जिसे भगवान गणेश के भक्त के नाम से जाना जाता हैं वो “बल्लालेश्वर मंदिर” | Pali Ganpati Ballaleshwar

Ballaleshwar – बल्लालेश्वर मंदिर भगवान गणेश के आठ मंदिरों में से एक है। गणेश के मंदिरों में बल्लालेश्वर एकमात्र ऐसा मंदिर है जिसे उनके भक्त के नाम से जाना जाता है। Pali Ganpati यह मंदिर रायगढ़ जिले के कर्जत से 58 किलोमीटर की दुरी पर पाली गाँव में बना हुआ है। यह मंदिर सारसगढ़ और अम्बा नदी के बीच में बना हुआ है।

Pali Ganpati

जिसे भगवान गणेश के भक्त के नाम से जाना जाता हैं वो “बल्लालेश्वर मंदिर” – Pali Ganpati Ballaleshwar

किंवदंतियाँ:

पाली गाँव में कल्याण नामक सफल और समृद्ध व्यापारी अपनी पत्नी इंदुमती के साथ रहता था। उनका पुत्र बल्लाल और गाँव के दुसरे बच्चे पत्थर की मूर्तियों के साथ खेलते रहते थे।

एक बार ऐसे ही सारे बालक गाँव के बाहर चले गये और वहां उन्होंने एक विशाल पत्थर देखा। बल्लाल के आग्रह करने पर सारे बच्चे उस पत्थर को भगवान गणेश मानकर उनकी पूजा-अर्चना करने लगे। बल्लाल के नेतृत्व में सारे बालक पूजा में इतने लीन हो चुके थे की उनकी भूक-प्यास सब मर चुकी थी।

जबकि, बच्चो के माता-पिता बच्चो के घर आने का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। और जब बच्चे समयपर घर वापिस नही आए तो सभी लोग मिलकर कल्याण के घर गए और उन्होंने बल्लाल की शिकायत की।

यह सब सुनकर कल्याण क्रोधित हो गये और एक छड़ी लेकर वे बच्चो की खोज में निकल पड़े। परिणामस्वरूप कुछ समय बाद उन्हें बच्चे गणेश पुराण का पाठ करते हुए दिखाई दिए। गुस्से में उन्होंने बच्चो द्वारा बनाए गये छोटे से मंदिर को तोड़ दिया और बल्लाल को छड़ी से मारने लगे।

लेकिन बल्लाल पूरी तरह से भगवान गणेश की भक्ति में लीन थे, उनकी शरीर से खून निकलने लगा लेकिन फिर भी उन्हें इस बात का जरा भी एहसास नही था। इ

सके बाद जिस पत्थर को बालक भगवान गणेश समझकर उनकी पूजा कर रहे थे उसे कल्याण ने तोड़ दिया।

इसके बाद उन्होंने बल्लाल से कहा की, “अब हम देखते है की तुम्हे कौनसा भगवान बचाता है!” इसके बाद घर जाते समय उन्होंने अपने पुत्र को पेड़ से बंधकर अकेला वाही छोड़ दिया था।

पेड़ से बंधे होने के बावजूद दर्द, भूक और प्यास से जूझ रहे बल्लाल ने भगवान गणेश का मंत्रोच्चार करना नही छोड़ा। इसके बाद उसकी भक्ति से खुश होकर अंततः भगवान गणेश ने अपने परम भक्त को दर्शन दे ही दिए। और दर्शन पाते ही बल्लाल की भूक, प्यार, नींद और चैन सब उड़ गयी थी। भगवान गणेश को देख वह बालक पूरी तरह से शांत हो चूका था।

इसके बाद भगवान गणेश ने बल्लाल से उनकी कोई भी इच्छा को पूरा करने का वादा किया। यह सुनते ही बल्लाल ने उनसे कहा की, “मै हमेशा आपका भक्त बनकर आपकी भक्ति करना चाहता हूँ और इसीलिए मै चाहता हूँ की आप इसी गाँव में हमेशा के लिए निवास करे।”

गणेश भगवान ने जवाब में कहा की, “मै हमेशा यही रहूँगा और यहाँ मेरे नाम से पहले हमेशा तुम्हारा नाम लिया जाएंगा, यहाँ पर स्थापित मेरी मूर्ति को बल्लालेश्वर नाम दिया जाएंगा।” यह वरदान देकर वे पत्थर में विराजमान हो गए। उनके विराजमान होते हुए टुटा हुआ पत्थर भी एक हो गया।

उसी पत्थर को बल्लालेश्वर कहा जाता है। जिस पत्थर को कल्याण ने जमीन पर फेंका था उसे आक धुंदी विनायक के नाम से जाना जाता है। यह एक स्वयंभूमूर्ति थी जिसकी पूजा बल्लालेश्वर के भी पहले से की जाती है।

पाली बल्लालेश्वर मंदिर महोत्सव:

हर साल भाद्रपद और माघ के महीने में यहाँ दो महोत्सवो का आयोजन किया जाता है। एक प्रकार से यह भक्तो का अनुभव होता है, जहाँ बल्लालेश्वर अपने भक्तो की इच्छा और मांग पूरी करते है। इसीलिए यहाँ भक्त या तो अपनी इच्छा प्रकट करने आते है या तो इच्छा पूरी होने के बाद आभार प्रकट करने आते है।

“कहा जाता है की जो भी भक्त यहाँ दर्शन के लिए आते है, उनकी इच्छा बल्लालेश्वर जरुर पूरी करते है।” भाद्रपद चतुर्थी को यहाँ महानिद्यम और पंचमी को यहाँ अन्नसंतारम का आयोजन किया जाता है।

अपनी मनोकामना पूरी करने के लिय भक्त मंदिर की 21 प्रदक्षिणा मारते है।

भक्तो का ऐसा मानना है की माघ शुद्ध चतुर्थी को श्री गजानन वास्तव में मंदिर में आते है और उन्हें चढ़ाये गए नैवेद्य को ग्रहण करते है। इसीलिए इस दिन यहाँ हजारो लोग भगवान के दर्शन के लिए आते है।

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