Ms Swaminathan – मनकोम्बू सम्बमिनाथन स्वामीनाथन एक भारतीय जेनेटिक वैज्ञानिक और भारत में हरित क्रांति में मुख्य भूमिका अदा करने वाले व्यक्ति हैं। विज्ञान और अभियांत्रिकी के क्षेत्र में स्वामीनाथन ने अपना अतुलनीय योगदान दिया है। स्वामीनाथन को “भारतीय हरित क्रांति का जनक” भी कहा जाता है।
उन्ही की बदौलत भारत में गेहू की पैदावार में बढ़त हुई है। इसके साथ ही वे एम्.एस. स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष भी है। उन्होंने अपने कार्य की शुरुवात गरीबी और भुखमरी को हटाने के नेक इरादे से की थी।
“भारतीय हरित क्रांति के जनक” एम एस स्वामीनाथन – “Indian Father of Green Revolution”Ms Swaminathan In Hindi
भारत में कृषि क्षेत्र में हो रहे सतत विकास में स्वामीनाथन में मुख्य भूमिका निभाई है। विशेष तौर पे उन्होंने अनाज की सुरक्षा और अन्न संवर्धन की और ज्यादा ध्यान दिया और उनके इसी कार्य ने आगे चलके एक क्रांति का रूप धारण कर लिया जिसे हरित क्रांति का नाम दिया गया था।
1972 से 1979 तक वे इंडियन कौंसिल ऑफ़ एग्रीकल्चरल रिसर्च के डायरेक्टर थे। और 1979 से 1980 तक वे मिनिस्ट्री ऑफ़ एग्रीकल्चर फ्रॉम के प्रिंसिपल सेक्रेटरी भी रहे। 1982 से 1988 तक उन्होंने जनरल डायरेक्टर के पद पर रहते हुए इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टिट्यूट की सेवा भी की और बाद में 1988 में इंटरनेशनल यूनियन फॉर कान्सर्वेशन ऑफ़ नेचर एंड नेचुरल रिसोर्सेज के प्रेसिडेंट भी बने।
1999 में टाइम पत्रिका ने उन्हें 20 वी सदी के सबसे प्रभावशाली लोगो की सूचि में भी शामिल किया।
एम.एस. स्वामीनाथन का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा | Dr ms swaminathan Early Life Information & History In Hindi
एम.एस. स्वामीनाथन / Ms Swaminathan का जन्म कुम्बकोनम में 7 अगस्त 1925 को हुआ था। वे सर्जन डॉ. एम.के. सम्बसिवन और पार्वती ठंगम्मल सम्बसिवन के दुसरे बेटे थे। एम.एस. स्वामीनाथन ने अपने पिता से यही सिखा की,
“असंभव शब्द ही हमारे दिमाग की इच्छाओ को क्रियाशील करने में सहायक होता है, क्योकि असंभव शब्द का सामना करके ही हम बड़े से बड़े लक्ष्य को हासिल कर सकते है.”
सर्जन एम.के. सम्बसिवन, महात्मा गांधी के अनुयायी है, उन्होंने “विदेशी कपडे जलाओ” अभियान में भी महात्मा गांधी का साथ दिया था। जिसका मुख्य उदेश्य देश से विदेशी वस्तुओ को हटाकर स्वदेशी वस्तुओ को अपनाना था।
उस समय अधिकतर लोगो ने विदेशी कपड़ो का विरोध किया था और भारतीय खादी के कप्दोको प्राधान्य दिया था। इस अभियान का राजनैतिक उद्देश्य भारत को अंग्रेजो पर निर्भर रहने से बचाना था और भारतीय ग्रामीण उद्योग को बढ़ावा देना था। उनके पिता ने दलितों के लिये मंदिर बनवाये, और उस समय बीमारियों से ग्रसित ग्रामीणों का मुफ्त इलाज भी किया। बचपन से ही स्वामीनाथन में अपने पिता जैसे परोपकार करने की भावना थी।
स्वामीनाथन के पिता की मृत्यु के समय उनकी आयु केवल 11 साल की ही थी और उनके अंकल एम.के. नारायणस्वामी अब उनके देखभाल करते थे। वही उन्होंने स्थानिक स्कूल से शिक्षा प्राप्त की और बाद में कुम्बकोनम के कैथोलिक लिटिल फ्लावर हाई स्कूल से माध्यमिक शिक्षा प्राप्त की और 15 साल की आयु में स्वामीनाथन ने मेट्रिक की परीक्षा भी पास कर ली थी।
