Asahyog Andolan
आखिर क्या है असहयोग आंदोलन एवं इसके मुख्य कारण ? – Non Cooperation Movement in Hindi
असहयोग आंदोलन के बारे में एक नजर में – Non Cooperation Movement Information
आंदोलन: | असहयोग आंदोलन / असहकार आंदोलन |
कब हुई आंदोलन की शुरुआत: | 1 अगस्त, 1920 |
आंदोलन के नेतृत्वकर्ता: | महात्मा गांधी |
असहयोग आंदोलन का मुख्य उद्देश्य: | सरकार के साथ सहयोग नहीं करके सरकारी कार्यवाही में बाधा डालना |
असहयोग आंदोलन के मुख्य कारण: | रोलेट एक्ट, जलियांवाला बाग नरसंहार, आर्थिक संकट |
कब तक चला आंदोलन: | फरवरी, 1922 तक |
आंदोलन को वापस लेने का मुख्य कारण: | चौरी–चौरा कांड |
आखिर क्या है असहयोग आंदोलन और इसके मुख्य उद्देश्य – Objectives Of Non Cooperation Movement
आजादी के महानायक महात्मा गांधी जी द्धारा अंग्रेजों के अत्याचारों के खिलाफ चलाए गए असहयोग आंदोलन से तात्पर्य सहयोग नहीं करना था।
इस आंदोलन का मुख्य मकसद शांति और अहिंसात्मक तरीके से अंग्रेजों का असहयोग करना था।
असहयोग आंदोलन के तहत सरकारी कार्यालयों में काम नहीं करना, अंग्रेजों द्धारा स्थापित किए गए स्कूलों में नहीं पढ़ना, विदेशी वस्तुओं और कपड़ों का बहिष्कार करना,सरकारी उपाधियों आदि को लौटाना आदि। जिसके चलते ब्रिटिश हुकूमत को भारतीयों पर शासन करने में मुश्किल पैदा हो सके।
असहयोग आंदोलन के मुख्य कारण – Causes Of Non Cooperation Movement
असहयोग आंदोलन के कुछ मुख्य कारण निम्नलिखित हैं–
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जलियांवाला बाग हत्याकांड – Jallianwala Bagh Hatyakand
ब्रिटिश सरकार की दमनकारी और क्रूर नीतियों के विरोध में 13 अप्रैल, साल 1919 को पंजाब के अमृतसर के जलियांवाला बाग में शांतिपूर्ण तरीके से एक सार्वजनिक सभा का आयोजन किया गया, लेकिन इस सभा के दौरान अंग्रेजों की तरफ से भारतीयों पर जमकर गोलियां बरसाईं गईं।
इस नरसंहार में हजार से भी ज्यादा मासूम और बेकसूर लोगों की जान चली गई थी, तो कई हजार लोग बुरी तरह घायल हो गए थे। वहीं इस भयावह हत्याकांड के बाद पूरे देश में अंग्रेजों के खिलाफ रोष व्याप्त हो गया था और इसके विरोध में रबीन्द्र नाथ टैगोर जी ने नाइटहुड और महात्मा गांधी ने केसर–ए–हिन्द की उपाधि लौटा दी थी।
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मोंतागु केल्म्सफोर्ड सुधार के प्रति असंतोष:
साल 1919 मोंतागु–केल्म्सफोर्ड सुधार योजना के प्रति भारतीयों में काफी असंतोष फैल गया था, दरअसल ब्रिटिश सरकार की यह योजना गवर्मेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट पारित किया गया था, जिसके चलते विधानसभा के लिए सीधे चुनाव करवाना तय किया गया था।
वहीं इसके तहत विधानसभा का गवर्नर जनरल और एग्जीक्यूटिव काउंसिल पर कोई नियन्त्रण नहीं था। और तो और इसके तहत सिक्खो को भी मुसलमानों के बराबर पृथक निर्वाचन का अधिकार दे दिया गया था।
जिसके चलते भारतीयों के मन ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आक्रोश पैदा हो गया था। जिसके बाद पूर्व–स्वराज और स्वशासन की मांग को लेकर असहयोग आंदोलन किया गया था।
