए थे।

वहीं एशिया की इस भव्य इमारत के पत्थरों पर बनी कुरान की आयतें कुतुबमीनार की सुंदरता को चार चांद लगाती हैं और इसके आर्कषण को और अधिक बढ़ाने का काम करती हैं।

देश की सबसे ऊंची मीनार का इस्तेमाल पहले मस्जिद की मीनार के रुप में किया जाता था, और वहीं से अजान दी जाती थी, हालांकि बाद में यह एक पर्यटन स्थल के तौर पर मशहूर हो गया।

इस मीनार के निर्माण में नागरी और अरबी लिपि के कई शिलालेखों का इस्तेमाल किया गया है। इसके साथ ही इस भव्य मीनार की संरचना एवं बनावट को राजपूत टावरों से प्रेरित होकर बनाया गया था।

भारत की इस खूबसूरत इमारत के आधार का व्यास करीब 14.3 मीटर और सबसे ऊंचे शीर्ष का व्यास 2.7 मीटर है।

जबकि इन्डो-इस्लामिक शैली में बनाई गई कुतुब मीनार की लंबाई 73 मीटर लंबी है, जिसके अंदर गोलाकार करीब 379 सीढि़यां बनीं हुईं हैं, जो कि इस पूरी इमारत की ऊंचाई तक जाती हैं।

आपको बता दें कि भारत की यह सबसे ऊंची इमारत कुतुबमीनार एक भारी परिसर में बनी हुई है, जिसके आसपास कई अद्धितीय  ऐतिहासिक इमारतें भी स्थित हैं।

कुतुब परिसर में दिल्ली सल्तनत के पहला सुल्तान एवं गुलाम वंश के संस्थापक कुतुबद्दीन ऐबक द्धारा बनाई गई हिन्दुस्तान की पहली मस्जिद कुव्वत-उल-इस्लाम, मशहूर अलाई दरवाजा, इल्तुतमिश का मकबरा समेत एक लौह स्तंभ भी है।

जिसका निर्माण गुप्त सम्राज्य के चंद्रगुप्त द्वितीय द्वारा करीब 2 हजार साल से भी पहले करवाया गया था, लेकिन इसकी खासियत यह है कि इतने सालों बाद में इस लौह स्तंभ (आयरन पिलर) में किसी तरह की जंग नहीं लगी हुई है।

भारत की एतिहासिक विरासत एवं प्रमुख पर्यटन स्थल के रुप में कुतुबमीनार – Qutub Minar as Tourist Place

करीब 73 मीटर ऊंची यह भव्य मीनार मुगलकालीन स्थापत्य कला की सबसे महान कृतियों में से एक है, जो कि  अपनी बेहतरीन कारीगरी और सुंदर नक्काशी के लिए जानी जाती है। कुतुबमीनार पांच मंजिलों वाली एक बहुमंजिला इमारत है।

यह भारत के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है, जिसकी भव्यता को देखने दुनिया के कोने-कोने से बड़ी संख्या में सैलानी हर साल आते हैं और इसकी सुंदर बनावट और विशालता की तारीफ करते हैं।

कुतुब मीनार के परिसर में इल्तुतमिश का मकबरा, अलाई दरवाजा, अलाई मीनार, मस्जिदें आदि इस मीनार के आर्कषण को बढ़ाती हैं। वहीं शंक्काकार आकार में बनी इस भव्य मीनार में की गई शानदार कारीगरी और बेहतरीन नक्काशी पर्यटकों को अपनी तरफ खीचती हैं।

इंडो-इस्लामिक वास्तु शैली द्धारा निर्मित इस ऐतिहासिक मीनार की खूबसूरती को देखते ही बनता है।इस बहुमंजिला मीनार की वजह से भारत के पर्यटन विभाग को भी हर साल खासा मुनाफा होता है। कुतुबमीनार को देखने हर साल लाखों की संख्या में सैलानी आते हैं, जिससे भारत में टूरिज्म को भी काफी बढ़ावा मिलता है।

कुतुबमीनार जाने का समय – Qutub Minar Timing

भारत की यह सबसे ऊंची और भव्य इमारत कुतुबमीनार सप्ताह में सभी दिन खुली रहती है।

यह इमारत सुबह 6 बजे से खुलती है, और शाम 6 बजे बंद होती है। इस मीनार को देखने किसी भी मौसम में सैलानी जा सकते हैं।

