Olympic Flame
विश्वभर में प्रख्यात ओलंपिक खेल हर चार साल में आयोजित होता है। ओलंपिक में किसी खिलाड़ी का मेडल जीतना उस देश और उस खिलाड़ी के लिए बहुत ही गर्व की बात मानी जाती है। ओलंपिक में मेडल जीतना यानी विश्व स्तर पर अपनी एक पहचान बनना। और यही कारण है कि विश्व का कोई भी खिलाड़ी फिर चाहे वो खेल के किसी क्षेत्र से क्यों ना हो उसका सपना ओलंपिक में मेडल जीतना होता है। तभी उसकी प्रतिभा को असल पहचान मिल पाती है।
ओलपिंक को विश्व का सबसे बड़ा खेल समारोह माना जाता है। जिसमें विश्व के 206 देश हिस्सा लेते है। लेकिन ओलंपिक से कुछ महत्पूर्ण और रोचक प्रथाएं और धाराणाएं जुड़ी है जो इस खेल समारोह को ओर भी दिलचस्प बना देती है। और इन्ही में से एक है ओलपिंक के दौरान मशाल जलाकर मेजबानी करने वाले देश तक ले जाने की प्रथा। चलिए आपको बताते है Olympic Flame – ओलंपिक में ये मशाल क्यों जलाई जाती है और इसका क्या इतिहास है?
ओलंपिक में मशाल क्यों जलाई जाती है – Olympic Flame
ओलंपिक खेलों की शुरुआत साल 1896 में यूनान की राजधानी एँथेस से हुई थी लेकिन उस समय ओलंपिक में मशाल जलाने की कोई प्रथा नहीं थी ओलंपिक में मशाल जलाने की प्रथा 1936 में ओलंपिक के ओलंपिया शहर से शुरु हुई।
मान्य़ताओं के अनुसार ग्रीस के लोग आग को बहुत पवित्र मानते थे। और अपने मंदिरों में निरंतर आग जलाकर रखते थे। और यही कारण है कि ग्रीस में पूजे जाने वाली देवी हेस्टिया, देवता जूयस और हेरा के टेम्पलस में भी निरंतर आग जलती रहती है। ओलंपिक में भी ये प्रथा इसी धारणा को लेकर शुरु हुई की। आग से खेल की पवित्रता बनी रहेगी।
ओलंपिक की मशाल – Olympic Torch को जलाकर ले जाने की शुरुआत देवता हेरा के मंदिर से शुरु की गई थी। उस समय ओलंपिक की मशाल – Olympic Flame में आग सूर्य की किरणों के जरिए लगाई जाती थी। ऐसा इसलिए क्योंकि सूर्य कि किरणों को काफी पवित्र माना जाता था। जिस साल ओलंपिया शहर से ओलंपिक मशाल जलाने की शुरुआत हुई थी उस साल ओलंपिक खेलों की मेजबानी बर्लिन ने की थी।
इसके बाद साल 1952 में ओस्लो ओलंपिक के दौरान पहली बार ओलंपिक मशाल को हवाई यात्रा के जरिए ले जाया गया था। हालांकि उस समय तक दुनियाभर में संचार के साधन उतने विकसित नहीं थे जिस वजह से कभी ओलंपिक में टेलीविजन पर प्रसारण नहीं हुआ करता था। लेकिन साल 1960 तक दुनियाभर में संचार क्रांति आ चुकी थी। जिस वजह से रोम ओलंपिक की मशाल यात्रा का टीवी पर प्रसारण किया गया।
ओलंपिक मशाल – Olympic Flame को समुद्र के रास्ते से पहली बार 1968 के मैक्सिको ओलंपिक में ले जाया गया था। इसके अलावा ओलंपिक की मशाल को सिडनी ओलंपिक के दौरान साल 2000 में रेगिस्तान के रास्तों से ले जाते समय ऊटों और घोड़ो पर भी ले जाया जा चुका है। सभी देशों की यात्रा करते हुए मशाल को मेजबान देश तक पहुंचाने की प्रथा आज भी ओलंपिक में होती है।
लेकिन दिलचस्प बात ये है कि अब ओलपिंक की मशाल को सूर्य की किरणों से नही बल्कि शीशे से प्रज्जवलित की जाती है साथ ही इसे मजेबानी करने वाले देश की दक्षता के आधार पर कुछ अलग आकार दिया जाता है हालांकि इसके मूल रुप में आजतक कभी बदलाव नहीं किया गया। साल 2000 हुए सिडनी ओलपिंक में इस मशाल पर ओपरा की झलक देखने को मिली थी।
जब पहली बार ओलंपिक खेल हुए थे उस समय इसमें केवल 14 देशों ने भाग लिया था साथ ही उस समय इसमे भाग लेने वाली महिलाओं की संख्या भी बहुत कम हुआ करती थी। लेकिन वक्त साथ ओलपिंक में कई बदलाव आए। कई खेलों को इसमें शामिल किया गया जो पहले इसमें शामिल नहीं थे साथ ही महिलाओं की भागीदारी भी इसमें काफी बढ़ी है।
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Bhut badiya likha hai… gyanipandit.com per kuch alag padne Ko milta hai