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खिलाफत आंदोलन – Khilafat Andolan
पहले विश्व युद्द के बाद टर्की में खलीफा का पद खत्म कर दिया गया और तुर्की सम्राज्य को अलग–अलग टुकड़ों में विभाजित कर दिया गया। वहीं भारतीय मुसलमान तुर्की के खलीफा को अपना धर्म गुरू मानते थे।
अंग्रेजों की इस हरकत से भारतीय मुसलमानों की भावनाओं को ठेस पहुंची और उनके मन में अंग्रेजों के खिलाफ आक्रोश पैदा हो गया। जिसके चलते भारतीय मुस्लिमों में खलीफा के समर्थन में विरोध किया।
वहीं उनके इस विरोध का कांग्रेस और गांधी जी ने पूर्ण समर्थन दिया जिसके बाद खिलाफत कमेटी ने गांधी जी के ब्रिटिश सरकार के असहयोग प्रस्ताव को स्वीकार किया,जिसके चलते पूरे देश में हिन्दू–मुस्लिम एकता की भावना फैल गई और फिर एकजुटता के साथ अंग्रेजों के खिलाफ 1920 में असहयोग आंदोलन की शुरुआत हुई।
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अकाल, महामारी और प्लेग:
असहयोग आंदोलन होने की सबसे बड़ी वजहों में से एक अकाल और महामारी भी थी। दरअसल, अंग्रेजी सरकार ने 1917 में पड़े सूखा और अकाल के बाद भारतीय जनता को दुख दूर करने में कोई कोशिश नहीं की थी, जिससे भारतीयों में अंग्रेजों के प्रति काफी रोष और हिंसा पैदा हो गई थी।
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ब्रिटिश सरकार की तरफ से रोलेट एक्ट लागू करना – Rowlatt Act
अंग्रेजों के अत्याचारों के खिलाफ ब्रिटिश सरकार के खिलाफ भारतीय जनता में दिन पर दिन आक्रोश बढ़ता जा रहा था, जिसे देखते हुए 18 मार्च 1919 को रोलेट एक्ट पास किया था।
इस काले कानून के तहत ब्रिटिश सरकार को किसी भी भारतीय व्यक्ति को बिना पूछताछ किए बंदी बनाने का अधिकार दिया गया था।
इसके साथ ही रोलेट एक्ट के तहत दंडित व्यक्ति को अपील करने तक भी अनुमति नहीं थी। अंग्रेजों के इस कानून के खिलाफ भारतीयों में अंग्रेजों के प्रति और ज्यादा आक्रोश बढ़ गया था।
इसके अलावा ब्रिटिश सरकार की अस्पष्ट नीतियां समेत कई अन्य मुख्य कारण थे, जिसकी वजह से असहयोग आंदोलन की रुपरेखा तैयार की गई।
तो ऐसे हुई असहयोग आंदोलन की शुरुआत – Asahyog Andolan
अंग्रेजों की दमनकारी नीति और अत्याचारों के चलते हर भारतीय के मन में अंग्रेजों के खिलाफ आक्रोश और गुस्सा फैल गया था।
वहीं उस समय हुई जलियावाला बाग हत्याकांड, खिलाफत आंदोलन, रोलेट एक्ट, आर्थिक संकट एवं सूखा और महामारी के चलते 1 अगस्त 1920 को महात्मा गांधी जी के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आंदोलन की शुरुआत हुई।
1920 में नागपुर में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में असहयोग आंदोलन का प्रारूप तैयार किया गया था।
असहयोग आंदोलन के कार्यक्रमों की रुपरेखा निम्नलिखत है-
- असहयोग आंदोलन के तहत ब्रिटिश सरकार द्धारा भारतीयों को मिली उपाधि, पुरुस्कारों की वापसी की अपील की गई।