ऐसे पहुंचे कुतुब मीनार – How to Reach Qutub Minar

कुतुब मीनार भारत की राजधानी दिल्ली में स्थित है,जिसकी दुनिया के हर देश और राज्यों के साथ अच्छी ट्रांसपोर्ट कनेक्टिविटी है। दिल्ली में कुतुबमीनार तक मेट्रो ट्रेन के द्धारा भी पहुंचा जा सकता है, इसके सबसे पास कुतुबमीनार मेट्रो स्टेशन है।

इसके अलावा यहां सैलानी दिल्ली के लोकल बस के माध्यम से भी पहुंच सकते हैं।

वहीं महरौली जाने वाली सभी बसें कुतुब मीनार को पार करती हैं, क्योंकि महरौली बस स्टैंड कुतुब मीनार मस्जिद के पास स्थित हैं। इसके अलावा ऑटो एवं कैब के माध्यम से भी यहां तक आसानी से पहुंचा जा सकता है।

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38 thoughts on “क़ुतुब मीनार का इतिहास और रोचक तथ्य | Qutub Minar History In Hindi”

  1. Shalabh Saxena

    राजनीति स्वार्थ के वशीभूत होकर हमारे इतिहास के साथ जिस प्रकार की छेड़छाड़ और तोड़मरोड़ की गयी है, उसका एक उदाहरण कुतुबमीनार भी है। मुख्यधारा से इतर कुछ इतिहासकारों के नये शोधों में कुछ नयी बातें सामने आयी हैं, जो पाठकों के लिए जानने योग्य हैं।
    1191 A.D. में मोहम्मद गौरी ने दिल्ली पर आक्रमण किया, तराइन के मैदान में पृथ्वी राज चौहान के साथ युद्ध में गौरी बुरी तरह पराजित हुआ, 1192 में गौरी ने दुबारा आक्रमण में पृथ्वीराज को हरा दिया। कुतुबुद्दीन, गौरी का सेनापति था।
    1206 में गौरी ने कुतुबुद्दीन को अपना नायब नियुक्त किया और जब 1206 A.D,में मोहम्मद गौरी की मृत्यु हुई तब वह गद्दी पर बैठा। अनेक विरोधियों को समाप्त करने में उसे लाहौर में ही दो वर्ष लग गए. 1210 A.D. लाहौर में पोलो खेलते हुए घोड़े से गिरकर उसकी मौत हो गयी।
    अब इतिहास के पन्नों में लिख दिया गया है कि कुतुबुद्दीन ने क़ुतुब मीनार, कुवैतुल इस्लाम मस्जिद और अजमेर में अढाई दिन का झोपड़ा नामक मस्जिद भी बनवाई।
    अब कुछ प्रश्न …….
    कुतुबुद्दीन ने क़ुतुब मीनार बनाई, लेकिन कब ?
    क्या कुतुबुद्दीन ने अपने राज्य काल 1206 से 1210 मीनार का निर्माण करा सकता था ? जबकि पहले के दो वर्ष उसने लाहौर में विरोधियों को समाप्त करने में बिताये और 1210 में भी मरने के पहले भी वह लाहौर में था?
    ……शायद नहीं
    कुछ ने लिखा कि इसे 1193AD में बनाना शुरू किया, यह भी कि कुतुबुद्दीन ने सिर्फ एक ही मंजिल बनायीं। उसके ऊपर तीन मंजिलें उसके परवर्ती बादशाह इल्तुतमिश ने बनाई और उसके ऊपर कि शेष मंजिलें बाद में बनी।
    यदि 1193 में कुतुबुद्दीन ने मीनार बनवाना शुरू किया होता तो उसका नाम बादशाह गौरी के नाम पर “गौरी मीनार “या ऐसा ही कुछ होता न कि सेनापति कुतुबुद्दीन के नाम पर क़ुतुब मीनार।
    उसने लिखवाया कि उस परिसर में बने 27 मंदिरों को गिरा कर उनके मलबे से मीनार बनवाई। अब क्या किसी भवन के मलबे से कोई क़ुतुब मीनार जैसा उत्कृष्ट कलापूर्ण भवन बनाया जा सकता है, जिसका हर पत्थर स्थानानुसार अलग अलग नाप का पूर्व निर्धारित होता है?
    कुछ लोगो ने लिखा कि नमाज़ समय अजान देने के लिए यह मीनार बनी, पर क्या उतनी ऊंचाई से किसी की आवाज़ निचे तक आ भी सकती है ?
    उपरोक्त सभी बातें झूठ का पुलिंदा लगती है, इनमें कुछ भी तर्क की कसौटी पर सच्चा नहीं लगता।
