नाथूराम गोडसे की कहानी

नाथूराम गोडसे भारत के एक क्रांतिकारी, विचारक, पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता होने के साथ-साथ एक हिंदू महासभा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सदस्य भी थे, जिन्होंने देश की आजादी के महानायक एवं राष्ट्रवादी नेता महात्मा गांधी जी की नई दिल्ली में 30 जनवरी 1948 को गोली मारकर हत्या कर दी थी।

हालांकि उन्हें इसके लिए सजा-ए-मौत भी भुगतनी पड़ी थी। लेकिन उन्होंने गांधी जी की हत्या क्यों की ? उनके जीवन से जुड़े कुछ ऐसे ही तथ्यों के बारे में जानने के लिए पढ़िए यह आर्टिकल-

नाथूराम गोडसे की कहानी | Nathuram Godse In Hindi

Nathuram Godse

एक नजर में –

पूरा नाम (Name) नाथूराम (रामचन्द्र) विनायक राव गोडसे
जन्म (Birthday) 19 मई, 1910, बारामती, जिला पुणे, बॉम्बे प्रेसीडेंसी ब्रिटिश भारत
पिता (Father Name) विनायक वामनराव गोडसे
माता (Mother Name) लक्ष्मी गोडसे
मृत्यु (Death) 15 नवंबर, 1949, अंबाला जेल, पंजाब (गांधी की हत्या के आरोप में हुई फांसी)

जन्म, परिवार एवं शुरुआती जीवन –

नाथूराम गोडसे पुणे के बारामती गांव में एक मराठी परिवार में जन्में थे। उनके पिता विनायक वामनराव गोडसे पोस्ट ऑफिस में अपनी सेवाएं देते थे, जबकि उनकी मां लक्ष्मी बाई घरेलू गृहिणी थीं। बचपन में उनका नाम रामचन्द्र रखा गया था।

नाथूराम गोडसे के जन्म से पहले इनसे बड़े तीन भाईयों की मौत हो गई थी, जबकि उनकी बहन जीवित बची थी, इसी डर से उनके माता-पिता ने उनकी परवरिश एक बेटी की तरह की थी, यहां तक की उनकी नाक भी छिदवा दी, जिसके चलते उनका नाम नाथूराम पड़ गया।

वहीं नाथूराम के जब छोटे भाई गोपाल का जन्म हुआ, तब उनके माता-पिता ने नाथूराम को समाज के सामने लड़का बताया था।

शिक्षा एवं शुरुआती करियर –

नाथूराम गोडसे ने अपनी शुरुआती शिक्षा अपने गृहनगर बारामती के स्थानीय स्कूल में ही रहकर पूरी की थी, इसके बाद उन्हें रिश्तेदार के घर पुणे में शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेज दिया गया, जहां उन्होंने अंग्रेजी भाषा की शिक्षा हासिल की। अपने शुरुआती दिनों में गोडसे, गांधी जी के विचारों से काफी सहमत थे, यहां तक कि वे उनको अपना आइडियल मानते थे।

वहीं जब महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारी वीर सावरकर जी से उनकी मुलाकात हुई, इसके बाद उन्होंने राजनीति में आने का फैसला लिया।

राजनैतिक करियर –

नाथूराम गोडसे का शुरु से ही सामाजिक कामों की तरफ काफी झुकाव था। वहीं बाद में बड़े-बड़े क्रांतिकारियों के संपर्क में आने के बाद उन्होंने खुद को पूरी तरह समाजसेवी के रुप में समर्पित कर दिया एवं वे हिन्दू महासभा और राष्ट्रीयस्वयं संघ (Rss) से जुड़ गए।

नाथूराम गोडसे ने इन संगठनो से जुड़ने के बाद मुस्लिम लीग वाली अलगाववादी राजनीति का जमकर विरोध किया और फिर बाद में उन्होंने मराठी भाषा में ‘अग्रणी’ नाम का समाचार पत्र का प्रकाशन किया, जो कि बाद में ”हिन्दू राष्ट्र” नाम से प्रसिद्ध हुआ था।

