विश्वनाथ “नाना” पाटेकर – Nana Patekar एक भारतीय अभिनेता, लेखक और फिल्म निर्माता है, जो मुख्यतः हिंदी और मराठी फिल्मो में काम करते है। बेस्ट एक्टर, बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर और बेस्ट विलन की श्रेणी में फिल्मफेयर अवार्ड जीतने वाले वे एकमात्र अभिनेता है। फिल्म और कला के क्षेत्र में अपने अतुलनीय योगदान के लिए उन्हें भारत सरकार सरकार ने भारत के चौथे सर्वोच्च अवार्ड पद्म श्री से भी सम्मानित किया है।
नाना पाटेकर की जीवनी – Nana Patekar Biography
परिंदा (1989) फिल्म में उनके रोल के लिए उन्हें बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का नेशनल फिल्म अवार्ड और फिल्मफेयर अवार्ड भी मिला था। इसके बाद उन्होंने अंगार (1992) में अपने अभिनय द्वारा फिल्मफेयर का बेस्ट विलन अवार्ड भी जीता था।
1995 में उन्होंने क्रांतिवीर (1994) फिल्म के लिये बेस्ट एक्टर की श्रेणी में राष्ट्रिय फिल्म अवार्ड और साथ ही फिल्मफेयर अवार्ड और इसके साथ-साथ स्क्रीन अवार्ड भी जीता था। इसके बाद 2005 में आई फिल्म अपहरण में उनके अभिनय द्वारा उन्होंने दूसरा फिल्मफेयर का बेस्ट विलन अवार्ड जीता।
नाना पाटेकर का प्रारंभिक जीवन – Nana Patekar Early Life
पाटेकर का जन्म 1 जनवरी 1951 को विश्वनाथ पाटेकर के रूप में महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के मुरुड-जंजिरा गाँव में छोटा टेक्सटाइल प्रिंटिंग का व्यवसाय करने वाले दिनकर पाटेकर और संजना बाई पाटेकर के घर हुआ था। मुंबई के सर जे.जे. इंस्टिट्यूट ऑफ़ एप्लाइड आर्ट के वे भूतपूर्व छात्र भी थे।
नाना पाटेकर का करियर – Nana Patekar Carrier
पाटेकर ने अपने फ़िल्मी जीवन में अनेक तरह के किरदार निभाए। कई बार उन्होंने फिल्मो में विलन का भी रोल निभाया है लेकिन उन्होंने अपनी ज्यादातर फिल्मो मुख्य हीरो के रूप में ही की है।
उनकी पहली डेब्यू फिल्म गमन (1978) थी, इस फिल्म के बाद उन्होंने मराठी सिनेमा में बहुत से छोटे-मोटे काम किए। साथ ही ब्रिटिश टेलीविज़न सीरीज लार्ड माउंटबेटन : दी लास्ट विक्ट्री में उन्होंने नाथूराम गोडसे की भूमिका भी निभाई थी।
इसके साथ-साथ उन्होंने आज की आवाज़ (1984), अंकुश (1986), प्रतिघात (1987), मोहरे (1987), त्रिशाग्नी (1988) फिल्मो में भी महत्वपूर्ण रोल निभाए है। मीरा नायर की फिल्म बॉम्बे (1988) उनके प्रदर्शन और कार्य की काफी तारीफ़ की गयी थी।
इसके बाद हिंदी सिनेमा जगत का ध्यान उन्होंने अपने प्रदर्शन से आकर्षित और फिल्म परिंदा (1989) में विलन का किरदार निभाया और इसी फिल्म के बाद उन्होंने बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर की श्रेणी में अपना पहला नेशनल फिल्म अवार्ड और फिल्मफेयर बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर अवार्ड जीता था।
इसके बाद अपनी फिल्म प्रहार (1991) से वे डायरेक्टर भी बने, जिसमे उनके साथ माधुरी दीक्षित ने काम किया था और उस फिल्म में उन्होंने भारतीय आर्मी ऑफिसर का रोल निभाया था।
अंगार (1992) में अपने रोल के लिए उन्होंने फिल्मफेयर का बेस्ट विलन अवार्ड भी जीता। उस समय बॉलीवुड इंडस्ट्री के सुपरस्टार राज कुमार के साथ उन्होंने फिल्म तिरंगा (1993) में काम किया था।