- गांधी जी के नेतृत्व में हुए इस आंदोलन के तहत भारतीयों से ब्रिटिश सरकार द्धारा स्थापित किए गए स्कूलों और कॉलेजों में अपने बच्चों को नही पढ़ाने और उनका नाम कटवाने की अपील की गई।
- ब्रिटिश सरकार का पूरी तरह से असहयोग करने, ब्रिटिश अदालतों का बहिष्कार आदि करने की भी अपील की गई।
- विदेशी कपड़ों और विदेशी वस्तुओं को जलाने और स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने के लिए कहा गया।
- इस आंदोलन के तहत सरकारी दफ्तरों और सरकारी नौकरी छोड़ने के लिए भी कहा गया।
- ब्रिटिश सरकार के पूरी तरह असहयोग करने अर्थात करों का भुगतान न करना एवं परिषद चुनावों का बहिष्कार करने के लिए भी कहा गया।
अहसहयोग आंदोलन के समाप्ति के मुख्य कारण:
साल 1921 में जब असहयोग आंदोलन की आग पूरे देश में लगी हुई थी, तब उस दौरान कांग्रेस के बड़े–बड़े राजनेताओं ने महात्मा गांधी जी असहयोग आंदोलन के अगले चरण नगारिक अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत करने के लिए कहा।
वहीं इस आंदोलन की शुरु होने के पहले 5 फरवरी,1922 को गोरखपुर में चौरी–चौरा नामक गांव में कुछ क्रांतिकारियों ने थाने में आग लगा दी।
चौरी–चौरा कांड की इस भयानक घटना में थानेदार समेत कई ब्रिटिश पुलिस अफसरों की जान चली गई। इस तरह की हिंसा को देखते हुए गांधी जी ने असहयोग आंदोलन को स्थगित कर दिया, हालांकि इसकी वजह से उन्हें काफी आलोचना भी सहनी पड़ी थी।
अहसयोग आंदोलन के परिणाम – Effects Of Non-Cooperation
महात्मा गांधी जी के नेतृत्व में चलाए गए असहयोग आंदोलन से पूर्व स्वराज की प्राप्ति तो नहीं हो सकी, लेकिन इसके कुछ महत्वपूर्ण परिणाम देखने को मिले, जो कि निम्नलिखित हैं–
- असहयोग आंदोलन से देश की एकजुटता को बल मिला। यह पहला आंदोलन था, जिसमें बड़ी संख्या में भारतीय मुस्लिमों ने अपनी भागीदारी निभाई थी।
- असहयोग आंदोलन के बाद ब्रिटिश सरकार को भारतीयों की शक्ति का अंदाजा हो गया था और भारत में ब्रिटिश शासन की नींव हिल गई थी।
- असहयोग आंदोलन के बाद भारतीयों के मन में गुलाम भारत को आजाद करवाने की इच्छा और अधिक प्रबल हो गई थी।
- असहयोग आंदोलन के बाद भारतीयों को राजनीति समझने का मौका मिला था।
- असहयोग आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान आगामी संघर्ष की रुपरेखा तैयार करने में भी सहायक हुआ।
- असहयोग आन्दालेन के बाद भारतीय जनता के मन में अंग्रेजों के प्रति डर और भय खत्म हो गया था।
- असहयोग आंदोलन का प्रभाव काफी बड़े स्तर पर दिखा था।
- असहयोग आंदोलन एक जन आंदोलन बनकर उभरा था, जिसने ब्रिटिश सरकार को भारतीयों की शक्ति का एहसास दिलवा दिया था और भारत में उनकी नींव को हिला गया था।
वहीं इस आंदोलन के बाद भारतीयों के मन में स्वतंत्रता प्राप्ति की प्रबल इच्छा जागृत हुई। गांधी जी समेत अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के नेतृत्व में असहयोग जैसे तमाम आंदोलनों के चलते ही आज हम सभी भारतीय आजाद भारत में चैन की सांस ले रहे हैं।
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