गुजरात भारत के उन राज्यों में से एक है जो सुंदर मंदिर और आर्किटेक्चर, जंगल और संतो के लिए प्रसिद्ध है। गांधीजी के पसंदीदा भजन “वैष्णव जनतो तेने कहिये” की शुरुवात यही से की गयी थी। इस गीत के रचयिता और कोई नही बल्कि नरसी मेहता – Narsinh Mehta ही थे।
“वैष्णव जनतो तेने कहिये” गीत के रचयिता नरसी मेहता – Narsinh Mehta
नरसिम्हा मेहता को साधारणतः नरसी मेहता के नाम से जाना जाता है, गुजरात में उनका भव्य स्वागत किया गया और वही से भक्ति आंदोलन की शुरुवात हुई और बाद में यह कच्छ और सिंध से होकर राजस्थान और पंजाब जा पहुचा।
नरसी मेहता वैष्णव भक्त थे और भगवान कृष्णा की प्रशंसा में गाते थे। नरसी मेहता (1414-1481) ऐसे पहले भक्त थे जिन्होंने 740 से भी ज्यादा गानों की रचना की है और उनकी सभी गाने प्रसिद्ध है। अपने गीतों में वे कृष्णा के प्रति अपने प्रेम और भक्ति का वर्णन करते थे। लोग उनके गीतों की सरलता को देखकर ही उनसे प्रभावित हो जाते थे।
नरसिंह मेहता का जन्म तलाजा में हुआ और बाद में वे गुजरात के सौराष्ट्र में जूनागढ़ में रहने लगे। केवल पाँच साल की उम्र में ही उन्होंने अपने माता पिता को खो दिया था। आंठ साल की उम्र तक वे बोल नही पा रहे थे। माता-पिता की मृत्यु के बाद उनकी दादी जयगौरी ने उनका पालन-पोषण किया।
1429 में उन्होंने मानेकबाई से विवाह किया। मेहता और उनकी पत्नी जूनागढ़ में अपने भाई बंसीधर के घर में रहते थे। जबकि बंसीधर की पत्नी (नरसी की भाभी) ने नरसी का स्वागत अच्छी तरह से नही किया। उन्होनें हमेशा नरसी की आलोचना की। एक दिन, जब नरसी मेहता इन तानो और अपमान से परेशान हो चुके थे तो शांति पाने के लिए वे घर छोड़कर पास ही के जंगल में चले गये और वहा जाकर उन्होंने भगवान शिव का ध्यान लगाया और तबतक ध्यान लगाते रहे जबतक भगवान स्वयं उनके सामने प्रकट नही होते।
कवी की प्रार्थना पर ही भगवान उन्हें वृंदावन ले गये और कृष्णा की आंतरिक रासलीला और गोपियों के दर्शन करवाए। तभी से मेहता कृष्णा की प्रशंसा में गीतों की रचना करने लगे और भगवान कृष्णा की रासलीला का वर्णन भी उन्होंने बखूबी तरीके से अपने गीतों में किया है। उन्होंने तक़रीबन 25,000 कीर्तनो की रचना करने का संकल्प भी लिया था।
इस दिव्य अनुभव के बाद, मेहता अपने गाँव वापिस आ गये और श्रद्धा के रूप में अपनी भाभी के चरण भी स्पर्श कर लिए और उन्होंने भाभी को उनका अपमान करने और ताने मारने के लिए धन्यवाद भी कहा, क्योकि यदि वह ऐसा नही करती तो उन्हें इस प्रकार का दिव्य अनुभव नही हो पाता।
जूनागढ़ में मेहता अपनी पत्नी और दो बच्चो के साथ गरीबी में जीवन व्यतीत करते थे। उनके बेटे का नाम शामलदास और बेटी का नाम कुंवरबाई था। जाति, वर्ग और लिंग सबकुछ भूलकर साधू, संत और महात्माओ के साथ मिलकर वे कीर्तन करते और गीतों की रचना करते थे।
कहा जाता है की वे कृष्णा की प्रशंसा के गीत गाने के लिए लोगो के आमंत्रण को भी स्वीकार करते थे और जगह-जगह जाकर कृष्णा की भक्ति के गीत गाते थे। उस समय मेहता पहले से ही राधा और कृष्णा की रासलीला पर गीत गा चुके थे। उनकी रचनाओ को श्रृंगार रचना में शामिल किया गया है। उनकी रचनाए गहन गीतों की होती थी, जो सर्वोच्च प्रभु और उनके अंतरंग भक्तो की वैवाहिक रासलीला पर आधारित होती थी।
मेहता ने अपने गीतों के माध्यम से हमेशा कृष्णा भक्ति और रासलीला का उल्लेख किया है। कहा जाता है की मंगरोल में 66 साल की उम्र में उनकी मृत्यु हुई थी। मंगरोल में उनके शमशान को “नरसी नु शमशान” के नाम से जाना जाता है, जहाँ गुजरात के एक पुत्र और महान वैष्णव का भी अंतिम संस्कार किया गया था। उनके द्वारा किये गये काव्यात्मक कार्यो को हमेशा याद किया जाएंगा और उनके द्वारा रचित कृष्णा रासलीला हमेशा भक्तो के मन में रहेंगी। उन्हें पहले गुजराती आदिकवी के नाम से भी जाना जाता है।
विद्वानों के अनुसार गुजराती साहित्य में नरसी का योगदान अतुलनीय है और गुजराती साहित्य में उनके बाद केवल मीराबाई का ही नाम आता है। नैतिक सिद्धांतो के प्रचारक और उपदेशक के रूप में गुजरात के मुख्य संतो में उनका नाम शीर्ष पर आता है।
नरसी मेहता के भजन – Narsinh Mehta Bhajans
- सूरत संग्राम,
- कृष्णा जन्म वधाई,
- रस-सहस्र पदी,
- सबुरी छत्रिसी,
- चतुरी षोडशी,
- बाल लीला,
- दान लीला,
- रास लीला,
- सुदामा चरित,
- नृसिंह विलास।
उन्होंने तक़रीबन 740 से भी ज्यादा भजन गाए है। मध्यकालीन भारत में उनकी कविताओ ने भक्ति आंदोलन की शुरुवात की थी। उनके भजन अनंत काल तक भक्तो के मन में रहेंगे।
भगवान स्वामीनारायण अक्सर अपने कवी परमहंस को नरसी मेहता के भजन गाने की प्रार्थना करते थे। वचनामृत वर्तल-11 में उन्होंने “मराहर्जी शुन हेत नादीसे रे” गाया था। मध्यकाल से लेकर आधुनीक काल तक आज भी हमें नरसी मेहता के भजन मंदिरों और घरो में सुनाई देते है। मध्यकाल के सबसे प्रभावशाली कवियों में नरसी मेहता एक थे।
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