फिरोजशाह मेहता एक मशहूर पारसी भारतीय राजनेता, सामाजिक कार्यकर्ता, प्रसिद्ध वकील, स्पष्ट वक्ता एवं पत्रकार थे। उनके भारतीय इतिहास में महत्त्व को हम इस तरह समझ सकते है की इतिहास के कई नेता उनसे क़ानूनी सलाह लेते थे और फिरोजशहा मेहता जी की नीतियों को अपनाकर ब्रिटिश अधिकारियो को धुल चटाते थे।
फिरोजशाह मेहता ने साल 1872 में मुंबई नगर पालिका एक्ट लागू करवाया था, इसलिए उन्हें मुंबई नगरपालिका के संविधान के निर्माता एवं मुंबई महानगरपालिका के जनक के रुप में भी जाना जाता है। इसके अलावा उन्होंने देश के स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और अपनी कानूनी नीतियां बनाकर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी।
इसके साथ ही उन्होंने साल 1913 में अखबार ‘बॉम्बे क्रॉनिकल’ की स्थापना की थी, जिसने स्वतंत्रता संग्राम के समय काफी बडी भूमिका निभाई थी। फिरोज शाह मेहता को साल 1904 में ‘नाइट’ की उपाधि से सम्मानित किया था। तो आइए जानते हैं फिरोजशाह मेहता के जीवन के बारे में-
प्रसिद्ध भारतीय राजनेता फिरोजशाह मेहता की जीवनी – Pherozeshah Mehta Biography in Hindi
एक नजर में –
पूरा नाम (Name) | फिरोज़शाह मेहता |
जन्म (Birthday) | 4 अगस्त, 1845, बॉम्बे (अब मुम्बई) |
शिक्षा (Education) | एम. ए., वकालत |
मृत्यु (Death) | 5 नवम्बर, 1915 |
जन्म, परिवार, शिक्षा एवं प्रारंभिक जीवन –
फिरोजशाह मेहता का 4 अगस्त 1845 में मुंबई के एक मशहूर पारसी परिवार में जन्में थे। एक संपन्न परिवार में पैदा होने की वजह से उनकी परिवरिश काफी अच्छी हुई थी। उन्होंने मुंबई से ही अपनी प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की थी और मुंबई के एल्फिंस्टोन कॉलेज से ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की थी।
साल 1864 में उन्होंने M.A. की परीक्षा उत्तीर्ण थे और वे मुंबई वे मास्टर्स करने वाले पहले व्यक्ति बने। इसके बाद वे लॉ की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड चले गए और 1868 में लॉ की डिग्री हासिल कर भारत वापस आ गए।
वकील के रुप में –
फिरोजशाह मेहता जब अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद वापस भारत लौटे तो उन्होंने वकालत का प्रशिक्षण शुरु कर दिया, वहीं इस दौरान उन्होंने मुंबई के नगरपालिका में सुधार की जरूरत महसूस हुआ, इसी के चलते उन्होंने नगरपालिका को पुनर्निर्मित करने का फैसला लिया और इसकी रुपरेखा तैयार कर इसका प्रस्ताव रखा।
मुंबई महानगरपालिका के जनक –
फिरोजशाह मेहता के अभूतपूर्व प्रयासों के बाद साल 1872 में मुंबई नगरपालिका एक्ट लागू किया गया, जिसकी वजह से वे बंबई स्थानीय शासन के जनक कहलाए।
इसके बाद वे आयुक्त के पद पर नियुक्त हुए एवं साल साल 1905 में उन्हें अध्यक्ष के रुप में काम किया। फिर उनका रुझान राजनीति की तरफ बढ़ा और इसके लिए उन्होंने वकालत छोड़ दी।
राजनेता के रुप में –
फिरोजशाह मेहता साल 1893 में गवर्नर-जनरल की सर्वोच्च विधान परिषद के लिए नियुक्त किए गए और साल 1890 में उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के छठे अधिवेशन की अध्यक्षता की। उन्होंने बम्बई प्रेसीडेंसी एसोसिएशन माध्यम से भी लोगों के अंदर राजनैतिक चेतना पैदा करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
इसके बाद उन्होंने मुंबई यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर के रुप में भी अपनी सेवाएं प्रदान की। फिरोजशाह मेहता ने साल 1911 में उस सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया की स्थापना में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।
स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान –
भारत के महान राजनेता फिरोजशाह मेहता इकलौते ऐसे क्रांतिकारी थे, जिन्होंने अपने क़ानूनी दावपेचों से बड़े से बड़े अंग्रजी अफसरों के दांतों तले चने चबवा दिए थे। उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ कई कानूनी नीतियां बनाई थी और अलग तरीके से अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी थी।
हालांकि वे कई अन्य उदारवादी नेताओं की तरह ब्रिटिश शासन के प्रशंसक थे, उन्होंने कई बार ब्रिटिश शासन की न्यायप्रियता की सराहना भी की थी। इसके साथ ही वे अंग्रेजी शासन व्यवस्था की शिक्षा नीति पर भी काफी भरोसा रखते थे। उन्होंने साल 1890 में कलकत्ता अधिवेशन में अध्यक्षता की थी और साल 1892 में वे केन्द्रीय परिषद के सदस्य चुने गए थे।
फिरोजशाह मेहता का मानना था कि ब्रिटिश हुकूमत का विरोध करने पर कांग्रेस के अस्तित्व को खतरा पैदा हो सकता है। इसके साथ ही वे ब्रिटिशों के खिलाफ हिंसात्मक गतिविधियां और जुलूस आदि निकालने के विरोध में थे और उदारवादी नीतियों के साथ अंग्रेजों की गुलामी से आजादी पाना चाहते थे।
फिरोजशाह मेहता, आजादी के महानायक माने जाने वाले महात्मा गांधी जी के विचारों से काफी प्रभावित थे। एवं उग्रवाद को देश की स्वतंत्रता के लिए को सबसे बड़ा खतरा मानते थे। उन्होंने आर्म्स एक्ट, प्रेस एक्ट, पशु बलि आदि का कड़ा विरोध किया था। और किसानों को उनके अधिकार दिलवाने के लिए काफी प्रयास किए थे। उन्होंने भारतीयों को सामाजिक और राजनीतिक विचारों का बोध करवाने के लिए शिक्षा के प्रचार-प्रचार पर काफी जोर दिया था।
इसके अलावा फिरोज शाह मेहता ने बम्बई से अंग्रेजी दैनिक पत्र बाम्बे क्रॉनिकल के प्रकाशन की शुरुआत की थी, इसके दैनिक मैग्जीन के माध्यम से भारतीयों को अपने अधिकारों के लिए अहिंसात्मक तरीके से लड़ने के लिए प्रेरित किया था। उनके इस पत्र का स्वतंत्रता संग्राम में काफी बड़ा योगदान रहा था।
निधन –
भारत के महान क्रांतिकारी एवं नरम विचारों वाले महान राजनीतिज्ञ फिरोजशाह मेहता का 5 नवम्बर, 1915 ई. को निधन हो गया। उनके द्वारा देश की आजादी के लिए दिए गए योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता है।