Muhammad Ghori
भारतीय इतिहास में मोहम्मद गौरी की गिनती महानतम शासकों में होती है। मोहम्मद गौरी एक निर्भीक और साहसी अफगान योद्धा था, जिसने गजनी साम्राज्य के अधीन गोर नामक राज पर अपना सिक्का चलाया था। वहीं भारत में तुर्क साम्राज्य की स्थापना का श्रेय भी मोहम्मद गोरी को ही दिया जाता है। मोहम्मद गोरी एक अपराजित विजेता और सैन्य संचालक भी था।
मुहम्मद बिन कासिम के बाद महमूद गजनवी और फिर उसके बाद मोहम्मद गोरी ने क्रूरता के साथ भारत में लूटपाट की और आक्रमण किया। हालांकि गौरी का मकसद भारत में मुस्लिम राज्य को स्थापित करना था। इसके लिए मोहम्मद गोरी ने पूरी योजना के साथ साल 1179 से 1186 के बीच पहले पंजाब पर अपना आधिपत्य जमाया था और फिर 1179 में स्यालकोट को भी अपने अधीन कर लिया था।
इसके बाद अफगान शासक मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चैहान तृतीय के क्षेत्र भटिण्डा (तबरहिन्द) पर भी जबरदस्ती अपना कब्जा जमा लिया था, जिसके चलते बाद में चौहान वंश के शासक एवं साहसी और वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गोरी के बीच युद्ध हुआ था। वहीं भारतीय इतिहास में दोनों ही योद्धाओं के बीच हुए युद्द काफी चर्चित रहे -आइए जानते हैं भारतीय इतिहास के इस महान शासक मोहम्मद गोरी के बारे में-
मोहम्मद ग़ोरी का इतिहास – Muhammad Ghori History in Hindi
पूरा नाम (Name) | सुलतान शाहबुद्दीन मुहम्मद ग़ोरी |
अन्य नाम | मुइज़ अद-दिन मुहम्मद, शिहब अद-दिन के नाम |
जन्म (Birthday) | 1149 ई, ग़ोर, अफ़ग़ानिस्तान (पुख्ता प्रमाण नहीं) |
मृत्यु (Death) | 15 मार्च, 1206 ई., झेलम क्षेत्र, पाकिस्तान |
मोहम्मद गोरी का जन्म एवं इतिहास – Muhammad Ghori Information in Hindi
भारतीय इतिहास के इस महान योद्धा के जन्म तिथि के बारे में कोई पुख्ता प्रमाण तो नहीं है, लेकिन कुछ महान इतिहासकार 1149 ईसवी में घोर प्रांत (अफगानिस्तान) में उनका जन्म मानते थे। आपको बता दें कि मुइज़ अद-दिन मुहम्मद का जन्म शिहब अद-दिन के नाम से हुआ था जो बाद मोहम्मद ग़ोरी के नाम से प्रख्यात हुए।
गोरी वंश की नींव और गजनी साम्राज्य की जिम्मेदारी – Ghaznavid Dynasty
इतिहासकारों के मुताबिक 12वीं शताब्दी के बीच गोरी वंश का उदय हुआ, गोरी राजवंश की स्थापना गोरी के चाचा अला-उद-दीन जहांसोज ने की थी, जिसकी मौत के बाद परिवारवाद प्रथा के मुताबिक उसका पुत्र सैफ-उद-दीन गोरी ने राज-पाठ संभाला।
वहीं अला-उद-दीन जहांसोज ने शहाबुद्धीन मोहम्मद गोरी और उसके भाई गियासउद्दीन को कई सालों तक कैद कर रखा था, लेकिन सैफ-उद-दीन ने अपने शासनकाल में इन दोनों को आजाद कर दिया था।
वहीं सैफ-उद-दीन की मृत्यु के बाद गियासउद्दीन को शासक बनाया गया, हालांकि फिर 1173 ईंसवी में मुहम्मद गौरी को गजनी साम्राज्य के अधीन गौर राज्य का शासक बनाया गया।
शासक के रुप में मोहम्मद गोरी – Muhammad Ghori was Ruler
मोहम्मद गौरी एक अफगान योद्धा था, जिसने अपने राज में कई तुर्क सेवादार रखे हुए थे, जिनको गौरी ने अच्छी सैन्य और प्रशासनिक शिक्षा भी दी थी, जिसकी वजह से गोरी अपनी गुलाम तुर्क सेना का भरोसा जीतने में सफल रहा था। वहीं उसकी सेना में कई ऐसे सैनिक भी थे, जो मोहम्मद गोरी के लिए अपने प्राणों की आहुति देने तक को तैयार थे।
मोहम्मद गोरी ने अपने सैनिकों की मद्द से अफगानिस्तान के आस-पास के राज्यों में अपना अधिकार जमा लिया था और बाद में उसने गजनी को अपनी राजधानी बनाया था।
मोहम्मद गोरी द्धारा भारत पर आक्रमण – Muhammad Ghori War in India
मुहम्मद गौरी एक कभी नहीं हार मानने वाला विजेता योद्धा और कुशल अफगान सेनापति था, जिसका भारत पर आक्रमण कर भारत को जीतने का उद्देश्य मोहम्मद कासिम और महमूद गजनवी के उद्देश्यों से अलग था। मोहम्मद गोरी न सिर्फ भारत पर लूटपाट कर भारत पर अपना सिक्का चलाना चाहता था, बल्कि उसका मुख्य उद्देश्य भारत में मुस्लिम राज्य की स्थापना करना था, इसलिए भारतीय इतिहास में तुर्क साम्राज्य का संस्थापक मोहम्मद गोरी को ही माना गया है।
