Muharram Story
हर धर्म के अपने कुछ नियम कानून और विचार धारा होती है जिस पर उस धर्म का आधार होता है। उसी धर्म से जुड़ी कुछ पंरपराएं, त्योहार होते है जो उस विचार धारा, कुर्बानी को याद दिलाते है। विश्व के सबसे बड़े धर्मों में से एक इस्लाम भी है। इस्लाम में मुहर्रम का बहुत महत्व है। हालांकि मुहर्रम के बारे में बहुत कम लोग जानते है जिस वजह से कई बार लोगों को इस बात को लेकर कंफ्यूजन हो जाती है कि ये कोई खुशी का त्योहार नहीं बल्कि गम का दिन होता है।
- जानिए मुहर्रम क्यों मनाया जाता हैं, क्या हैं इसके पीछे की कहानी – Muharram Story in Hindi
चलिए आपको बताते है कि मुहर्रम में इस्लाम में इतना क्यों महत्व मिला है साथ ही इसदिन ऐसा क्या हुआ था जिसे मुस्लिम समुदाय आज भी नहीं भुल पाया है। मुहर्रम का इतिहास इमाम हुसैन से जुड़ा है। मुहर्रम के दिन इमाम हुसैन की मौत का मातम मनाया जाता है। पर इमाम का इतिहास क्या ये बहुत कम लोग जानते है। मुहर्रम को समझने के लिए पहले ये जानना जरुरी है कि इमाम हुसैन कौन थे?
कौन है इमाम हुसैन – Who is Imam Hussain
पैंगबर मोहम्मद की बेटी फातिमा से अली की शादी हुई थी। अली और फातिमा के बेटा इमाम हुसैन थे जिस नाते इमाम हुसैन पैंगबर मोहम्मद के नवासे थे। कहानियों के अनुसार उम्मय्या नंश में पैंगबर मोहम्मद की मौत के बाद राजनीतिक सत्ता हासिल करने के लिए झड़प होने लगी थी। ये कहानी 1400 वर्ष पुरानी है। गद्दी पाने की रेस में एक गुट पैंगबर के पैतृक भाई और दामाद अली के हक में था तो वहीं दूसरी तरफ एक गुट ऐसा था जो चाहता था कि समुदाय सबकी सहमति सने कोई चुना जाए।
आखिर में पैंगबर भरोसेमंद सहयोगी अबु बक्र को खलीफा का ताज पहनाया गया। उसके बाद उमर और उस्मान खलीफा बनें। अली को चौथे खालीफा के तौर पर चुना गया। लेकिन जल्द ही अली की हत्या कर दी गई। जिसके बाद खलीफा का ताज उमय्यद वंश के यजीद के पास चला गया। जिसका विद्रोह अली के बेटे इमाम हुसैन ने किया।
ऐसा इसलिए क्यों कि हुसैन को लगता था कि उमय्यद यजीद अपने पद का गलत फायदा उठा रहा है और गलत रास्ते पर जा रहा है। साथ ही उसका गद्दी पर बैठना गलत है। माना जाता है कि कुफा के लोगों के लोग भी उमय्यद खलीफा यजीद की जगह हुसैन का साथ दे रही थी। क्योंकि वो भी यजीद को पसंद नहीं करते थे। धीरे-धीरे मतभेद बढ़ने लगा और इस तनाव ने करबला के युद्ध को जन्म दिया।
करबला का युद्ध का मुहर्रम से संबंध – Battle of Karbala
करबला इराक का एक शहर है जो बगदाद से 88 किलोमीटर आगे है। बेबोलोनियाई संस्कृति के अनुसार करबला का अर्थ ईश्वर का पवित्र स्थान है। इसी जगह पर एक भयंकर युद्ध लड़ा गया था। 680 ईस्वी पर यहां पर मुस्लिम समुदाय के दो संप्रदाय शिया और सुन्नी लोगों के बीच एक भयंकर लड़ाई लड़ी गई थी। जिसमें से शिया गुट पैंगबर मोहम्मद के नवासे और अली के बेटे हुसैन का समर्थक था वहीं दूसरा गुट यानि सुन्नी संप्रदाय मुस्लिम प्रमुख खलीफा उम्मय्या वंश के यजीद का समर्थक था।