बाद में अंडर ग्रेजुएट की पढाई पूरी करने के लिये वे त्रिवेंद्रम, केरला के महाराजा कॉलेज में गये। वहा उन्होंने 1940 से 1944 तक पढाई की और जूलॉजी में बैचलर ऑफ़ साइंस की डिग्री हासिल की।
डिग्री हासिल करने के बाद स्वामीनाथन ने एग्रीकल्चर में करियर बनाने का निर्णय लिया। इसके लिये मद्रास के एग्रीकल्चर कॉलेज में भी वे दाखिल हुए (अभी तमिलनाडु एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी) वहा वेलिडिक्टोरीयन (Valedictorian) में अपना ग्रेजुएशन पूरा किया और बैचलर ऑफ़ साइंस की उपाधि हासिल की, लेकिन इस समय उन्होंने डिग्री एग्रीकल्चर के क्षेत्र में हासिल की थी। उन्होंने करियर से सम्बंधित अपने निर्णय को इस कदर बताया की:
“मुझे 1943 में बंगाल में सुखा देखकर वैयक्तिक प्रेरणा मिली, उस समय मई यूनिवर्सिटी ऑफ़ केर्लाका विद्यार्थी था। वहा तीव्र चावल जमा करके रखा गया था और तक़रीबन 3 लाख लोग बंगाल में भूक की वजह से मारे गये थे। इसिलिये उस समय हर एक इंसान आज़ादी के लिये संघर्ष कर रहा था और इसीलिये मैंने देश के लिये कुछ करने की चाह से किसानो को सहायता करने के उद्देश्य से एग्रीकल्चर रिसर्च को चुना।”
1947 में, भारत की आज़ादी के साल साल ही वे इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टिट्यूट (IARI), नयी दिल्ली गये जहा वे उस समय जेनेटिक के पोस्ट ग्रेजुएट विद्यार्थी थे। 1949 में उन्होंने ऊँचे पद पर रहते हुए साइटोजेनेटिक्स में पोस्ट ग्रेजुएट की डिग्री प्राप्त की। बाद में उन्होंने यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन की परीक्षा दी और इंडियन पुलिस सर्विस में लग गये।
बाद में उन्होंने वगेनिंगें एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, इंस्टिट्यूट ऑफ़ जेनेटिक इन नीदरलैंड में IARI में आलू के जेनेटिक पर रिसर्च करने के लिये UNESCO के सहचर्य को स्वीकार कर लिया। और भारत में वे पौधों की पैदावार को बढ़ाने के लिये सतत रिसर्च कर ही रहे थे।
अतःस्वामीनाथन ने अंर्तराष्ट्रीय संस्थान में चावल पर शोध किया। उन्होने चावल की जापानी और भारतीय किस्मों पर शोध किया।
1965 में स्वामीनाथन के भाग्य ने पलटा खाया और उन्हे कोशा स्थित संस्थान में नौकरी मिल गई। वहा उन्हे गेहुँ पर शोध कार्य का दायित्व सौंपा गया। साथ ही साथ चावल पर भी उनका शोध चलता रहा। वहा के वनस्पति विभाग में किरणों के विकिरण की सहायता से परिक्षण प्रारंभ किया और उन्होने गेहँ की अनेक किस्में विकसित की। अनेक वैज्ञानिक पहले आशंका व्यक्त कर रहे थे कि एटमी किरणों के सहारे गेहुँ पर शोध कार्य नही हो सकता पर स्वामीनाथन ने उन्हे गलत साबित कर दिया।
1970 में सरदार पटेल विश्वविद्यालय ने उन्हे डी एस सी की उपाधी प्रदान की। 1969 में डॉ. स्वामीनाथन इंडियन नेशनल साइंस एकेडमी के सचीव बनाये गये। वे इसके फैलो मेंम्बर भी बने। इससे पूर्व 1963 में हेग में हुई अंर्तराष्ट्रीय कॉनफ्रेंस के उपाध्यक्ष भी बनाये गये।