1994 में आयी उनकी फिल्म क्रांतिवीर के लिए उन्हें बेस्ट एक्टर का नेशनल फिल्म अवार्ड और फिल्मफेयर अवार्ड और स्टार स्क्रीन अवार्ड भी मिला था।
इसके बाद बच्चो वाली फिल्म अभय में उन्होंने भुत का किरदार भी निभाया, जिसने 1994 के 42 वे नेशनल फिल्म फेस्टिवल में 2 अवार्ड भी जीते थे।
इसके बाद उन्होंने ऋषि कपूर के साथ सह-कलाकार के रूप में फिल्म हम दोनों (1995) की। इसके बाद 1996 में आई फिल्म अग्नि साक्षी में उन्होंने पत्नी को पीटने वाले पति का किरदार और उसी साल फिल्म यशवंत में मनीषा कोइराला के बहरे पिता का किरदार और 1998 में आई फिल्म वजूद में सिजोफ्रेनिक का किरदार भी निभाया था।
फिल्म कोहराम (1999) में उन्होंने अमिताभ बच्चन के साथ सह-कलाकार के रूप में काम किया, इस फिल्म में उन्होंने ख़ुफ़िया भारतीय आर्मी के इंटेलिजेंस ऑफिसर का किरदार निभाया था, जो फिल्म में गुप्त रूप से बच्चन की तलाश करते है।
इस दशक की उनकी प्रसिद्ध फिल्मो में युगपुरुष (1998) और हु तु तु (1999) भी शामिल है। इसके बाद उन्होंने आदित्य पांचोली के साथ क्राइम ड्रामा तरकीब (2000) में सीबीआई डायरेक्टर के रूप में काम करना शुरू किया था।
लेकिन इसके बाद तक़रीबन 1 साल तक खली बैठे रहने के बाद उन्होंने फिल्म शक्ति (2002) से एक्टिंग करियर में वापसी की, इस फिल्म में उन्होंने अति-उत्तेजित पिता का किरदार निभाया था।
अब तक छप्पन (2004) में उन्होंने एक पुलिस ऑफिसर का किरदार निभाया था, जो एनकाउंटर स्पेशलिस्ट था। अपहरण (2005) में उनके अभिनय के लिये उन्होंने बेस्ट विलन की श्रेणी का दूसरा फिल्मफेयर बेस्ट विलन अवार्ड जीता और साथ ही स्टार स्क्रीन अवार्ड भी जीता था।
टैक्सी नं. 9211 (2006) में उन्होंने टैक्सी ड्राईवर की भूमिका निभाई थी। इसके बाद पाटेकर ने वेलकम (2007) में कॉमेडी रोल किया, जिसमे उन्हें दुबई का अपराधो का बादशाह दिखाया गया था, जिसकी जिंदगी में एक बार तो भी हीरो बनने की इच्छा रहती है।
इसके बाद उन्होंने संगीत सिवान की फिल्म एक (2009) में काम किया। फिल्म पाठशाला (2010) में उन्होंने स्कूल के हेड मास्टर का रोल किया। साथ ही प्रकाश झा की मल्टी-स्टारर राजनीतिक ड्रामा फिल्म राजनीती (2010) में उन्होंने अपने अभिनय से लोगो को आकर्षित किया।
2011 में उन्होंने आलोचकों द्वारा सराही गयी फिल्म शागिर्द और मराठी फिल्म देउल में काम किया था। इसके बाद उनकी अगली फिल्म राम गोपाल वर्मा की दी अटैक्स ऑफ़ 26/11 (2013) थी, जो 2008 के मुंबई अटैक पर आधारित है, जिसमे पाटेकर ने उस समय के जॉइंट पुलिस कमिश्नर राकेश मारिया का रोल निभाया था।
2014 में, उन्होंने एक और मराठी फिल्म डॉ. प्रकाश बाबा आमटे – दी रियल हीरो की थी। 2015 में उन्होंने 2 सीक्वल फिल्मे अब तक छप्पन 2 और वेलकम बेक की, जो अब तक छप्पन और वेलकम का सीक्वल थी।
2016 में उन्होंने गणपतराव ‘अप्पा’ बेल्वालकर की फिल्म और नाटक ‘नटसम्राट’ की, जो बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट साबित हुई। इसके साथ ही दी जंगल बुक (2016) के हिंदी वर्जन में शेरे खान नाम के किरदार की आवाज़ उन्ही की है।
