पुरंदर के किले – Purandar Fort
इतिहास में पुरंदर के किले को बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान मिल चूका है। इस किले का निर्माण कई शतको पहले किया गया था। उस समय यादव वंश का शासन था।
पुरंदर किले को जो नाम दिया गया है वो भगवान परशुराम के नाम पर से ही दिया गया है। पुरंदर किले की विशेषता यह है की, यहापर कई सारे देवताओ के मंदिर बनवाये गए है।
स किले की एक और रहस्यमयी बात है जो काफी कम लोगो को मालूम होगी। पुरंदर किले को बनाते वक्त और उसके बाद इसे बाहरी हमलो से बचाने के लिए कई सारे लोगो की बलि दी गयी और उन सबको किले में ही दफनाया गया था।
इतिहास का महत्वपूर्ण किला पुरंदर किला – Purandar Fort
‘पुरंदर’ के किले को ‘पुरंधर’ का किला नाम से भी जाना जाता है। इस किले को जितने के साथ ही छत्रपति शिवाजी महाराज के शासन की शुरुवात हो चुकी थी।
यह प्रसिद्ध किला पश्चिम घाटी में स्थित है और समुद्र से 4472 फीट की उचाई पर स्थित है। पुरंदर का किला और ‘वज्रगड’ या ‘रुद्रमल’ किला दोनों किले जुड़वाँ किले है।
लेकिन वज्रगड का किला पुरंदर किले सामने काफी छोटा है। इस किले के नाम से वहा के गाव को भी पुरंदर नाम दिया गया और यह गाव किले के बाजु में ही स्थित है।
पुरंदर किले का इतिहास – Purandar Fort History
पर्शियन लोगो ने जब यादवो को युद्ध मे हरा दिया था, तो उसके बाद में यह पुरंदर का किला पर्शियन के कब्जे में चला गया और उन्होंने सन 1350 में इस किले को फिर से बहुत बड़ा बनवाया।
बीजापुर और अहमदनगर के बादशाह के शासनकाल में इस किले पर केवल सीधा सरकार का ही नियंत्रण था और इसे कभी भी जागीरदार को सौपा नहीं गया था।
सन 1646 में जब छत्रपति शिवाजी महाराज बहुत छोटे थे उस वक्त उन्होंने इस पुरंदर किले पर हमला कर दिया था और उसे अपने कब्जे में कर लिया था और इसके साथ ही मराठा साम्राज्य की नीव रखी थी।
मिर्जा राजे जयसिंह ने औरंगजेब की सेना का नेतृत्व करते हुए सन 1665 में पुरंदर किले पर हमला कर दिया था और उसे खुद के कब्जे में ले लिया था और इस काम में दिलेर खान ने भी जयसिंग की मदत की थी।
जिस समय यह हमला हुआ था उस वक्त महर के मुरारबाजी देशपांडे इस किले के किलेदार थे और उन्होंने अपनी आखिरी सास तक किले को बचाने के लिए मुग़ल सेना का पूरी ताकत से सामना किया और इस लड़ाई में वो किले की हिफाजत करते करते शहीद हो गए। इस बात को समझने के बाद छत्रपति शिवाजी महाराज काफी नाराज हुए थे, जिसके बादमे उन्होंने सन 1665 में औरंगजेब के साथ में पहिली पुरंदर की संधि की थी।
पुरंदर संधि के मुताबिक छत्रपति शिवाजी महाराज को पुरंदर किले को मिलाकर कुल 23 किले और चार लाख होन्स (सोने की मुहरे) औरंगजेब को देनी पड़ी थी। पुरंदर संधि के अनुसार छत्रपति शिवाजी महाराज उस प्रान्त के जागीरदार थे।
मगर अधिक समय तक यह संधि टिक नहीं सकी और सन 1670 में छत्रपति शिवाजी महाराज ने एक बार फिर से औरंगजेब के खिलाफ हमला कर दिया और किले को अपने कब्जे में कर लिया।
जब पेशवा का शासन था तो उस वक्त उनका राजधानी का शहर पुणे पर हमला किया गया था तो उन्होंने पुरंदर किले का सहारा लिया था।
सन 1776 में मराठा सेना और अंग्रेजो के बिच में पुरंदर की दूसरी संधि हुई थी। इस संधि की कोई भी शर्त पूरी नहीं की गयी लेकिन इसके बाद में सन 1782 में सालबई की संधि हुई जो बॉम्बे सरकार और रघुनाथराव के बिच में हुई थी और समय एंग्लो मराठा युद्ध आखिरी पड़ाव पर था।
सन 1818 में पुरंदर किले पर जनरल प्रिज्लर के नेतृत्व में अंग्रेज सेना का कब्ज़ा था। 14 मार्च 1818 को अंग्रेज सेना ने वज्रगड पर हमला कर दिया था। आखिरी में वज्रगड के सेनापति को हार माननी पड़ी और अंग्रेज सेना की शर्तो को मानते हुए वहापर 16 मार्च 1818 को किले पर अंग्रेजो का ध्वज फहराया गया।