1954 से 1972 तक डॉ स्वामीनाथन ने कटक तथा पूसा स्थित प्रतिष्ठित कृषी संस्थानो में अद्वितिय काम किया। इस दौरान उन्होने शोध कार्य तथा शिक्षण भी किया। साथ ही साथ प्रशासनिक दायित्व को भी बखूबी निभाया। अपने कार्यों से उन्होने सभी को प्रभावित किया और भारत सरकार ने 1972 में भारतीय कृषी अनुसंधान परिषद का महानिदेशक नियुक्त किया। साथ में उन्हे भारत सरकार में सचिव भी नियुक्त किया गया।
भारत लाखों गाँवों का देश है और यहाँ की अधिकांश जनता कृषि के साथ जुड़ी हुई है। इसके बावजूद अनेक वर्षों तक यहाँ कृषि से सम्बंधित जनता भी भुखमरी के कगार पर अपना जीवन बिताती रही। इसका कारण कुछ भी हो, पर यह भी सत्य है कि ब्रिटिश शासनकाल में भी खेती अथवा मजदूरी से जुड़े हुए अनेक लोगों को बड़ी कठिनाई से खाना प्राप्त होता था। कई अकाल भी पड़ चुके थे।
भारत के सम्बंध में यह भावना बन चुकी थी कि कृषि से जुड़े होने के बावजूद भारत के लिए भुखमरी से निजात पाना कठिन है। इसका कारण यही था कि भारत में कृषि के सदियों से चले आ रहे उपकरण और बीजों का प्रयोग होता रहा था।
फसलों की उन्नति के लिए बीजों में सुधार की ओर किसी का ध्यान ही नहीं गया था। एम.एस. स्वामीनाथन ही वे पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने सबसे पहले गेहूँ की एक बेहतरीन किस्म को पहचाना और स्वीकार किया। इस कार्य के द्वारा भारत को अन्न के मामले में आत्मनिर्भर बनाया जा सकता था। यह मैक्सिकन गेहूँ की एक किस्म थी, जिसे स्वामीनाथन ने भारतीय खाद्यान्न की कमी दूर करने के लिए सबसे पहले अपनाने के लिए स्वीकार किया। इसके कारण भारत के गेहूँ उत्पादन में भारी वृद्धि हुई।
इसलिए स्वामीनाथन को “भारत में हरित क्रांति का जनक” माना जाता है। स्वामीनाथन के प्रयत्नों का परिणाम यह है कि भारत की आबादी में प्रतिवर्ष पूरा एक ऑस्ट्रेलिया समा जाने के बाद भी खाद्यान्नों के मामले में वह आत्मनिर्भर बन चुका है। भारत के खाद्यान्नों का निर्यात भी किया है और निरंतर उसके उत्पादन में वृद्धि होती रही है।
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स्वामीनाथन के सम्मान पुरस्कार और अंतर्राष्ट्रीय उपलब्धिया | Dr ms swaminathan Awards
- विज्ञान और तंत्रज्ञान में सराहनीय योगदान के लिये एच.के. फिरोदिया अवार्ड।
- फ्रीडम ऑफ़ स्पीच, फ्रीडम ऑफ़ रिलिजन, फ्रीडम फ्रॉम वांट एंड फ्रीडम फ्रॉम फियर के तत्व में अमूल्य उपलब्धियों के लिये 2000 में चार फ्रीडम अवार्ड दिये गये।
- सन 2000 में एशिया में हरित क्रांति के क्षेत्र में बेहतरीन रिसर्च करने और भारतीय कृषि का विकास करने हेतु प्लेनेट एंड ह्यूमैनिटी मैडल ऑफ़ इंटरनेशनल ज्योग्राफिकल यूनियन अवार्ड।
- पर्यावरण और वातावरण की सुरक्षा करने के क्षेत्र में सराहनीय कामगिरी के लिये UNEP ससकावा एनवायरनमेंट प्राइज.1994 में वे पॉल और ऐनी एह्र्लिच के साथ सह-विजेता थे, जिन्हें कुल 200,000$ का पुरस्कार मिला था।
- पर्यावरणीय उपलब्धियों के लिये द टाइलर प्राइज का पुरस्कार, ये पुरस्कार उन्हें बायोलॉजिकल प्रोडक्टिविटी बढ़ाने और पर्यावरण संतुलन बनाये रखने के लिये दिया गया,1991।
