थिल्लाई नटराज मंदिर – Nataraja Temple
जिसे सभी चिदंबरम मंदिर – Chidambaram Temple के नाम से जानते है। यह मंदिर तमिलनाडु के चिंदबरम शहर में स्थित है। चिदम्बरम मंदिर दक्षिण भारत का सबसे प्रसिद्ध और पवित्र मंदिर है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है।
भगवान शिव ने जितने भी अवतार लिए उन सभी अवतार की मुर्तिया इस मंदिर में देखने को मिलती है। इस मंदिर में भगवान शिव की नटराज अवतार की मूर्ति स्थापित की गयी।
चिदंबरम मंदिर का इतिहास – Chidambaram Temple History
इस मंदिर का निर्माण 12 वी और 13 वी शताब्दी में करवाया गया था। पल्लव, चोला, पंड्या, विजयनगर और चेरा वंश के राजा महाराजा ने इस मन्दिर में समय समय पर बड़े बड़े बदलाव किये ताकी मंदिर बिलकुल अच्छी स्थिति में रह सके।
चिदंबरम मंदिर की कहानी – Chidambaram Temple Story
एक बार भगवान शिव थिल्लाई वन में घूम रहे थे तब उन्हें वहापर एक ऋषियों का समूह दिखा। वो सभी ऋषि जादू, चमत्कार जैसे चीजो में विश्वास रखने वाले थे और सभी ऋषियों की यह धारणा थी की जादू और अनुष्ठान की मदत से भगवान को नियंत्रण में किया जा सकता है, भगवान को प्रसन्न किया जा सकता है।
भगवान शिव उस जंगल में अपना रूप बदलकर एक भिक्षाटन का रूप लेकर घूम रहे थे और उनके साथ में भगवान विष्णु भी उनकी पत्नी मोहिनी के रूप में साथ में जा रहे थे।
उन दोनों को देखकर सभी ऋषि मुनी और उनकी पत्नी जोर जोर से मंत्र का जप करने लगे। उन्होंने कुछ चमत्कार करके कुछ सापों को भिक्षुक की तरफ़ छोड़ दिए।
उन सापो को देखकर भगवान शिव मुस्कुराये और उन्होंने सभी सापो को अपने गर्दन और कमर के चारो तरफ़ लपेट लिया।
उसके बाद में भी उन ऋषियोंने उस भिक्षुक की तरफ़ भयंकर बाघ को छोड़ दिया। उस बाघ को देखकर भगवान शिव ने उसे मार दिया और उसकी चमड़ी को अपने कमर के चारो तरफ़ ओढ़ लिया।
उसके बाद में भी उन ऋषियों में एक बड़ा हाती भगवान की तरफ़ छोड़ दिया। लेकिन भगवान शिव ने उस हाती को भी मार दिया। उसके बाद में भी ऋषियों ने जादू की मदत से एक मुयालाकन राक्षस तयार किया और उसे भगवान से युद्ध करने के लिए भेज दिया।
उस राक्षस को देखकर भगवान शिव मुस्कुराये और उस राक्षस के पीठ पर खड़े हो गए जिसकी वजह से वो राक्षस एक ही जगह पर स्थिर हो गया और थोड़ासा भी हिल नहीं रहा था।
कुछ देर बाद भगवान ने उस राक्षस की पीठ पर ही आनंद तांडव करना शुरू कर दिया और बाद में फिर अपने असली रूप में उन ऋषियों को दर्शन दिए। उसके बाद में सभी ऋषियों ने भगवान से माफ़ी मांगी और उन्हें इस बात का अहसास हुआ की भगवान को प्रसन्न करने के लिए किसी जादू, चमत्कार और अनुष्ठान की जरुरत नहीं।
चिदंबरम मंदिर की वास्तुकला – Chidambaram Temple Architecture
इस मंदिर की भव्यता, वास्तुकला और मुर्तिया हजारों सालों से सभी को प्रभावित करती आ रही है।
विभिन्न तरह की वास्तुकला से इस चिदंबरम मंदिर को बनाया गया है। सबसे अन्दर के हिस्से में जो मंदिर है उसमें भगवान शिव की नटराज मूर्ति और पार्वती (शिवाकामी) की मूर्ति है और इस भवन को चितसभा कहा जाता है।
इसके बाजु में कनकसभा है और यह दोनों भी सभाए उचाई पर स्थित है। अन्दर के प्रकार में नटराज की मूर्ति के दक्षिण पश्चिम में गोविन्दराज पेरूमल का मंदिर है।