भारत पर अपना आधिपत्य जमाने के लिए मोहम्मद गौरी ने सबसे पहले साल 1175 में मुल्तान पर उस समय हमला किया, जब वहां शिया मत को मानने वाले करामाता शासन कर रहे थे। हालांकि गौरी ने मुल्तान पर जीत हासिल की। इसके बाद पूरे भारत में इस्लामिक राज्य की स्थापना करने के उद्देश्य से गौरी ने साल 1178 ईसवी में गुजरात पर आक्रमण किया।
हालांकि गुजरात के शासक ने गौरी की नापाक चाल को नाकाम कर उसे गुजरात से खदेड़ दिया। यह गौरी की पहली हार थी, जिससे सबक लेकर मोहम्मद गोरी ने भारत में अपने विजय अभियान के मार्ग में परिवर्तन कर पंजाब की तरफ से भारत में अपना अधिकार जमाने के प्रयास किए।
मोहम्मद गोरी ने भारत पर अधिकार करने का अपना सपना साकार करने के मकसद से साल 1179 से 1186 के बीच पंजाब पर फतह हासिल की। वहीं जिस समय उसने पंजाब पर आक्रमण किया जब पंजाब में महमूद शासक शासन संभाल रहे थे, इस तरह गौरी ने उन्हें हराकर पंजाब पर कब्जा कर लिया।
इसके बाद उसने पेशावर, स्यालकोट, और फिर लाहौर और भटिण्डा में जीत हासिल की। इस तरह मोहम्मद गौरी ने एक के बाद एक पंजाब के ज्यादातर क्षेत्रों में अपना अधिकार जमा लिया, जिसके चलते मोहम्मद गौरी का उत्तरी भारत के मैदानी भू-भागों में आगे बढ़ने के लिए रास्ता तो साफ हो गया, लेकिन मोहम्मद गोरी के राज्य की सीमा दिल्ली और अजमेर के महान शासक पृथ्वीराज चौहान के राज्य से लगी हुई थी, इसलिए भारत पर अपन अधिकार जमाने के मकसद से आगे बढ़ने के लिए गोरी को महान पराक्रमी योद्धा पृथ्वीराज चौहान से दुश्मनी मोड़ लेनी पड़ी।
वहीं ऐसा भी कहा जाता है कि पृथ्वीराज के शत्रु राजा जयचंद ने मोहम्मद गोरी को पृथ्वीराज से युद्ध करने के लिए उकसाया और वादा किया कि वे गोरी की इस युद्द में मद्द करेंगे। इसके बाद मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच भीषण युद्ध हुआ।
मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच पहला युद्ध – Tarain Ka Yudh
साल 1191 में थानेश्वर के पास तराइन के मैदान में पृथ्वीराज और मोहम्मद गौरी के बीच पहला युद्ध हुआ, जिसमें, मोहम्मद गौरी को हार का सामना करना पड़ा। इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान द्धारा मोहम्मद गौरी को बंधक बना लिया गया, हालांकि पृथ्वीराज चौहान ने बाद में उसे छोड़ दिया। गोरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच हुआ यह युद्ध तराइन का प्रथम युद्द के नाम से मशहूर है।
मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच हुआ दूसरा युद्द – Muhammad Ghori and Prithviraj Chauhan
प्रथम युद्ध में पृथ्वीराज चौहान से पराजित होने के बाद मोहम्मद गौरी ने अपनी और अधिक शक्ति और साहस के साथ पृथ्वीराज चौहान पर साल 1192 में तराइन के मैदान में ही आक्रमण कर दिया और इस युद्ध में मोहम्मद गौरी के पराक्रम के सामने महान योद्दा पृथ्वीराज चौहान का साहस भी कमजोर पड़ गया और वे इस युद्ध में हार गए।
इस तरह मोहम्मद गोरी ने चौहान साम्राज्य का नाश कर दिल्ली और अजमेर पर जीत हासिल कर ली। वहीं तराइन के इस दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज चौहान के सबसे भरोसेमंद सामंत और दिल्ली के तोमर शासक गोविंदराज की मौत हो गई। इस युद्ध में हारने के बाद पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी की मौत भी हो गई, हालांकि मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान की मौत के बारे में इतिहासकारों के अलग-अलग मत हैं।
मोहम्मद गौरी की मृत्यु को लेकर इतिहासकारों के मत – Muhammad Ghori Death