- 1991 में इकोटेक्नोलॉजी में अतुलनीय योगदान के लिये हौंडा प्राइज।
- 1989 में पद्म विभूषण
- 1987 में अनाज की गुणवत्ता और उत्पादन क्षमता बढाने और कृषि क्षेत्र में विकास की नीव खडी करने के लिये वर्ल्ड फूड प्राइज दिया गया।
- 1987 को प्रेसिडेंट कोराजॉन एक्विनो द्वारा गोल्डन हार्ट प्रेसिडेंशियल अवार्ड ऑफ़ द फिलीपींस का पुरस्कार दिया गया।
- 1986 में इंटरनेशनल एग्रीकल्चरल डेवलपमेंट और जेनेटिक प्लांट में उनके योगदान के लिये अल्बर्ट आइंस्टीन वर्ल्ड अवार्ड ऑफ़ साइंस का पुरस्कार।
- 1979 में वैज्ञानिको को प्रेरित करने और योग्य सलाह और मशवरा देने हेतु बोरलॉग अवार्ड दिया गया।
- 1972 में पद्म भुषण से सम्मानित किया गया।
- कम्युनिटी लीडरशिप के लिये 1971 में रमन मैग्सेसे अवार्ड दिया गया।
- 1967 में पद्म श्री।
- फॉरेन फेलो ऑफ़ बांग्लादेश अकैडमी ऑफ़ साइंस का सम्मान। उन्होंने पुरे विश्व से तक़रीबन 50 से ज्यादा डॉक्टरेट की डिग्री हासिल कर रखी है।
एम.एस. स्वामीनाथन के राष्ट्रिय पुरस्कार- Ms Swaminathan National Awards
- भारत में भी उन्हें काफी पुरस्कारों से सम्मानित किया गया और उनके द्वारा किये गये कामो की सराहना की गयी।
- 2007 की NGO कॉन्फ्रेंस में iCONGO द्वारा कर्मवीर पुरस्कार द्वारा सम्मानित किया गया।
- अन्न-धान्य सुरक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान के लिये उन्हें 2004 में दुपोंट-सलाइ अवार्ड दिया गया।
- 2003 में बायोस्पेक्ट्रम ने उन्हें लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया।
- 2002 में मानव विकास क्षेत्र में उनके योगदान के लिये एशियाटिक सोसाइटी द्वारा इंदिरा गांधी गोल्ड प्लाक पुरस्कार दिया गया।
- शांति के लिये इंदिरा गांधी पुरस्कार दिया गया।
- भारतीय हरित क्रांति और अतुलनीय वैज्ञानिक और पर्यावरणीय कामो के लिये सन् 2001 में उन्हें तिलक स्मारक ट्रस्ट ने लोकमान्य तिलक अवार्ड से सम्मानित किया।
- 2000 में तमिलनाडु एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी द्वारा मिलेनियम अलुमनुस अवार्ड दिया गया।
- सन् 1999 में प्रो. पी.एन. महरा मेमोरियल अवार्ड।
- 1999 में वर्ल्ड विल्डरनेस ट्रस्ट द्वारा लीजेंड इन लाइफटाइम अवार्ड में हकदार।
- 1997 में एग्रीकल्चर रिसर्च और नेशनल अकैडमी ऑफ़ एग्रीकल्चरल साइंस में विकास करने के लिये डॉ. बी.पी. पाल मैडल के हक़दार।
- राष्ट्रिय विकास में अमूल्य योगदान के लिये 1997 में व्ही. गंगाधरण अवार्ड देकर सम्मानित किया गया।
- 1992 में लाल बहादुर शास्त्री देशगौरव सम्मान दिया गया।
- बोस इंस्टिट्यूट द्वारा 1989 में डॉ. जे.सी. बोस मैडल दिया गया।
- कृषि के क्षेत्र में क्रांतिकारक योगदान के लिये भारत कृषक समाज द्वारा 1986 में प्रेजिडेंट ज्ञानी ज़ैल सिंह ने उन्हें कृषि रत्न अवार्ड से सम्मानित किया।
- 1981 में विश्व भारती यूनिवर्सिटी का रवीन्द्रनाथ टैगोर पुरस्कार।
- इंडियन एनवायर्नमेंटल सोसाइटी द्वारा 1981 में आर.डी. मिश्रा मैडल दिया गया।
- जेनेटिक में अपने योगदान के लिये 1978 में एशियाटिक सोसाइटी द्वारा बार्कले मैडल दिया गया।