वहीं इसी दौरान गांधी जी ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ नागरिक अवज्ञा आंदोलन चलाया था, जिसमें गोडसे समेत हिन्दू महासभा के अन्य समदस्यों ने उनका समर्थन किया था, लेकिन फिर बाद में गोडसे ने गांधी जी पर हिन्दुओं के हित को नजर अंदाज करने एवं हिन्दुओं और मुस्लिम लीग में भेदभाव करने जैसे गंभीर आरोप लगाए थे और गांधी जी के विरोधी बन गए थे।

नाथूराम गोडसे ने गांधी जी की हत्या क्यों की – Why Nathuram Godse Assassinated Gandhi

नाथूराम गोडसे एक महान विचारक और सत्य एवं अहिंसा के पुजारी राष्ट्रवादी नेता गांधीजी का कट्टर अनुयायियों में एक थे, लेकिन देश की आजादी के बाद जब उन्होंने गांधीवादी विचारधारा को लेकर कुछ ऐसे परिवर्तन देखे, जिससे वे काफी आहत हुए और फिर उन्होंने गांधी जी की हत्या करने का फैसला लिया गोडसे द्वारा गांधी जी की हत्या करने कुछ प्रमुख कारण इस प्रकार हैं:

  1. गोडसे ने भारत एवं पाकिस्तान के विभाजन के लिए गांधी जी को दोषी ठहराया, इस विभाजन के दौरान कई मासूम जिंदगियां मौत की घाट उतर गईं थी एवं हजारों परिवार बिखर गए थे, इसलिए गोडसे ने गांधी जी की हत्या करने का फैसला लिया।
  2. गांधी जी द्वारा मुस्लिमों के अधिकार दिलवाने के लिए कई बार अनशन करते थे, जो कि कट्टर हिन्दूवादी सोच रखने वाले गोडसे को बिल्कुल भी पसंद नहीं था।
  3. महात्मा गांधी हिन्दू+उर्दू भाषा को देश की नेशनल लैंग्वेज बनाना चाहते थे, गांधी जी के इस फैसले के गोडसे एकदम खिलाफ थे।
  4. गांधी जी द्वारा भारत के मुसलमानों की राजनीतिक जरूरतों को पूरा करने के विरोध में थे नाथूराम गोडसे।

इन्हीं सब कारणों की वजह से गोडसे ने 30 जनवरी साल 1948 की शाम को जब महात्मा गांधी रोज की तरह अपने शाम की प्रार्थना करने जा रहे थे, उनकी गोली चलाकर हत्या कर दी, हालांकि हत्या के बाद वे किसी अन्य अपराधी की तरह भागे नहीं, बल्कि उन्होंने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। गांधी की हत्या के आरोप में गोडसे के साथ नारायण आप्टे समेत अन्य 5 आरोपी भी शामिल थे।

गांधी जी के हत्या के बाद गोडसे को मिली सजा-ए-मौत –

गांधी जी की हत्या के बाद गोडसे पर केस किया गया और उनका जगह-जगह काफी विरोध हुआ। पूरे देश में दंगे होने शुरु हो गए। ब्राह्मण और मुस्लिमों के बीच भयानक लड़ाई होनी शुरु हो गईं, यहां तक कि महाराष्ट्र में ब्राह्माणों के कई घर जला दिए गए।

देश भर में फैले गांधी जी के समर्थकों ने इसके लिए भारत सरकार भी दोषी ठहाराया और गोडसे की फांसी की सजा देने की भी मांग की गई। वहीं गोडसे ने भी कोर्ट के सामने अपना गुनाह बाकी मुजरिमों की तरह छिपाने की कोशिश नहीं की, बल्कि स्पष्ट रुप में अपना गुनाह कबूल कर लिया। इसके बाद कोर्ट ने उन्हें 8 नवंबर, 1949 को फांसी देने की घोषणा की।

