नागार्जुन का जीवन परिचय

हिन्दी साहित्य में अपना विशिष्ट स्थान रखने वाले नागार्जुन प्रगतिवादी विचारधारा वाले एक महान कवि और मशहूर लेखक थे, जिन्हें मुख्य रुप से शून्यवाद के रुप में जाना जाता है। नागार्जुन का वास्तविक नाम वैद्यनाथ मिश्रा था, जिन्हें उनके चाहने वाले लोग नागार्जुन और जनकवि कहकर संबोधित करते थे।

हिन्दी साहित्य में उन्होंने ”यात्री” और ”नागार्जुन” जैसी महान रचनाओं का संपादन मैथिली भाषा में किया था। नार्गाजुन, हिन्दी और मैथिली भाषा में लिखने वाले एक ऐसे कवि थे, जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से लोगों के अंदर एक नई ऊर्जा का संचार किया और जनचेतना फैलाई।

आपको बता दें कि महाकवि नागार्जुन ने अपनी रचनाओं में बेहद सरलता और सरसता के साथ भावनात्मक तरीके से आम जनता के दर्द को बयां किया है, और राजनीति में बेबाकी से उन्होंने अपनी राय रखी है। आपको बता दें कि नागार्जुन जी अपनी रचनाओं में सरकार और समाज पर व्यंगबाण छोड़ने से कभी भी पीछे नहीं हटते थे।

इसके अलावा उन्होंने किसानों और मजदूर वर्ग की समस्याओं को गहराई से समझकर अपनी रचनाओं के माध्यम से उनके प्रति भावनात्मक तरीके से संवेदना प्रकट की है। आइए जानते हैं प्रगतिवादी विचारधारा के महान लेखक नार्गाजुन के बारे में- Nagarjuna

नागार्जुन का जीवन परिचय – Nagarjuna Biography In Hindi

पूरा नाम (Name) वैद्यनाथ मिश्र (नागार्जुन, यात्री)
जन्म (Birthday) 30 जून, 1911, मधुबनी, बिहार
पिता (Father Name) गोकुल मिश्रा
पत्नी (Wife Name) अपराजिता देवी
कर्म-क्षेत्र (Occupation) कवि, लेखक, उपन्यासकार
मृत्यु (Death)  5 नवंबर, 1998, दरभंगा, बिहार

प्रारंभिक जीवन एवं शिक्षा –

नागार्जुन, बिहार के मधुबनी जिले के एक छोटे से गांव सतलखा में 30 जून साल 1911 में एक मध्यम वर्गीय ब्राह्मण परिवार में वैद्यनाथ मिश्रा के रुप में जन्में थे। 3 साल की उम्र में ही नागार्जुन के सिर से मां उमा देवी का साया उठने के बाद उनके पिता गोकुल मिश्रा ने उनका लालन-पालन किया।

नागार्जुन जी को शुरु से ही संस्कृत, मैथिली, हिन्दी, पाली, आदि भाषाओं का अच्छा ज्ञान था, उन्होंने अपनी महान विचारधारा को बेहद सहजता और सरलता से अपनी रचनाओं में प्रकट किया है। वे हिन्दी साहित्य के विद्धान थे, उन्होंने नागार्जुन और यात्री रचनाओं को मैथिली भाषा में लिखा, इसलिए उनके प्रशंसक उन्हें नागार्जुन और यात्री जैसे उपनाम से पुकारते थे।

जनकवि नागार्जुन ने अपनी शुरुआती शिक्षा अपने गांव से ली और फिर वे शिक्षा ग्रहण करने वाराणसी चले गए। इसके बाद कोलकाता से उन्होंने अपना बाकी का ज्ञान अर्जित किया। कुछ समय के लिए उन्होंने एक टीचर के तौर पर भी काम किया।

इस दौरान वे आर्य समाज के विचारों से काफी प्रभावित हुए फिर उनका झुकाव बौद्ध धर्म की तरफ हुआ और उनके मन में इस धर्म के प्रति और अधिक जानने की उत्तेजना प्रवाहित हुई, जिसके बाद वे बौद्ध धर्म ग्रंथ के बारे में जानने एवं संस्कृत के ग्रंथों और दार्शनिक व्याख्यानों के लिए श्री लंका चले गए, जहां पर कवि नागार्जुन ने “विद्यालंकार परिवेण” से बौद्ध धर्म की शिक्षा ग्रहण की और फिर बाद में उन्होंने बौद्ध धर्म को अपना लिया।

बौद्ध धर्म के दर्शन के साथ नागार्जुन जी का ध्यान राजनीति की तरफ भी गया, दरअसल उस समय गुलाम भारत की आजादी के लिए स्वतंत्रता संग्राम चल रहा था। जिसका उन पर काफी प्रभाव पड़ा था और फिर वे राजनीतिक कार्यक्रमों में शरीक होने लगे। नागार्जुन ने बिहार के किसान आंदोलन में हिस्सा लिया इसके अलावा उन्होंने चंपारण के किसानों के सशस्त्र विद्रोह का भी समर्थन किया था।