    सच तो यह है कि जिस स्थान में क़ुतुब परिसर है वह मेहरौली कहा जाता है, मेहरौली वराहमिहिर के नाम पर बसाया गया था जो सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के नवरत्नों में एक, और खगोलशास्त्री थे. उन्होंने इस परिसर में मीनार यानि स्तम्भ के चारों ओर नक्षत्रों के अध्ययन के लिए २७ कलापूर्ण परिपथों का निर्माण करवाया था। महरौली को पहले मिहिरपुरी के नाम से जाना जाता था।
    इन परिपथों के स्तंभों पर सूक्ष्म कारीगरी के साथ देवी देवताओं की प्रतिमाएं भी उकेरी गयीं थीं जो नष्ट किये जाने के बाद भी कहीं कहीं दिख जाती हैं।
    कुछ संस्कृत भाषा के अंश दीवारों और बीथिकाओं के स्तंभों पर उकेरे हुए मिल जायेंगे जो मिटाए गए होने के बावजूद पढ़े जा सकते हैं।
    मीनार , चारों ओर के निर्माण का ही भाग लगता है, अलग से बनवाया हुआ नहीं लगता, इसमे मूल रूप में सात मंजिलें थीं सातवीं मंजिल पर ”ब्रम्हा जी की हाथ में वेद लिए हुए“ मूर्ति थी जो तोड़ डाली गयीं थी। छठी मंजिल पर विष्णु जी की मूर्ति के साथ कुछ निर्माण थे। वे भी हटा दिए गए होंगे, अब केवल पाँच मंजिलें ही शेष है। इसका नाम विष्णु ध्वज /विष्णु स्तम्भ या ध्रुव स्तम्भ प्रचलन में थे ।
    इन सब का सबसे बड़ा प्रमाण उसी परिसर में खड़ा लौह स्तम्भ है जिस पर खुदा हुआ ब्राम्ही भाषा का लेख जिसे झुठलाया नहीं जा सकता। इसमें लिखा है कि यह स्तम्भ जिसे गरुड़ ध्वज कहा गया है, सम्राट चन्द्र गुप्त विक्रमादित्य (राज्य काल 380-414 ईसवीं) द्वारा स्थापित किया गया था और यह लौह स्तम्भ आज भी विज्ञानं के लिए आश्चर्य की बात है कि आज तक इसमें जंग नहीं लगा। उसी महान सम्राट के दरबार में महान गणितज्ञ आर्यभट्ट,खगोलशास्त्री एवं भवन निर्माण विशेषज्ञ वराहमिहिर, वैद्यराज ब्रम्हगुप्त आदि हुए। ऐसे राजा के राज्यकाल को जिसमे लौह स्तम्भ स्थापित हुआ तो क्या जंगल में अकेला स्तम्भ बना होगा? निश्चय ही आसपास अन्य निर्माण हुए होंगे जिसमे एक भगवन विष्णु का मंदिर था उसी मंदिर के पार्श्व में विशालस्तम्भ विष्णुध्वज जिसमे सत्ताईस झरोखे जो सत्ताईस नक्षत्रो व खगोलीय अध्ययन के लिए बनाए गए, निश्चय ही वराहमिहिर के निर्देशन में बनाये गए।
    इस प्रकार कुतब मीनार के निर्माण का श्रेय सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के राज्य कल में खगोलशाष्त्री वराहमिहिर को जाता है। कुतुबुद्दीन ने सिर्फ इतना किया कि भगवान विष्णु के मंदिर को विध्वंस किया उसे कुवातुल इस्लाम मस्जिद कह दिया, विष्णु ध्वज (स्तम्भ ) के हिन्दू संकेतों को छुपाकर उन पर अरबी के शब्द लिखा दिए और क़ुतुब मीनार बन गया…।

  2. purushottam varam

    वर्तमान में छत्तीसगढ़ के गिरौदपुरी धाम में कुतुम मीनार से बड़ा जैतखाम बन गया है…

  3. Thank u,qutub minar ki information hindi batane k liye..bhut jaruri h in sab chizo ko janana..ki hamare india m kitni rochak places h..n i apriciate to put this in hindi..thank u..

  4. Eska naam Gyani Pandit na hoker ETEHASEK GYANI PANDIT Hona theek hota kyoke Aaj ka Yuva Mnch Schh m ab Jagruk hua h
    Yeh baat apko DU m daykhnay ko milayga Ya Aajke
    Nye Pehrre Ke Utsukta ko me n Jaana
    Schh Aap Etehas ke sahi jankari day rahay h
    Me Aajkl apnay Rashteya Gan GN MN ADHENAYK Ke Schhaie ko Study kr raha hu jo ke Hmara jbr dste
    Ghoshit keya gya@ Chapluse gaan ko bnaya Rashteyagaan kyu kyu ??
    Anndy

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