नाना पाटेकर की निजी जिंदगी – Nana Patekar Personal Life :
पाटकर ने नीलकंठी पाटकर से शादी की और उनका एक बेटा मल्हार पाटेकर भी है। लेकिन उनका वैवाहिक जीवन अच्छी तरह से नही चल पाया और परिणामस्वरूप शादी के कुछ समय बाद ही उन्ह तलाक देना पड़ा।
इसके बाद उन्ह्पने राइफल शूटिंग के खेल में रूचि लेना शुरू की और जी.व्ही. मावलंकर शूटिंग चैंपियनशिप के लिए नियुक्त भी हुए।
नाना पाटेकर अवार्ड – Nana Patekar Award
- 1990 और 1997 में फिल्म परिंदा और अग्नि साक्षी के लिए क्रमशः उन्हें बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का नेशनल फिल्म अवार्ड मिला था।
- 1995 में उन्हें क्रांतिवीर में उनके रोल के लिए बेस्ट एक्टर का नेशनल फिल्म अवार्ड मिला था।
- अपने पुरे करियर और फिल्म इंडस्ट्री में उन्होंने बहुत से फिल्मफेयर अवार्ड जीते है।
- 1990 में नाना पाटेकर को फिल्म परिंदा के लिए बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का फिल्मफेयर अवार्ड भी मिला था।
- 1992, 1995 और 2006 में उन्होंने फिल्म अंगार, क्रांतिवीर और अपहरण के लिए फिल्मफेयर बेस्ट विलन अवार्ड भी अर्जित किये है।
- 1995 में मेहुल कुमार की फिल्म क्रांतिवीर में अपने रोल के लिए उन्हें स्टार स्क्रीन का बेस्ट एक्टर अवार्ड भी मिला है।
- यही अवार्ड उन्हें बेस्ट विलन की श्रेणी में सन 2006 में प्रकाश झा की फिल्म अपहरण के लिए भी मिला है।
- 2004 में शिमित अमित की फिल्म अब तक छप्पन के लिए उन्हें हिंदी फिल्म बेस्ट एक्टर की श्रेणी का बंगाली फिल्म जौर्नालिस्ट एसोसिएशन अवार्ड भी मिला है।
भारत के लोग नाना पाटकर की एक्टिंग के दीवाने है, वे बॉलीवुड इंडस्ट्री में अलग तरीके से डायलॉग बोलने की स्टाइल के लिए भी मशहूर है। भारतीय हिंदी सिनेमा के वे एक बेख़ौफ़ अभिनेता है। नाना पाटेकर का नाम सुनते ही हमारे दिमाग की एक बहुत बोलने वाला इंसान की छवि आ जाती है। उनका ये जल्दी-जल्दी तेज़ी से बोलना ही उनके अभिनय में चार-चाँद लगा देता है।
एक्टिंग की दुनिया में तो वे हीरो है ही लेकिन असल जिंदगी में भी वे किसी हीरो से कम नही है। वे हमेशा गरीबो के हक़ के लिए लढते रहे है और किसानो पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ भी उन्होंने आवाज़ उठाई है। हम दुआ करते है की वे ऐसे ही अपने जीवन में आगे बढ़ते रहे और गरीबो की मदद करते रहे।
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बिलकुल सही नाना पाटेकर रियल लाइफ हीरों हैं, उनकी फ़िल्म का हर एक डायलोग फ़ेमस हो जाता हैं.
सच में नाना पाटेकर अपनी निजी जीवन के रियल हीरो है। उनकी एक्टिंग का स्टाइल सबसे अलग है। वे किसी भी किरदार को बढ़िया तरीके से निभाते है। जसवंत सिंह जी आप इसी तरह हमारी वेबसाइट से जुड़े रहे। आप हमसे फेसबुक के जरिये भी जुड़ सकते हो।
Yashvant me vo mean actor hai
बिलकुल सही नाना पाटेकर रियल लाइफ हीरों हैं, उनकी फ़िल्म का हर एक डायलोग फ़ेमस हो जाता हैं. नाना पाटेकर कविताएँ भी करते हैं प्लीज उनकी कुछ कविताएँ आप अपने साईट के जरिये हम तक पहुचाएं………
धन्यवाद्