पृथ्वीराज के करीबी दोस्त एवं महाकवि चंदरबदाई के मुताबिक तराइन के दूसरे युद्ध में जीतने के बाद मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को बंधक बना लिया और उन्हें अपने साथ गजनी ले गया। इसके बाद पृथ्वीराज चौहान ने अपनी शब्दभेदी वाण की अद्भुत कला से मोहम्मद गौरी के दरबार में आयोजित तीरंदाजी प्रतियोगिता में गौरी को मार दिया। और इसके बाद पृथ्वीराज चौहान और चंदबरदाई भी मारे गए।
जबकि अन्य इतिहासकारों के मुताबिक तराइन के दूसरे युद्द में हारने के बाद पृथ्वीराज चौहान ने अपनी अधीनता स्वीकार कर ली और गौरी ने उसे अजमेर में अपने अधीन रखकर शासन करवाया। और फिर पृथ्वीराज को मरवा दिया और उसकी कब्र को अफगानिस्तान में गढ़वा दिया।
फिलहाल, इसके बाद मोहम्मद गौरी और कन्नौज के राज् जयचंद जिसने पृथ्वीराज के खिलाफ युद्ध में साथ दिया था, दोनों के बीच युद्ध हुआ। मोहम्मद गौरी ने जयचंद की धोखेबाजी से गुस्साकर उस पर आक्रमण कर दिया। उन दोनों के बीच हुए युद्ध को “चंद्रवार” कहा गया। युद्ध जीतने के बाद गौरी अपने अपने राज्य गजनी वापस लौट गया था, हालांकि इससे पहले उसने अपने एक काबिल गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक को दिल्ली का सुल्तान बना दिया था।
वहीं कुछ इतिहासकारों के मुताबिक साल 1206 ईसवी में मोहम्मद गौरी की मौत के बाद भारत में कुतुबुद्दीन ऐबक ने एक नए गुलाम वंश की नींव डाली। जिसकी नींव पर दिल्ली सल्तनत और खिलजी, मुगल, लोदी, तुगलक,सैय्यद, आदि राजवंशों की आधारशिला रखी गई थी।
हालांकि, गुलाम वंश के शासकों ने तो 1206 से 1290 तक ही शासन किया, लेकिन उनके शासन की नींव पर ही दिल्ली के तख्त पर अन्य विदेशी मुस्लिमों ने कई सालों तक राज किया, जो कि करीब 1707 ईसवी तक ओरंगजेब की मृत्यु तक चला। वहीं मोहम्मद गौरी ने अपने राज में विशेष प्रकार के सिक्के भी चलाए थे, जिनके एक तरफ कलमा खुदा रहता था, जबकि दूसरी तरफ लक्ष्मी की आकृति बनी हुई थी।
मोहम्मद गोरी की वीरता और साहस के किस्से भारतीय इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखे गए हैं। वहीं उसे भारत में तुर्क साम्राज्य के संस्थापक के रुप में आज भी याद किया जाता है।
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Mohmmad gouri ek kayar yodha tha juth or chal se jita tha prathvi raj chaouhan ko bhi chhal se bandi banaya tha aur prathvi raj chaouhan ek veer or sacche rajpoot yodha the apne dushman ko maar kar apne dost ke hatho khud mar gaye lekin jite jee kabhi uske samne sar nhi jukaya … Hidustaam Amar rahe
ye baat sahi hai ki maara gya tha m.gauri 1206mara gya tha
PrithviRaj chauhan or Mahmoud gouri ka yuddh kitne sal tak chaka
Mohd gori was very empror because he killed to kaffer
Agar prithviraj Chauhan ne ghori ko 1192 me Mar Diya Tha to fir 1194 me jaichand ko kaise chadavar ke yudh me ghori ne mara Kya ghori 2years ke bad jinda ho gaya Tha ya fir 1192 me use prithviraj ko mara Tha …..bada confusion hai Yar koi sahi answer dega please?
Real story is ki Ghori ne Prithviraj ko mara tha
Prithviraj chohan ne md.gori ko mara nahi tha balki uski sari shakti ko usse chhin ka us ko shakti hin kar diya tha jo ki itihas me kaha gaya hai ki 1991 me prithviraj chohan ne md. Gori mara nahi balki parajit kiya phir 1992 me md gori ne apni har ka badla lene ke liye prithviraj chohan ko parajit kiya mara nahi.
1192 me wo nhi mra tha sirf hara tha
1192 me gouri ne prithvi ko bandi banaya tha or prithvi or uske rajkavi chandarbardai ko apne sath gour le gya tha is bich chandawar ka yuddh bhi hua tha or bad me gour me prithvi ne shabd bhedi ban vidya se gouri ki tir marke hatya kri thi