वे अपनी रचनाओं के माध्यम से फायदे की राजनीति में तीखे प्रहार तो करते ही थे, साथ ही सक्रिय आंदोलन में भी हिस्सा लेते थे। इस दौरान उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा था। एक महान लेखक के रुप में नागार्जुन नागार्जुन, हिन्दी साहित्य के सुविख्यात कवियों में से एक थे। जिन्होंने अपनी दूरदर्शी सोच और जीवन के कठोर संघर्षों एवं अपनी कल्पना के आधार पर कई रचनाओं को लिखा।

हिन्दी और मैथिली भाषा का इस्तेमाल कर बेहद सरल भाषा में उन्होंने अपनी रचनाओं में भावनात्मक तरीके से किसानों की समस्या को उजागर किया और दलित पीड़ितों के प्रति वेदना प्रकट की। यही नहीं कवि ने कई अमानवीय, असामाजिक कृत करने वालों के खिलाफ अपनी रचनाओं के माध्यम से व्यंग भी कसे हैं। साथ ही समाज में फैली बुराइयों और शोषण के खिलाफ अपनी रचनाओं से आवाज उठाई है।

नागार्जुन की विशिष्ट कृतियों की वजह से ही हिन्दी साहित्य में उन्हें एक अलग पहचान मिली है।

काव्यगत विशेषताएं –

हिन्दी साहित्य के महान कवि नागार्जुन की काव्यगत विशेषताओं के बारे में हम आपको नीचे बता रहे हैं –

  • महाकवि नागार्जुन हिन्दी और मैथिली दोनों भाषाओं में लिखते हैं, उनकी सरल और सहज भाषा शैली पाठकों को उनकी रचनाओं से शुरु से अंत तक बांधे रखती हैं।
  • प्रगतिवादी विचारधारा के महान कवि नागार्जुन ने अपनी कृतियों में बेहद शानदार तरीके से रुपक, उपमा, अतिश्योक्ति एवं अनुप्रास अलंकारों का प्रयोग किया है।
  • कवि नागार्जुन ने अपनी रचनाओं के माध्यम से सरकार और समाज पर व्यंग भी कसे हैं।

प्रसिद्ध रचनाएं कविता-संग्रह

      • युगधारा
      • प्यासी पथराई आँखें
      • तुमने कहा था
      • खिचड़ी विप्लव देखा हमने
      • हजार-हजार बाँहों वाली
      • तालाब की मछलियाँ
      • इस गुब्बारे की छाया में
      • आखिर ऐसा क्या कह दिया मैंने
      • पुरानी जूतियों का कोरस
      • सतरंगे पंखों वाली
      • रत्नगर्भ
      • भूल जाओ पुराने सपने
      • ऐसे भी हम क्या! ऐसे भी तुम क्या
      • अपने खेत में

उपन्यास-

      • रतिनाथ की चाची
      • उग्रतारा
      • बलचनमा
      • नयी पौध
      • पारो
      • कुंभीपाक -1960 (1972 में ‘चम्पा’ नाम से भी प्रकाशित)
      • बाबा बटेसरनाथ
      • आसमान में चाँद तारे
      • वरुण के बेटे
      • दुखमोचन
      • जमनिया का बाबा – 1968 (उसी वर्ष ‘इमरतिया’ नाम से भी प्रकाशित)
      • हीरक जयन्ती -1962(1979 में ‘अभिनन्दन’ नाम से भी प्रकाशित)
      • गरीबदास -1990 (1979 में लिखित)

प्रबंध काव्य-

      • भस्मांकुर
      • भूमिजा

व्यंग्य-

      • अभिनंदन

संस्मरण-

      • एक व्यक्ति: एक युग

नागार्जुन जी का निबंध संग्रह-

      • अन्न हीनम क्रियानाम
      • बम्भोलेनाथ

बाल साहित्य –

      • कथा मंजरी भाग-1
      • कथा मंजरी भाग-2
      • मर्यादा पुरुषोत्तम
      • विद्यापति की कहानियाँ

मैथिली रचनाएँ-

      • चित्रा ,
      • पत्रहीन नग्न गाछ (कविता-संग्रह),
      • पारो
      • पका है यह कटहल
      • नवतुरिया (उपन्यास)।

बांग्ला रचनाएँ-

      • मैं मिलिट्री का बूढ़ा घोड़ा (हिन्दी अनुवाद)
      • संचयन एवं समग्र-
      • ऐसा क्या कह दिया मैंने- नागार्जुन रचना संचयन

सम्मान और पुरस्कार नागार्जुन को साहित्य में उनके द्धारा दिए गए महत्वपूर्ण योगदान के लिए कई पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया। साल 1969 में उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया और साल 1994 में नागार्जुन जी को साहित्य अकादमी फैलोशिप की उपाधि देकर सम्मानित भी किया गया था।

मृत्यु –

हिन्दी साहित्य के महान लेखक 5 नवंबर,1998 को यह दुनिया छोड़कर चल बसे। लेकिन वे अपनी कृतियों के माध्यम से आज भी हमारे दिल में जिंदा हैं, हिन्दी साहित्य में उनके योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here