अंग्रेजो के समय में इस किले को कैदखाना के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। दुसरे विश्व युद्ध के दौरान इस किले में दुश्मनों (जर्मन) के परिवार के लिए शिविर आयोजित किये जाते थे। जर्मनी के ज्यू और आर्यन लोगो को इस किले में रखा जाता था।
दुसरे विश्व युद्ध के दौरान इस किले में जर्मन डॉ एच। गोएट्स को बंदी बनाकर रखा था। मगर अंग्रेज अधिकतर इस किले का स्वास्थ्य भवन के रूप में ही इस्तेमाल करते थे।
इस किले से जुडी एक और कहानी भी है, उसके मुताबिक एक पर्शियन ने एक व्यक्ति को उसका बच्चा और पत्नी का बलिदान देने को कहा था। उन दोनों को मारने के बाद उन्हें किले के बुर्ज में दफनाया गया था। उसके बाद में उस व्यक्ति को दो गाव सौपे गए।
पुरंदर किले की संरचना – Purandar Fort Architecture
पुरंदर के किले को दो हिस्सों में बाटा गया है। पुरंदर किले के निचे के हिस्से को माची कहा जाता है। माची के उत्तर दिशा में छावनी और अस्पताल है।
यहापर पुरंदरेश्वर भगवान के कई सारे मंदिर बनवाये गए है और साथ ही यहापर सवाई माधवराव पेशवा का भी मंदिर है। इस किले में इस किले के सेनापती (किलेदार) मुरारबाजी देशपांडे का पुतला भी बनवाया गया है।
पुरंदर के किले को बचाने के लिए मुरारबाजी देशपांडे खुद शहीद हो गए थे। किले के उत्तर दिशा में यानि माची के उत्तर दिशा में कई सारे बुर्ज बनाये हुए है और वहापर बड़े बड़े द्वार भी है और उनके साथ में दो स्तंभ भी है।
माची से ऊपर जाने के लिए सीढियों की व्यवस्था की गयी है जिसकी मदत से किले के उपरी भाग ‘बालेकिल्ला’ तक पंहुचा जा सकता है। बालेकिल्ला में पहुचते ही ‘दिल्ली दरवाजा’ दिख जाता है। किले के इस परिसर में काफी पुराना केदारेश्वर मंदिर भी है।
बालेकिल्ला के चारो तरफ़ उतार की जमीन है। इस किले ने छत्रपति शिवाजी और औरंगजेब के बिच की कई सारी लड़ाईयां देखी। आगे चलके इस किले पर अंग्रेजो ने कब्जा कर लिया था और उन्होंने इस किले के अन्दर एक चर्च भी बनवाया था।
पुरंदर किले पर कैसे पहुचे? – How to Reach Purandar Fort
पुरंदर किला पुणे से केवल 60 किमी की दुरी पर है।
रास्ते से: सासवड को किसी सार्वजनिक और निजी वाहन से पंहुचा जा सकता है। सासवड पहुचने के बाद वहासे नारायणपुर जाने के लिए बस की सुविधा उपलब्ध है।
रेलवे से: यहाँ से सबसे नजदीक में पुणे जंक्शन है। यहाँ से किला केवल 45 किमी की दुरी पर है। पुणे से पुरंदर तक रास्ते से भी पंहुचा जा सकता है।
हवाईजहाज से: पुणे हवाई अड्डा यहाँ से काफी नजदीक है। सभी शहरों से पुणे हवाई अड्डे तक पहुचा जा सकता है। पर्यटक पुणे के रास्ते से पुरंदर किले पर बड़ी आसानी से पहुच सकते है।
जब यह किला छत्रपति शिवाजी महाराज के नियंत्रण में था तो उस समय इस किले के सेनापति मुरारबाजी देशपांडे थे।
मगर कुछ समय बाद ही मुगलों ने इस किले पर हमला कर दिया था। मुगलों ने बड़ी संख्या में किले पर हमला कर दिया था। मगर इस किले के सेनापति मुरारबाजी देशपांडे ने आखिरी साँस तक इस किले को बचाने की पूरी कोशिश की थी।
पुरंदर के किले को बचाने के लिए उन्होंने अपनी जान भी दे दी थी। इसीलिए उनकी याद में इस किले में मुरारबाजी का पुतला भी बनवाया गया है। एक समय में छत्रपति शिवाजी महराज के दादाजी के नियन्त्रण में यह किला हुआ करता था।
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Purandar means Indra. Just as the position of Indra is strong, so is this Purandar. In the Puranas, the name of this mountain is ‘Indranil Parvat’.