यहाँ का सबसे पवित्र मंदिर चितसभा पूरी तरह से लकड़ी से बनाया हुआ है और इसके सभी स्तंभ लकड़ी से ही बनाये गए है और इसका छत किसी झोपड़ी की तरह ही दिखता है। इस सभा में नटराज और शिवाकामी की मुर्तिया स्थापित की गयी है। एक मूर्ति लाल पडदे के सामने है और दूसरी मूर्ति काले पडदे के सामने है।
भगवान शिव के दाये में चिदम्बर रहस्य है जहापर विल्वा के पत्ते रखे गए है। चिदंबर रहस्य के सामने भगवान शिव और माता पार्वती अरूप में स्थित है और जब उनकी पूजा की जाती है तब उनके सामने दीपक लगाये जाते है।
चितसभा में रत्नसभापति, चंद्रमौलिश्वर का स्पतिक शिव लिंग, स्वर्नाकर्शान भैरावर, मुखालिंगम की मुर्तिया भी स्थित है।
कनकसभा बिलकुल चितसभा के सामने ही है और दोनों भी सभाए काफी उचे स्थान पर स्थित है। चितसभा कनकसभा से 1 मीटर ऊपर स्थित है और इसपर जाने के लिए पहेल पाच सीढिया चढ़कर जाना पड़ता है और चढ़ते वक्त पंचाक्षर मंत्र का जप भी करना पड़ता है।
नटराज के मंदिर के अलावा भी यहापर नृत्य सभा है जिसमे भगवान शिव की उर्ध्व तांडव की मूर्ति है। इस अवतार में भगवान शिव ने नृत्य में देवी काली पर भी विजय हासिल किया था। इस सभा में भगवान शिव की सर्वेश्वर की मूर्ति है।
नृत्य सभा एक रथ की तरह ही है जिसे घोड़े लगाये गए है। यहा के देव सभा में पंचमूर्ति (सोमास्कंदर, पार्वती, विनायक, सुब्रमन्य और चंदिकेश्वर) और अन्य देवताओ की मुर्तिया है। दुसरे प्रकार में मुलान्थर रूप में भगवान शिव का शिवलिंग स्थित है।
बाहर के प्रकार में शिवाकामी अम्मान देवी का मंदिर, शिवगंगा टंकी, और 1000 स्तंभ का भवन है त्यौहार के दिन पर नटराज की मूर्ति को यहापर लाया जाता है। शिवाकामी अम्मान का बड़ा मंदिर दाई दिशा में स्थित है। इस मंदिर के मुखमंदपन के छत पर नायक समय में बनायीं गयी पेंटिंग देखने को मिलती।
इस मंदिर की दीवारों पर नर्तक, नगाड़ा बजानेवाले, संगीतकार की तस्वीरे देखने को मिलती है। यहाँ का बड़ा भवन रथ की तरह ही दीखता है। इसके प्रवेशद्वार पर दो हाती और बाजु में नृत्य करने वाले लोगो के चित्र बनाये गए है।
यहाँ का पंड्या वंश में बनाया हुआ सुब्रमन्य का मंदिर भी प्रकार के बाहर की दिशा में स्थित है और यह भवन 100 स्तंभ से बना हुआ है। सुब्रमन्य का मंदिर भी रथ के रूप में ही बनाया गया है और इसे पंड्या नायकम नाम से बुलाया जाता है।
यहाँ बनाये गए गोपुरम सबसे भव्य और शानदार दीखते है। यहाँ का हर गोपुरम 250 फीट उचा है और हर गोपुरम को सात स्थरो में बनाया गया है। पश्चिम दिशा में बनाया हुआ स्तंभ सबसे पुराना स्तंभ है। इन स्तंभ पर नाटय शास्त्र के भारत नाट्यम करने के 108 प्रकार दर्शाए गए है।
इन स्तंभ पर हिन्दू धर्म से जुड़े कई सारे चित्र बनाये गए है। हर एक गोपुरम पर भगवान शिव के भिक्षाटन, कंकाल, कल्यानसुन्दर, सोमास्कंदर आदि रूप दर्शाए गए है।
इस चिदम्बरम मंदिर में कई सारे त्यौहार मनाये जाते है। उन त्यौहार के दौरान भगवान की पूजा की जाती है।
इस मंदिर के भगवान की पूजा छह तरह से की जाती है और यह पूजा पुरे साल भर की जाती है। हर पूजा अलग अलग महीने में की जाने की वजह से पुरे साल भर भगवान की पूजा की जाती है।
इस मंदिर की एक और खास बात यह है की यहाँ के अधिकतर मंदिर रथ के रूप में बनाये गए। इन मंदिरों को रथ का रूप देने के बाद में इसे आगे घोंड़े लगाये गए है ताकी यह मंदिर पूरी तरह से असल में रथ की तरह ही दिख सके। इस मंदिर में उचे उचे गोपुरम भी बनाये गए है।
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