इस युद्ध में हुसैन और उसके भाई अब्बास को बुरी तरह मार डाला गया। तथ्यों के अनुसार करबला की लड़ाई में इमाम हुसैन और उसके भाई के अलावा उनके 72 अनुयायी भी मारे गए थे। इसी कारण करबला शिया मुस्लिमों के लिए बहुत ही अहम और पवित्र स्थल है। मक्का के बाद करबला को वो अपना पवित्र स्थल मानते है। यहां पर इमाम हुसैन की मजार बनी हुई है। जहां लोग उन्हें श्रद्धाजंलि देने आते है। इमाम के साथ ही उनके भाई अब्बास की मजार भी हैं।
इमाम हुसैन को याद करने के लिए हर साल मुहर्रम मनाया जाता है। मुहर्रम इस्लाम कैलेंडर के पहले महीने में 10 तारीख को आता है। इसदिन शिया संप्रदाय इमाम हुसैन की शहादत को याद करता है। हर साल लाखों शिया मुस्लिम मुहर्रम पर करबाल आते है और इमाम की मजार पर उन्हें श्रद्धाजंलि देते हैं।
मुहर्रम के दिन खूबसूरती से सजाए गए ताजियों के साथ जुलूस निकाला जाता है। इस जुलूस को देखकर अक्सर लोगों को गलतफहमी हो जाती है कि शायद ये खुशी का पर्व होगा। लेकिन ऐसा नहीं है ये इमाम की शिया संप्रदाय के लोग दुख जाहिर करते है। सजाए गए ताजिये हुसैन और उसके अनुयायियों की कब्र का प्रति रुप होते है जो करबला के युद्ध में शहीद हुए थे।
मुहर्रम से जुड़ी खास बातें – Fact about Muharram
1. मुहर्रम दुख का त्योहार है इसदिन शिया मुस्लिम इमाम हुसैन और उनके साथियों को याद करते हैं।
2. इमाम की शहादत में ताजिये का जुलूस निकाला जाता है।
3. मुहर्रम इस्लाम कैलेंडर के 10 तारीख को मनाया जाता है इस लोग मातम मनाते है।
4. कई जगहों पर मातम मनाने वाले लोग चेन या ब्लैड से अपने शरीर पर घाव देकर अपना दुख प्रकट करते हैं
5. जो लोग अपने आप को चोट नहीं पहुंचाते वो अपना सीना पीट कर दुख जाहिर करते है और या हुसैन कहते हुए चलते हैं।
6. मुहर्रम के दिनों मुस्लिम समुदाय में शादियां नहीं होती है और ना ही लोग फिल्में देखने और नया सामान खरीदते हैं।
7. इसदिन इमाम और उसके साथियों की शहादत की कहानियां सुनाई जाती है।
8. मातम मनाने वाले लोग ताजिये के जुलूस को इमामबाड़े तक ले जाते है। जहां पर ताजिये को दफनाया जाता है या फिर डुबा दिया जाता है।
9. इसके बाद लोग अपना रोजा उस खिचड़ा या हलीम से तोड़ते है जो युद्ध के दौरान हुसैन और उसके साथियों को खानी पड़ी थी। ये खिचड़ा चावल, दाल के दलिये और मीट से बनी होती है।
10. इस दिन मुस्लिम लोग गरीब लोगों को खाना भी खिलाते है और दान करते हैं। ऐसा इसलिए क्यों कि करबला युद्ध के दौरान बहुत सारे लोग भूख और प्यास से मारे गए थे।
मुहर्रम भले ही इमाम हुसैन की शहादत की याद करने की एक अभिव्यक्ति हो, लेकिन मुहर्रम साथ ही ये मैसेज भी देती है कि जिस तरह हम कुछ अच्छा होने पर उसे एक त्योहार की तरह मनाते है उसी तरह किसी की कुर्बानी या शहादत को भी नहीं भुलना चाहिए और ना ही उनके परिवार के लोगों के दुख को नजरअंदाज करना चाहिए।