मुंगर के किले का इतिहास | Munger Fort History

Munger Fort

मुंगर का किला बिहार के मुंगर इलाके में आता है। यह किला गंगा नदी के दक्षिण तट पर एक छोटेसे पहाड़ी पर स्थित है। ऐसे प्रसिद्ध और पुराने मुंगर किले के बारे बताने जैसी तो बहुत सारी बाते है मगर एक बात जो सबसे पहले बतानी चाहिए वो इसके दरवाजे के बारे में है। अब किला बहुत ही पुराना हो चूका है।

या यु कहे तो यह एक खंडर का हिस्सा बन चूका है लेकिन इसका जो दरवाजा यानि प्रवेशद्वार जो है वो आज भी बिलकुल अच्छी स्थिति है और काफी मजबूत है। इस दरवाजे को सभी लाल दरवाजा कहते है।

Munger Fort

मुंगर के किले का इतिहास – Munger Fort History

इस मुंगर के किले का इतिहास लगभग सन 1330 के ज़माने का है। ऐसा कहा जाता है की भारत के मुस्लीम बादशाहों ने इस किले के निर्माण का काम खुद के हाथों में लिया और उसे 14 वी शताब्दी में ही पूरा कर दिया था।

मुंगर का यह मशहूर किला मुहम्मद बिन तुग़लक के नियंत्रण में था और उसका ही इस किले पर 1325-51 के दौरान पूरा कब्ज़ा था। किले में सम्मलेन बुलाने के लिए कर्नाचौरा या करणचौरा बनवाया गया था और दूसरा जो बनवाया गया था वो आयताकार था।

इस जगह ने इतिहास के अनेको उतारचढाव देखे है। इस किले पर अपने अपने समय राजा महाराजा ने शासन किया है। उन राजा महाराजा में ज्यदातर मुस्लीम शासक ने ही शासन किया था। उनमे अलाउद्दीन खिलज़ी, तुग़लक, लोधी, बंगालका नवाब, और आखिरीमें मीर कासिम ने शासन किया था लेकिन बादमे उसने 1760-72 के दौरान में अंग्रेजो को सौप दिया।

भारत को आजादी मिलने तक यह बंगाल का किला अंग्रेजो के लिए काफी फायदेमंद साबित हुआ था। इस किले के बारे में ऐसा भी कहा जाता है की एक बार इस अंग्रेज सैनिकोने ने अंग्रेजो के खिलाफ ही युद्ध शुरू कर दिया था।

लेकिन उसे सन 1766 में रोबर्ट क्लाइव ने समय रहते ही नियंत्रण में ला लिया था। सैनिको का भत्ता ना बढ़ाने के कारण ही उन्होंने अंग्रेज सरकार के खिलाफ जंग छेड़ दी थी। उस युद्ध का नतीजा यह रहा की जैसे ही लड़ाई खतम हो गयी वहा किले पर सैन्यगार का निर्माण करवाया गया था। किला ईस्ट इंडिया कम्पनी के अधिकारियो के नियंत्रण में था।

मुंगर के किले की वास्तुकला – Munger Fort Architecture

मुग़ल शासन के दौरान इस किले के निर्माण को लेकर कई सारे काम किये गए थे और इसका आकार भी बढाया गया था। किले को जब बनाया गया था उस वक्त किले के द्वारो पर ज्यादा ध्यान दिया था शायद इसीलिए किले के दरवाजे बड़े बड़े बनवाये गए थे।

प्रवेशद्वार के एक बाजु से किले को दृढ कर दिया गया है जिसके तहत वहापर एक बड़ा स्तंभ भी बनवाया था। वहापर तयार की गयी खाई लगभग 175 फीट चौड़ी बनवाई गयी थी और उसके आजूबाजू के इलाके में किले की सारी जमीन फैली हुई है।

यह खाई गंगा नदी में होकर खुलती और इसकी कारण किले को कुछ हद तक संरक्षण मिलता है। किले की दीवारे अंदर से 4 फीट थी और बाहर से 12 फीट की थी और इन दीवारों के चौड़ी होने के कारण किले की हिफाजत होती है और यह सब दीवारे 30 फीट की है।

पश्चिम में गंगा नदी बहती है और उत्तर की दिशा से भी नदी किले की रक्षा करने में काफी सहायता मिलती है और साथ ही वहापर की खाई भी किले की हिफाजत करने में कारगर साबित हुई है।

किले को चार दरवाजे है और किले के मुख्य दरवाजे को लाल दरवाजा कहा जाता है। इस किले के कई सारे भाग खंडर बन चुके है लेकिन यहाँ का लाल दरवाजा आज भी अच्छी हालत में है।

इस किले में कई सारे धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्मारक बनवाये गए थे। पीर शाह नुफा की कब्र (मृत्यु 1497), मुल्ला मुहम्मद सैद की कब्र (मृत्यु1704), शाह शुजा महल, गंगा के तट का कश्ताहरिणी घाट, चंडीस्थान (पुराना मंदिर) और 18 वी शताब्दी की कुच अंग्रेजो की कब्रे भी इस मुंगर किले में दिखाई देती है। हालही में किले पर योग सिखाने के लिए एक स्कूल भी बनवाया गया है।

इस किले को देखने को गए तो यहापर बहुत सारी अद्भुत चीजे देखने को मिलती है। यहापर किले के बारे में अद्भुत और रहस्यमयी बाते जानने का मौका मिलता है। यहापर केवल कब्रे ही नहीं बल्की शाह शुजा महल और चंडी देवी का मंदिर भी किले में देखने को मिलता है। इस किले को देखकर हमें इस किले की भव्य और शानदार वास्तुकला का नजारा देखने को मिलता है।

बिहार के इस महान किले का इतिहास में काफी महत्वपूर्ण योगदान रहा। इस किले ने कई सारे शासक देखे है। चाहे फिर वो खिलजी जैसे पराक्रमी वंश के हो या फिर अंग्रेजो जैसे चतुर शासक हो। हर किसी शासक ने इसे बड़ा बनाने में थोडा बहुत योगदान तो दिया ही है। किसी ने यहापर शाह शुजा का महल बनवाया है तो किसी और ने किले में चंडी देवी का मंदिर बनवाया है।

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