और फिर 15 नवंबर, 1949 में उन्हें उत्तर पंजाब के अंबाला जेल में सूली से लटाका दिया था। गांधी जी के हत्या के अपराध में संलग्न नारायण आप्टे को भी सजा-ए-मौत दी गई।

आपको बता कें कि हिन्दू महासभा के सदस्य वीर सावरकर जैसे महान क्रांतिकारी पर भी गांधी जी की हत्या करने का गंभीर आरोप लगा था, लेकिन बाद में उन पर इस आरोप को खारिज किया गया था।

यही नहीं गोडसे द्वारा गांधी जी की हत्या के बाद हिन्दू महासभा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ दोनों को अवैध घोषित कर दिया था, लेकिन जब यह प्रूफ हो गया कि RSS का महात्मा गांधी की हत्या में कोई हाथ नहीं है, तब देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इस साल 1949 पर इस पर लगे बैन को हटा दिया।

वहीं गोडसे ने फांसी की सजा के समय –

यह इच्छा जताई थी कि जब तक भारत-पाकिस्तान एक न हो तब तक उनकी अस्थियों का विर्सजन न किया जाए, इसके बाद  उनकी अस्थियां पाकिस्तान के सिंधु नदी में विसर्जित की जाएं।

किताब –

नाथूराम गोडसे ने जेल में अपनी किताब ”व्हाय आई किल्ड गांधी” लिखी। उन्होंने अपनी इस किताब में गांधी जी को मारने के कारणों के बारे में बताया था, लेकिन इस किताब का प्रकाशन नहीं हो सका था।

फिल्म –

आपको बता दें कि देशभक्त नाथूराम गोडसे पर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म भी बनाई गई थी, जिसे साल 2015 में महात्मा गांधी जी की पुण्यतिथि पर रिलीज किया गया था। कट्टर हिन्दूवादी विचारधारा रखने वाला गोडसे पहले गांधी जी का समर्थक था, लेकिन बाद में भारत-पाक विभाजन, गांधी जी द्वारा मुस्लिमों को अधिकार दिलाने के लिए किए गए अनशन समेत गांधीवाद में अन्य बदलावों को देखते हुए उन्होंने महापुरुष गांधी जी की हत्या कर दी।

कुछ लोगों ने नाथूराम गोडसे के इस फैसले का समर्थन किया तो कुछ लोगों ने इसका भारी विरोध किया। इस तरह गोडसे की छवि देशभक्त एवं आतंकवादी दोनों रुप में है।

168 thoughts on “नाथूराम गोडसे की कहानी”

  1. Gandhi or nehru ki wajeh se hi aaj hum ye aatankwad or pichhdapan jhel rahe rahe or ye aarakshan bhi jo hamare desh ko barbad kar raha hai. Ye rahul gandhi aadha hindu aadha musalman or aadha cristian ussi galti ki saja hai
    I would also like to be nathuram ji.

    JAI HIND

  2. J jo hallaaaat bane inhi logo k khatir bane hai …in logo ne in logo ne bedagark kr diyA Hindustan kaa ….i think bapu ki soch se duniya chali nhi….j godse ka dimaaag tha uske j kuch krne se Kya ho gaya ….jo hona tha wo to pehle se hi ho gaya tha….. HAI HIND

  3. sanjay thombre

    Nathuram godse ji ka janm pune ke KADUS nam ka ek gav mai hua jo pune ke KHED RAJGURUNAGAR mai he .

  4. भारत सुरु से ही राजनीती के मत्थे चढ़ गया था ।।।
    गांघी को मारकर गोडसे जी ने बहुंत अच्छा किया ।
    गोडसे महान है ।।।
    जय भारत ।।जय भारत ।।।।

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