- स्टैंडरडाईसेशन में अपने अतुल्य योगदान के लिये इंडियन स्टैंडर्ड्स ब्यूरो द्वारा मौड़गिल प्राइज दिया गया।
- बॉटनी विभाग में अपने योगदान के लिये 1965 में इंडियन बोटैनिकल सोसाइटी द्वारा बीरबल साहनी मैडल दिया गया।
- 1961 में बायोलॉजिकल साइंस में अपने योगदान के लिये उन्हें शांति स्वरुप भटनागर अवार्ड दिया गया।
- राष्ट्रिय क्रांति लाने के लिये इंडियन नेशनल कांग्रेस की और से इंदिरा गांधी अवार्ड दिया गया।
स्वामीनाथन के इंटरनेशनल अवार्ड – Ms Swaminathan International Awards:
स्वामीनाथन को बहुत से अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। –
• बायोटेक्नोलॉजी और देश में कृषि के क्षेत्र में और पर्यावरण के क्षेत्र में विकास करने के लिये 1999 में UNESCO महात्मा गांधी स्वर्ण पदक दिया गया।
• मानवता को बढ़ावा देने और एग्रीकल्चर का विकास करने हेतु 1998 में USA में मिसौरी बोटैनिकल गार्डन के बोर्ड ऑफ़ ट्रस्टी द्वारा हेनरी शॉ मैडल दिया गया।
• 1997 में फ्रांस सरकार ने उन्हें आर्द्र दु मैरिटे अग्रिकोले अवार्ड दिया गया।
• 1997 में चीन सरकार ने उनके रिसर्च और पराक्रमो को देखते हुए उन्हें अपना सर्वोच्च अवार्ड देकर सम्मानित किया।
• ग्रामीण भागो का विकास करने और ग्रामीण भागो की परिस्थिति सुधारने में अपना सहयोग देने के लिये 1995 में ग्लोबल एनवायर्नमेंटल लीडरशिप अवार्ड दिया गया।
• 1994 में वर्ल्ड अकैडमी ऑफ़ आर्ट एंड साइंस ने सम्मानित किया।
• 1994 में एशियाई उत्पादन संस्था APO द्वारा एशियन रीजनल अवार्ड दिया गया।
• 1993 में चार्ल्स डार्विन इंटरनेशनल साइंस एंड एनवायर्नमेंटल मैडल दिया गया।
• 1990 में नीदरलैंड में उन्हें गोल्डन आर्क का सम्मान दिया गया।
• रिसर्च की दुनिया में अतुलनीय कामगिरी करने के लिये और भारतीय अनाज का उत्पादन बढाने के लिये द वॉल्वो एनवायर्नमेंटल प्राइज दिया गया।
• 1985 में एसोसिएशन फॉर वीमेन राइट्स इन डेवलपमेंट (AWID) ने उन्हें इंटरनेशनल अवार्ड देकर सम्मानित किया।
• 1985 में जॉर्जिया यूनिवर्सिटी ने उन्हें बिसेंटेनरी मैडल देकर सम्मानित किया।
• अन्न सुरक्षा और संवर्धन में अपने योगदान के लिए 1984 में उन्हें रॉयल सोसाइटी ऑफ़ आर्ट द्वारा बेनेट कामनवेल्थ प्राइज दिया गया।
1965 में प्लांट जेनेटिक के क्षेत्र में उनके योगदानो के लिये ग्ज़ेचोस्लोवाल अकैडमी ने उन्हें सम्मानित किया।
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- MS Swaminathan Research Foundation
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Very good story Dr. MS Swaminathan he bare me study bahut achaa laga.
मनकोम्बू सम्बमिनाथन स्वामीनाथन / Ms Swaminathan एक भारतीय जेनेटिक वैज्ञानिक और भारत में हरित क्रांति में मुख्य भूमिका अदा करने वाले व्यक्ति थे. Is line me antim akshar ‘थे’ गलत इस्तेमाल लगता है। mehsoos hota hai jaise dr nahin hai.swam8nathan Jeevitha hain.
Manmohan Ji
Aapaka bahut-bahut dyanyawad.. apane diye sujhav ke hisab se use thik kar diya hain. Now post update.